"घना अंधेरा"(लेख)

घना अंधेरा

भाई की एक आवाज पर,भाई आकर खड़ा हो जाय,उसे भाई कहते हैं और बिना कुछ कहे मित्र समझ जाय,उसे मित्र कहते हैं।जिनके पास ऐसे भाई और मित्र हैं,उन्हें कोई शत्रु घेर नहीं सकता,परेशानी परेशान नहीं कर सकती,गरीबी,मुसीबत सता नहीं सकती।

        छणिक लाभ के लिये,अपने भाई को छोड़ना नहीं चाहिये,सम्बन्ध खराब नहीं करने चाहिये।भाई गरीब हो या अमीर,छोटा हो या बड़ा,पढ़ा लिखा हो या गैर पढा लिखा।इस संसार में दूसरा भाई नहीं हो सकता।

       मित्रता,गरीबी अमीरी देख के नहीं होती,जाति धर्म के आधार पर नहीं होती।सब मित्र हो भी नहीं सकते,मित्र बनाने की वस्तु नहीं है।मित्र की मित्रता को शब्दों में परिभाषित नहीं किया जा सकता।मित्र के अभाव में कैसी जीवन यात्रा,कैसा सुख।

    आइए,भाई और मित्र को,हमेशा अपनी साँस समझें,जीवन नौका की पतवार समझें,अपना समझें,इनके बिना प्रकाश होते हुए भी जीवन में घना अंधेरा है।

वरिष्ठ कवि लेखक
साहित्य सम्पादक

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