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Showing posts from June, 2021

"चिडिया चूँ चूँ करती है"(कविता)

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 चिडिया चूँ चूँ करती है,  जब वो सोकर उठती है।  चिडिया चूँ चूँ करती है  जब वो कुल्ला करती है।  चिडिया चूँ चूँ करती है  जब वो मुह को धोती है।  चिडिया चूँ चूँ करती है,  जब वो रोज नहाती है।  चिड़िया चूँ चूँ करती है  जब वो दाना चुगती है।  चिड़िया चूँ चूँ करती है  जब वो पढने जाती है।  चिड़िया चूँ चूँ करती है  जब उसके बच्चे रोते हैं। चिड़िया चूँ चूँ करती है  जब वो गाना गाती है। Written by  सुरेश कुमार 'राजा'

"सोंचो अगर हम पंक्षी होते"(कविता)

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 सोंचो अगर हम पंक्षी होते,  फुर्र-फुर्र करके हम उड जाते। पेड़ों में अपना घर होता,  मीठे-मीठे फल सब खाते।  दूर गगन तक आना जाना  चाँद सितारों को ले आते।  बुध शुक्र पृथ्वी मंगल बृहस्पति  शनि अरुण वरुण को गीत सुनाते।  बादल के पीछे छिप जाते  बच्चे हमको ढूंढ न पाते।  नदी तालाब पोखर झरने मे  फुदक फुदक कर खूब नहाते। Written by  सुरेश कुमार 'राजा'

"मखमली रिश्ते"(कविता)

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मखमली  रिश्ते मतलबी  हो गए कल तक जो गुंडे थे,नबी हो गए मेरे खास थे, उन्हें सच कह दिया एक  पल में वो  अजनबी हो गए तेरे  गेसूओं के साये  में क्या लेटे सब भूल, आराम तलबी  हो गए वो बसंत  बनके आए  जिंदगी  में सपने  मेरे  लाल, गुलाबी  हो गए मैं  बताऊं, क्यों पीते  हैं वे  इतना इश्क में  ठुकराए, शराबी  हो गए महफिलें   क्या  बंद  कर  दी मैंने मेरे  सारे  दोस्त   फरेबी  हो  गए हमसे जरा सी खता क्या  हो गई वो मेरे दुश्मनों के करीबी हो  गए Written by  कमल श्रीमाली(एडवोकेट )

"योग से निरोग जीवन"(कविता)

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रोज सुबह जो ये काम हो जायेगा। योग से निरोग जीवन हो जायेगा।। मात्र कल्पना की उड़ान मत भरना। तोड़ी मेहनत करना तो हो जायेगा।। योग हमसे,दुनिया भर में योग हो जायेगा। इतिहास के पन्नो में योग लिखा जायेगा।। न बी पी न सुगर त्वचा में निखार आ जायेगा। योग ही वो दवा है जो काम आ जायेगा।। विश्व को योग दिया भारत ने। विश्व मे गुड़गान गाया जाएगा।। गुरु और ज्ञान दिया भारत ने। सफल विश्व का मार्ग हो जायेगा।। खुशियों की सुगन्ध बयार बहायेगा। स्वस्थ हो जीवन जो योग अपनायेगा।। मूल मंत्र जीवन का हो जायेगा। योग जो जीवन मे अपनायेगा।। 21,जून को योग दिवस मनाया जायेगा। क्या नेता,क्याअभिनेता,  वो भी योग करता पाया जायेगा।। योग से हर रोग संतुलित हो जायेगा। हर मनुष्य स्वस्थ हो जायेगा।। Written by  कवि महराज शैलेश

"बतकही"(कविता)

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बड़े लोगों की सुनों बातें , कालिखें नहीं कहीं भी पुतवाते । गुरू पे बतकही हीं सुनाते , क्यों ये रूतबा हैं पाते ? सीना चौड़ा किये आते -जाते , अकेले दानी क्या हैं कहलाते ? गरिमा की ये कथा सुनाते , वित्तवासना में हांलाकि अज्ञानी समाते । क्या कहूँ  जनता के नाते , शबरी को प्रभु हैं भाते ! तौहिनी करना हैं ये सिखाते , स़़च़ के सारथी स्वयं को बताते । शिक्षा पे सवालें हैं उठाते , जैसे हो अलबत्ता अंधेरी रातें । बातूनी तो थे सदा इतराते , उपमा दे किसे दोषी ठहराते ? ज्यादा कहने से वही घबराते , जो पसीना जरा भी बहाते । सीता को थे कौन डराते , झूठी पीड़ा क्या रंग जमाते ? Written by विजय शंकर प्रसाद पता - तिलक मैदान रोड ,एजाजी मार्ग, कुर्मी टोला ,मुजफ्फरपुर (बिहार )

"बेमौसमी"(कविता)

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बारिशें ख्वाहिशें दे तरसें , रातों में कितने हादशें ? सबेरे भी वहीं फंसें , प्रियतमा ! अब कितना धंसें ? कहाँ नहीं अब नशें , किससे  इश्क की गुजारिशें ? ढूंढा धरा की कशिशें , बेमौसमी चुपके से हंसें । प्यासी नदी किसे कसें , अंगों को क्या डंसें ? भूखें भी यहीं बसें , किससे करें कवि सिफारिशें ? जिंदगी ,किताब़ और नक्शें - मौतों पे क्या तपिशें ? क्या निचोड़ेगी कामिनी रसें , बेवफाओं की अलबत्ता मजलिसें ? स़च़ में महँगी परवरिशें , यही तो आपबीती किस्सें । वादा तो था अर्से , परछाइयाँ से रूबरू फर्शें । कहाँ गिरे कितने शीशें , मिथ्या क्यों परोसा  गुस्सें ? अंगारों से हैं झुलसे , कहाँ मछलियां सही से ? गुलाब़ हेतु चले फरसें , शूलों को कैसे घसें ? कहाँ किसकी है वशें , आखिर चुनौती क्यों अपयशें ? पाना मुश्किल क्यों यशें , साहिलों पे क्यों विषें ? खुदा की लौटाओं फीसें , नियति भी क्या-क्या फरमाइशें ? हवा में क्या बंदिशें , कंजूसी में  क्या नुमाईशें ? चर्चा में हीं घूसें , बादशाहतें भी हमें चूसें । दिमागों में क्यों भूसें, खोटे सिक्कें क्या लालसें ? मधुशाला तक चाहा जिसे , खारा समंदर मिला उसे । अदालतों में भी

"पिता ही परमेश्वर"(कविता)

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पिता की छाँव में जो सुकून है।। कभी एहसास नही मिल पाया है।। या रब, तूने भेद मेरे साथ क्यो दिखाया है।। सुना है पिता हर दर्द छुपा लेता है।। अपने अश्कों को दबा लेता है।। या रब,तूने पिता को ऐसे क्यो बनाया है।। ईस्वर तू तो सब जानता है।। तू ही तो सब का विधाता है।। या रब, संसार ये फिर समझ क्यो नही पाया है।। पिता है तो संसार की हर खशी है।। पिता है तो सब बाजार भरे है।। या रब,मुझे वो बाजार क्यो नही दिखाया है।। पिता है तो हौसला बरकरार है।। पिता है तो दुनिया की हर दौलत है।। या रब,ये दौलत मुझे क्यो नही दिखाया।। पिता से घर,पिता से माँ, पिता ही भगवान है।। पिता से छाँव,पिता से छत,पिता ही आसमान है।। या रब,फिर मुझे ये छत,छाँव क्यो नही दिखाया है।। हे भगवान तू ने ये कैसा इंसाफ दिखाया है।। इन बच्चों के सर से पिता का हाथ हटाया है।। या रब,तू ने ये कैसा जुल्म हम पर ढाया है।। या रब, तू ने ये कैसा जुल्म हम पर ढाया है।। Written by  कवि महराज शैलेश

"आओ ना पापा"(कविता)

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याद तो करता हूं मिलने को फरियाद भी करता हूं क्यों हो इतना मुझसे दूर अब कोई नहीं करता तुम जैसा प्यार मुझे पापा रोना चाहता हूं रो नहीं पता हूं मैं पापा इतनी जिमेदारी डाल दी मुझ पर ही मेरे पापा क्यू हो तुम हम सब से इतना दूर चाह कर भी गले से नही लगते मेरे पापा मैं खुद से रूठता हूं खुद मैं ही खुद को मानता हूं आप जैसा प्यार नहीं मिलता मेरे पापा बोझ सी लगती है जिंदगी मेरी अभी तो संग तुम्हारे खेलना चाहता हूं आ जाओ ना संग मेरे पापा मिलना चाहता हूं आओ ना मेरे पापा गले से लगा लो न मेरे पापा Written by  लेखिका पूजा सिंह

"जीवन नव किसलय हुआ नहीं"(कविता)

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 जीवन नव किसलय हुआ नहीं  मन भ्रमित हुआ है अंधकार में  रश्मिया कहीं पर दिखीं नहीं  मद मस्त रहा मानव खुद में  फिर पंखुड़ियाँ कभी खिलीं नहीं  जीवन नव किसलय हुआ नहीं  जिन शाखाओं पें अभिमान हमें  उस फल के हम हकदार नहीं  जो जड़ चेतन से अलग हुआ  उसका पुनः निर्माण नहीं  जीवन नव किसलय हुआ नहीं Written by  प्रभात गौर

"मेरा पिता"(कविता)

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 पिता दिवस पर समर्पित कविता अतुलनीय है ब्रह्मांड का बहुमूल्य रत्न  पित्र तात जनक बाबा संबोधनों से जिसे जाना गया है।  संसार में संतान हित जो करे संघर्ष नित ऐसी प्रेम विश्वास की साकार मूर्ति को पिता माना गया है।। पिता जिसका अस्तित्व आकाश से ऊंचा है    एक तन संतान को निज रक्त से सींचा है । निस्वार्थ है प्रेम जिसका संतान के प्रति  लड़ जाता है हर तूफान से वह पिता है ।। मेरी पहचान और स्वाभिमान पिता है।  आशीष छत्रछाया में आसमान पिता है । स्नेह  का धरातल  पिता है मेरा तो भगवान पिता है ।। Written by आशीष बाजपेयी

"तेरे हुस्न के कसीदे पढ़ता हूं मैं"(कविता)

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जो अनगिनत है वही गिनता हूं मैं  तेरे हुस्न के कसीदे पढ़ता हूं मैं।  जी भर कर भर लो बाहों में अपने  तू जिसे ढूंढता था वह रहनुमा हूं मैं।  तेरा शहर जो इबारत पढ़ ना पाया गजलों का वही उर्दू अल्फाज हूं मैं।  मेरे शहर की बात ही निराली है  तुझसे जुदा होकर भी जिंदा हूं मैं। चूम ले आज की रात पेशानी मेरी  कल अनकहा सा ख्वाब हू में। Written by  कमल  राठौर साहिल

"योग दिवस"(लेख)

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 योग दिवस(लेख) *** कल पितृ दिवस था,आज योग दिवस हर दिन कोई न कोई दिवस ही है। चलिए आज बात करते हैं, योग दिवस की।आज समाज बहुत सजग है,जगह-जगह आज के दिन योग करते लोग मिल  जायेंगे।विभिन्न संस्थान भी  अपनी-अपनी तरह से इस दिवस को मनाते हैं। योग आज के युग में लोगो के मन मस्तिष्क तक पहुँच रहा है।मनुष्य ने न केवल योग सीखा है, ब्लकि  योग को अपने जीवन की दैनिक चर्या शामिल किया है, जो उचित भी है योग के माध्यम से हमारा शरीर स्वस्थ एवं हष्ट-पुष्ट रहता है। निरन्तर योग करते रहने से असाध्य रोगों से छुटकारा भी मिल जाता है।इस भागम-भाग भरें जीवन में सभी क्रियाएँ जटिल हो गई है, जिसका एक कारण मनुष्य का भौतिकता की ओर उन्मुख होना है।सभी भाग-भाग कर अपना काम करते हैं और जल्दी काम निपटाने के लिए वे मशीनों पर निर्भर हो गए हैं।ऐसे में अपने स्वास्थ्य के लिए योग की ओर उन्मुख होना स्वाभाविक है। आज हम जो योग कर रहे हैं, पूर्व समय में यह दैनिक जीवन की सहज क्रियाएँ थी,जैसे-साईकिल चलाना, सुबह-सुबह स्त्रियों द्वारा चाकी चलाना, दही बिलोना ,मीलों तक पैदल चलना।अब यही सारी क्रियाएँ हम योग में करते हैं, कुछ व्यायाम में आर्थिक खर

"सपना की बारात भाग-2"(कहानी)

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सपना की बारात भाग-2 आपने पढ़ा कि एक बार शादी टूटने के बाद सपना का पुनः विवाह तय होता है।अब आगे-------- बारात दरवाजे पर आती है, उसका स्वागत किया जाता है।ईधर सपना भी तैयार होतीहै। ईधर सपना तैयार होही रही है कि उधर जयमाल के समय मुखिया ने अपनी माँग बढ़ा दी। सुखराम ने जब अपनी असमर्थता जताई तो मुखिया ने शादी से इन्कार कर दिया।शिवा ने भी अपने पिता को समझाने का पूरा प्रयास किया पर मुखिया निर्मम बने रहे। यह बात घर के अन्दर जाते-जाते सपना तक पहुँच जाती है, गुस्से और दुख से भरी वह वहाँ पहुँच जाती है जहाँ शिवा और उसके पिता दोनों ही मुखिया से अनुनय-विनय कर रहे हैं, पर वह पत्थर की भाँति अपने जिद् पर टिके हुए हैं।उन्हें केवल अपनी जिद् ही प्यारी है। ऐसे में जब सपना वहाँ पहुँचती है तो सब उसे देखने लगते हैं।सपना अपने पिता के पास जब उँची आवाज में चिल्लाती है तो सब चुप हो जाते हैं--- सपना अपने पिता से सम्बोधित होकर कहती है कि---"पिताजी बस कीजिए कहाँ तक आप इनकी विनती करेंगे और कब तक इनकी माँग पूरी करेंगे।खिलौना समझ रखा है इन्होंने जब चाहा खिलौना ले लिया, जब चाहा फेंक दिया तो ऐसा करना यह भूल जाये क्योंकि

"विरह-गीत"(बरखा-गीत)

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 झमाझम बरसै बदरिया हो नाहीं आयिनि संवरिया । लह-लह लहरै डगरिया हो नाहीं आयिनि संवरिया ।। पवन झकोरै जौ सिहरनि लागै सगरी देहियां म भलु पीरा जागै रहि- रहि भभकै सेजरिया हो नाहीं आयिनि संवरिया ।। लह-लह लहरै----- यादु सतावै यैसि चिहुँकु जायि छाती  केहिका बिसूरै जिया हौ बहु कलपाती  सहमि-सहमि जायि निंदरिया हो नाहीं आयिनि संवरिया ।। लह-लह लहरै------ जुगनूँ राह-डगरि चमकावैयिं  दादुर-झींगुर बहु शोर मचावैयिं छमाछम बाजतु पयलिया हो नाहीं आयिनि संवरिया ।। लह-लह लहरै------- लरिकनु छपाछपि अंगना म खेलैयिं  कगजे कै नैइया भलु पनिया मेलैयिं  लुकाछिपी खेलतु नजरिया हो नाहीं आयिनि संवरिया ।। लह-लह लहरै------- भूलि गयिनि सबै  सजना-संवरना  कबु लौटि अउब्या अहै ईहै झंखुना  तकि-तकि हारीं नजरिया हो नाहीं आयिनि संवरिया ।। लह-लह लहरै------- झमाझम बरसै बदरिया हो नाहीं आयिनि संवरिया । लह-लह लहरै डगरिया हो नाहीं आयिनि संवरिया ।। Written by  ज्ञानेन्द्र पाण्डेय

"हक़ीक़त"(कविता)

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अब कहां मौज़-ए- सब़ा आती है रोज़-रोज़ अब बाग़-ए-वफ़ा में बुलबुल कहां गाती है रोज़-रोज़ सरकार यूं ही  कितना मिलते रहोगे सबसे वो भी कहां आ पाएंगे इनायत को रोज़-रोज़ जलेबी की चाशनी में सीझी  मीठी सी उलझनें चिपकी हुईं हैं ख़्वाब से कहां सुलझ पातीं हैं रोज़-रोज़ देखो ज़रा ग़ौर से सड़कों पे चलते हुज़ूम को समझाये इन्हे कौन इमदाद नहीं बंटती है रोज़-रोज़ कर्फ़्यू  लगा हो चाहे या फौज़ खड़ी हो मानती कहां है भूख लग जाती है रोज़-रोज़ अब देखना है कितना साथ देता है मुकद्दर कुछ भी न मिले तब भी दुआ लोग मांगते हैं रोज़-रोज़  हद भी है इक बंधन जानते हैं सभी फिर भी ख़ुद की ज़द किसको नज़र आती है रोज़-रोज़ विपरीत हालात में भी खुशनुमां मंज़र सज़ाना होगा कोशिशें करते रहो खुशगवार मौसम कहां आता है रोज़-रोज़ Written by  ज्ञानेन्द्र पाण्डेय

"सावन-कजरी"(गीत)

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 सावनु बरसैयि जिया बहु उरझैयि सखि मोरु सजनवां आयिनि ना ।  हमरौउ मरदा भयिसि बेदरदा ई कैसि करमवां पायिनि ना ।। बैरनि कोयिलरि न सबरि धरैइया  कुहू-कुहू निगोड़ी बोलयि अमरैइया  लागिनु येहुकै बोलु कटारी कबौ सुखनिंदिया सोयिनि ना ।। हमरौउ  आंगनु म गौउरैइया चहकैयि  मनवा मोरा रहि-रहि बहकैयि  आंखिनु बहतु पनारो यैइसों केउसों दरदिया मोयिनि ना ।। हमरौउ  संगु कैयि गोतीनिनु नीमीं झूला डरावैयिं  केउ गावैयिं कजरी मल्हारि केऊ गावैयिं  साजनु मोरा भयिसि विदेसिया केऊ झुलनवा झुलायिनि ना ।। हमरौउ सावनु बरसैयि जिया बहु उरझैयि सखि मोरु सजनवां आयिनि ना ।। हमरौउ मरदा भयिसि बेदरदा ई कैसि करमवां पायिनि ना ।। Written by  ज्ञानेन्द्र पाण्डेय

"मूकता या मुखरता : हो यथेष्ट"(कविता)

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 बात के विरोध या समर्थन का क्यूँ न हो, सिर्फ मुखरित होना ही जबाब नहीं होता। चलते ऑधी में उखड रहे बिरवे क्यूॅ न हों, धरा पे जमीं घास भी माकूल जबाब देता। शान्त का मतलब लोग सहन से क्यूॅ न लें, चुप ज्वालामुखी का धधकना कम होता। ।।1।। मानव स्वच्छंद बने ,नियति मूक क्यूँ न हो, वक्त के सटीक उत्तर का,जबाब नहीं होता। उत्पीडन से निकल रही आह,गूँगी क्यूँ न हो, नियति से पडी लाठी का जबाब नहीं होता। बने माहौल में अर्ध सत्य भटकता क्यूँ न हो, ऐसे में चुप होने का कोई प्रभाव नहीं होता। ।।2।। Written by  ओमप्रकाश गुप्ता बैलाडिला किरंदुल, दंतेवाड़ा, छ0ग0

"नजरिया बदलिए, जनाब"(लेख)

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 नजरिया बदलिए, जनाब व्यक्तिगत रूप से जहाँ तक हमें  ऐसा महसूस होता है कि इस दुनियाँ को यथेष्ट से समझ पाना आसान नहीं है।कारण देश,काल,परिस्थति के गति अनुसार दुनियाँ में परिवर्तन परिलक्षित होना स्वाभाविक है।अतः एक क्षण हमारे द्वारा दी गई प्रतिक्रिया अनुकूल नजर आती है तो वही दूसरे क्षण उसी कारण के लिए प्रतिकूल हो जाती है।अतः अपने अनुभव का प्रयोग कर अपने नजरिये में बदलाव आवश्यक है।ये दुनियाँ पर्यावरण की दृष्टि से जितनी सुन्दर और सौम्य है उतनी ही परिस्थितिजन्य दुर्गम और असाधारण है।कालान्तर से यदि विचार करें तो हमें इसमें आमूल परिवर्तन दिखाई देता है,यह बहुत असाधारण है।जहाँ तक हमारी समझ है कि हम सरल मानवीय दर्शन को अपना लें तो एक हद तक आनन्द की प्राप्ति से नहीं रोका जा सकता।जैसे : जो नसीब में है,वो चलकर आयेगा।जो नहीं है वो आकर चला जायेगा; अगर जिन्दगी इतनी अच्छी होती तो रोते न आते,अगर बुरी होती तो लोगों को रुलाकर न जाते;भव्य जीवन जीना बुरा नहीं है;पर सावधान,जरूरतें पूरी हो सकती हैं, तृष्णा नहीं ;कभी गुरूर आये तो असलियत जानने कब्रिस्तान का चक्कर लगा लेना,क्योकि वहां कई बेहतर इंसान मिट्टी में दफन

"अहसास : पिता के वजूद का"(कविता)

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 हम चाॅद सितारे हैं ,उस परिवार के,  जिसका पिता एक आकाश होता है। जिसके रोशनी से दमकता पूरा घर, वह तो,पिता का ही प्रकाश होता है। ।1। आसमां से ऊंची, गर है जगह कहीं, तो वह, पिता का ही  स्थान होता है। कंधों पे बैठा लेते,तब लगता मुझको, इस सारे जगत का अभिमान छोटा है। ।2। हमारे दुलार पे कुछ भी कहते नहीं वे, उस चुप्पी में छुपा यार नजर आता है, हमारी खुशी में लाखों गम भूल जाते, तोतली पे दिल बाग -2 नजर आता है। ।3। जोश आता कुछ कर गुजरने का पापा, जब अंगुली  तुम्हारी हथेली में आता है। सभी परिवारों के आदर्श बन जाते तुम, जो मेरे उन्नति में चार चाँद लग जाता है। ।4। तुम नहीं,तो लगता इस घर की छत नहीं, जरा सी बयार में, तूफान नजर आता है। आग के शोले से लगते,सारे बन्धु वाॅधव, खिडकी से ये शहर वीरान नजर आता है। ।5। Written by  ओमप्रकाश गुप्ता बैलाडिला किरंदुल, दंतेवाड़ा, छ0ग0

"ढुलमुल ईमान"(कविता)

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 प्रतीपल बदलता रहता अंदर- बाहर प्राणी मन        ज्ञान-शिखर को         चूमनेवाला  भी करता नादानी पन !!    जीवन भूख  जीविका स्वाद  इस भेद को जाना   वही आबाद !! एक कर में चिंता    जीवन की,  और दूजे कर में    जीविका की, खाएं कोई कैसे भला  चुपड़ी रोटी नित्य      घी की!! जीवन जीविका  क्षुधा समान   होते सदैव   सब परेशान दोनों के ढुलमुल     ईमान!!  दोनों  होते  जलते दीये       और चिथड़े पीर  बिन सीये !! छलके ना ठहरिए उधड़े  ना  सम्भलिये पथ-पथरीले जीवन के फूंक-फूंक के चलिए !! Written by  वीना उपाध्याय

"संगीत"(कविता)

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हौले सरगम अधरों पर जब -जब आ ठहरते हैं पवन सुगन्ध में घुल-मिल सुर-संगीत  में ढ़लते हैं !!  संगीत-विहीन हर्षित तमन्ना होते स्वप्न सरीखे, सरगम-सुर छिड़े न जहाँ रौनक-ए महफील फीके! बन जाता मधुरम गीत सुर- लय के संगम से कर जाता स्पर्श जैसे सुगन्धित कोमल चन्दन से!! इंद्रधनुषी रंगों-छंगों से हृदय फलक रंग जाता है सावन बून्द  बन के बरस पोर-पलक भीगाता है !! माँ शारदे को साधने में  पथ प्रदर्शक बनता है लोभ, असत्य ,फरेब  मत से भी पृथक  करता है!! मानसिक रोग से मुक्ति देता है सार्थक जीवन की युक्ति देता है!!      तन-मन में   निश्चल आत्मा का     हो जाता है प्रवेश                रोम-रोम         पुलकित कर देता हर लेता सम्पूर्ण क्लेश !! संगीत से सानिध्यता प्रत्येक मन को भाता है  संगीत बगैर जीवन रंगविहीन हो जाता है !! सरगम रिदम सुर में  झंकृत मन को करता है सृष्टि -प्रकृति, जर्रा -जर्रा  को संगीतमय करता है !! Written by  वीना उपाध्याय

"योग"(कविता)

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प्रातः कालीन बेला में   नियमित जो भी        योग करेगा    तन-मन,अन्तर्मन से       जीवन -पर्यन्त         निरोग रहेगा !!  योग गुरु से पाकर ज्ञान  होता है जो अंतर्ध्यान जीवनशैली जाती निखर सकारात्मक होता असर!  जो भी प्राणी भ्रामरी, भस्त्रिका,शुचि,अनुलोम,             विलोम करेगा मनः शुद्धिकरण होगा रोम-रोम प्रफुल्लित होगा  सदा निरोग्य बना रहेगा    जीवन-सुख भोग्य        करता रहेगा !! योग जीवन में  खुशियां लाता परहित सेवा -भाव       सिखाता !!           ईश प्रदत  शक्ति साधन का  मान करें सम्मान करें,    सुंदर और सुदृढ़      व्यक्तित्व का  जीता जागता प्रमाण बने!   सर्व विभूति शक्तियों का    ये नश्वर तन धरोहर  गर परखी नजर से परखें    पाएंगे बहुमुल्य मोहर !! यौगिक-क्रिया कलापों से   तन-मन को सँवार लें  वेद-पुराण-शास्त्र निहित ज्ञान अन्तस् में उतार लें ! Written by  वीना उपाध्याय

"योग की माया"(कविता)

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 योग की देखो अद्बुत माया रोगहीन   कर देता है काया प्रयोगों की इस दुनिया मे देश -विदेश तक योग है  छाया उल्टा  सीधा है   जो भी खाया योग   ने    उसको   खूब पचाया कोरोना    को  धराशाही कर डाला योग ने योग  का   ही    परचम लहराया अनुलोम  हो  या     हो  विलोम इन्होंने  मजबूत  फेफड़ों को बनाया भ्रामरी   हो   या     फिर भस्त्रिका  शरीर    का  हर    अंग मजबूत बनाया पद्मासन हो या ध्यान की मुद्रा मन को तन को स्वस्थ बनाया Written by विपिन प्रधान

"भगवान श्रीविष्णु की प्रार्थना"(लेख)

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हे भगवान विष्णु आपके नियम इतने कठोर है,जिसका पालन हमारी सहनशक्ति के अंदर नहीं!! हे कमलनयन हमें सहनशक्ति प्रदान करे,सदा सत्य का सहारा लेते रहे हे कमल नयन ऐसी सहनशक्ति प्रदान करे!! सत्य से कभी विश्वास न टूटे,हे विष्णु भगवान हमें ऐसी प्रबल संकल्प शक्ति प्रदान करे!! सदा योगमार्ग पर चलते रहे,हे नारायण ऐसी कला के प्रभाव की शक्ति प्रदान करें!! सदा लोक कल्याण करते रहे,हे गोविन्द हमें प्रबल शक्ति प्रदान करें!! लोक कल्याण से विचलित ना हो,हे गोविन्द हमें ऐसी शक्ति प्रदान करें!! आपने कर्मो के बल पर उपलब्धियों के शिखर पर पहुँचते रहे,श्री कृष्ण हमें ऐसी ज्ञान शक्ति प्रदान करें!!  भगवान श्री विष्णु को हमारी ऒर से प्रणाम और आप हमें आपनी कृपा दृष्टि प्रदान करें!! Written by  सोनू सीनू शर्मा

"महिला और युवती विकास सेवा संस्थान के तत्वावधान में गंगा सफाई के लिए जन आंदोलन"

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स्टीमर पर जाने के लिए पक्कीकरण मरीन ड्राइव जो बीच मे से टूटा है वो ठीक हो मरीन ड्राइव की साफ सफाई हो महिला विकास सेवा संस्थान और युवती विकास सेवा संस्थान के संयुक्त तत्वावधान में अगर अविलंब स्टीमर घाट के रास्ते का पक्कीकरण, और मरीन ड्राइव को रामरेखा घाट से पुल को नही जोड़ा गया और मरीन ड्राईव की सफाई नही हुआ तो इसके लिए जन आंदोलन करेंगी बरसात में बहुत प्रॉब्लम हो रही है जबकि यू,पी,बिहार  से हजारों लोग स्टीमर से आते जाते है और सरकार को ठिका होती है इस जगह की और गंगा सफाई योजना के नाम पर सिर्फ लूट हो रही हैं कोई सफाई नही हो रहा है मरीन ड्राइव भी बदतर हो चुका है और एक बरसात में ही बीच से पुल टूट गया और इसकी सफाई न होने से मरीन ड्राइव पर सुबह,शाम टहलने वाले लोग सभी आंदोलन करने के बाध्य हैं नगरपालिका,और प्रशासन जल्द इसका निर्माण व सफाई नही करते है तो महिला संस्थान व युवती संस्थान इसके लिए आंदोलन करने पर विवश होगी जिसमें जौनपुर उतर प्रदेश प्रभारी बेबी देवी और जिला अध्यक्ष,शिल्पी देवी,कार्यकारी अध्यक्ष रम्भा देवी,जिला कोषाध्यक्ष किरण जायसवाल,नगर अध्यक्ष रानी  पासवान,उपाध्यक्ष किरण प्रजापति, कार

"पितृ दिवस"(कविता)

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परिवार का सारे कर्च उठाते, चेहरे पर मुस्कान सजाते दर्द-पीड़ा वो सब सह जाते, कौन पापा, मेरे पापा, पापा, मेरे पापा|| अधूरी रहे न हम सब की ख़्वाहिश, मेहनत वो दिन-रात है करते थके-हारे घर पर आते, कौन पापा, मेरे पापा, पापा, मेरे पापा|| अपनी परवाह कभी न करते, समस्याओं से, रोज गुजरते खुशियाँ में हमारी कमी न लाते, कौन पापा, मेरे पापा, पापा, मेरे पापा|| शौक पूरे होते, उन्ही के धन से, वरना, खर्चे पूरे न होते गम, चुपके से सह सब जाते, कौन पापा, मेरे पापा, पापा, मेरे पापा|| कुम्हारे के जैसा व्यक्तित्व उनका, कोमल, कठोर सा हृदय रखते उज्ज्वल भविष्य जो कामना करते, कौन पापा, मेरे पापा, पापा, मेरे पापा|| उनके राज में, सब मौज मनाते, दुख-दर्द कभी भी छु न पाते ढाल बन तैयार खड़े वो, कौन पापा, मेरे पापा, पापा, मेरे पापा|| दुनियाँ उनके बिन अधूरी, प्यारे-सच्चे दोस्त हमारे सब इच्छा, तमन्ना पूरी करते, कौन पापा, मेरे पापा, पापा मेरे पापा|| अकड़-आँख न उन्हे दिखाऊँ, उनके लिए सब दांव लगाऊँ चिंता फिक्र जो सबकी करते, कौन पापा, मेरे पापा, पापा मेरे पापा|| Written by  फूल सिंह

"नशा उन्मूलन पर दोहे"

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आज अंतर्राष्ट्रीय नशा निरोधक दिवस है।सभी भारत वासियों का, मैं वंदन,अभिनन्दन करता हूँ और एक विनम्र निवेदन करता हूँ कि नशा करने वाले भाईयों,मित्रों,नशे से अति दूर रहें,अगर करते हैं,तो संकल्प के साथ छोड़ दें,यह प्राण लेवा है,रोग दाता है,धन का दुश्मन है,अपमान की जड़ है।आप नशा छोड़ेंगे,निरोगी रहेंगे।      आपके लिये निम्न नशा उन्मूलन पर दोहे,,,, मदिरा से मुख मोड़ लो,है बीमारी खान। जो इससे अति दूर हैं,सोते चादर तान।। भाँग, धतूरा छोड़ि के,पी गौ माँ का दूध। बढ़े ज्ञान,तन मन सहज,भागे भ्रम का भूत।। हुक्का,चिलम न पीजिये,गांजा,चरस,मिलाय। कितने पीकर चल बसे,बहुत रहे हैं जाय।। तम्बाकू जो खात हैं,दाँत आँत दे चोट। कुछ तो असमय भूमि पर,मयंक रहे हैं लोट।। बीड़ी,सिगरेट गन्ध से,महकें वस्त्र नवीन। कितनों का झोपड़ जला,अनगिन घर कालीन।। बहुतायत बर्बाद हैं,राजा बने गरीब। नशा कहे आना नहीं,कोई मयंक करीब।। दर दर ठोकर खात हैं,नशा किये कुछ लोग। उनके तन,मन,उर,बसे,तरह तरह के रोग।। पान मसाला है जहर,फिर भी खाते भाय। जानबूझकर रोग को,तन,उर रहे बसाय।। Written by  मयंक किशोर शुक्ल वरिष्ठ कवि लेखक साहित्य सम्पादक

"घना अंधेरा"(लेख)

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घना अंधेरा भाई की एक आवाज पर,भाई आकर खड़ा हो जाय,उसे भाई कहते हैं और बिना कुछ कहे मित्र समझ जाय,उसे मित्र कहते हैं।जिनके पास ऐसे भाई और मित्र हैं,उन्हें कोई शत्रु घेर नहीं सकता,परेशानी परेशान नहीं कर सकती,गरीबी,मुसीबत सता नहीं सकती।         छणिक लाभ के लिये,अपने भाई को छोड़ना नहीं चाहिये,सम्बन्ध खराब नहीं करने चाहिये।भाई गरीब हो या अमीर,छोटा हो या बड़ा,पढ़ा लिखा हो या गैर पढा लिखा।इस संसार में दूसरा भाई नहीं हो सकता।        मित्रता,गरीबी अमीरी देख के नहीं होती,जाति धर्म के आधार पर नहीं होती।सब मित्र हो भी नहीं सकते,मित्र बनाने की वस्तु नहीं है।मित्र की मित्रता को शब्दों में परिभाषित नहीं किया जा सकता।मित्र के अभाव में कैसी जीवन यात्रा,कैसा सुख।     आइए,भाई और मित्र को,हमेशा अपनी साँस समझें,जीवन नौका की पतवार समझें,अपना समझें,इनके बिना प्रकाश होते हुए भी जीवन में घना अंधेरा है। Written by  मयंक किशोर शुक्ल वरिष्ठ कवि लेखक साहित्य सम्पादक

"विश्व योग दिवस"(दोहे)

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विश्व योग दिवस दिनांक 21,06,2021 के अवसर पर ,सभी भारत वासियों को शुभ शुभ बधाई।पर्याप्त दूरी बनाकर प्रातः काल योग करें,सूर्य नमस्कार करें,सभी स्वजनों के निरोगी रहने की मंगल प्रार्थना करें।आपके लिये निम्न दोहे,,,, तन की कसरत सब करें,मन की करे न कोय। मन से योगा जो करे,दुख काहे को होय।। साँस खींचकर रोकिये,साँस छोड़िये यार। बीस बार जो भी करे,कभी न हो बीमार।। जल सेवन नित भोर कर,चलो मील दो मील। सुंदर कद,काठी रहे,बदन न होवे ढील।। डनलप गद्दा छोड़िये,लेटो तख्ता भूमि। भोर पहर कसरत करो,घूमो दिन भर झूमि।। मेहनत इतना कीजिये,बहे पसीना पीठ। पेट,बदन सुडौल बने,मन होवे निर्भीक।। Written by  मयंक किशोर शुक्ल वरिष्ठ कवि लेखक साहित्य सम्पादक