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"इतिहास गवाह है"(कविता)

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मानव हीं मानव पर दोषारोपण मढ़ते आया है नफरत मित्रवत किस्से से  इतिहास गढ़ता आया है! है सर्वविदित इतिहास भूतकालीन कागज पर बड़े -बड़े योद्धा भिड़े सरहद-ए जमीं के दो गज पर !! कपटी -कपट से  विजय को पाए कुकृत्य कर्म और घृणा  फैलाये !! कितने बन बैठे बादशाह सतरंजी दाव आजमा कर प्रतिद्वंदी को किये पराजित तीर-ए घाव लगा कर !! प्रत्यक्ष है प्रमाण दिखता अजर-अमर कहानी में भीरू-सर्वनाश हुए दुश्चिंतन, नादानी में  आत्महत्या कर बैठे बाद--आत्मग्लानि में!! अतीत के पन्नों की चमक स्वर्णिम अक्षर-अक्षर अंकित कालजयी पद्चाप धमक भयभीत और सशंकित !! शूल भरे पथ पर अग्रसर भोर ,दोपहर ,साँझ ,निशा लहू से लथपथ घायल पग  लेकिन मनः जय की जिजीविषा!! कितनों ने भोगा  दंड कठोर कितनों ने भागा  शीघ्र रणछोड़ !! कितनों ने तोड़ा हिम्मत से  उद्देश्य -पथ के अवरोध  कितनों ने कुनीतियों का  जीवन-पर्यंत किया विरोध !!

"मोहलत"(कविता)

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ओ समय के परिंदे कुछ मोहलत दे दे हो सके तो मीत बनके कुछ नसीहत दे दे!! कुछ दबी हुई जज्बातें कुछ अनकही सी बातें मन कहता  कि बोलूं दिल कहता  ना बोलूं !! किसकी बातें सुनूँ मैं कौन सी राहें चुनूँ मैं एक तू ही सच्चा साथी पढ़ तू ही दिल की पाती! कुछ चाहती हूँ लिखना जो पढ़ने लायक हो कुछ चाहती हूं पढ़ना जो लिखने लायक हो !! गड़ाती हूँ नजर नितांत दोपहर दिख जाए कुछ ऐसा जो सीखने लायक हो!! अपने अवगुणों से हर रोज झगड़ती हूँ  बड़े गहनता से  अन्तर्मन में झाँकती हूँ आज हुआ क्या असर किस हद तक गए निखर कौन सी बुरी आदतें  अब छूटने लायक हो !! थमने की मोहलत दे  रूह-प्रवाह को क्षुधा-उदर रहित मन की चाह को !! ना उम्मीदी की बाहों में साया दे उम्मीद का तू पग-पग पर रोड़े राहों में हौसला दे जय हिंद का तू एक बार गले लगा ले  अपना मुझे बना ले तेरा होकर सदा रहूँगी कोई शिकवा नहीं करूंगी मत देना सीख बुरी की  सर झुकने लायक हो !! Written by  वीना उपाध्याय

"चिकित्सक दिवस"(कविता)

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इस जगत के सम्पूर्ण चिकित्सक, श्रद्धापूर्वक हम हैं नतमस्तक प्रणाम मेरी स्वीकार करो  बस इतना सा उपकार करो!! देवरूप में मान तुमको  हर प्राणी करता है आदर सम्मान, रोग व्याधि से मुक्ति दिला कर तुम देते हो अभयदान !! कर जोर कर आग्रह करती हूं मैं बारम्बार, तुम हो  विधाता ,जीवन दाता सुन लो मेरे सरकार!! ऊपर वाला जन्म देता है मगर नीचे का  कर्ता धर्ता हो तुम , मरणासन से खींच लाते हो दुःख, विषाद ,और  रोग हर्ता हो तुम !! चरक, सुश्रुत और जीवक चिकित्सक बड़े महान थे,  नई पीढ़ी ज्यादा विकसित हो उनके बड़े अरमान थे !! तुम हो उनके भावी पीढ़ी उनको और आदर मान दो उन महापुरुष रूपी ईश्वर को निष्ठापूर्वक दिल से सम्मान दो  वर्तमान के विकट घड़ी में  महामारी का घाव बड़ा है, कोविड जन जन के जान पर हाथ धो कर  पीछे पड़ा है !! इस धरा पर तुमसे बड़ा कोई नहीं जान का रखवाला  है, कुछ व्यभिचारी मानव इस  नाम को कलंकित कर डाला है!! अंतिम अनुनय है हमारी तुम सदा कर्मपथ पे अग्रसर रहना, अपनी सुरक्षा का भी ध्यान रखते हुए ,हम सबकी भी करना!!  अब तुम्हीं हो नईया ,तुम्हीं  खेवैया, तुम्हीं हमारी रक्षा कवच हो, इस दुनियां के झूठ ,छल के कारवां में 

"पाबन्द"(कविता)

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आंधी ,बारिश या तूफान  समय निरन्तर चलायमान  चाहे कलयुग चाहे त्रेता अपनी गति से चलता रहता!! समय का जो पाबन्द होता पाता नहीं  कभी असफलता कहलाता सदा वही विजेता !! समय के साथ जो चलता मानसिक रूप से नहीं थकता प्रतिकूलताओं में भी स्व-अनुकूल ढूंढ लेता  !! समय की धारा प्रतीपल प्रवाहित गतिमान   ज्योत जलाए अखण्ड ज्ञान जो अग्रसर  वही महान !! है दौर बुरा वक़्त कातिलाना   नहीं जिंदगी का ठौर ठिकाना !! साथ  देगा कबतक सांस नहीं किसी को ये आभास !! धावक सरीखे वक़्त परिंदा अति तीव्र है दौड़ लगाता  हर मौसम को स्वयं के पीछे बेरहमी से छोड़ जाता !! कभी हर्ष ले कर आता कभी गम दे कर जाता कभी खुशी से सराबोर कभी दुःख से देता झंझोर मानव सोचता रह जाता उत्तर खोजता रह जाता   प्रश्नों के अंबार लिए  निःशब्द  रह  जाता !! समय के साथ सांठ-गांठ कर लेता वह ज्ञानी  समय के साथ पंगा लेना सबसे बड़ी नादानी !! धरा -शिखर या  क्षितिज के पार समय का होता सम-व्यवहार कोई देखा नहीं  रूप   साकार इस अदृश्य शक्ति की सदा करें पूजा सत्कार !! Written by  वीना उपाध्याय

"आसरा"(कविता)

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 क्या ढूंढता फिरता    बाह्य   जगत में बोल रे         पागल- बावरा, है ,अन्तस्- निहित         ढूंढ के देख तेरा खुद          का आसरा !!           जगत है एक आंगन   आंगन भरी है थाली से      चैन-ओ अमन की      चाह लिए क्यों  शोकमय तू कंगाली से !! शिथिल तन में ला स्फुर्ती      रिक्तता की होगी पूर्ति !! हौसला का परवाज       लगा ले मत छोड़ कल पर  आज लगा ले !! प्रथम उड़ान शिखर पर द्वितीय आसमान पर तृतीय उड़ान चांद पकड़ रख खुद की अरमान पर !! प्रत्येक ख्वाइश को   रौशन कर ले सुखमय खुद की    जीवन कर ले !!    दूसरों के आसरे पर कब तक बांधे हाथ रहेगा दुःख, विसाद, पीड़ा गम कब तक यूँ हालात सहेगा!!     यहाँ कौन किसी का        हाथ थामता      यहाँ हर रिश्ता हैं       सिर्फ नाम का    यहां कोई नहीं तेरे     अपने  काम का   तू  लौट  पथिक  बन         भुला शाम का!!                 उदित शशि बन के          निकल जा      धूप कड़कती उष्ण           में ढ़ल जा     सागर के उफान पर          चढ़ जा   एक इतिहास तूफान पर          गढ़ जा !!  स्वप्न अधूरे कर ले पूरे जीवन खुशमय कर ले बेसुरे नैराश्य गीतों में आस के सुर-लय भर ले!!      वीना

"वक़्त के हाथों मजबूर है हम"(कविता)

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वक़्त न जाने क्यों हमें ऐसे मोड़ पर ले आता है, बीच राह में छोड़ कर और खुद आगे बढ़ जाता है ।। हम सिर्फ बेबस हो कर ये सोचते रह जाते हैं, क्यों हुआ? कैसे हुआ? का उत्तर खोजते रह जाते हैं।। वक़्त न जाने क्यों  ऐसा भी दिन दिखलाता है, हर्षित, पुलकित नैनों में अश्क-ए गम दे जाता है ।। हम खामोश बेदिली से अश्कों को पी जाते हैं, हर सम्भव कोशिश के बाद  कुछ भी तो नहीं कर पाते हैं । कोई विज्ञान वक़्त पर बन्दिश लगा सका नहीं है अबतक  , वक़्त दिखलाएगा करतब ये प्राण तन में  है जबतक  ।। वक़्त के हाथ मे प्रश्नपत्र है बस परीक्षा हमें हीं  देना है, जटिल प्रश्न हो या सरल हो हल का निश्चय हमें हीं करना है !!   हल ढूंढते और सुलझाते   एक दिन हम मर जायेंगे,     नेकी बदी जो भी है पास    सब यहीं  धरे रह  जाएंगे  !! Written by  वीना उपाध्याय

"तितली"(कविता)

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तितली रानी  तितली रानी लगती तो हो छोटी  लेकिन बुद्धि से तुम  बड़ी सयानी तेरी   मस्ती चंचलता की  होती है अनन्त कहानी!! पंखे लेकर धानी आसमानी किस देश से आती हो,   सुमन मृदु रस  चख-चख कर मन्द -मन्द मुस्काती हो!!  हल्की कोमल काया तेरी  रेशम से भी नाजुक होती फूलों पर अटके शबनम  बून्द से अपने पंखे धोती भीग कर गिर जाती हो भयभीत तुम हो जाती हो   सतरंगी रंगों में रंग कर इठलाती चली आती हो इंद्रधनुष के रंगों से  बोलो क्या रंग चुराती हो! कली-सुमन पर भौंरों के संग  मधुरस संचय करती हो  साँझ ढ़ले उड़ जाना है  मिल के निर्णय करती हो   तितली रानी  तितली रानी खूबसूरत पंखों की रानी तेरी मस्ती- चंचलता की  होती है अनन्त कहानी !! Written by  वीना उपाध्याय

"ढुलमुल ईमान"(कविता)

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 प्रतीपल बदलता रहता अंदर- बाहर प्राणी मन        ज्ञान-शिखर को         चूमनेवाला  भी करता नादानी पन !!    जीवन भूख  जीविका स्वाद  इस भेद को जाना   वही आबाद !! एक कर में चिंता    जीवन की,  और दूजे कर में    जीविका की, खाएं कोई कैसे भला  चुपड़ी रोटी नित्य      घी की!! जीवन जीविका  क्षुधा समान   होते सदैव   सब परेशान दोनों के ढुलमुल     ईमान!!  दोनों  होते  जलते दीये       और चिथड़े पीर  बिन सीये !! छलके ना ठहरिए उधड़े  ना  सम्भलिये पथ-पथरीले जीवन के फूंक-फूंक के चलिए !! Written by  वीना उपाध्याय

"संगीत"(कविता)

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हौले सरगम अधरों पर जब -जब आ ठहरते हैं पवन सुगन्ध में घुल-मिल सुर-संगीत  में ढ़लते हैं !!  संगीत-विहीन हर्षित तमन्ना होते स्वप्न सरीखे, सरगम-सुर छिड़े न जहाँ रौनक-ए महफील फीके! बन जाता मधुरम गीत सुर- लय के संगम से कर जाता स्पर्श जैसे सुगन्धित कोमल चन्दन से!! इंद्रधनुषी रंगों-छंगों से हृदय फलक रंग जाता है सावन बून्द  बन के बरस पोर-पलक भीगाता है !! माँ शारदे को साधने में  पथ प्रदर्शक बनता है लोभ, असत्य ,फरेब  मत से भी पृथक  करता है!! मानसिक रोग से मुक्ति देता है सार्थक जीवन की युक्ति देता है!!      तन-मन में   निश्चल आत्मा का     हो जाता है प्रवेश                रोम-रोम         पुलकित कर देता हर लेता सम्पूर्ण क्लेश !! संगीत से सानिध्यता प्रत्येक मन को भाता है  संगीत बगैर जीवन रंगविहीन हो जाता है !! सरगम रिदम सुर में  झंकृत मन को करता है सृष्टि -प्रकृति, जर्रा -जर्रा  को संगीतमय करता है !! Written by  वीना उपाध्याय

"योग"(कविता)

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प्रातः कालीन बेला में   नियमित जो भी        योग करेगा    तन-मन,अन्तर्मन से       जीवन -पर्यन्त         निरोग रहेगा !!  योग गुरु से पाकर ज्ञान  होता है जो अंतर्ध्यान जीवनशैली जाती निखर सकारात्मक होता असर!  जो भी प्राणी भ्रामरी, भस्त्रिका,शुचि,अनुलोम,             विलोम करेगा मनः शुद्धिकरण होगा रोम-रोम प्रफुल्लित होगा  सदा निरोग्य बना रहेगा    जीवन-सुख भोग्य        करता रहेगा !! योग जीवन में  खुशियां लाता परहित सेवा -भाव       सिखाता !!           ईश प्रदत  शक्ति साधन का  मान करें सम्मान करें,    सुंदर और सुदृढ़      व्यक्तित्व का  जीता जागता प्रमाण बने!   सर्व विभूति शक्तियों का    ये नश्वर तन धरोहर  गर परखी नजर से परखें    पाएंगे बहुमुल्य मोहर !! यौगिक-क्रिया कलापों से   तन-मन को सँवार लें  वेद-पुराण-शास्त्र निहित ज्ञान अन्तस् में उतार लें ! Written by  वीना उपाध्याय

"समर्पण"(कविता)

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दिल -ओ जान मैं हार               चुकी सबकुछ तुम पर वार            चुकी पक्की डोर से बांध             चुकी अडिग-अटूट बन्धन हर सांसों का स्पंदन भी  प्रिय तुम्हीं पर है समर्पण  प्राण सुकूँ से है वंचित निष्प्राण हो गए तन मन रिक्त नहीं प्रीत अफसाने  कर चुकी विगत मैं पूर्ण समर्पण !! मालूम है तुम भी प्रतीपल अश्रुधारा में बहते हो रोते हो तड़पते हो एकाकी विरह मौन  सहते हो!! ढलती शामों के सागर में  जब-जब लहरें उठती हैं  नाजुक रगे मेरी टूटती हैं सुर-स्वर गले में घूँटती हैं!  कुछ तो पास नहीं मेरे प्रिय सब कुछ है तुम्हारा  वेकल दिल जब-जब मचला तुम हीं तुमको पुकारा !! आ जाओ एक बार सही हक से अपना कह दो अंधियारे मन में मेरे  प्रीत प्रज्वलित कर दो !! जनम जनम के बंधन को मत तोड़ो चटकाय टूटे फिर ना जुड़े कभी    जुड़े गांठ पड़ जाय !! मीरा सा पागल बन के  भटक रही मैं जोगन रिक्त नहीं अब प्रीत अफसाने कर चुकी विगत मैं पूर्ण समर्पण !! Written by  वीना उपाध्याय

"मत सोचना अधार्मिक हूँ"(कविता)

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तेरी याद में रसिया  मैं रात-रात भर जगती हूँ दीये चराग बन कर  मैंआहिस्ते- आहिस्ते       जलती हूँ !!     तुम क्या जानो      दिल की लगी        कितनी हूँ मैं           प्रेम पगी !!  बालक जैसे हृदय है  मत सोचना  अधार्मिक हूँ,      पवित्रता को       कायम रखती     गोपनीय कविता       मार्मिक हूँ !! सत्य -सनातन  धर्म आधारित मूल्यों की बुनियाद हूँ संस्कृति के बंधन तोड़ प्रेम रोग से बाध्य हूँ !!  काले बादल मंडराते हैं   जब-जब अपने प्रीत        फलक पर लरज-लरज आते हैं  तब-तब स्वप्न सजीले     गीत पलक पर !! वेदना के सुर -लय लिए भीगी गीत मैं गाती हूँ  प्रीत तपन संवाद लिए गहरी नींद सो जाती हूँ !! Written by  वीना उपाध्याय

"फादर्स डे"(कविता)

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साहित्य सागर के गहरे तल में उतरने के बाद कुछ शब्द मिले ,जो सिर्फ मेरे आदरणीय पिता जी की यादों में समर्पित कर रही हूँ। 💐💐💐💐💐💐💐💐 वट तरु सम दृढ़ पूज्य पिताजी अनमोल और बहुमूल्य पिताजी सब कुछ खुद ही तन्हा सहते नहीं बताते कुछ भी पिताजी स्वयं धूप में खड़े अडिग और हमको बनते छांव पिताजी बच्चों की हर मांग पूर्ण कर खुद अभाव को सहते पिताजी जीवन के भंवरों में फंसे हम कुशल नाखुदा बने पिताजी जीवन के हर विकट वार से घाव का मरहम बने पिताजी उनका है स्थान उच्चतम मगर बहुत ही विनम्र पिताजी सदा सत्य पर अटल और मिथ्या से लड़ते सतत पिताजी हो शरीर में या हो मन में हर पीड़ा हर लेते पिताजी भुला न पाऊंगी इस जन्म में आपका मैं उपकार पिताजी द्रवित लोह सम अनुशासन में बद्ध आपका प्यार पिताजी आपके द्वारा रोपित पौधों से आज चमन बन गये पिता जी Written by  वीना उपाध्याय

"हिंदी भाषा का व्यावहारिक ज्ञान"(लेख)

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हिंदी भाषा का व्यावहारिक ज्ञान हिंदी हमारी पहचान है हिंदी हमारी जान है मान है स्वाभिमान है हर ख्वाइश अरमान है *******आइये कुछ मूल ज्ञान  की ओर चलें। ******* वर्ण: हिंदी भाषा की सबसे छोटी इकाई ध्वनि होती है। इसी ध्वनि को ही वर्ण कहा जाता है। वर्णमाला: वर्णों के व्यवस्थित समूह को वर्णमाला कहते हैं। हिन्दी भाषा देवनागरी लिपि में लिखी जाती है जिसमे 52 वर्ण हैं और इन वर्णों को व्याकरण में दो भागों में विभक्त किया गया है: स्वर और व्यंजन।  स्वर जिन वर्णों को स्वतंत्र रूप से बोला जा सके उन्हें स्वर कहते हैं। इन वर्णों का उच्चारण करते समय साँस कंठ, तालु आदि स्थानों से बिना रुके हुए निकलती है। जिस ध्वनि में स्वर नहीं हो (जैसे हलन्त शब्द राजन् का ‘न्’, संयुक्ताक्षर का पहला अक्षर – कृष्ण का ‘ष्’) उसे वर्ण नहीं माना जाता। उच्चारण के आधार पर 10 स्वर होते हैं: अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ लेखन के आधार पर 13 स्वर होते हैं, जिनमें 3 अतिरिक्त स्वर होते हैं: अनुस्वार अं, विसर्ग अ: और ऋ व्यंजन जो वर्ण स्वरों की सहायता से बोले जाते हैं उन्हें व्यंजन कहते हैं। हर व्यंजन के उच्चारण में अ स्वर लगा होता है,

"नाकाबंदी"(कविता)

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 नाकाबंदी करनेवाले कितनों के घर तोड़ोगे नियतगन्दी रखने वालों कितनों के किस्मत फोड़ोगे !! दरक रही मानवता  अब तो तुम विराम दो भटक रहे निरीह-जनों का स्नेह-सरस् कर थाम लो !   किसी एक का जीवन  सुधार कर तुम देखो   मन से क्रूरता, ईर्ष्या ,द्वेष  निकाल तुम फेंको!!  गली -गली में नाकाबंदी करना अब तुम छोड़ दो सच्चे पथ के पथिक बन जाओ  सच्चाई से रिश्ता जोड़ लो !!  शोर- शराबा,लूट खसोट  वाली जिंदगी ठीक नहीं दूजे को तड़पा कर अपनी महफील सजाना ठीक नही चार पहर की जिंदगी है प्यार से बीता कर जाओ निमित-मात्र  हो ईश्वर के कुछ तो अच्छा  कर के जाओ !! उठा-पटक कोहराम  मचाना  जनता को बेजार  रुलाना अब भी वक़्त है त्याग दो दर से लौट रहे दुःखियों को उठो !प्रेम से आवाज दो !! Written by  वीना उपाध्याय

"मुस्कुराहट"(कविता)

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एक प्यारी सी मुस्कुराहट हौसलों को बढ़ा देती है, पल भर में प्रेम की उच्च  शिखर पर चढ़ा देती है !!  दुःख भरी जिंदगी में  संचार कर देती है, खुशियों की अनंत भंडार भर देती है  !! जीने की लालसा जगा कर पलकों पे अनेको  ख्याब सजा देती है, जो आंखों से बहुत  दूर होता है,उसको  पास से देखने को  बेताब कर देती है !! एक प्यारी सी मुस्कान से बेगानाभी लगता है अपना सा उसके मौजूदगी का एहसास लगने लगता है   साकार सच सपना सा !! एक प्यारी सी मुस्कान  तन्हाई को भगा देती है, रंगों में ढल जाती है बेवफाई हर्षोल्लास  जगा देती है !!  जिंदगी में मुस्कुराहट  है वरदान की तरह, जिंदादिल जान की तरह, परिपूर्ण अरमान की तरह मधुरधुन गान की तरह  !! Written by  वीना उपाध्याय

"सुन गुज़ारिश पवन-बारिश"(कविता)

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 बहती चंचल पुरवाई आई साथ अपने बून्द बारिश लाई खुशहाली बरसाती आई सरस् सन्देश सुनाती आई!! भीषण गर्मी से बचाने को तन -मन शीतल कर जाने को धरा की प्यास बुझाने आई सोंधी सुगंध महकाने आई!! मेघों  की पालकी पर ऋतुओं की रानी आई झहर-झहर झम,  झमा -झम बरसाते निर्मल पानी आई चहुदिशा  हरियाली छाई बहती चंचल पुरवाई आई साथ अपने बूँद बारिश लाई !! घनघोर अंधेरा छाया दिवस लगे निशा सरीखे प्यास बुझा रही शिपियाँ मधुरम स्वाति बूंद पी के !! गोरिया के हृदय प्रांगण में कलश -छलक छल छलके स्वप्न सजीले पिया मिलन के तन दहके ,मन  बहके  कंगना डोले ,झुमका झूले कर खनके कांच की चूड़ियां कसक छुपाए सोचे हियरा  कैसी  है ये मजबूरियां बालम जी  रहते सामने रख के चार गज की दूरियां !! प्रकृति के आंचल पर ये कैसी विपदा छाई बोल सहेली पुरवाई ये कैसी आपदा लाई !! हे री पवन तू वापस जा  बादल को भी साथ ले जा कल आना सिर्फ हर्ष लेकर नई भोर ,आस उत्कर्ष लेकर !! Written by  वीना उपाध्याय

"आसमान से आगे"(कविता)

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 गम-ए जिंदगी से हम क्यों आखिर भागें और भी तो उम्मीदें हैं आसमां  के आगे !! पंख -परवाज हौसलों का लगाकर पराजय के डर को मन से भगाकर झुके शीश ऊँचे से ऊँचे उठाकर पूछ लो तुम फलक से मंजिल का पता  समझ -सुन लो  जीत की दास्ताँ !!  उम्मीदें नई ले चढ़ो आसमां पर उतार कर शशि-चंद्र   लाओ जमीं पर !! ठान लो ज़िद मन में  गर ऊँची उड़ान का सोचना क्यूँ ,कितना है  कद आसमान का !! करो लक्ष्य-भेदन  घटाओं के पार बरसाओ खुशी बूँद नीर मूसलाधार !! Written by  वीना उपाध्याय

"एक कदम पर्यावरण की ओर"(कविता)

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वृक्षों  का  सम्मान करें हम पर्यावरण शुद्धता का रखें ध्यान, धरा हमारी जगजननी हैं   सच्चे हृदय से करें सम्मान  !! प्रकृति है हमारी धरा की सुंदरता इनके विराट रूप पर   करें अभिमान !!  इसकी सुरक्षा के लिए आओ  छेड़े  प्रदूषण मुक्ति अभियान !!  एक एक पेड़ हर साल लगायें  सेवा का सच्चा  धर्म निभायें   इनके सांस के घेरे में हम प्राणी जन हैं सुरक्षित, इनसे नजदीकियां बना के रखें   कभी ना करें अपमानित और उपेक्षित !! इनकी स्थूल आंखों को मालूम होता है की वे   हैं हरे भरे अथाह सम्पदा , इनसे बुरे व्यहार से ,बढ़ती दूरियों के साथ और गहरा हो जाता है स्याह विपदा  !!  Written by  वीना उपाध्याय

"लत"(कविता)

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 वर्तमान की  जीवन शैली  हो गयी है  क्षत-विक्षत  अधिकांश ने  पाल रखी है  अजब - गजब नशे की लत !! हर किसी के  अपने चिंतन अपने -अपने मत अपने हीं कारण असह्य झेल रहे दुर्दांत गत !! किसी को झूठ की तलब ज्यादा किसी को इश्क  बेसबब ज्यादा किसी को सिर्फ ख्वाइशें मुझपे रहमत करें रब  ज्यादा !! कोई इश्क का रोग पुरजोर लगाए बैठा है कोई नफरत की आग चहुओर जलाए बैठा है  कोई अपनों के गर्दन पर तेज छूरी पिजाए बैठा है !! अपने -अपने राग -द्वेष अपने -अपने कमतर शेष अपने अपने पूर्णविराम  सहनशीलता,धैर्य- विशेष!! जिंदगी का हर लम्हा नशे के नाम करने वाले सच्चाई के राह पर नहीं होते हैं ठहरनेवाले  देखने में अच्छे-भाले लेकिन दिल के होते काले !!  कुर्सीयों की लत लगाए राजनीतिज्ञ लोग बैठे हैं जोड़-तोड़ की लत लगाए गणितज्ञ  लोग  बैठे हैं !!  हाथ में लिए बोतल शराब   मुहँ में गुटखा चबाने वाले प्राणों से भी ज्यादा नशा छुपा कर रखने वाले दिख जाते हैं गली -गली पीते -खाते , चखने वाले !! किसी को नशा  दौलत की किसी को नशा  शोहरत की किसी को नशा  मुहब्बत की किसी को सिर्फ इज्जत की !! Written by  वीना उपाध्याय