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"एक नई शुरुआत करते हैं"(कविता)

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अंधियारी रात को अलविदा बोल उगते सूरज के साथ में एक नई शुरुआत करते हैं  फिर से जिंदगी का आगाज करते हैं पुराने रिवाजों की बेड़ियां तोड़ लोगों की सोच से आगे बढ़कर जिंदगी को नया आयाम देकर  फिर से एक नई शुरुआत करते हैं लोगों के उलाहाना से दूर कानों में रुई ठूंस कर सब को नजरअंदाज करके फिर से एक नई शुरुआत करते हैं तुम चल सको तो साथ चलो राहों में मेरे हमसफ़र बनो मंजिल तलाशने का सफर एक नई शुरुआत करते हैं Written by  कमल  राठौर साहिल

"खरपतवार"(कविता)

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गली के नुक्कड़ से लेकर हुक्मरान के ताज तक दूर दूर तक जहां तक मेरी नज़र जाती है चारों दिशाओं में खरपतवार  दीमक की तरह  मुल्क को चाट रही है अंदर ही अंदर  देश को खोखला कर रही है मैं बहुत प्रयास करता हूं इस धधकते ज्वालामुखी को  शांत करने के लिए। जिस दिन यह ज्वालामुखी फूटेगा मैं स्वयं बुद्ध की राह पर चल पड़ूंगा मेरी दिशा मोक्ष प्राप्ति कि नहीं खरपतवार को जड़ से  उखाड़ फेंकने की होगी। मैं निरंतर प्रयास करता रहूंगा जब तक यह मुल्क  अपने पुराने आवरण में  नहीं आ जाता जब तक यह मुल्क सोने की चिड़िया  नहीं बन जाता  मैं खरपतवार जड़ से  उखाड़ता रहूंगा अपनी अंतिम सांस तक Written by  कमल  राठौर साहिल

"तेरे हुस्न के कसीदे पढ़ता हूं मैं"(कविता)

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जो अनगिनत है वही गिनता हूं मैं  तेरे हुस्न के कसीदे पढ़ता हूं मैं।  जी भर कर भर लो बाहों में अपने  तू जिसे ढूंढता था वह रहनुमा हूं मैं।  तेरा शहर जो इबारत पढ़ ना पाया गजलों का वही उर्दू अल्फाज हूं मैं।  मेरे शहर की बात ही निराली है  तुझसे जुदा होकर भी जिंदा हूं मैं। चूम ले आज की रात पेशानी मेरी  कल अनकहा सा ख्वाब हू में। Written by  कमल  राठौर साहिल

"सवाल करो , सवाल करो"(कविता)

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 सवाल करो , सवाल करो अपने हक में , सवाल करो मजलूमो की पहचान बनो हक के लिए सवाल करो उठो , गिरो , लड़खड़ाओ अपने हक पर ना तरस खाओ विपरीत हो चाहे वक्त फिर भी तुम सवाल करो। कोई कितने भी सिल दे होंठ  जुबान को लहूलुहान करो रात के सन्नाटे को तोड़कर सुबह का तुम आगाज करो सवाल करो , सवाल करो अपने हक में सवाल करो ये मुफलिसी की बेड़ियां कब टूटेगी मुरझाए चेहरों पर हंसी कब छूटेगी खामोश बेटे हुकुमरानो से बेखौफ हो सवाल करो Written by  कमल  राठौर साहिल

"पिता बच्चों के सामने मुस्कुराता है"(कविता)

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 जिम्मेदारियों की भट्टी में  सुलगते हुए भी , पिता सदा बच्चों के सामने मुस्कुराता है  हर मोड़ पर दिल पर  पत्थर रख, अपनी ख्वाहिशों को  दफन करके भी  बच्चों के सामने मुस्कुराता है।  खुद चाहे अनपढ़ हो  बच्चों की तालीम के वास्ते  तपती धूप में भी मुस्कुराता है।  चाहे जितना भी टूट जाए मगर  परिवार के लिए बरगद सा निडर  सदा ठंडी छांव देता हुआ  भी मुस्कुराता है। रातों की नींद को तिलांजलि देकर अपने आंसुओं को पोछ लेता है। पिता अपने बच्चों के खातिर हर सुबह हिमालय सा खड़ा होकर बच्चों के सपनों को  नए पंख देता है। स्वयं फटे हाल कपड़े और जूतों में सुलगती सड़कों पर चलता है। सांझ ढले बच्चों के लिए नए कपड़े और जूतों की  सौगात देता है। कभी नीम से कड़वा बन गलत राह पर जाने से रोकता है। पिता अपनी सारी उम्र बच्चों के नाम कर देता है । Written by  कमल  राठौर साहिल

"तेरे बिन मुझको रहा जाता नहीं"(कविता)

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रूठ जाते है अक़्सर राह में हमसे झूट बोलने का हुनर हमको आता नही चाँदनी रात में गुफ्तगूं हम करे तुम साथ हो चुप रहा जाता नही छीन लो मेरे आशुओँ को सनम साथ हो तुम तो लबो को सिला जाता नही तुम मिले मुझे दुआओ का असर तेरे बिन मुझको रहा जाता नही तेरा साथ जैसे जुगनूओ का उजाला  रात का ये डर मुझे डराता नही Written by  कमल  राठौर साहिल

"धरा का मिजाज जुदा सा लगता है"(कविता)

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इस धरा का मिजाज जुदा सा लगता है सिसकियों में भी कहकशा सा लगता है बेपरवाह हो रहा इंसान आजकल इंसान ही इस धरा का कातिल लगता है बसंत का रंग उड़ा उड़ा सा रहता है हरा भरा जंगल बंजर सा लगता है  फुहारों सी बरसात अब कहां होती है  तालाबों में भी सूखा सूखा सा लगता है अलाव गुजरे जमाने की बात हो गये ठंडक पे भी अब ग्रहण सा लगता है सूरज के साथ जल रहा इंसान भी सारे मौसम इंसानों का अंजाम लगता है अनगिनत पापों को झेल रही गंगा सन्यासी भी मेला मेला सा लगता है  Written by  कमल  राठौर साहिल

"मेरा साथ देगा कौन"(कविता)

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 पतझड़ में शज़र पे बसेरा करेगा कौन सेहरा में पानी की प्यास बुझाएगा कौन शरीर में हड्डियां अब जवाब दे रही इस उम्र में बुढ़ापे की लाठी बनेगा कौन परिंदे सब अपना आसमान नाप रहे मुफलिसी  में जमीन पर उतरेगा कौन। शागिर्दों की भीड़ अब कहां लगती है तन्हा रात में मेरा साथ देगा कौन। तुम थे  तो हर लम्हा अपना था साहिल मेरे जाने पर मुझको याद करेगा कौन। Written by  कमल  राठौर साहिल

"गांव में वो पीपल का पेड़"(कविता)

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 गांव में वह पीपल का पेड़ अब मनहूस हो गया है कुछ मुढ़ता वादी लोग ने उस पर भूत प्रेत चुड़ैल डाकन का साया घोषित कर दिया है रात के सन्नाटे में वो पीपल का पेड़ नई पीढ़ी को अब डराने लगा है दिन में जो  हवा की शीतलता देता है रात में हर राहगीर को डर बांटने लगा है मूढ़ता कि हद तब हो गई जब पीपल के भूत प्रेत चुड़ैल डाकन आदमी और औरतों में घुसकर देवी देवता बनकर लोगों की आफतों से  छुटकारा दिलाने लगा है धीरे-धीरे यह डर का व्यापार गांव वालों को रास आने लगा है तंत्र मंत्र झाड़-फूंक नीम हकीम गांव में सब का धंधा चमकने लगा है गांव में वह पीपल का पेड़ डर के साथ-साथ दिन के उजाले में आते जाते राहगीर को ठंडी हवा और छांव देने लगा है Written by  कमल  राठौर साहिल

"सौदागर कौन है"(कविता)

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 वकीलों के पेट पर लात मार रहा कौन है सरेआम जज खरीद रहा कौन है। बिकने वालों की मंडी सज रही खरीदने वाला साहूकार कौन है। जिसे देखो अखबारों की सुर्खियों में है शाम तक रद्दियों में बिक रहा कौन है। जमीर थोक में बिक रहा सरेआम इसका भाव घटाने वाला कौन है। लाशो की भी बोली लग रही अब तो शहरो-शहर यह सौदागर कौन है Written by  कमल  राठौर साहिल

"प्रकृति से खेलने का परिणाम"(कविता)

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तुम सरेआम प्रकृति के साथ  खिलवाड़ करते हो पंचतत्व मिले , तुम्हें मुफ्त में कहां तुम उनकी कद्र करते हो बड़े बड़े उद्योग लगाकर  वायु प्रदूषण , जल को  प्रदूषित करते हो। धरती का सीना छलनी कर इस धरा को लहूलुहान करते हो तुम खरपतवार की तरह  हरे भरे पेड़ों को काटते जाते हो हरियाली से भरी इस धरा को स्वार्थ में अंधे बन,  बंजर करते हो तुमने बहुत बो लिए कांटे अब वो काँटे जवान होकर  तुम्हें ही चुभ रहे हैं अब तुम विचलित हो सांस लेने के लिए तुम तरस रहे हो अपने द्वारा बोई गई फसल से  तुम अब लहूलुहान हो रहे हो। प्रकृति अपना संतुलन बना रही है तुम अपने कर्मों की चक्की में  पिस रहे हो एक बार फिर प्रकृति तुम्हें  आगाह कर रही है जैसा तुम प्रकृति के साथ  व्यवहार करोगे प्रकृति उसी रूप में  तुम्हें फल देगी। Written by  कमल  राठौर साहिल

"बहुत कठिन है बुद्ध बनना"(कविता)

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बहुत कठिन है बुद्ध बनना बहुत कठिन है राम बनना बहुत कठिन है कृष्ण बनना बहुत कठिन है इंसान बनना मगर  तुम इंसान बनने का निरंतर प्रयास कर सकते हो अगर तुम इंसान बन पाओ तुम पहला पड़ाव पार कर पाओ संभव है , बिल्कुल संभव है तुम बुद्ध की राह पर चल सकोगे यथासंभव , तुम मोक्ष पाओ मुमकिन है जीवन सार्थक कर पाओ पहला कदम , पहली सीढ़ी तुम बड़ा पाओ तो संभव है तुम बुद्ध की गति को पा जाओ तुम राम - कृष्ण को महसूस कर पाओ Written by  कमल  राठौर साहिल

"चुन्नू मुन्नू की मस्ती"(बाल कविता)

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चुन्नू मुन्नू सब खाना खा लो  खा पीकर तुम मस्ती कर लो थककर अब हो गए सब चुर आओ थोड़ा आराम कर लो शाम ढलने को आई बच्चों सब अपना होमवर्क कर लो सुबह स्कूल जाना है सबको अपना बैग तैयार कर लो रविवार की मस्ती हुई खत्म सोमवार की तैयारी कर लो स्कूल में मिलेंगे सब यार पढ़ाई से  होगा सबको प्यार Written by  कमल  राठौर साहिल

"चेहरे पर नकाब रखो"(कविता)

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हौसलों के तरकश पास में रखो गमो को अपने छुपा कर रखो कोई छीन लेगा लबों की हंसी अपने चेहरे पर  नकाब रखो वक्त सगा नहीं किसी का कभी अच्छा वक्त बचा कर रखो लतीफ़ों को सुनकर मुस्कुराओ गेरो को तुम सदा झांसे में रखो जिंदगी की कशमकश से बाहर देखो एक छोटा सा बच्चा  दिल में रखो Written by  कमल  राठौर साहिल

"मोक्ष प्राप्ति"(कविता)

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गंगा में अस्थियां बहाते बहाते लोग लाशो का भी  विसर्जन करने लगे। मोक्ष पाने की यह तहजीब भी  अजीब है। अंतिम वक्त में ही  यह दस्तूर लोग निभाते हैं जब सांसों का कारवां साथ रहता है तब मोह माया की जंजीरे लोगों से नहीं टूटती कई चक्कर शमशान के  लगाने के बाद भी लोगों को मोक्ष की प्राप्ति नहीं होती। सांसों का कारवां  थम जाने के बाद ही  लोगों को पाप - पुण्य ,  स्वर्ग - नरक और मोक्ष का  ख्याल आता है। कैसी अजीब विडंबना है!  यहां लोगों के साथ में, मोक्ष पाने को सब बेताब है  मरने को कोई राजी नहीं! Written by  कमल  राठौर साहिल

"तू कर्म कर"(कविता)

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यह धरा बन गई रणभूमि प्रतिदिन घट रहा यहां  धर्म युद्ध  कर्म युद्ध  शर्म युद्ध इस युद्ध में शंख की हुंकार कर तू बन अर्जुन इस रण में गांडीव उठा प्रहार कर धर्म पर जब बात आए तू अभिमन्यु सा शोर्य दिखा चक्रव्यू है ये अपनों का कलयुग में तू तोड़ दिखा डूब मर मगर शर्म युद्ध ना कर अपने आपको तू ना लज्जित कर यह  रणभूमि है वीरों की तू कर्म कर , तू कर्म कर, Written by  कमल  राठौर साहिल

"गांव की याद आती है"(कविता)

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वो गांव के परिंदे शहर की  भाग दौड़ में  थक कर जब चुर हो जाते है तब गाँव की यादों को  सीने से लगाये तरसते है  चूल्हे की रोटी को सिलबट्टे पे बनी  लहसुन की चटनी को। वो पेड़ की ठंडी छाव को  दादी नानी की लोरी को कुँए के ठंडे  पानी को जिस को पीकर आत्मा  तृप्त हो जाती थी ओर ये शहर की प्यास  पानी से भी नही बुझती। याद आती है वो गाँव की यादें जहाँ अपना सब छुट गया इस शहर ने सिर्फ पेट भरा मगर दिल में सब कुछ  सुनापन कर दिया। शहर की चांदनी रातें भी  अब मुझ को नहीं लुभाती है शहर का सन्नाटा कानो को  खाने को दौड़ता है वो  रात में अलाव जलाकर   रात भर बतियाना वो रिश्तो की गर्मी आपस में हंसी ठिठोली शहर में बहुत याद आती है  वो गांव की रातें जब दिनभर की भागदौड़ करके शाम को इस अजनबी शहर में खुद को अकेला महसूस करता हूं तब गांव की बहुत याद आती है Written by  कमल  राठौर साहिल

"मेरी माँ"(कविता)

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आज भी वो आखरी शब्द मेरे कानों में गूँजते है जब उखड़ती साँसों से  मेरी माँ ने कहा में जीना चाहती हु ! में मरना नही चाहती! आज भी मुझे याद है थरथराते हाथों से जब मेरी माँ ने मेरे सिर पर  आखरी बार हाथ फेरा ओर कुछ पलों बाद ही काल ने मेरी माँ की साँसों को हर लिया सदा के लिए आज माँ नही है  मगर माँ की यादे  आँखे नम कर जाती है। मेरी माँ अब सदा यादों में ज़िंदा रहती है माँ को याद करने के लिए  मुझे किसी विशेष दिन की जरूरत नही पड़ती माँ तो मेरी हर साँस में सदा  ज़िंदा रहती है  जब तक मेरी साँसे  चल रही है  माँ हर पल मेरी  आती जाती साँसों में  रहती है जब तक मे हू  मेरी माँ परछाई की तरह  सदा मेरे साथ है। Written by  कमल  राठौर साहिल

"प्राण वायु संजीवनी"(कविता)

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 बस करो अब बस करो अपने अहंकार को विराम दो तुम से ना सम्हल रहा हो तो  खूंटी पे टांग दो अपने अहंकार को विपरीत वक़्त है  हर तरफ जुदा सा मंजर है हवाओ में जहर है तुम रावण नही हनुमान बनो लाओ कही से प्राणवायु संजीवनी किसी के लिए तो राम बनो इंसानियत है खतरे में किसी  लक्ष्मण का तुम उद्धार करो भारी संकट आया मानव सभ्यता पर तुम इस युग के राम बनो इतिहास जब भी लिखा जाएगा तेरा नाम भी योद्धाओं में लिखा जाएगा ये महामारी का दौर भी गुजर जाएगा हर चेहरा जब फूल की तरह मुस्कुराएगा तेरा छोटा सा योगदान युगो युगो तक याद रखा जाएगा Written by  कमल  राठौर साहिल

"मंजर जुदा सा हैं"(कविता)

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पलको में आंसुओं का समंदर क्यों है  सीने में सुलगता धुँआ सा क्यों है इस शहर का मंजर जुदा सा है ये खामोशी , इतना सन्नाटा सा क्यों है रूह कांप रही इंसानों की भी अस्पतालों में लाशों का बवंडर सा क्यों है इस महामारी में सांसों को तरस रहा आदमी फिर हर साँस पे , ये सौदा सा  क्यों है लाशें कतार में है श्मशान में जलने को ये दावानल आतिशरा सा  क्यों है Written by  कमल  राठौर साहिल