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"नशा उन्मूलन पर दोहे"

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आज अंतर्राष्ट्रीय नशा निरोधक दिवस है।सभी भारत वासियों का, मैं वंदन,अभिनन्दन करता हूँ और एक विनम्र निवेदन करता हूँ कि नशा करने वाले भाईयों,मित्रों,नशे से अति दूर रहें,अगर करते हैं,तो संकल्प के साथ छोड़ दें,यह प्राण लेवा है,रोग दाता है,धन का दुश्मन है,अपमान की जड़ है।आप नशा छोड़ेंगे,निरोगी रहेंगे।      आपके लिये निम्न नशा उन्मूलन पर दोहे,,,, मदिरा से मुख मोड़ लो,है बीमारी खान। जो इससे अति दूर हैं,सोते चादर तान।। भाँग, धतूरा छोड़ि के,पी गौ माँ का दूध। बढ़े ज्ञान,तन मन सहज,भागे भ्रम का भूत।। हुक्का,चिलम न पीजिये,गांजा,चरस,मिलाय। कितने पीकर चल बसे,बहुत रहे हैं जाय।। तम्बाकू जो खात हैं,दाँत आँत दे चोट। कुछ तो असमय भूमि पर,मयंक रहे हैं लोट।। बीड़ी,सिगरेट गन्ध से,महकें वस्त्र नवीन। कितनों का झोपड़ जला,अनगिन घर कालीन।। बहुतायत बर्बाद हैं,राजा बने गरीब। नशा कहे आना नहीं,कोई मयंक करीब।। दर दर ठोकर खात हैं,नशा किये कुछ लोग। उनके तन,मन,उर,बसे,तरह तरह के रोग।। पान मसाला है जहर,फिर भी खाते भाय। जानबूझकर रोग को,तन,उर रहे बसाय।। Written by  मयंक किशोर शुक्ल वरिष्ठ कवि लेखक साहित्य सम्पादक

"घना अंधेरा"(लेख)

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घना अंधेरा भाई की एक आवाज पर,भाई आकर खड़ा हो जाय,उसे भाई कहते हैं और बिना कुछ कहे मित्र समझ जाय,उसे मित्र कहते हैं।जिनके पास ऐसे भाई और मित्र हैं,उन्हें कोई शत्रु घेर नहीं सकता,परेशानी परेशान नहीं कर सकती,गरीबी,मुसीबत सता नहीं सकती।         छणिक लाभ के लिये,अपने भाई को छोड़ना नहीं चाहिये,सम्बन्ध खराब नहीं करने चाहिये।भाई गरीब हो या अमीर,छोटा हो या बड़ा,पढ़ा लिखा हो या गैर पढा लिखा।इस संसार में दूसरा भाई नहीं हो सकता।        मित्रता,गरीबी अमीरी देख के नहीं होती,जाति धर्म के आधार पर नहीं होती।सब मित्र हो भी नहीं सकते,मित्र बनाने की वस्तु नहीं है।मित्र की मित्रता को शब्दों में परिभाषित नहीं किया जा सकता।मित्र के अभाव में कैसी जीवन यात्रा,कैसा सुख।     आइए,भाई और मित्र को,हमेशा अपनी साँस समझें,जीवन नौका की पतवार समझें,अपना समझें,इनके बिना प्रकाश होते हुए भी जीवन में घना अंधेरा है। Written by  मयंक किशोर शुक्ल वरिष्ठ कवि लेखक साहित्य सम्पादक

"विश्व योग दिवस"(दोहे)

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विश्व योग दिवस दिनांक 21,06,2021 के अवसर पर ,सभी भारत वासियों को शुभ शुभ बधाई।पर्याप्त दूरी बनाकर प्रातः काल योग करें,सूर्य नमस्कार करें,सभी स्वजनों के निरोगी रहने की मंगल प्रार्थना करें।आपके लिये निम्न दोहे,,,, तन की कसरत सब करें,मन की करे न कोय। मन से योगा जो करे,दुख काहे को होय।। साँस खींचकर रोकिये,साँस छोड़िये यार। बीस बार जो भी करे,कभी न हो बीमार।। जल सेवन नित भोर कर,चलो मील दो मील। सुंदर कद,काठी रहे,बदन न होवे ढील।। डनलप गद्दा छोड़िये,लेटो तख्ता भूमि। भोर पहर कसरत करो,घूमो दिन भर झूमि।। मेहनत इतना कीजिये,बहे पसीना पीठ। पेट,बदन सुडौल बने,मन होवे निर्भीक।। Written by  मयंक किशोर शुक्ल वरिष्ठ कवि लेखक साहित्य सम्पादक

"सुपंथ पर चलें"(लेख)

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सुपंथ पर चलें सुपंथ पर चलने के लिये,परोपकारी कार्य सम्पादित करने के लिये,ज्ञानमयी वातावरण बनाने के लिये,एकता अखण्डता को मजबूती देने के लिये,परस्पर प्रेम बढाने के लिये,नयी पीढ़ी को साथ लेकर चलें,उन्हें आगे रखें,खुले मन से अवसर दें।ऐसा करने से घर,परिवार,समाज,देश की तस्वीर बदल जाएगी। अकण्टक जीवन बनाने के लिये,हम सबको अपनी सहन शक्ति और समझ शक्ति को मजबूत करना चाहिये।इसके लिये  हमें अपनी मन इंद्रियों को नियंत्रित करना होगा।द्वेष,ईर्ष्या,स्वार्थ,लोभ का त्याग करना होगा।सोलह कलाओं का ज्ञान प्राप्त करने के लिये ,आचार्य गुरू के सानिध्य में साधना करना होगा।तभी हम सब अज्ञान रूपी तम को मिटा सकेंगे,परस्पर प्रेम के दीप घर,घर,द्वार,द्वार,मार्ग में जला सकेंगे,लोक मंगल के गीत गा सकेंगे,दूसरों के दुख बाँट सकेंगे,प्रकृति की मोहक सुंदरता की कथाएँ,कहानियाँ, नयी पीढ़ी को सुना सकेंगे। आइये, घ्रणा,हिंसा को अतिदूर कर,अपनी मधुर वाणी से,सद्व्यवहार से,पारदर्शी चरित्र से,घर,परिवार,समाज को नया रूप दें। मानव जीवन में रूठना और मनाना एक क्रम है।कभी बच्चे रूठते हैं,भाई,कभी बहिन,कभी माता पिता,कभी रिश्तेदार और कभी मित्र । ज

"अदृश्य शक्ति"(लेख)

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अदृश्य शक्ति जिसके पास सद् विचारों की पूंजी है।अपने सत्कर्म पर विश्वास है।अदृश्य शक्ति से अटूट रिश्ता रखता है,प्रेम करता है और उसके बताये रास्ते पर चलता है।उससे बड़ा सौभाग्यशाली,और कौन हो सकता है। सच्चे प्रेम के रिश्ते शक्ति देते हैं,साहस देते हैं,सुदृष्टि देते हैं,ज्ञान देते हैं,सुख,समृद्ध,संतोष देते हैं।  इसलिये रिश्तों का मोती,अगर अपनेपन के माले से टूट कर गिर जाये, तो उसे झुक कर उठा लेना चाहिये।उसे साफ करके पुनः माले में पिरो लेना ही समझदारी है। नयी पीढ़ी और पुरानी पीढ़ी,यह सोना,हीरा,मोती,माणिक हैं और आप सिर्फ एक धागा।अगर आप सबको जोड़कर माला बना लेते हैं,तो आपकी कीमत,उन्ही के बराबर आँकी जाएगी,और अगर आप अपने को उनसे दूर रखते हैं,तो आपका अस्तित्व,मूल्य,पहचान शून्य से न्यून रहेगी।हमें अपने सद् विचारों से नूतन समाज का निर्माण करना है। भारत माता का लाल,अगर शीश झुकाता है,तो अपने माता पिता,बुजुर्ग,गुरुदेव के श्री चरणों में ,राष्ट्रध्वज सम्मान में या देव भूमि के वंदन,अभिनन्दन में।       भारत का बच्चा बच्चा शीश उठा कर जीता है,राष्ट्रहित में जीता है,राष्ट्र के लिये जीता है। आइये,हम सब गर्व से कहे

"बरगद देव जी की सेवा से जुड़े निम्न दोहे"

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महापर्व सावित्री वट वृक्ष की पूजा है।इसे भारत की सुहागिन देवियाँ प्रातः काल हल्दी युक्त पीठे, मीठे गुलगुले,पुष्प, जल,और कच्चे सूत के धागे से 108 बारवन्दन पूजन करतीं हैं,कि प्रभू जी अनन्तकाल तक मेरा सुहाग बना रहे,सुखशांति,समृद्धि,सुयश,कुलवंश की वृद्धि हो,घर के सभी स्वजन निरोगी रहें,आनन्दित रहे ,अपने श्री पति की सम्पन्नता व दीर्घायू हेतु प्रार्थना करती हैं।         वृक्षों में ही देवी,देवताओं का वास है,उनकी देखभाल,सेवा,उनके निकट रहना ही हम सबका धर्म है।वट वृक्ष की पूजा सभी को करना चाहिये।आज के दिन वट वृक्ष की डाल नहीं तोड़ना चाहिये।आज के दिन हम सबको एक नया वट वृक्ष लगाना चाहिये। बरगद देव जी की सेवा से जुड़े निम्न दोहे आपके लिये,,,, नारि सुहागिन कर रहीं,बरगद पूजा आज। अनन्त काल तक पति जिये,बना रहे सरताज।। बरगद बाबा की तरह,शांत रहें श्री मान। जीवन भर सेवा करूं,करूं सधर्म सम्मान।। कच्चा धागा प्रेम का,अर्पण है महराज चरण पखारू आपके,जीवन रखियो लाज।। शुद्ध वायू के देव हो,तन के बहुत विशाल। कृपा रहे आशीष मय,बीतें सुख के साल।। साधु,सन्त,औ ऋषि मुनी,शरण रहे वट वृक्ष। बनें सभी तप,ध्यान से,वह महिमा मंडित

"विश्व समुद्र दिवस पर निम्न छन्द"

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विश्व समुद्र दिवस पर सभी भारतवासियों को बधाई।साथ में एक विनम्र आग्रह है कि जल को बचाएं,पेंड पौधे बचाएं,पृथ्वी माता को मूल रूप में रहने दें,सफाई का ध्यान रखें। विश्व समुद्र दिवस पर निम्न छन्द सिर्फ आपके लिये,,, मथने को मथिये,हजार बार समुद्र नाथ, सभी रत्न बाँटने को,देवगण तैयार हैं। हमें मिले, हमें मिले, हमें मिले पहले प्रभू, पंक्तिबद्ध खड़े हुये, ब्रह्म के अवतार हैं। अमृत की एक बूँद, मिल जाये हमें यहॉं, राक्षस भी देव बन,करते जय जयकार हैं। विष का प्याला लिए,घूमें भूमि त्रिपुरारि, कोई नहीं लेगा मयंक,मचाए हाहाकार हैं।। हिमगिरि नदियों की,रहती है कृपा सदा, बून्द बून्द जल भूमि,देतीं सिंधु दान हैं। लौटकर लेतीं नही ,सेवा यश बोल कभी, करतीं हैं पग पग,सागर का सम्मान हैं। वेदों में गुणगान,महासिंधु का लिखा, वरतीं हैं जलदेवी,करके बखान हैं। दे दी है गहराई,बसुधा के गर्भ तक, बहना नहींब्यर्थ कहीं,लगे मयंक निशान हैं।। अनेकों जीव जंतु विशाल,रहते हैं उर सिंधु, लड़ते हैं चक्रवात,जब तब तूफान से। उठतीं हैं लहरें,चन्द्र गगन छूने को, नाचतीं हैं दूर दूर,शीश उठा शान से। छुपाए हुए अनमोल रत्न,मोती सीप शंख, पाते हैं भक्

"हनुमान जी के निम्न विशेष दोहे"

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 मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम जी के अनन्य भक्त,वीर वर श्री हनुमान जी के निम्न विशेष दोहे..... चरण पखारें राम के,सुबह शाम हनुमान। विनती मेरी है प्रभू,मिटे तमस अभिमान।। राम पियारे जानकी,कहत देव हनुमान। इनकी पूजा जो करे,बढ़े जगत सम्मान।। साँसों की माला बना,जपते रामहिं राम। उर में बैठे राम हैं,तन है हरि का धाम।। सीतारामी ओढ़कर,करो सुयश के काम। पीडित की पीड़ा हरो,ले हनुमत का नाम।। अक्षर अक्षर राम हैं,शब्द शब्द हनुमान। लिये लेखनी आज लिख,देवों का गुणगान।। महा विपत्ति घेरे खड़ी,विपदा में है जान। अन्तरमन जपते रहो,सुपंचमुखी हनुमान।। मातु ,पिता,गुरुदेव की,सेवा कर लो आज। हनुमत कहते भक्त से,उनमें ही महराज।। जिस घर सीताराम हैं,उस गृह दुखी न कोय। यश,वैभव,धन,धान्य से,पूरित अंगना होय।। दान दाहिने हाथ से,जो करते नर नारि। बिन मांगे मोती मिले, सुवंश बढ़े उजियारि।। इधर देखिये राम हैं,उधर देखिये राम। तन,मन,उर,में राम हैं,अधर बसे सियराम।। Written by  मयंक किशोर शुक्ल वरिष्ठ कवि लेखक साहित्य सम्पादक

"निरंकुश न बने"(लेख)

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निरंकुश न बने वर्तमान में,जाने अनजाने जो लोग नशा में,जुएं में,अपराध में,पाप में,कुसंगति में,व्यर्थ खर्च में,परनारी प्रेम में,लोभ में स्वार्थ में,दिखावे में लिप्त हैं।जिससे उनका जीवन नष्ट हो रहा है,परिवार छिन्न भिन्न हो रहा है।        इसका मूल कारण है,कि वे निरंकुश हैं,अपने आगे किसी को मानते नहीं,उनके मित्र,उन्हें सुधरने देना नहीं चाहते।      ऐसे बिगड़े इंसान,जब कभी घण्टे,दो घण्टे या दो चार दिन के लिये,आचार्य,गुरू, पथ प्रदर्शक,सन्त महात्मा के सम्पर्क में आ जाते हैं,तो वे उन्हें स्वच्छता से,प्रेम से,अपने ज्ञान से साहित्य,संगीत,कला,परोपकार,सत्कर्म करने का मार्ग दिखाते हैं।पर नारियों का सम्मान करना,शुद्ध अल्प भोजन,जीवन के नियम संयम में ढालते हैं,योग,व्यायाम,ध्यान का आंतरिक आनन्द रस पिलाते हैं।जो इस कसौटी में खरे उतर जाते हैं,वह सुधर जाते हैं,उनके परिवार में सुख,शांति,यश,वैभव,लक्ष्मी, फिर से वास करने लगतीं हैं।          अवगुण को त्यागने के लिये,महापुरुषों के सानिध्य में,उनकी शरण में,उनकी सेवा में,रहना चाहिये। Written by  मयंक किशोर शुक्ल वरिष्ठ कवि लेखक साहित्य सम्पादक

"राष्ट्रभक्त"(लेख)

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राष्ट्रभक्त चंदन के टुकड़े को,सूर्य की तेज गर्मी में रखा जाय,किन्तु चंदन न तो अपना स्वाभाविक रंग बदलता है और न शीतलता का त्याग करता है।          चंदन के चाहे लाख टुकड़े कर दिये जायें,चाहे पीस दिया जाय,फिर भी वह अपनी शीतलता को नष्ट नहीं होने देता।          ठीक उसी प्रकार भारत का गौरवशाली राष्ट्रभक्त,राष्ट्र रक्षक जवान,सच्चा राष्ट्रप्रेमी के समक्ष चाहे जैसी विषम स्थितियाँ आ जायें, उसे किसी कारणवश अनगिन यातनायें मिलें,चाहे दीवारों में चुनवा दिया जाय,चाहे स्वर्ण मुद्राओं का लालच दिया जाय,किन्तु वह अपने राष्ट्र का,कभी विरोधी होगा,न गद्दार होगा,न अपने राष्ट्र का अहित की सोंचेगा, न राष्ट्र के विरोध में हिंसक बनेगा।         उसके रग रग में राष्ट्र सर्वोपरि है,राष्ट्रप्रेम है,उसका जीवन अपने राष्ट्र के लिये है,राष्ट्र की सुख,समृद्धि,सम्पन्नता को देखने के लिये है,राष्ट्र की विचार धारा को क्रमशः बढ़ाने के लिये है,राष्ट्र को सुसम्पन्न हित नयी पीढ़ी को जगाने के लिये है,राष्ट्र रक्षा हित शहीद हुए अमर क्रांतिकारियों की गाथा गाने के लिये है।         हजारों में सच्चा एक राष्ट्र भक्त होता है और राष्ट्र प्रेमी

"विश्व पर्यावरण दिवस पर विशेष,बहुरंगी दोहे"

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विश्व पर्यावरण दिवस पर, समस्त भारतीयों को ह्रदय से बधाई।एक विनम्र निवेदन,,,कि आप एक पेड़ आज अवश्य लगायें, यदि नहीं लगा सकते,तो लगे पेंड को जल देना न भूलें।लगे पेंड़ की रक्षा करें।यह शुभ कार्य अपने सुखी जीवन के लिये जरूर करें। हरियाली की खान हैं,पर्वत धरती पेंड। नदी किनारे बाग की,बाँधे रखियो मेंड़।। बरगद,पीपल,नीम की,छाया उत्तम जान। देव ऋषी कहकर गये,ये औषधि की खान।। पेड़ों बिन जीवन कहाँ, कहाँ साँस की आश। बिन हरियाली है नहीं,धरा बीच उल्लास।। रेतीली नदिया हुई,केवट पकड़े माथ। भूख,प्यास कैसे मिटे,बोलो भोले नाथ।। पर्वत सूखे हो चले,पेंड नहीं,नहि छाँव। पथिक विमुख होकर कहे,छाले पड़ गए पाँव।। चिड़िया रोती फिर रही,बिन डाली बिन फूल। तितली,भौंरे सोंचते,कैसी उड़ती धूल।। जंगल,बागें कट गयीं,शहर हुये आबाद। खेत,गाँव, पोखर,कुआँ, खेती सब बर्बाद।। पशु पक्षी भूखे दिखे,कहाँ रुकें,कहाँ ठौर। लालच मानव का बढ़ा, कौन खिलाये कौर।। धरती विपदा देखकर,मन विचलित है आज। कूड़ा, कचरा,विष बहे,नाले उगले राज।। बसुधा बंजर हो चली,अधिकारी सब मौन। पेंड कटे,कैसे कहें,अपराधी है कौन।। ए, सी,कूलर,साँस के उर शत्रु बड़े सुन भाय। बगिया माली फूल सं

"गीतों की तुरपाई में"(कविता)

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अक्षर अक्षर लगा हुआ है,ऋतु बाला पहुनाई में। कितने दोहे फंसे दिखे,काव्य जगत गहराई में।। मन में जिनके द्वेष भरा,क्या लिखेंगे नयी कलम से, मैंने जीवन बिता दिया,गीतों की तुरपाई में।। कंचन महल खड़े हों भाई, गज द्वारे बांधा हो, भूखा पेट भिक्षुक लौटे,लाला की चतुराई में।। वह दान कहाँ से देंगे,जग फैली बीमारी में, जिनका ध्यान लगा रहता,अपनी आना पाई में।। जिन अधरों से अपशब्द निकलते,दुनिया कहती है, देगा कंधा कौन उसे अब,मिट्टी की उठवाई में।। झरते आँसू जज आंखों से,कोई मयंक देखे तो, महिला पीड़ित दशा बताती,पल पल सुनवाई में।। Written by  मयंक किशोर शुक्ल

"दोहे"

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चूल्हे की रोटी गयी,तड़का छौंकी दाल। मठ्ठा मटका से कहे,शहर बन गया काल।। गाँव सिमटते जा रहे,खेत,बाग,खलिहान। गमलों की खेती बढ़ी,ठीक कहें परधान।। कुआँ, ताल,पोखर,नहीं,नहीं गाँव चौपाल। नेता कहते फिर रहे,कृषक बड़ा खुशहाल।। ऊपर नीचे फ्लैट में,रहते भाई चार। बिना बात खुलकर सुबह,होती नित तकरार।। अपनों से नाता नहीं,दिनभर आते फोन। बैंक सेठ पीछे पड़े,अदा करो तुम लोन।। Written by  मयंक किशोर शुक्ल