"सपना की बारात भाग-2"(कहानी)

सपना की बारात भाग-2

आपने पढ़ा कि एक बार शादी टूटने के बाद सपना का पुनः विवाह तय होता है।अब आगे--------

बारात दरवाजे पर आती है, उसका स्वागत किया जाता है।ईधर सपना भी तैयार होतीहै। ईधर सपना तैयार होही रही है कि उधर जयमाल के समय मुखिया ने अपनी माँग बढ़ा दी।

सुखराम ने जब अपनी असमर्थता जताई तो मुखिया ने शादी से इन्कार कर दिया।शिवा ने भी अपने पिता को समझाने का पूरा प्रयास किया पर मुखिया निर्मम बने रहे।

यह बात घर के अन्दर जाते-जाते सपना तक पहुँच जाती है, गुस्से और दुख से भरी वह वहाँ पहुँच जाती है जहाँ शिवा और उसके पिता दोनों ही मुखिया से अनुनय-विनय कर रहे हैं, पर वह पत्थर की भाँति अपने जिद् पर टिके हुए हैं।उन्हें केवल अपनी जिद् ही प्यारी है।

ऐसे में जब सपना वहाँ पहुँचती है तो सब उसे देखने लगते हैं।सपना अपने पिता के पास जब उँची आवाज में चिल्लाती है तो सब चुप हो जाते हैं---

सपना अपने पिता से सम्बोधित होकर कहती है कि---"पिताजी बस कीजिए कहाँ तक आप इनकी विनती करेंगे और कब तक इनकी माँग पूरी करेंगे।खिलौना समझ रखा है इन्होंने जब चाहा खिलौना ले लिया, जब चाहा फेंक दिया तो ऐसा करना यह भूल जाये क्योंकि इनके इशारे पर हम नहीं चलने वाले।इनकी इच्छा हो शादी करें न हो तो न करें।"

फिर मुखिया से सम्बोधित होकर कहती है--"-आप अपने बेटे की कीमत कहीं और जाकर लगायें ,मुँहमाँगी कीमत मिलेगी"।(हाथ जोड़ते हुए)आप अपनी बारात अपने बिकाऊ बेटे के साथ वापस लेकर जा सकते हैं।

इतना कहकर वह घर के अन्दर चली जाती है और बाउ सन्नाटा पसर गया।

मुखिया को उस वक्त वहाँ खड़ा रहना

बड़ा मुश्किल लग रहा था, इतनी बेइज्जती के बाद वहाँ रुकना किसी के लिए भी बहुत कठिन था,अतः मुखिया अपनी बारात वहाँ से वापस ले जाते हैं।

जिस घर में अभी शहनाईयों की गूंज थी वहाँ अब मातम का नजारा दिखाई दे रहा था ।

हर कोई अपनी जगह पत्थर की मूर्ति बन गया था।

सपना की तो हिचकियाँ बँध गयीं।

अगले दिन हर किसी के जुवान पर सपना का ही नाम था ,कोई उसे सही ठहरा रहा था तो कोई गलत।

कुछ दिनों बाद सपना पुनः विद्यालय जाने लगी तथा घर पर भी टयूशन करने लगी।उसकी शादी की चर्चा अब दराज गाँव में पहुँच गई पर जीवन अब सामान्य रूप से चलने लगा था।

       

उसी क्षेत्र के एक छोटे से गाँव के निवासी हरिप्रसाद के कानों तक यह बात पहुँचती है।इस बात को सुने लगभग एक महीना बीत चुका था पर हरिप्रसाद किसी नतीजे पर नहीं पहुँचे थे।

लगभग तीन माह बाद किसी ने सपना का विषय छेड़ दिया तो उन्होंने सपना को देखने की इच्छा जाहिर की और अपनी इसी चाहत में वह   उसके घर पहुँच गये,संयोगवश सुखराम घर पर ही थे।दोनों बातें कर रहे थें कि सपना आ गई।सपना को देखकर हरिप्रसाद दंग रह गये और अपने बेटे की शादी उससे करने की ठान घर चले गए।

पन्द्रह दिन बाद हरिप्रसाद दुबारा सुखराम से मिले और अपने बेटे के लिए सपना का हाथ माँगा।

इस पर सकुचाते हुए सुखराम ने कहा-"शादी तो हम करेंगे पर हमारे पास देने के लिए कुछ नहीं है।"

हरिप्रसाद-"जहाँ बेटियाँ इतनी गुणवन्ती,संस्कारी बेटी हो वहाँ दहेज का क्या मतलब है?पीछे जो कुछ भी हुआ भी हुआ वो समाज की ओछी मानसिकता का परिणाम था।

सुखराम ने सहर्ष यह प्रस्ताव स्वीकार किया।

शाम को यह बात सुखराम ने अपनी पत्नी को बताई तो, उसने पूछा-"दहेज में क्या लेगें"

"हमारी बेटी"इस बात को सुनकर सब खुश हो गयें।

सोहना ने यह खुशखबरी सपना को दे डाली।।

सब बहुत खुश थे,अब एक बार फिर शादी की तैयारियाँ शुरू हो गयीं क्योंकि इस बार उन्हें सपना की बिदाई का इंतजार था।

शादी के दो दिन पूर्व उस लड़के का पत्र सपना को मिला ,कार्य के व्यस्तता के कारण वह उसे पढ़ न सकी,कार्य से निपटकर वह पत्र पढ़ने लगी-----

"सपना जी

मैं आपका गुनाहगार हूँ,यह शादी मैं आपसे नहीं कर सकता।मेरे बाबूजी की जिद् थी कि आपसे शादी करूँ, परन्तु मैं तो किसी और से प्यार करता हूँ।

आप ही बतायें जिस लड़की को मैंने उम्र भर जीवन भर साथ देने का वादा किया है उसे यूँही बीच मझधार में कैसे छोड़ दूँ।"

"अगर आपसे शादी करके मैं पुण्य नहीं कमा सकता तो उस को दर-दर की ठोकरें खाने के लिए छोड़कर पाप का भागी नहीं बनूँगा।

आप मैं कोई कमी नहीं है, और न ही मुझे आपसे कोई शिकायत है, लेकिन यह मेरी मजबूरी है।आशा करता हूँ आप मुझे समझ कर मुझे क्षमा र देंगी।"

      मैं रवि

सपना अपनी किस्मत पर रोना चाहती थी, पर उसके आँखों के आँसुओं ने साथ छोड़ दिया।

ऐसा लग रहा था कि सावन-भादों का महीना हो और बादलों ने बरसना छोड़ दिया हो।

सपना बाहर जाकर शादी की तैयारियाँ रोकने को कहती है तो  कोई एकदम से समझ नहीं पाता।

तब सपना कहती है कि-"जब मेरे दामन में खुशियाँ हैं ही नहीं तो क्यों आप मेरे दामन में खुशियाँ देखना चाहते हैं,रोक दीजिए यह शादी ,कोई शादी नहीं होगी।"

घर के सब लोग सकते में आ जाते हैं कि क्या हुआ?

सब के सब जहाँ थे वहीं खड़े के खड़े रह जाते हैं, सब के हाथ रूक जाते हैं।थोड़ी देर बाद सच्चाई सबके सामने आ जाती है।

अगले दिन हरिप्रसाद उनके घर आते हैं और वे शर्मिंदगी जताते हुए अपने बेटे को जिम्मेदार ठहराते हुए माफी माँगते हैं।

एक बार फिर अंधकार का काला साया पूरे घर पर पसर जाता है।

जिसलड़के से अब उसका विवाह तय होता है, वह किसी और से प्यार करता है यह बताते हुए वह शादी तोड़ देता अब आगे--------

उस दिन के बाद सपना बीमार रहने लगी, उसकी बीमारी कम होने के बजाय बढ़ती जा रही थी।हृदय पर जो आघात लगा था वह मिट नहीं पा रहा था।इसी उहापोह में उसने अपने मित्र सोनू को पत्र लिखा और सारी स्थितियाँ बताकर घर आने को कहा, एक वही था जिससे वह अपने मन की बात कर सकती थी।

जब वह पत्र सोनू को मिला तो वह फूट-फूटकर रोने लगा,फिर जल्दी से तैयार होकर सपना के घर के लिए रवाना हो गया।

सपना के घर पहुँचने पर ऐसा महसूस हुआ कि वह श्मशान घाट पर जा रहा हो।आगे बढ़ने पर सोहना दिखाई दी ।

सोनू ने उससे पूछा-" सपना कहाँ है।"

नम आंखों से उसने एक कमरे की ओर इशारा किया।

अन्दर पहुँचा तो सपना एक पलंग पर लेटी हुई थी।सोनू ने सपना को आवाज दी ,उसने आँखें खोलीं और मुस्कुरा कर कहा -"आ गये तुम।. "

सोनू ने डबडबाई आँखों से देखते हुए कहा कि बस इतनी ही दोस्ती थी कि तुमने मुझे कुछ भी बताना  जरूरी नहीं समझा।

सपना ने मुस्कुरा कर कहा-"क्या बताती मेरे जीवन में न खुशी थी न है, और अब मुझे जीने की चाहा नहीं।"

"बस इतनी खुशी है कि आप आये और अब यह जिंदगी भी इतनी ही है।"

सोनू ने तड़पकर कहा"नहीं, ऐसा मत कहो,सपना ,सारी बाराते लौट गयीं तो क्या इस बार मैं आया हूँ, बिना बाराती तुम्हें लेने।"

सपना ने फिर कहा- अब तुम्हें कुछ हासिल नहीं होगा सोनू,लड़की एक तमाशा है और जब जिसकी मर्जी होती है बारात लेकर आता है और चला जाता है, सोनू, अब मेरी बारात तो होगी पर दूल्हा न होगा, डोली तो उठेगी पर चेहरे पर खुशी न होगी, विदाई भी होगी पर बेटी की नहीं लाश की।

सोनू तुमने देर कर दी, मुझे खुशी है कि मैं इस दुनिया के जाल से छूटकर जा रही हूँ,पर इतनी आभागी हूँ कि किसी की दुल्हन न बन सकी।

सोनू ने कहा-"तुम दुल्हन बनोगी।" इतना कहकर उसने जेब से एक डिबिया निकाली और उसकी मांग भर दी।

सपना-चलो, इस बारात में मैं भी किसी की दुल्हन तो बनी,अब आराम से मेरी डोली पिया घर पहुँचेगी।

इतना कहकर उसने सदैव के लिए आँखें बंद कर ली।

सब देखते ही रह गये।

सपना की कही हर बात सही साबित हो रही थी, बारात की विदाई हो रही थी गम के आँसू लिए।

इस विदाई में इंसान तो क्या आसमान भी रो रहा था।

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