"आओ ना पापा"(कविता)
याद तो करता हूं
मिलने को फरियाद भी करता हूं
क्यों हो इतना मुझसे दूर
अब कोई नहीं करता तुम
जैसा प्यार मुझे पापा
रोना चाहता हूं
रो नहीं पता हूं मैं पापा
इतनी जिमेदारी डाल दी
मुझ पर ही मेरे पापा
क्यू हो तुम हम
सब से इतना दूर
चाह कर भी गले से
नही लगते मेरे पापा
मैं खुद से रूठता हूं
खुद मैं ही खुद को मानता हूं
आप जैसा प्यार नहीं मिलता
मेरे पापा
बोझ सी लगती है
जिंदगी मेरी
अभी तो संग तुम्हारे खेलना
चाहता हूं
आ जाओ ना संग मेरे पापा
मिलना चाहता हूं
आओ ना मेरे पापा
गले से लगा लो
न मेरे पापा
Written by लेखिका पूजा सिंह
nice....
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