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"आचरण ही जीवन मर्म"(कविता)

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आचरण ही जीवन का समझाता है मर्म,  बिना आचरण न होवे जीवन कर्म। आचरण------- निर्मल आचरण से मनुष्य पूजा जाता देव समान। बुरे आचरण से समझा जाता पशु समान। आचरण------- पर नारी, परधन का जो मान रखें, सदा बड़े, बूढ़ो का ध्यान रखें। नित्य मंगल हो, उसका। आशीषों का ढेर लगे। आचरण------- कभी न अकाल मृत्यु का  ग्रास बने। सौ बर्ष की उम्र को वो पार करें। आचरण-------  आचारवन श्री राम थे, महिमा अब भी गायी जाती है। शिवाजी भी मातृभक्त थे, अब भी जाने जाते हैं। आचरण------- अनुसूइया,सावित्री भी आचरण से ही महान है। नित कर्म से अपना भाग्य बदला है। आचरण----- इतिहास उठा लो,या आज भी देखो अपनाकर।  आचरण वान श्रेष्ठ थे,श्रेष्ठ है और श्रेष्ठ रहेंगे। Written by  कुमकुम गंगवार

"खुशी की चाहत में"(कहानी)

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गरीब धनपतराय अपने झोपड़ी में बैठे कुछ सोच रहे हैं। उनकी पत्नी विमला पास में चावल साफ कर रही है। बारिश को हुये तीन दिन बीत गए हैं पर आज भी बादल आसमान को ढक रहे हैं, धनपतराय को कोई काम नहीं मिला जिसके चलते बच्चे भूखे हैं। कावेरी उन की यह हालत देखती है और चावल बनाने लगती है।चावल बनाकर वह सबको खिला देती है और फिर काम में जुट जाती है। कावेरी धनपतराय की बड़ी बेटी है, घर में वह सामान्य बोलचाल तथा मेहनती लड़की है। लगातार आठ दिनों की बारिश से घर की हालत बिगड़ती जा रही थी, कावेरी को अत्यधिक निराशाजनक स्थिति की सूचना मिल चुकी थी,उसे जिन्दगी का करीब से एहसास हो चुका था। आज कई दिनों बाद वह काम की तलाश में निकली थी क्योंकि कावेरी समझ चुकी थी कि घर पर रहकर घर की स्थिति में कोई सुधार नहीं होने वाला।क ई दिन भटकने के बाद पास के ही विद्यालय में ही प्राईवेट में जाँब मिल गई और वह वहाँ तीन हजार रुपये मासिक में कार्य करने लगी। यह सूचना उसने अपनी परिवार में देदी। तो पिता कहने लगे-"तु नौकरी करन जाहे।" कावेरी ने संक्षिप्त"हाँ"में उत्तर दिया। पिता -"पर बिटिया तोहे नौकरी करन कीका जरूरत, ई गाँ

"योग दिवस"(लेख)

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 योग दिवस(लेख) *** कल पितृ दिवस था,आज योग दिवस हर दिन कोई न कोई दिवस ही है। चलिए आज बात करते हैं, योग दिवस की।आज समाज बहुत सजग है,जगह-जगह आज के दिन योग करते लोग मिल  जायेंगे।विभिन्न संस्थान भी  अपनी-अपनी तरह से इस दिवस को मनाते हैं। योग आज के युग में लोगो के मन मस्तिष्क तक पहुँच रहा है।मनुष्य ने न केवल योग सीखा है, ब्लकि  योग को अपने जीवन की दैनिक चर्या शामिल किया है, जो उचित भी है योग के माध्यम से हमारा शरीर स्वस्थ एवं हष्ट-पुष्ट रहता है। निरन्तर योग करते रहने से असाध्य रोगों से छुटकारा भी मिल जाता है।इस भागम-भाग भरें जीवन में सभी क्रियाएँ जटिल हो गई है, जिसका एक कारण मनुष्य का भौतिकता की ओर उन्मुख होना है।सभी भाग-भाग कर अपना काम करते हैं और जल्दी काम निपटाने के लिए वे मशीनों पर निर्भर हो गए हैं।ऐसे में अपने स्वास्थ्य के लिए योग की ओर उन्मुख होना स्वाभाविक है। आज हम जो योग कर रहे हैं, पूर्व समय में यह दैनिक जीवन की सहज क्रियाएँ थी,जैसे-साईकिल चलाना, सुबह-सुबह स्त्रियों द्वारा चाकी चलाना, दही बिलोना ,मीलों तक पैदल चलना।अब यही सारी क्रियाएँ हम योग में करते हैं, कुछ व्यायाम में आर्थिक खर

"सपना की बारात भाग-2"(कहानी)

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सपना की बारात भाग-2 आपने पढ़ा कि एक बार शादी टूटने के बाद सपना का पुनः विवाह तय होता है।अब आगे-------- बारात दरवाजे पर आती है, उसका स्वागत किया जाता है।ईधर सपना भी तैयार होतीहै। ईधर सपना तैयार होही रही है कि उधर जयमाल के समय मुखिया ने अपनी माँग बढ़ा दी। सुखराम ने जब अपनी असमर्थता जताई तो मुखिया ने शादी से इन्कार कर दिया।शिवा ने भी अपने पिता को समझाने का पूरा प्रयास किया पर मुखिया निर्मम बने रहे। यह बात घर के अन्दर जाते-जाते सपना तक पहुँच जाती है, गुस्से और दुख से भरी वह वहाँ पहुँच जाती है जहाँ शिवा और उसके पिता दोनों ही मुखिया से अनुनय-विनय कर रहे हैं, पर वह पत्थर की भाँति अपने जिद् पर टिके हुए हैं।उन्हें केवल अपनी जिद् ही प्यारी है। ऐसे में जब सपना वहाँ पहुँचती है तो सब उसे देखने लगते हैं।सपना अपने पिता के पास जब उँची आवाज में चिल्लाती है तो सब चुप हो जाते हैं--- सपना अपने पिता से सम्बोधित होकर कहती है कि---"पिताजी बस कीजिए कहाँ तक आप इनकी विनती करेंगे और कब तक इनकी माँग पूरी करेंगे।खिलौना समझ रखा है इन्होंने जब चाहा खिलौना ले लिया, जब चाहा फेंक दिया तो ऐसा करना यह भूल जाये क्योंकि

"ससुर जी"(व्यंग्यात्मक लेख)

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ससुर जी ससुर शब्द सुनने में ही एक अजीब, बेकार शब्द प्रतीत होता है ।पर यही बेकाबू शब्द ससुराल पूजनीय हैं।यह ससुर जब घर में प्रवेश करते हैं तो  प्रधानाचार्य जी से भी बड़ा उनका पद होता है।प्रधानाचार्य जी अपने सीट पर बैठने की इजाजत दे देते हैं, पर ससुर जी के आने पर अपनी सीट पर ही नहीं बैठना है, अजी सम्मान करना है न । इज्ज़त के साथ साथ ससुर जी को एक और ख्याति प्राप्त है ।जीहाँ उन्हें घर के सभी सदस्य वैसे ही समझते हैं, जैसे रद्दी कापी, अब रद्दी पर सभी बिषयों का काम किया जाता है उसी प्रकार ससुर जी भी घर का सारा काम करें और जिसकी इच्छा हो उन्हें बुरा-भला सुना जाये,किसी की नजरों में उनकी इज्ज़त केवल कोल्हू के बैल के समान है। अपने परिवार के लिए जो दिन-रात खटता रहता है।जिसके रहते परिवार अनेक प्रकार की समस्याओं से मुक्त रहता है, परिवार उसको निर्जीव प्राणी समझ लेता है। दोस्तों दुनिया के समस्त ससुर पिता के समान ही होते हैं, वे कभी भी अपने बेटों को, बहुओं को ,पोते को अपनी परेशानी नहीं बताते।यह वही प्राणी है, जो दिन-रात कोल्हू के बैल की तरह चलता रहता है और शाम को अपने परिवार को ताजा खाना खिलाने हेतु, स्व

"क्या राष्ट्रवाद बचा हुआ है"(कविता)

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 क्या राष्ट्रवाद बचा हुआ है, या पैसों से बिका हुआ है। कहीं आतंकी पुलवामा हमला है, हमले में शहीद जवान हैं। जवानों की माँ की गोद सूनी है, और उनकी पत्नियों कु उजड़ी माँग है। व बंगाल की राजनीति में घमासान मचा हुआ है, चोटो पर राजनीति किया हुआ है। अभी बंगाल मेंशोर थमा नहीं, महाराष्ट्र में बिजली गिरी हुई है।  मुख्यमंत्री का काला चिट्ठा, बाजे ने 100करोड़ लिखा हुआ है। कहीं किसान आंदोलन को हवा मिली हुई है, कहीं गोकशी प्रतिबंध पर बबाल हुआ  है। क्या राष्ट्रवाद बचा हुआ है? या पैसो से बिका हुआ है। Written by  कुमकुम गंगवार

"सपना की बारात भाग-1"(कहानी)

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सपना की बारात भाग-1 प्रयाग क्षेत्र के छोटे से गाँव में सुखराम का परिवार रहता था। सुखराम के तीन लड़कियाँ और दो लड़के हैं, बड़ी बेटी सपना है फिर सोहना, रमेश,मुकेश और संजना हैं। लेखराज किसान है ,किसानों की दशा आज क्या है यह किसी से छिपी नहीं है,इसलिए सुखराम के पास सम्पत्ति नहीं है। सपना गोरी रंगत,कटीले नैन नक्श और सबकी नजरों में उतरने वाली लड़की है, वहीं सोहना साँवली ,तीखे नैन नक्श की थी, संजना सपना और सोहना की मिली जुली  मूरत थी,बातें करने में दोनों से ही  अधिक है। रमेश और मुकेश दोनों ही सज्जन एवं विनम्र स्वाभाव के थे। सपना एम.ए. कर रही है,वह वहीं काँलेज के छात्रावास में रहती है।उसका मित्र सोनू है जो हर सुख-दुख में धीरज बाँधता हैं। सुबह-सुबह सपना कालेज की पुस्तकालय से पुस्तक निकाल कर लाती है तो सोनू उसे मिल जाता है- सोनू---सपना यह अच्छा है कि तुम मेरे रास्ते में आकर खड़ी हो जाती हो। सपना-रास्ते में मैं नहींआप आये हैं जनाब, मैं तो अपने रास्ते से जा रही थी।चलिए माना कि मैं आपके रास्ते में आई थी पर आपको बोलने की क्या जरूरत थी? सोनू-क्या करें न बोलते तो आप नराज हो जाती फिर माफी माँगनी पड़ती, माफी

"फिर भी तुमसे प्यार है"(कविता)

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 तुम रात को देर से आते हो,न कुछ खाते हो, न पीते हो-- फिर भी तुमसे प्यार है-- शराबभी तुम पीते हो, पर जीवो का भक्षण करते हो ,परवाह जरा न करते हो------ फिर भी तुमसे प्यार है---- फोन पर ही बातें होती हैं, गैरों से बतियाते हो, बीबी बच्चों से न बतियाते हो फिर भी तुमसे प्यार है---- अपने मन की करते हो ,अपनी ही गुनते हो, किसी और की न सुनते हो फिर भी तुमसे प्यार है Written by  कुमकुम गंगवार

"तुम हो तो मैं हूँ"(कविता)

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 तुम हो तो मैं हूँ, तुम बादल तो बरसता सावन मैं हूँ। तुम पर्वत तो बहता झरना मैं हूँ। तुम हो तो----- तुम दिन तो रात मैंहूँ। तुम आसमान तो चमकता तारा मैं हूँ। तुम हो---------- तुम पंछी तो चहचहाहट मैं हूँ। तुम हृदय तो धड़कन मैं हूँ। तुम हो तो---------- तुम सांसे तो जीवन में हूँ। तुम हर रोज चमकता सूरज तो किरण मैं हूँ। तुम हो तो---- तुम चन्दा तो चाँदनी मैं हूँ। तुम नक्षत्र तो दिशा मैं हूँ। तुम हो तो--- तुम फूल तो खुशबू मैं हूँ। तुम मंजिल तो रास्ता मैं हूँ। तुम हो तो मैं हूँ। Written by कुमकुम गंगवार