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Showing posts from October, 2020

"वो रात" (कविता)

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शाम होते ही घबरा सा गया मैं, की अब क्या होगा मेरे जीवन में। सोचा, समझा, आगे बढ़ा, गीरा, उठा, दोबारा गीरा, उठा, अँधेरी रात(रात्रि) में। सुबह होते ही याद आया, की वो रात(रात्रि) कितनी लम्बी थी, की वो रात(रात्रि) कितनी लम्बी थी। Written by #atsyogi

"बच्चे की अभिलाषा" (कविता)

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मेरी लेखनी में गलत शब्द है या शब्द गलत लिखने दो ना परेशा क्यों हो लिखा हुआ शब्द मार्कर से लिखी थोड़ी है। मेरी चित्रकारी में आकाश नीला है या पीला बादल हरा है या सफ़ेद नदिया मैली है या साफ चित्रकारी करने दो ना परेशा क्यों हो एक चित्र है हकीकत थोड़ी है। मेरी सुझाव में शहद खट्टी है या कच्चे आम मीठे फलो के राजा आम हो या पपीते मुझे बताने दो ना परेशा क्यों हो हर सुझाव मानना जरुरी थोड़ी है। मेरी इरादे बहुत बड़े हो या छोटे बहुत मजबूत है या लचीले मुझे बुनने दो ना परेशा क्यों हो इरादे तो इरादे है कोई पक्की मकान थोड़ी है। मेरी मंजिल लम्बी हो या हो दो गज दुरी कल मिले या लग जाए जिंदगी पूरी लड़खड़ाने दो ना परेशा क्यों हो ये तो पहली कदम है आखरी थोड़ी है। मुझसे गलतिया होती है या करता हु गलतिया करने दो ना परेशा क्यों हो इसी से तो सीखूंगा आखरी थोड़ी है। Written by #atsyogi