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"मन का मैल"(कविता)

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 मन जब करता है प्रेम किसी से, अनन्त, अटूट, अपार प्रेम, तब हो जाता है सब कुछ प्रेममय। यह धरा, पवन, आकाश, दोनों जहां, यहां तक कि इस सृष्टि के  प्रत्येक जीव, लगने लगते हैं प्रेममय। हर बन्धन से परे, समस्त रिश्तों से विलग, कहीं नहीं होता क्रोध ना घृणा किसी से, लगाता रहता है मन डुबकियां प्रेम के समंदर में। कभी विरह की पीर से कराहता मन, तो कभी प्रीतम के निकट होने के आभास पर मुस्कुराता, दुनियादारी की रस्मों को झुठलाता मन, निभाता रहता है अपनी ही दुनिया की अनगिनत रस्में। पर जब तन बंध जाता है सांसारिक बंधनों में, रिश्तों में, रीति रिवाजों में, और बांधना चाहता है मन को भी समस्त बन्धनों में। और तब भी मन उड़ता रहता है , अपने ही द्वारा चुने स्वतंत्र आभासी गगन में, जिसकी आजादी नहीं देता जहान, वह रोकता है मन को। उसके पवित्र प्रेम को पाप बताकर, करवाना चाहता है निर्वहन, निर्जीव रिश्तों का, मन में पलते शुद्ध, शाश्वत प्रेम को मन का मैल बताकर, दवा दिया जाता है,  मन के ही किसी अज्ञात कोने में। तब मासूम निर्मल मन  हो जाता है मस्तिष्क के आधीन, और मनुष्य धोता रहता है ताउम्र  निर्मल मन पर थोपा गया मन का मैल। Wri

"बहुत मुश्किल"(कविता)

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 मुश्किल नहीं है कोई ख्वाब नया बुनना, बहुत मुश्किल नहीं है कोई नई राह चुनना, नहीं मुश्किल आँख बन्द करके आसमान में उड़ना, या कोई ख्वाब पूरा करना, ना ही मुश्किल है कोई चुनी हुई राह पर आगे बढ़ना या पंख फैलाकर खुले आसमान में विचरण करना, पर मुश्किल होता है किसी टूटे ख्वाब का वापस जुड़ पाना, चुनी हुई राह चलकर वापस मुड़ जाना, मुश्किल होता है उस छूटी हुई राह को नजर भर देखना, छोड़कर आसमान घोंसले में रहना, किसी सुंदर स्वप्न को टूटते देखना, फिर जोड़ने के प्रयास में खुद उस स्वप्न को चकनाचूर करना, मुश्किल ही है कोई गुम हो चुकी खुशी को मिलकर फिर खोते देखना, हां बहुत मुश्किल है  सहन करना, तेरा लौटकर आना और फिर से  मुं फेर कर जाना, सच में बहुत मुश्किल है सहना। Written by रिंकी कमल रघुवंशी"#सुरभि"

"कहीं खो जाएं हम"(कविता)

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रंगीली दुनियां में, रंग बदलते, हर दिन खो जाना मंजूर था तुम्हे, पलटकर देखा ही नहीं पीछे छूट गई खुशियों को, मुस्कुरा कर बाहें फैलाए उन राहों को, कुछ बेरंग से सपनों को जिनमें रंग भर सकते थे हम एक प्रयास मात्र करते और रंग ले सकते थे उगते सूरज से ढलती सुनहरी शाम से तितलियों से, फूलों से, प्रकृति के हर स्वरूप से, मगर नहीं ले सके, क्योंकि हमने चुने  दुनियादारी के रंग, झूंठी मुस्कुराहटें,  और मुखौटों का संग काश लौट आते फिर  हम अपने सपनों की तरफ जहां भरकर मनचाहे रंग  जीवन में,   युगों युगों तक के लिए कहीं खो जाएं हम कल्पनाओं के जहां में। Written by रिंकी कमल रघुवंशी"#सुरभि"