"उस दिन"(कविता)
काटा जा रहा था एक पेड़ उस दिन " विधिवत" अनुमति लेकर। पेड़ के हिलते ही कई पक्षी निकलकर उड़े वहाँ से । पक्षी ,जो नही मांगते मुआवजा कभी किसी नुकसान का। उपस्थित सब लोग,देख रहे थे फोटो खींचकर मज़ा ले रहे थे गिरते पेड़ का। किसी का ध्यान नही था उन विहंगों पर। किसी को नही दिखी उनकी घबराहट उनकी बदहवासी। पर मुझे जरूर कुछ फीके से लगे उनके पंखों,डैनों के रंग उस दिन उस मनहूस दिन।। Written by संतोष सुपेकर