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"होली"(दोहे)

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 होली होली सब करें हो ली बहुत उदास । रो ली कितना आज मैं कंत नहीं जब पास  । । । ।1 । । रंग डारन आई ती किसन दिखे ना पास । पीर पगी पलकन भगी होके सकल उदास  । । । ।2 । । मलते खूब गुलाल हैं डाल घूंघटा हॉथ  । होली खेल अघात नहिं कितनऊं नावैं माथ  । । । ।3 । । रंग लिये राधा खडी़ं तकें किसन की गेल  । हरी कहूं अनते रमें भयो खेल सब फेल  । । । ।4 । । Written by डा० अरुण नागर

"नीलकंठ महादेव"

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  कंठ-कंठ में विराजे नीलकंठ महादेव  झोली मेरी भर देव सभी हैं पुकारते । खाये रहें सदा भंग शीश पै विराजी गंग पारवती लिये संग नंदी को निहारते। राम मे ही रमें रहें समाधी मे ही जमें रहें  भूल से भी भूल कभी उर में ना धारते। देवों के देव नागर कहें जिन्हें महादेव  जिन्हें कोई नही तारे उन्हें तुम तारते। Written by डा० अरुण नागर

"राधा संग होली"(कविता)

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  लाल लाल रंग लाल गोपिन के डाल डाल कर दये मोहन नेें गोरे गोरे गाल लाल लाल लाल है गुलाल खेले संग गुआल बाल करतइ बबाल देखो कैसो नंदलाल लाल लाल माल भई राधा मालामाल भई  सॉवरे को पिरेम आज है मिलो बेमिसाल बेमिशाल माधो ने चल चल चपल चाल खेली ऐसी होली कै मन को मिटो मलाल Written by डा० अरुण नागर

"नारी"(दोहे)

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नारी ऐसा मंत्र है,  सिद्ध करे सो सिद्ध, नारी के कारण यहाँ,  होते सभी प्रसिद्ध।  नारी से नर है सभी, नारी से भगवान, नारी के कारण यहाँ, जीवित हर इंसान।  सुन्दर-सुन्दर लाल सब, पाले अपने हाँथ, बदले में उसको मिली, आँसुन की सौगात।  नारी से  ना -री कहें, करें खूब आघात, कितने दुःख है झेलती, हिन्द में नारी जात।  Written by डा० अरुण नागर