"मूकता या मुखरता : हो यथेष्ट"(कविता)

 बात के विरोध या समर्थन का क्यूँ न हो,

सिर्फ मुखरित होना ही जबाब नहीं होता।

चलते ऑधी में उखड रहे बिरवे क्यूॅ न हों,

धरा पे जमीं घास भी माकूल जबाब देता।

शान्त का मतलब लोग सहन से क्यूॅ न लें,

चुप ज्वालामुखी का धधकना कम होता।

।।1।।

मानव स्वच्छंद बने ,नियति मूक क्यूँ न हो,

वक्त के सटीक उत्तर का,जबाब नहीं होता।

उत्पीडन से निकल रही आह,गूँगी क्यूँ न हो,

नियति से पडी लाठी का जबाब नहीं होता।

बने माहौल में अर्ध सत्य भटकता क्यूँ न हो,

ऐसे में चुप होने का कोई प्रभाव नहीं होता।

।।2।।

Written by ओमप्रकाश गुप्ता बैलाडिला

किरंदुल, दंतेवाड़ा, छ0ग0

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