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"एतबार"(कविता)

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हर  लम्हें   में   खुद   को  मारा   करतें   है जब  कभी  अकेले  में तुम्हें  याद  करतें है   मिलने  की ख़ुशी  बात  करनें  की  हसरतें लिएँ आज भी अपना वक़्त बर्बाद करतें है तुम्हे   क्या   पता   मोहब्बत   क्या   चीज़  तुम्हारे  वादों पर अब भी एतबार  करतें है बेजुबान  दिल को अंधेरे में  रख  कर सच  की बजाय  झूठ पे झूठ हम बोला करतें है तुम्हें  फुर्सत  कहा  हमारा हाल  पूछने की अब तो  हम  मौत  का  इंतज़ार  करतें  है Written by  नीक राजपूत

"किताब मेरी दोस्त"(कविता)

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किताब  है  मेरी  सबसे  अच्छी   दोस्त   और  मेरे  जीवन  की  रौशनी  किताब ने जीना  सीखाया  किताब  ने बोलना   सिखाया मेरे सभी  सवालों का जवाब है  विचारों  के   युद्ध  मे  सबसे   बड़ा   अस्त्र है किताब एक अनमोल उपहार  है  किताब  जो  हमें  एकांत  समय में   हमारा   साथ  देती  है  खुद को  बोझ  बनने से बचाती है  किताब  एक ऐसी    यात्रा है जिस पथ पर बिना  पाँव रखें चाहा सफर  कर सकतें है  किताब है   जीवन की सही पेहचान इसका मूल्य रत्नों, खरा  सोना  से  भी  अधिक है   क्योंकि   किताब    अंतःकरण    को  उज्ज्वल  करतीं   है  किताब  हमारी   सोच का  नज़रिया   बदल  सकती है  किताब  से  बढ़कर  वफादार   दोस्त    दुनिया में और कोई  नही किताबों के बिना जीवन  जैसे  बिन आत्मा शरीर   किताब जीवन का आधार है में लोगों से अधिक किताबों से प्यार करता हूँ Written by  नीक राजपूत

"सँगीत"(कविता)

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 सँगीत  हर  दुःख  का ईलाज़  सँगीत  हर   मर्ज़   की    दवा  सँगीत  हर दिल  की आवाज़ सँगीत  जीवन     का     अंश  सँगीत  एक   अच्छा     दोस्त  सँगीत   सफऱ     का   सहारा सँगीत  दुनिया  का   खजाना सँगीत  दिल बेहलाने की रीत सँगीत  शब्दों    का     सँसार  सँगीत  देश     की    संस्कृति  सँगीत  एक अनोखी  साधना  सँगीत   सकारात्मक    ऊर्जा Written by  नीक राजपूत

"मिलने आना"(कविता)

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आख़री  बार   मिलने   आना। लाल जोड़ा  पहन  कर आना। हमारे   दिए  हुए  तौफे  लिखें हुए   खत    साथ   ले  आना।  गले   लगाकर  आखरी   बार  तुम   आँसू  पोछने तो आना। हाथों   की  लकीरों    से  तुम अपना    नाम  मिटाने  आना। दिल   में  तुम   सुलगती   हुई  आग  को  ठंडा  करनें  आना। आखरी   बार  हक  जता कर  हमें   अलविदा  कहने  आना। आज मौका है मिलने का कल तुम कब्र पर फूल चढ़ाने आना। Written by  नीक राजपूत

"छोड़ दिया"(कविता)

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ज़िंदगी  को   अलविदा    कह    दिया। शहर गली मोहल्ले को मेनें छोड़ दिया।   खुशियों ने मुँह मोड़  लिया हालातों के   बदल ते सभी ने साथ देना छोड़ दिया। उम्मीदो  के  रास्तों  पर  मिली  ठोकरें  तबसे हमनें घुट  कर रोना छोड़  दिया।   शहद  के नाम  पर  जहर मिला तबसे   किसी  पर  भरोसा करना  छोड़ दिया। चाहा तो  बस खुद  को  चाहा  ज़िंदगी से शिकायतें  करना  मेनें  छोड़  दिया।   निकल पड़ा सफ़र में चलते चलते पैरों   ने मंज़िल का पता पूछ ना छोड़ दिया। Written by  नीक राजपूत

"चाहता हूँ"(कविता)

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मैं  ख़ुद  को  लिखना  चाहता  हूँ। गुनाह  क़बूल  करना  चाहता   हूँ। एक  बार  ऐ  ज़िंदगी   हमें  मौका तो दे मैं  फिर से  जीना चाहता हूँ। अपनी  गलतियों, को  सुधार  कर मैं अच्छा इंसान  बनना चाहता हूँ। नफ़रतों का दौर भुलाकर मैं  प्यार  अपनापन,   जताना   चाहता   हूँ। टूटे रिस्तो को  वापिस  जॉड  कर  मैं एक  नया  परिवार। चाहता  हूं। खुद  को  लूटा  कर  मैं  सभी  के दिलों पर  राज  करना  चाहता हूँ। थक गया ख़ुदको लिखतें हुए अब मैं सभी को  याद आना चाहता हूँ। Written by  नीक राजपूत

"बात तो कर"(कविता)

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गुस्से  को   थूक   दे  जरा  बात  तो  कर मेरा  न  सही मोहब्बत  का  मान तो कर तेरा यू खामोशियों  से  घेरा चेहरा अच्छा नही लग रहा होंठसे कोई हरकत तो कर अब और ना तड़पा न ले  इम्तिहान  मेरा गलति  की  सज़ा दे  मूझे  माफ  तो  कर तेरा  गुस्सा  जायज़  है  पर  थोड़ी   इस  नादान  दिल  की  थोड़ी  फिक्र  तो  कर  भीगीं पलकें लेकर इस हाल में हम कहा   जाए   हो  सके  तो थोड़ी  बात  तो  कर  तुम  ही  हो जिसे मेरा  हाल ए दिल पता  है अब और  हमें टूटने पर मजबूर न कर Written by  नीक राजपूत

"बाल श्रम"(कविता)

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ज़िंदगी ने  पढाई  की उम्र में,   मजदूरी करवाई  दो वक्त की रोटी ने सारी खुशियाँ भुलाई,   खेल कूद  की उम्र में ज़िंदगी। ने चाय की  दुकान ढाबों पर,    मेहनत करवाई, ईंटे उठाकर  छोटी  उम्र, में  हमने  अपनी।   पीठ   तुड़वाई  जम्मेदारी ने, हमारी  जरूरतें  भुलाई   दो।   वक़्त की रोटी ने  कुछ  ऐसे, हमारी तकदीर,  बनाई  पूरी।   ज़िंदगी  श्रम मजदूरी  करते,  गुजरी   कदम    कदम   पर,   मिली चुनौती और कठिनाई। Written by  नीक राजपूत

"जुल्फ़े"(कविता)

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में  नही चाहता  की तुम जुल्फें बांध कर हवाओं   को नाराज़ करदो। इन्हें ऐसे ही खुले  रेहने दो। एक  यहीँ  तो है  जो मेरी  तमाम  हसरतें और ख्वाहिशो को जिंदा  रखतीं  है।   क्योंकि  वैसे तो मुझे बिखरी चीज़े    पसँद   नही  एक तेरी   जुल्फें ही  हैं जिस्से हमें  कोई गिला  शिकवा नही हमें  गले   लगा  ने का मौका तक नही मिलता   एक   तेरी  ज़ुल्फ़ ही गालो को  अक्सर चूमा करती है एक यहीँ औज़ार  बिखरा   कर जुल्फें  करतीं  हो तुम  वार जान तो तुम ले नही  सकती   बस   यहीं एक आसान तरीका जिस्से  तुम   हमारा  क़त्ल   करती   हो। Written by  नीक राजपूत

"धुम्रपान की लत छोड़ो"(कविता)

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नशा  जो  थोड़ी  देर के लिएँ  है मजा लत पड गई नशे की तो है एक  सजा आजकल  नशा  आकर्षक का केंद्र   बन चुका  है।  टीनएजर्स  तो  ठीक आजकल  बच्चे  भी  खैनी  गुटखा,    सिगरेट, के  गुलाम  हो रहें  है  बुरी  संगत  का  नतीजा  है जो  आपकों   जान-लेवा  कैंसर  जैसी  बीमारियों,  तक घसीट कर ले जाता है आपको   पता है कैंसर से पीड़ित सलोगों की  गिनति  हर साल  अधिक  होती जा   रही है  एक  साल  में करिबन आठ लाख लोगो  से  ज़िया दा मौते होती    हैं  कैंसर,  जैसी  बीमारियों  से  हमें  बचने के  लिए  खुद को  दूर  रखना   होगा बुरी आदतों  खुद  को  बचाना  होगा  क्योंकि,   हमारा   स्वास्थ्य है    बड़ा  अनमोल  आपको   दो  रूपए  की  खैनी  गुटका  अंत  मे  आपको    लाखों रुपए में  पड़ेगी जीवन बचाने के लिए धुम्रपान करना छोडो अच्छे   स्वास्थ्य से  जीवन का  नाता  जोड़ो Written by  नीक राजपूत

"दहेज़"(कविता)

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भूल आई वो  अपने  घर आँगन   और  परिवार  छोड़ आई अपने  माँ बाप को  बसाने  नया संसार   मोहल्ले  वाले  पूछने  लगे दहेज़  में अपने  साथ  क्या  क्या  लाई   पहले ही दिन  ससुराल में कदम रखतें  हुई  उनके साथ। खिंचाई   कोने में  बैठी  सोचती  क्या मेरी  ज़िंदगी   की  यही  है    सच्चाई    दहेज का उन्हें अंदाज़ा भी न था वो  बिचारी  हथेलियों  में  अपने  माँ  बाप  के   संस्कार   ले आई    बेटी है लक्ष्मी का अवतार दहेज़ की  बात   क  रके  उसपर क्यो    कर रहे हो  अत्याचार   ठीक से  भूली भी  नही  होंगी अपनी माँ   का आँचल  पीता  का  प्यार वो  क्या जानें  देहप्रथा का  व्यापार Written by  नीक राजपूत

"मुलाकात"(कविता)

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 हमारी पहली और आखरी मुलाकात याद रहे गी। हमारे हिस्से आई  आँसुओ की बारात याद रहे गी। सौगात में मीली हमे तड़पाती हुई रात याद रहे गी। माँगीगी थी जो रब  से वो मुरादे हमे याद रहे गी। साथ रहने की खाई थी जो कसमें वो हमे याद रहे गी। कल हम जिंदा रहे न  रहे तेरी वफा जरूर याद रहे गी। Written by  नीक राजपूत

"दगा दिया"(कविता)

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 ज़िंदगी    ने   मूझे   भूला  दिया। निःशब्द,   यादों  ने  रुला  दिया। धूप, में  निकल  पड़ा था मंज़िल, ढूंढ ने परछाई, ने हमें दगा दिया। कुछ  पल  संभाल,  कर  रखें थे, आँखों  में  अश्कों, ने  दगा दिया। ख़्वाब  क्या  देखा  तूझे  पाने का  रातों  को  निंद ने  भी दगा  दिया। जिन्हें   अपना   रब  समझ   बैठे, थे   उस  बेवफा,  ने   दगा  दिया। ख़ुद को  तबाह  करनें  का  इरादा किया अंत में मौतने भी दगा दिया। Written by  नीक राजपूत

"रंगोली"(कविता)

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 धरती  पर  इंद्रधनुष  के सारे रंग,  बिखरा ती  अपने रंगो से धरती।    को  सजाती। और  नकारात्मक,    ऊर्जा, को  मार्ग  में ही  रोककर,     वापस बाहर, की ओर  प्रवाहित,      कर देती। अपने रंगो  से  जीवन,        में  खुशियों,  के रंग  भर  जाती।        घर आँगन, की  रानी  कहलाती।         रंगों से हरी भरी इसकी कहानी।          अंधेरे  में  भी   रौशनी  फैलाती।            विभिन्न, आकृतिओ  में  घर की,             शोभा बढाती। जग मगाते दियों।             के  बिच रेहकर  घर आँगन  की,              रौनके  बढाती।  हर  त्यौहार  में                 अपने रंगो से जीवन  रंग जाती। Written by  नीक राजपूत

"कागज़ कलम"(कविता)

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बड़ा  अजीब  सा  रिश्ता है।   कागज़ और कलम के बीच, जो  कलम का सुख,  दुःख,   शिकायते,   सह   जाता है।  दोंनो  एक दूसरे,  के बिना।   रह नही सकतें  कलम एक, नज़रिया है। तो कागज़ उन,   पन्नों  का  आधार,   कलम, तलवार तो  कागज़  उनकी,   ढाल,  कागज़  कलम, की। दोस्ती, पुरानी  जैसे  रेत के,    ऊपर   तैरता,  समंदर, का। पानी जब दोनों  की आपस,   में  गुफ्तगू, होतीं   है  लोग। इन्हें शब्दों, का नाम देते है।    एक बया करे तो दूजा  करे,  मेहसूस  इस  संसार  में  है।   यहीं दोनों की सही पेहचान। Written by  नीक राजपूत

"कलम चलती नही"(कविता)

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अब  कहानियां  लिखने,  लगा  हूं  मैं, जिक्र तेरा अब गजलों  में समता नहीं। सारे  लफ़्ज़ों  को  जोड़ने   लगा  हूं मैं, तेरे नाम के आगे  कलम  चलती  नहीं। ख्वाबों,  से  अब   जागने  लगा  हूं  मैं, एक तेरे ख्याल हमे  जो सोने  देते नहीं। खिड़कियों  से  बातें  करने  लगा हूं मैं, ये उदासीया खामोशियों को पसंद नहीं। किसी शोर में तेरी आवाज़ सुनता हूं मैं, तेरे आने की आहट मेहसूस होती नहीं। Written by  नीक राजपूत

"स्वभाव"(कविता)

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जैसा  हम  सोंचते, है  वैसा ही हमारा।   स्वभाव होता है  क्योंकि,  आदमी की, पेहचान चेहरे  से और  उनकें  स्वभाव,   से होतीं है। कोई इंसान, अच्छा है तो। उनकें स्वभाव की वजह से कोई बुरा।   है तो उसकी सोच उनमें छुपे अवगुण, अहंकार, है जो  उन्हें  जीवन, मे  उसे,   आगे बढ़ने नही देता कदम कदम पर,  पछतावा  मुस्किलो  के साये के नीचे।    रहेता है इंसान,  घर, बदलता। है  हर, रोज वस्त्र बदलता है सम्बंध व्यवहार,    बदलता है  फिर  भी  इंसान, निराशा। और तनाव, के घेरे में रहता  है दुःखी।    होता है फिर भी अपना स्वभाव नही। बदलना चाहता और ये बात भी नही।   भूल जाता  है की सरल, स्वभाव  ही,  है हमारे  संस्कारों की सही  पहचान।    क्योंकि  अक़्सर लोग आपसे  रिश्ता, आपकी सुंदरता देखकर नही बल्कि,   आपका  सवभाव  देखकर बनाते है। Written by  नीक राजपूत

"तितलि"(कविता)

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 लाल  गुलाबी, हरे   पीले, रंगों।     सजाएँ, हवाओं से  बातें करती,  हर  कली, पर  मंडराती,  कोई,    छुए तूझे इससे पहले दूर भाग। जाती तेरे  रँग  हजार, आसानी,    से तूझे कोई  कोई नही  पकड़, सकता यूं  बीच  सड़क बाजार,    कभी बादलों, से तो  कभी इस, धरती, के  फूलों  से रँग  चुराती,      और अपने  पंख  को  सजाती, पेड पौधे, फूलो  पर गुनगुनाती,    प्रकूति, के रँग  में तू  घुलजाति, पंखों से तू  मधुर  गीत  सुनाती।    जंगल है तेरा  आलीशान महेल, बाग  बागीचों,   की   शहजादी,    कहलाती अपने  पँख, फैला तू, हवाओं में बडे करतब दिखाती,    बाग बगीचे सुनाते तेरी कहानी Written by  नीक राजपूत

"मेरा भाई"(कविता)

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मेरा भाई हर खुशियों में मेरे साथ है।   हर मुश्किल समय  मे मेरा  हथियार, यार है भाई मेरा भाई  नही मेरा यार,   है पापा के  सर  का  ताज है। बहन, की  राखी का  लाज है।  तो माँ का।    दुलारा है भाई  मेरा जो  है  भगवान, श्री कृष्ण  सा  महान  है तो श्री राम,    सा  बलवान,  है।  भाई  है  माँ   की, ममता  भाई है  पीता की छाया, जो।   जो अपने   परिवार,  पर  नही पड़ने, देता  कोई बुरा साया भाई  है  हमारे,   परिवार  की  हिम्मत, भाई  ही रक्षा। कवच  है  मुसीबतों,  के आगे  भाई,    ही  मेरी   ताकतवर, तलवार नसीब, वालो  को ही मिलता  भाईका प्यार Written by  नीक राजपूत

"रिश्ते निभाने वाला गरीब महान"(कविता)

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किसी गरीब आदमी, से बिना  समझे,   नाता  न तोड़,  ना  क्योंकि   जितना।  मान सम्मान उनकी चोखट पर  मिल,   ता है  उतना  मान  सम्मान हमें और, कोई, नहीं  दे सकता  इस  दुनया  में,   अमीर  गरीब से हाथ  नही  मिलाता। उन्हें क्या पता उस गरीब  की  वजह,    से वो आबाद हो  कर अपने  महेलों।  में जी रहा है जहाँ,  गरीब की  कदर,   नहीं होती वहाँ भी वो रिश्ते निभाता। फर्क बस  इतना, है अमीर  गरीब के,    बीच  के अमीर, रिश्ते  अपने दिमाग, से निभाता। था और। गरीब  दिल से,    मज़बूरियों, के  घेरे  में  रहेता है  पूरे,  दिन  जो   उम्मीदो,  के  सहारे सिर्फ,    एक  ही  ख़्वाब,  रखता  था अपनी।  आँखों  दो  वक्त  की  रोटी  का जो।    उस गरीब  के लिए हर दिन  चुनोति,  थी छीन लेता है  खुशियां  गरीब  के,    हाथों से ईश्वर शायद  वो इन सब से, ज़्यादा गरीब होगा।  गरीब  आदमी,   अपनी भूख  छुपायेगा उदासी नहीं। Written by  नीक राजपूत