"एतबार"(कविता)
हर लम्हें में खुद को मारा करतें है जब कभी अकेले में तुम्हें याद करतें है मिलने की ख़ुशी बात करनें की हसरतें लिएँ आज भी अपना वक़्त बर्बाद करतें है तुम्हे क्या पता मोहब्बत क्या चीज़ तुम्हारे वादों पर अब भी एतबार करतें है बेजुबान दिल को अंधेरे में रख कर सच की बजाय झूठ पे झूठ हम बोला करतें है तुम्हें फुर्सत कहा हमारा हाल पूछने की अब तो हम मौत का इंतज़ार करतें है Written by नीक राजपूत