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Showing posts with the label जितेन्द्र 'कबीर'

"हम नहीं मानने को तैयार"(कविता)

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 अपने देश के लोग इस आपदा को अब तक नहीं हैं मानने को तैयार, डर रहा है केवल मात्र वही इंसान भुगत रहा है जो अभी इसकी मार। कुछ लोगों की नजर में बीमारी नहीं है बस कुछेक शातिरों का दुष्प्रचार, इसलिए सुरक्षात्मक कोई भी उपाय अपनाने से वो करते हैं साफ इन्कार। बहुत लोगों की नजर में है बीमारी मामूली सर्दी-जुकाम और बुखार, ठीक तो हो रहे हैं इसमें भी लोग हल्ला मचाया जा रहा है यहां बेकार। कइयों ने छोड़ रखा है ईश्वर पर ही अपनी जान की रक्षा का सारा भार, मौत आ भी जाएगी इस तरह उन्हें तो वो कर लेंगे प्रसाद समझकर स्वीकार। आयुर्वेदिक जीवन पद्धति का शुरू में कुछ लोगों ने किया था जमकर प्रचार, लेकिन स्थिति की भयावहता देखकर बदलने लगे हैं उनके भी अब विचार। हममें से बहुत सारे लोग हैं ऐसे जिनकी कमाई का है नहीं कोई पक्का आधार, पेट भरने की मजबूरी में ही ऐसे लोग काम पर निकलने के लिए हैं लाचार। राजनीति से जुड़े महानुभावों का इनमें है सबसे अलग ही जोशीला व्यवहार, जनता मरे या फिर भाड़ में जाए कहीं इन्हें केवल करना है सत्ता का व्यापार। महामारी फैलने पर सबके अपने तर्क और हैं सबके अलग-अलग विचार, परिस्थितियां बिगड़ती ही जाएं

"महामारी की आग में आहुति"(कविता)

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इस देश में कोरोना महामारी फैलाने में है बहुत सारे लोगों का योगदान जिनकी नासमझी-लापरवाही के चलते अब हजारों-लाखों को देनी पड़ रही है अपनी जान। सर्वप्रथम तो अपनी सरकार ही रही ऐसे संभावित खतरे को भांपने में बुरी तरह नाकाम, जाकर विदेशों से जहाज भर-भरकर ले आई खुद अपने लिए मौत का सामान। आने वाले लोगों की जांच और रुकने का एयरपोर्ट पर ही अगर किया जाता इंतजाम तो काफी हद तक हो सकती थी आसान इस ख़तरनाक संक्रामक वायरस की रोकथाम। बिगड़े जब हालात तो लगा दिया बिना तैयारी के आनन-फानन में ही लॉकडाउन जिसके चलते जमकर मची अफरातफरी और सैकड़ों लोगों को गंवानी पड़ी अपनी जान। अंतरराष्ट्रीय और अंतरराज्यीय सीमाओं को बंद करके चलने देते उद्योग धंधे व बाकी काम तो ना जाती लोगों की नौकरियां इतनी और ना ही अर्थव्यवस्था को पहुंचता इतना नुक्सान। जनता ने भी लापरवाही के मामले में इस दौरान स्थापित किए नित नये आयाम जुटते रहे धार्मिक-राजनीतिक कार्यक्रमों में खूब लगाकर सबकी जिंदगी को दांव। रोक के बावजूद करते रहे लोग बढ़-चढ़कर शादी समारोह, पार्टियां और धाम जिनमें होता नहीं था भूल से भी कभी सैनेटाईजेशन,मास्क व सोशल डिस्टेंसिंग का

"इंसान का दिमागी विलास"(कविता)

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भूख से पीड़ित इंसान भूल कर अपनी सारी शर्म-लिहाज रोटी के एक टुकड़े के खातिर त्याग दे सकता है सामाजिक नैतिकता के सारे आयाम, भूखे पेट ने सिखाया है उसे कि वास्तव में रोटी ही है  उसका भगवान और दुनिया में ज्यादातर लोगों की आस्था है केवल भरे हुए पेट का विलास। अस्तित्व को जूझता इंसान भूल कर अपनी सारी धर्म-जात अपनी जान बचाने की खातिर त्याग दे सकता है जन्म से ओढ़ाए गये धर्म-जाति संस्कार, जिंदा बचे रहने की जद्दोजहद ने सिखाया है उसे कि वास्तव में अपना अस्तित्व बनाए रखना ही है जीव का एकमात्र धर्म और दुनिया की बाकी सब धर्म-जात हैं केवल इंसान के दिमाग का वक्ती विलास। Written by  जितेन्द्र 'कबीर'

"जो हम कहते नहीं"(कविता)

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 कहने को तो दूर तुमसे रहते हैं लेकिन असल में सरूर तेरे में रहते हैं, जितना हिचकिचाती हो तुम सबके सामने अपना हमें बताने से, तुम्हें अपना जानकर उतना ही गुरूर में हम रहते हैं। कहने को तो घर में अपने रहते हैं लेकिन ख्यालों में दर पे तेरे रहते हैं, बहुत कम समय के लिए मिलीं तुम  इस जिंदगी में इसलिए अरमानों में  हम जी भर के तुम्हें लिए रहते हैं। कहने को तो शान में अपनी रहते हैं लेकिन असल में जान तेरी में रहते हैं, तेरी खुशी में ही खुशनुमा रहती है हमेशा जिंदगी हमारी पर तेरी तकलीफ में बड़े ही परेशान हम रहते हैं। Written by  जितेन्द्र 'कबीर'

"एक अज़ीम उपलब्धि"(कविता)

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 जिक्र किया तुम्हारा जब जब मैंने अपनी कविता में, पढ़ कर दिल धड़का तुम्हारा कुछ पल सिर्फ मेरे लिए, वही अनमोल पल इस लेखन यात्रा की एक अज़ीम उपलब्धि हैं मेरे लिए। मैंने विरह लिखा जब तो तड़प उठा तुम्हारा मन जुदाई की आग में, तुम्हारे रोम रोम ने जरूरत महसूस की मेरी, तुम्हारी वही तड़प इस लेखन यात्रा की एक अज़ीम उपलब्धि है मेरे लिए। मैंने श्रृंगार लिखा जब तो सारी दुनियादारी भूलकर मन किया तुम्हारा उड़कर मेरे पास पहुंच जाने को, स्पर्श से मेरे मुझमें ही एकरूप हो जाने को, तुम्हारी वही चाह इस लेखन यात्रा की एक अज़ीम उपलब्धि है मेरे लिए। Written by  जितेन्द्र 'कबीर'

"स्टार प्रचारक"(कविता)

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चुनावी रण में स्टार प्रचारक का मतलब - चुनावी फिजाओं को  महकाने वाला स्वाद, जनता को बहकाने वाली शराब और केवल वोट के लिए पहना जाने वाला हिजाब। अंदरुनी बीमारियों का बाहरी ईलाज, सस्ती लोकप्रियता का झूठा हिसाब और केवल बातों के घोड़े दौड़ाने वाला चतुर नवाब। मौका देखकर जिल्द बदलने वाली किताब, एक ही चेहरे पर कई सारे नकाब और चुनावी नदी में सब जगह बहने वाली झूठी लफ्फाजी का बहाव। Written by  जितेन्द्र 'कबीर'

पेशोपेश में जनता

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हुकूमतें एक तरफ करती हैं जोर शोर से जनता का आह्वान महामारी से लड़ने का, आपसी दूरी बनाए रखते हुए काम अपने सारे करने का, और दूसरी तरफ खुद ही कर देती हैं विधान सत्ता के लिए चुनाव लड़ने का, दूरी संभव नहीं जिसमें ऐसे पचड़े में पड़ने का, महामारी हो या हो चुनाव जनता ही मारी जाएगी उसके खून की कीमत पर सत्ता हर बार अपना गुणगान करवाएगी। हुकूमतें एक तरफ करती हैं जोर शोर से जनता का आह्वान धर्म-जाति से ऊपर उठकर विकास के मुद्दे पर वोट करने का, लोकतांत्रिक मूल्यों में आस्था रखते हुए नैतिकता के उच्च मानदंड स्थापित करने का, और दूसरी तरफ खुद ही  कर देती हैं विधान साम,दाम, दण्ड,भेद से सत्ता पर  काबिज होने का, उसके लिए लोगों के दिलों में जमकर प्रचार से  जहर के बीज बोने का, नैतिकता हो या हो कानून का पालन जनता से ही करवाएगी लेकिन अपनी बारी आने पर सत्ता के लिए हर मूमकिन हथकंडा अपनायेगी। Written by  जितेन्द्र 'कबीर'

छवि के गुलाम

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लोगों के बीच बन जाए जो एक बार छवि, कई लोग फिर उसको ताउम्र ढोते हैं, ऐसे लोग असल में अपनी ही छवि के गुलाम होते हैं। लोग क्या कहेंगे यह सोचकर अपने अरमानों को कांटों में हर बार पिरोते हैं, असल में बड़े ही मजबूर यह छवि के गुलाम होते हैं। मानते हों किसी काम को चाहे गलत मन ही मन लेकिन सामने हर बार उसके समर्थन में होते हैं, अंदर से बड़े ही लाचार यह छवि के गुलाम होते हैं। अपनी सोच को ही हमेशा सबसे उत्कृष्ट बता दूसरों को नीचा दिखाने में बड़े होशियार होते हैं, अंदर से बड़े ही बीमार यह छवि के गुलाम होते हैं। Written by  जितेन्द्र 'कबीर'

मानव की प्रवृत्ति

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नहीं है संभव कि हर कोई खुश रहे,  हमसे हमेशा हमेशा के लिए क्योंकि  प्रवृत्ति मानव की हमेशा खुश रहने की है ही नहीं। नहीं है संभव कि हर कोई सहमत हो जाए हमसे हमेशा हमारे विचारों से क्योंकि  प्रकृति मानव की एक ही तरह से सोचने की है ही नहीं। नहीं है संभव कि हर कोई साथ चल पाए हमारे हमेशा हमेशा के लिए, क्योंकि  मंजिल मानव की एक ही जगह पहुंचने की है ही नहीं। Written by  जितेन्द्र 'कबीर'

बेपरवाही का आलम

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बीड़ी-सिगरेट के पैकेट पर लिखी  धीमे जहर की चेतावनी  और शुभचिंतकों की स्वास्थ्य संबंधी जानकारी को नजर अंदाज करके अब तक उनका डटकर सेवन करती रही है दुनिया, कहर बड़ा है वैसे तो कोरोना का आजकल लेकिन इसको लेकर भी जो आलम है बेपरवाही का यहां तो हैरानी की कोई बात नहीं, अदृश्य दुश्मनों से घबरा जाना हमारी आदत में शुमार नहीं। शराब की बोतल पर लिखी सेहत के लिए हानिप्रद होने की चेतावनी और शुभचिंतकों की इसकी लत ना डालने की नसीहतों को नजर अंदाज करके अब तक इसका डटकर सेवन करती रही है दुनिया, शोर बड़ा है वैसे तो कोरोना का आजकल लेकिन इसको लेकर भी जो  आलम है गैर-जिम्मेदारी का यहां तो हैरानी की कोई बात नहीं, समय रहते संभल जाना हमारी आदत में शुमार नहीं। सड़कों के किनारों पर लगी वाहन कम रफ्तार में चलाने की चेतावनी और शुभचिंतकों की सुरक्षित घर पहुंच जाने की दुआओं को नजर अंदाज करके अब तक हवा से जमकर बातें करती रही है दुनिया, खौफ बड़ा है वैसे तो कोरोना का आजकल लेकिन इसको लेकर भी जो आलम है खुद मुख्तारी का यहां तो हैरानी की कोई बात नहीं, जन-जागरण की आवाज उठाना हमारी आदत में शुमार नहीं। Written by  जितेन्द्र 'कब

"राजनीति के रंग"(कविता)

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राजनीति झूठी और बेईमान हो गई उस दिन से ही जनता ने स्वीकार कर लिया जिस दिन से  झूठे - बेईमान लोगों को राजनीति का एक अपरिहार्य अंग, इस मानसिकता से निकलती नहीं जनता जब तक राजनीति में झूठ और बेईमानी के  दिखते रहेंगे नये-नये रंग। राजनीति भ्रष्ट और लुटेरी हो गई उस दिन से ही जनता ने स्वीकार कर लिया जिस दिन से भ्रष्ट - लुटेरे लोगों को राजनीति का एक अपरिहार्य अंग, ऐसे लोगों की सफाई करती नहीं जनता जब तक स्वच्छ राजनीति में भ्रष्ट और लुटेरे लोग लगाते रहेंगे जंग। राजनीति हत्यारी और अपराधी हो गई उस दिन से ही जनता ने स्वीकार कर लिया जिस दिन से हत्यारे - अपराधी लोगों को राजनीति का एक अपरिहार्य अंग, ऐसे लोगों की ठुकाई करती नहीं जनता जब तक शांति और कानून व्यवस्था को ऐसे लोग करते रहेंगे भंग। राजनीति धर्म और जाति आधारित हो गई उस दिन से ही जनता ने स्वीकार कर लिया जिस दिन से धर्म-जाति के नाम पर वैमनस्य फैलाकर वोट बटोरने वाले लोगों को राजनीति का एक अपरिहार्य अंग, ऐसी बीमारियों की दवाई करती नहीं जनता जब तक हर बार चुनावी राजनीति को ऐसे लोग करते रहेंगे बदरंग। Written by  जितेन्द्र 'कबीर'

"पहचान"(कविता)

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अपनी मनमर्जी से शासन चलाना, विरोध को कुचलते जाना, झूठ बोलना, प्रोपेगंडा चलाना, सत्ता के लिए किसी भी हद तक गिरते जाना, पहचान है जिस तरह एक तानाशाह होने की, मालिक को भगवान मानते जाना, आदेश का उसके बिना सवाल किए बस पालन करते जाना, तर्क से रहना कोसों दूर मालिक के समर्थन में लड़ते जाना, पहचान है उसी तरह एक गुलाम होने की। कमजोर के हक में आवाज उठाना, अन्याय को ना कभी सहना, सच्चाई के पथ पर मिलें जो कष्ट और दुश्वारियां सामना उनका धैर्य से करते जाना, पहचान है जिस तरह एक सच्चे देशभक्त होने की, आततायी का समर्थन करते जाना, स्वार्थ में अपने मरते जाना, चुप रहना अन्याय देखकर बेईमानी को नजरंदाज करते जाना, पहचान है उसी तरह एक देश का गद्दार होने की। Written by  जितेन्द्र 'कबीर'

"लहू बहता रहेगा"(कविता)

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जब तक होंगी नहीं कोशिशें पुरजोर इस आतंकवाद या नक्सलवाद जैसी समस्या की जड़ तक  जाने की और उनकी नब्ज पहचानकर बीमारी को  समूल मिटाने की, देश के जवानों का लहू यूं ही बहता रहेगा, उनके इस तरह  असमय चले जाने का  मलाल चाहने वालों को यूं ही रहता रहेगा। जब तक करती नहीं सारी सरकारें दलगत राजनीति से  ऊपर उठकर देश के व्यापक हित की सोच रखकर इंसानियत के आधार पर हर क्षेत्र के सर्वांगीण विकास की राजनीति, लोगों में सत्ता के प्रति असंतोष यूं ही पनपता रहेगा, विद्रोह का ज्वालामुखी रह-रहकर लोगों में यूं ही धधकता रहेगा। जब तक होती रहेगी नजर अंदाज जमीनी हकीकत, शीर्ष स्तर पर फैसले लिए जाते रहेंगे अयोग्य अफसरों के द्वारा, युद्ध की रणनीति  बनती रहेगी दूर कहीं वातानुकूलित कमरों में बिना वस्तुस्थिति की पूरी जानकारी के, जवानों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ेगा, उनके परिवार और देश को खून के आंसू रोना पड़ेगा। Written by  जितेन्द्र 'कबीर'

"बॉस हमेशा सही नहीं होता"(कविता)

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यह हो सकता है कि वो प्रमुख हो  अपने कार्यालय का केवल मात्र उम्र में  वरिष्ठता के कारण या फिर किसी क्षेत्र विशेष के अच्छे ज्ञान और  प्रर्दशन के कारण, लेकिन अपने पद के  घमण्ड में जब वो हर मुद्दे पर पेलता है  अपना निर्णायक ज्ञान, खुद को बताता है हर बात में सबसे बेहतर और करता है उम्मीद  कि सब मान लें वेदवाक्य उसकी कही हर बात को, चापलूसी ना करना जब बन जाए उसके लिए किसी को नाजायज तंग करने का आधार, तो धीरे-धीरे बन जाता है वो अपने  अधीनस्थ कर्मचारियों की आंखों की किरकिरी, उसकी तथाकथित इज्जत का  दिखावा चलता है  सिर्फ उसके सामने दिख जाने और  ज्यादा से ज्यादा उसके पदासीन रहने तक। Written by  जितेन्द्र 'कबीर'

"बस कहने की बात"(कविता)

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कहा जाता है अक्सर आंतरिक सुन्दरता है सर्वश्रेष्ठ और बाहरी है मात्र आवरण, फिर भी दुनिया में खूबसूरती के आधार पर भेदभाव का है खूब चलन, तन को सुन्दर बनाने का क्रेज तभी तो है दुनिया में बड़ा और मन सुन्दर बनाने को विरला ही करता है जतन, कथनी और करनी में फर्क ना इतना हो तो बन जाए सुन्दर यह चमन। कहा जाता है अक्सर विद्या-बुद्धि की सम्पन्नता है सर्वश्रेष्ठ और धन से है मात्र आवरण, फिर भी दुनिया में धन-संपत्ति के आधार पर भेदभाव का है खूब चलन, कैसे भी धन बनाने का क्रेज तभी तो है दुनिया में बड़ा और निर्धन से होता है सौतेलापन, कथनी और करनी में फर्क ना इतना हो तो बन जाए सम्पन्न यह वतन। Written by  जितेन्द्र 'कबीर'

"विडंबना"(कविता)

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राष्ट्र सेवा का झंडा  बुलंद करके चलने वाले ज्यादातर लोग, अपनी सेवा  राष्ट्र से करवाने के मंसूबे दिल में लिए हैं, इन्हीं मंसूबों की खातिर ना जाने कितने जोड़ तोड़ उन लोगों ने किए हैं। राष्ट्र रक्षा का झंडा बुलंद करके चलने वाले ज्यादातर लोग, अपनी रक्षा  जेड प्लस सिक्योरिटी से करवाने के मंसूबे दिल में लिए हैं, इन्हीं मंसूबों की खातिर ना जाने कितने विवादास्पद बयान उन लोगों ने दिए हैं। राष्ट्र उत्थान का झंडा बुलंद करके चलने वाले ज्यादातर लोग, अपना निजी उत्थान राष्ट्र की कीमत पर कर लेने के मंसूबे दिल में लिए हैं, इन्हीं मंसूबों की खातिर ना जाने कितने घर-परिवार बर्बाद उन लोगों ने किए हैं। Written by  जितेन्द्र 'कबीर'

"आज भी जारी है"(कविता)

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 जन्नत! जहां का आंखों देखा हाल  बताने को  वापस ना आया  अब तक कोई जाकर, मगर समुदाय विशेष के द्वारा वहां जाने के ख्वाब दिखा-दिखाकर लोगों को जीते जी 'दोजख' में धकेलना आज भी बदस्तूर जारी है। हेवन! जहां की अतुलनीय खूबसूरती बयां करने को वापस ना आया अब तक कोई जाकर, मगर समुदाय विशेष के द्वारा वहां जाने के ख्वाब दिखा-दिखाकर लोगों की जिंदगी जीते जी 'हेल' बना देना आज भी बदस्तूर जारी है। स्वर्ग! जहां मिले आनन्द की अनुभूति दर्शाने को वापस ना आया अब तक कोई जाकर, मगर समुदाय विशेष के द्वारा वहां जाने के ख्वाब दिखा-दिखाकर लोगों को जीते जी 'नरक' भोगने पर मजबूर करना आज भी बदस्तूर जारी है। Written by  जितेन्द्र 'कबीर'