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Showing posts with the label कमल श्रीमाली(एडवोकेट)

"रचना"(कविता)

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छोटी  सफलता  में खुश हो, कहां तेरा ध्यान है ये  तो तेरा  पहला  कदम है, छूना  आसमान है सब बैठे रहे, तुमने  अंधे को सड़क  पार कराई काम छोटा था,पर लक्षित हैं,इरादे तेरे महान हैं अभी तो बादल पार किए हैं बहुत  दूर जाना है परों  को संभाले  रखो, चांद तक तेरी  उड़ान है अमृत  दूसरों को  दे कर, उनका  गरल पीते हो तुम  नहीं रुकने  वाले हो, यह हमारा  ऐलान हैं वाह, अपनी आंखों में बसाते  हो गैरों के आंसू बातें  तेरी बातें नहीं, ये तो खुदा  का फरमान है रोज तुम  जीते हो ओर  मरते हो औरों के लिए तेरा समग्र व्यक्तित्व, इंसानियत  का अरमान हैं बेशक  मुझे पूरा यकीन है  तेरी काबिलियत पर भेद दोगें  लक्ष्य तुम, हाथों में  तेरे तीर कमान है हश्र हमने देखा कंस का,रावण का,सिकंदर का मिट्टी हो गये,फिर इंसान  को काहे का गुमान हैं मेरे सारे दोस्त अरबों में खेल रहे हैं, बेईमानी से  मैं इन  सब  से  मालामाल हूं मेरे पास  ईमान है Written by  कमल श्रीमाली(एडवोकेट )          नेहरु काॅलोनी फालना           जिला पाली राजस्थान

"मखमली रिश्ते"(कविता)

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मखमली  रिश्ते मतलबी  हो गए कल तक जो गुंडे थे,नबी हो गए मेरे खास थे, उन्हें सच कह दिया एक  पल में वो  अजनबी हो गए तेरे  गेसूओं के साये  में क्या लेटे सब भूल, आराम तलबी  हो गए वो बसंत  बनके आए  जिंदगी  में सपने  मेरे  लाल, गुलाबी  हो गए मैं  बताऊं, क्यों पीते  हैं वे  इतना इश्क में  ठुकराए, शराबी  हो गए महफिलें   क्या  बंद  कर  दी मैंने मेरे  सारे  दोस्त   फरेबी  हो  गए हमसे जरा सी खता क्या  हो गई वो मेरे दुश्मनों के करीबी हो  गए Written by  कमल श्रीमाली(एडवोकेट )

"जो देखा वो कहा इस रचना में"(कविता)

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 हमने  मौत  का  मंजर  देखा है आंसूओं  भरा  समंदर  देखा हैं स्याह रातें  घटाघोप अंधेरा  था अब आस का  दिनकर देखा हैं क्या क्या नहीं देखा इस दौर में अपने जाते, बन पत्थर देखा है क्रंदन, रुदन,विलाप और लाशे मौत का तांडव जमकर देखा है कैसे  विश्वास  करें  अब साहिब पीठ  में  गड़ते  खंजर  देखा  है ठीक-ठाक  वो गया  अस्पताल   लौटा  तो  अस्थि-पंजर देखा है Written by  कमल श्रीमाली(एडवोकेट )

"अजब इंसान"(ग़जल)

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हमारी वफा की बार-बार  आजमाईश करते हो खुद ना जाने कितने खेतों की पैमाइश करते हो जमीं  पर नहीं है तेरा  कहीं  कोई ठौर ठिकाना  सनकी हो, चांद तारों  की  फरमाईश  करते हो तेरे जीने का अंदाज, समझ में नहीं  आया मुझे  तुम  ही लडते हो, तुम  ही समझाईश  करते हो अजब  सिरफिरे  इंसान  हो,तुम  इस दुनिया में बोते बबूल हो,और आम की ख्वाहिश करते हो बड़े  शातिर हो तुम,लोगों को बेवकूफ बनाने में छिपा कर  हकीकत, झूठ की नूमाईश करते हो असंभव  को  संभव  करना, कोई  तुमसे सीखे तुम हिमालय को हिलाने की,गुंजाईश करते हो Written by  कमल श्रीमाली(एडवोकेट )

"मुझे खस्ताहाल में जीने दो"(कविता)

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 कभी तो  मुझे अपने अंदाज में जीने दो बीते  कल  को  छोड़  आज  में जीने दो बहुत जी चुका हूं मैं  बीमारियों के बिना कुछ दिन दाद,खुजली,खाज में जीने दो हर बार कर देते हो जिंदगी आसान मेरी कभी-कभी मुश्किल  सवाल मे जीने दो तेरा मौन रहे मुबारक, तुम्हें सदा के लिए मुझे तो हंसी,शोरगुल,बबाल  में जीने दो मैं मनमौजी, फक्कड़, दौलत  क्या  जानू तुम खुब उडो,मुझे खस्ताहाल मे जीने दो देखो,मौत के साये पसरे हैं हर तरफ यहां जीने के एहसास  को हर हाल में जीने दो Written by  कमल श्रीमाली(एडवोकेट )

"आशिक"(कविता)

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 इश्क  करने  वाले  अब  कहाॅं  मिलते  हैं चूम लु,चौखट उस दर की,जहाॅं मिलते हैं इश्क में रोज  होती है यहां अदला-बदली अब  तो  ऐसे आशिक हर जहाॅं  मिलते हैं इस जहां में  नहीं मिलेंगे इश्क करने वाले सच्चे आशिक अब खुदा के वहाॅं मिलते हैं क्या  अब  नहीं है इश्क में  जान देने वाले कभी-कभी, कहीं-कहीं, जी हाॅं  मिलते हैं इतनी चकाचौंध मगर मन की शांति कहां ढूंढो यहां  तो सारे  इंसान तन्हाॅं  मिलते हैं बुरे समय में भाग जाते हैं जो आपसे दूर ऐसे लोग रोज रोज  खामखाॅंह मिलते हैं Written by  कमल श्रीमाली(एडवोकेट )

"समस्या"(कविता)

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आज समाज में फैली समस्याओं को निरुपित करती मेरी यह रचना पति  अपने  अहम  पर  अड़ा है, पत्नि अपने अहम पर अड़ी हैं अपने तक सीमित रह गये मां-बाप,बच्चों  की किसको पड़ी हैं वह चाहती है भाभी सेवा  करें सास ससुर की पर मैं ना करूं बस यही समस्या तो सबके  घर में  मुह उठाएं खड़ी हैं क्या महत्वहीन हो जाएगा इंसान का चरित्र इस दौर में प्यार किसी ओर से, शादी किसी ओर से,आंख किसी और से लड़ी हैं नारी स्वतंत्रता, नारी उत्थान, नारी समानता की बहुत बातें होती हैं पर  सच तो यह हैं आज भी  नारी  कई बंदिशों में झकड़ी हैं भुलाकर सारे एहसान वह डाल गया पिता को वृद्धाआश्रम  वाह क्या जमाना आया  पुत्र के पांवो  में पिता की पगड़ी पड़ी है अब तक स्टोव गैस से बहुएं जली है,सास एक ना जली  इक्कीसवीं सदी के इस जमाने में भी सास बहू से तगड़ी है माटी के पुतले  को माटी में मिलना है फिर यह गरुर कैसा है दुनिया जीतने निकला था सिकंदर,सांसे उसकी भी उखड़ी है किसी ने ठीक कहा है इश्क और मुश्क छिपाए नहीं छिपते हैं कुछ तो  हुआ है तुझे, तेरे  इश्क की हवा यूं ही नहीं उड़ी है तुम कहां उलझ रहे हो अभी तक इन छोटे-मोटे चक्कर में तुम्हें पता  ही नह

"समय फिर आएगा"(कविता)

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 खतरों  के  पार  जाना  होगा एक नया सूरज उगाना होगा श्मशानो में जगह बची नहीं मुर्दों का कहां ठिकाना होगा जिंदगी  मौत  से हारी  नहीं  यह  विश्वास  जगाना  होगा काट  दिए  जंगल  के जंगल नया   जंगल  उगाना   होगा उठ, बैठ, खड़ा हो फिर लड़ जीवन   फिर  चलाना  होगा अब  दो  गज दूरी  है जरूरी हर वक्त मास्क  लगाना होगा हाथ  धोना, वेक्सीन  लगाना घरों तक  सीमित रहना होगा अच्छा  समय  फिर  आएगा लोगों को यह समझाना होगा Written by  कमल श्रीमाली(एडवोकेट )

"अपनी आंखों से देखा है"(कविता)

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 रिश्ते तार-तार होते अपनी आंखों से देखा हैं शमशान गुलजार होते अपनी आंखों से देखा राजनीति  में नाइतिफाकी  स्थाई  नहीं  होती दुश्मन भी यार होते अपनी  आंखों से देखा है इश्क जान पहचान वाले से हो कोईजरूरी नहीं अजनबी से प्यार होते अपनी आंखों से देखा है यह सच है भयावह शब के  बाद सहर होती है पतझड़ में बहार होते अपनी आंखों से देखा है इंसान  अब कहां  रहा नैतिक  मूल्यों  पर खरा इकरार से इंकार होते अपनी आंखों से देखा है जरा सी गफलत के दुष्परिणाम भुगतने होते हैं जीत  से हार  होते  अपनी  आंखों  से  देखा है Written by  कमल श्रीमाली(एडवोकेट )

"आज की नारी की अकुलाहट"(कविता)

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हाथों में छैनी,हथौड़ी औजार रखती हूं हौंसले बड़े दमदार रखती हूं युगो की बंदिशे तोड़ने निकली हुं मुट्ठी में वक्त की रफ्तार रखती हूं कमतर नहीं रही,खुलेआम बताती हूं ऑटो,रिक्शा,ट्रेन,वायुयान उडाती हूं छूआ है मैंने हिमालय को कई बार निकल चुकी हूं मैं अंतरिक्ष के पार जमाना अब ना डूबा सकेगा नाव मेरी हाथों में कसकर पतवार रखती हूं हौसले बड़े दमदार रखती हूं बनाए नए रिकॉर्ड,पुराने फाड़े हैं हमने हर क्षेत्र में झंडे गाड़े हैं नहीं रही मैं निरीह असहाय अबला अंतरिक्ष भेदा,बन कल्पना चावला अपने देश की रक्षा के खातिर कंधों पर हथियार रखती हूं हौसले बड़े दमदार रखती हूं कहां नहीं हूं मैं,बता मुझे धरती से आसमान तक का है,पता मुझे अब मैं सहमी हवा नहीं,विकराल आंधी हूं मैं ही रानी लक्ष्मीबाई,मैं ही इंदिरा गांधी हूं ऑफिस भी जाती हूं,घर भी संभालती हूं पूरे घर का दारोमदार रखती हूं हौसले बड़े दमदार रखती हूं अब चीरहरण दुर्योधन का होगा खुले आम वध दुशासन का होगा जुए में अब मेरा नंबर नहीं आएगा दांव पर युधिष्ठिर को लगाया जाएगा कृप ,द्रौण,भीष्म को वीर कैसे कहूं इन पर इल्जाम दागदार रखती हूं हौसले बड़े दमदार रखती हूं हम यूं

"बिगड़ा माहौल: कोरोना की हकीकत"(कविता)

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कोरोना की हकीकत व बचाव को व्यक्त करती मेरी यह रचना  बाहर माहौल बिगड़ा है दुश्मन ज्यादा  तगड़ा है  तुम घर में  नहीं रहते हो इसी बात  का लफड़ा है तेरी गफलत  के  कारण दुश्मन  छाती  पे  चढ़ा है हलके में मत लो  इसको ये जान लेने  को  अड़ा है कहीं ढूंढने नहीं जाना हैं बाहर दरवाजे पे खड़ा है जिसने  भी की  है गलती वो  अस्पताल  में  पड़ा है जायेगा वो सीधा हरिद्वार जिसको  इसने  पकड़ा है उतरता  जब गले के नीचे खाता  तुरंत  ये फेफड़ा है कोई  मास्क पहनता नहीं यही  तो हमारा  दुखड़ा है मत आने दो घर  के अंदर चाइना का  यह भगोड़ा है आफत  तुमने खुद  बुलाई हाथ नहीं धोने का रगड़ा है कोई तोड़ नहीं इसका यहां आफत भरा  यह लफड़ा है दो गज  दूरी अब है जरूरी बचाव  यही  थोड़ा-थोड़ा है Written by  कमल श्रीमाली(एडवोकेट )

"अस्थि-कलश"(कहानी)

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अस्थि-कलश घर के वातावरण को देखकर कोई भी यह नही कह सकता है कि तीन दिन पहले ही इस घर में मेरी माँ की मृत्यु हुई हैं। माँ की मृत्यु पर भाई-बहिन, बेटे-बेटियाँ, व सभी नजदीकी रिश्तेदारों ने रो-रो कर बुरा हाल कर दिया था व ऐसा लग रहा था कि इस गंभीर सदमें से पूरा परिवार शायद जीवन भर नही उबर पायेगा मगर यह क्या अभी तो माँ की मृत्यु को तीन दिन भी नहीं हुए थे कि घर में जश्न जैसा माहौल लगने लगा।  माँ का अन्तिम संस्कार कर घर आने के बाद रात्रि को मेरी चारो बुआएँ मेरे पास आई और बोली- बेटा भारी वज्रपात हुआ हैं मगर उसकी आत्मा की शांति के लिए सभी संस्कार विधिवत रूप से सम्पन्न करना ही उन्हें सच्ची श्रद्धाजंली देना है। इसी कड़ी में चारो बुआएँ यह कहना नहीं भूली कि माँ की अस्थियों को शीघ्र हरिद्वार में विधि-विधान से गंगा में विसर्जित किया जाना आवश्यक है।  वे अपने साथ हरिद्वार यात्रा का पूरा कार्यक्रम लिख कर लाई थी जिसका पर्चा मुझे पकड़ा दिया जो रात को सोने से पूर्व मैनें देखा तो मेरा मँुह खुला का खुला रह गया और मेरी आंखो से नींद गायब हो गई। पर्चे में पूरी हरिद्धार यात्रा का वर्णन था जिसमें जाने वाले लगभग सभी

कोरोना कहर- वकीलों पर

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हर तरफ हवाओं में अजब सनसनी है वकीलों  से कोरोना की ज्यादा ठनी है ये गली बाजार में खड़ा  सिंघाड़ रहा है ज्यादा वकीलों का धंधा बिगाड़ रहा है एक साल से  ना हत्या ,लूट, बलात्कार ना चोरी,डकैती,धोखा,अपहरण,प्रहार लोग घरों में रहते है,घरों में  ही सोते हैं यारो नये मुकदमें भी दर्ज नहीं  होते हैं भूलकर  झगड़े  प्रेम के बीच  बो रहे हैं अब तो  एक्सीडेंट तक  नहीं  हो रहे हैं क्या  क्लेम करेंगे,किसको  ब्लेम करेंगे किसको जेल करेंगे,किसकी बेल करेंगे जर जमीन और जोरू यह सब माया है कोरोना से ये  सबकी समझ में आया है खौप पसरा है यहां, दिशाएं  अनमनी है हर  तरफ हवाओं में अजब  सनसनी है वो क्या दिन थे लोग वकीलों से डरते थे जबरदस्ती  उनकी  दोनों  जेबे  भरते थे कचहरी में उनकी धांसू  धाक पड़ती थी जब चलते थे तो  धरती तक हिलती थी बड़े-बड़े मुकदमे जिसने  शान से लड़े हैं आज  निष्प्राण  हो  घर में  ओंधें  पड़े हैं जिन्हें सभी प्रबुद्ध बुद्धिजीवी बता रहे हैं अभी घर में झाड़ू बर्तन पोछा लगा रहे हैं सभी जेब खाली है घर में ना मनी मनी है हर  तरफ  हवाओं  में  अजब सनसनी है वकीलों को अब पूराआराम ही आराम है कोरोना काल में वकी

"चुनावी शास्त्र"(कविता)

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  "आज के हालात में चुनाव जीतने के समीकरणों को व्यक्त करती मेरी रचना" हो झूठे आश्वासनों का पुलिंदा तुम्हारे साथ,  तो चुनाव जीत सकते हो बड़े नोटों के बंडल की भरमार तुम्हारे हाथ,  तो चुनाव जीत सकते हो अमन, चैन, सकूं  भाईचारा   अब ठीक  नहीं है चुनाव के लिए फैला सकते हो झूठ,नफरत,घात,प्रतिघात,  तो चुनाव जीत सकते हो किसी को ना रोटी चाहिए,ना रोजगार चाहिए,  ना विकास चाहिए कर  सको  तुम  यदि  शराब  की  बरसात,  तो चुनाव जीत सकते हो प्रेम, शांति, सद्भावना, सद्व-विचार,  सहिष्णुता का क्या लेना देना लड़ा के भाइयों को करें पैदा आग के हालात,  तो चुनाव जीत सकते हो व्यर्थ है चुनाव में डोलना घर - घर  मतदाताओं के वोटों के लिए बना सको शराब, कबाब की चुनाव पूर्व रात,  तो चुनाव जीत सकते हो नियम कायदे कानून आदेश  अध्यादेश कहीं काम नहीं आते हैं करें दंगा,फसाद,बूथ कैपचरिंग की वारदात,  तो चुनाव जीत सकते हो सज्जन, सत्पुरुष ,शालीन, भले  लोग   अक्सर घर में बैठ जाते हैं हो बाहुबलीयों  से मेल,  मिलाप, मुलाकात,  तो चुनाव जीत सकते हो लद गए वह दिन जब सिद्धांत, नीति,  नैतिकता से चुनाव जीते जाते थे हो भ्रष्ट, बेईमा

"अजब शौक"(कविता)

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वो  सबके मन की बात  जानता  हैं फिर भी आस्तीन में सांप पालता हैं खुद  की मुसीबतें  कम नहीं लेकिन दूसरों  की  फटी  में  टांग  डालता है यह  कैसा मुर्ख  हैं घोर  कलयुग  में अपना  बिगाड़,औरों का संवारता है वो सच में फरिश्ता है,दुसरो के लिए खुद  की जान जोखिम में डालता है अजब   शौक  रखता  हैं ये  दिवाना पेड़  से  गिरे  पत्तो  को  संभालता हैं Written by  कमल श्रीमाली(एडवोकेट)

"आध्यात्मिक-गजल"

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हमें  हकीकत  से रूबरू होना होगा जो पाया है यहां से,यही खोना होगा क्यों परहेज हैं तुम्हें मिट्टी को छूने से एक  दिन इसी  मिट्टी में  सोना होगा सब  जानते हैं  फिर भी हाहाकार हैं बस  इसी  बात   का  तो रोना  होगा सोच  लो, समझ लो, जान  लो  सब अभी  वक्त  हैं, फिर  पछताना  होगा मिला मानव तन तो मुक्ति पालो वर्ना कई  योनियों  में  आना  जाना  होगा तलाक  के लिए क्यों  जलील होते हो थामा है हाथ उसका तो निभाना होगा वक्त निकल  रहा है कुछ तो सोच बंदे कब इस मिट्टी  का कर्ज़ चुकाना होगा बढ़ गए हैं पाप बेतहाशा इस धरा पर फिर किसी अवतारी को बुलाना होगा Written by  कमल श्रीमाली(एडवोकेट)

"क्षत्राणी"(कविता)

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 एक क्षत्राणी की सर्वोच्च राष्ट्र भक्ति की ऐतिहासिक कथा इतिहास भरा क्षत्रिय वीरों से रणबांकुरे रणधीरो से। राजस्थान वीरों की धरती प्रणाम सारी दुनिया करती। क्षत्रियों से कम नहीं क्षत्राणीया अजब इनकी बलिदानी कहानियां। क्षत्रियों की हैं मुकुट मणि  पन्ना हाडी  पद्ममनि। इनसे बढ़ कर एक क्षत्राणी आज सुनेगें उसकी कहानी। नाम था उसका हीरादे थे उसके अटल ईरादे। शूरवीर था उसका सैया नाम था उसका वीका दहिया। वह वीर था जांबाज था साहसी था राजा कान्हदेव का विश्वासी था । जालौर सोनगरो बात थी काली अमावस्या रात थी। अपने घर में बैठी हीरादे पति प्रेम की लेकर मिठृठी यादें पाई थी उसने क्षत्रिय धर्म की शिक्षा भोजन पर थी प्रियतम की प्रतीक्षा।  सशंक चाल से वो आया साथ भारी गठरी लाया। किया दरवाजा बंद सांकल चढ़ा दी गठरी प्रियतमा के आगे बढ़ा दी। खनक से उसे अंदेशा आया सोचा इतना धन कहां से लाया। पति की चोर निगाहें भांप गई धन की हकीकत जान कांप गई। अब विका दहिया बोला था गठरी का राज खोला था। छाये युद्ध के बादल काले आगे दुर्दिन आने वाले। खिलजी सेनापति आया था ये गठरी साथ में लाया था। हम भी वक्त के सताए हैं किले के कुछ राज बताए

"राजनीति"(कविता)

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राजनीति में कभी इधर कभी उधर  हो रहे हैं, चुनाव  आये  हैं  नेता  इधर  उधर  हो  रहे  हैं । कैसे   सिद्धांत, कैसी   पार्टी, कैसी   नैतिकता, इधर  नहीं   मिला  टिकट  तो  उधर  हो रहे हैं । पता ही नहीं चल रहा है कौन किस पार्टी में है, सुबह किधर,दोपहर इधर,शाम उधर हो रहे हैं । जब तक उधर थे भ्रष्ट, इधर आए तो सर्वश्रेष्ठ, दल  बदलूओं  के चरित्र  इधर  उधर हो रहे हैं । अब  भेड़ चाल भी चलने  लगे हैं ये नेता सारे, एक   चला  जिधर   सभी   उधर   हो  रहे  हैं । मुद्दे, प्रतिबद्धता, सिद्धांत  सभी  गौण हो गए, जिधर   दिखे   मलाईदार पद, उधर हो  रहे हैं । देश विकास  की किसको पड़ी, भाड़  में जाए, जो  करें व्यक्ति  विकास, सभी उधर हो रहे हैं । कांग्रेस,भाजपा,बसपा,सपा, माकपा,टीएमसी, एनसीपी और आप  सबमें इधर उधर हो रहे हैं । Written by  कमल श्रीमाली(एडवोकेट)

"नौजवा इश्क़"(ग़जल)

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 कोई दाद, कोई खुजली, कोई खाज निकले मेरे   दोस्त   सारे   कैसे   धोखेबाज़  निकले जो   करता   था  मेरी   तारीफ   मेरे  सामने मेरी पीठ पीछे कैसे उसके अल्फाज निकले कब  तक  झूठी  हां में हां  मिलाओंगें  उसके कभी तो उसके विरोध में भी आवाज निकले सारे  के  सारे  नौजवान   इश्क़  के  मरीज हैं  कोई तो भगत सिंह जैसा अकड़बाज निकले सांप निकले फिर लाठी पीटती,पुलिस हमारी जेब गर्म हो तो,कैसे कातिलों से राज  निकले झूठे डूबे  रहे उसकी  मोहब्बत  में आज  तक हमें  पता ही ना चला  वो कब  नाराज निकले कभी फटी टी-शर्ट में साइकिल चलाता था वो वजीर क्या बना, गजब  उसके अंदाज निकले किला फ़तेह कर लिया था उस अकेले शेर ने सबने बुजदिल समझा,तुम तो जांबाज निकले Written by  कमल श्रीमाली(एडवोकेट)