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Showing posts from January, 2021

शायरी

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 क्या कहे हम कि कहने को कुछ बाक़ी ना रहा घाव पर घाव मिल रहे सहने को कुछ बाक़ी ना रहा हाथ पकड़ लो ले चलो अपने दिल के किसी कोने में लग रहा इस जहां में रहने को कुछ बाक़ी ना  रहा अजब सी आबोहवा है यहां अजब ये घुटन सी है सांसे है सुलगती हुई सीने में अलग चुभन सी है बह रही रक्त धारा बहने को और कुछ बाक़ी ना रहा क्या कहे हम कि कहने को कुछ बाक़ी ना रहा।  Written by  #अविनाशरौनियार

शायरी

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 रहो किसी नशे में मग़र हालात-ए-होश भी जरुरी है कुछ रिश्तो में लब हमारे ख़ामोश भी जरुरी है  गलतियां जो है ये सुबूत है हमारे इंसान होने की  ख़ुदा न समझे ख़ुद को इसलिए लहज़े में दोष भी जरुरी है  धड़कनो का क्या है चलेंगी जब तक ज़िंदगानी रहेगी  हम न रहेंगे तब भी हवाओ में हमारी कहानी रहेगी  रिश्ते जो बनेंगे दरमियाँ वो हमें ही निभानी रहेगी इश्क़-ए-एहसास की ख़ातिर सांसे मदहोश भी जरुरी है। Written by  #अविनाशरौनियार

"गुमनाम शायर"(कविता)

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मैं एक गुमनाम शायर हूँ। बोल नहीं पाता, क्यों कि बचपन से कायर हूँ।। मैं एक गुमनाम शायर हूँ।। मुझे एक लड़की बहुत पसंद थी। मेरे दिल में वो नजरबंद थी।। पर, दिल ही दिल मे घुट कर रह गया। क्यों कि बचपन से कायर हूँ।। मैं एक गुमनाम शायर हूँ।। एक दिन ऐसा आया था,  उमड़ पड़े थे जज्बात। और मैंने कहा दी अपने दिल की बात।। पर डर के मारे ये भी कह दिया, मैं सबसे बड़ा लायर हूँ। क्या करता, मैं तो बचपन से कायर हूँ।। मैं एक गुमनाम शायर हूँ।। पर ये मनु बिहारी,  नहीं चुकेगा अबकी बारी। दिल मे अब भी जलती है, धीमी धीमी चिनगारी।। और वो जहाँ भी रूबरू हो तो, ऐसा लगता है To Much On The Fire हूँ।। मैं एक गुमनाम शायर हूँ।। मैं एक गुमनाम शायर हूँ।। Written by #शायर_मनु_बिहारी

"एक छोटी सी मुस्कान" (कविता)

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एक छोटी सी मुस्कान। करती है हमारा सारा काम बड़ी से बड़ी चीज करती है आसान डर पर अमल करना सिखाती है नहीं है इस को हराना आसान एक छोटी सी मुस्कान। हौसला बढ़ाती है डर को भगाती है कांटो पर हस कर चलना सिखाती है गिरने से हर वक्त बचाती है हस के हर काम को करना सिखाती है एक छोटी सी मुस्कान।  गिरने पर उठना सिखाती है मैदान में डटे रहना सिखाती है बातों को हस कर सहना सिखाती है हस के लक्ष्य पर चलना सिखाती है  एक छोटी सी मुस्कान। जिंदगी को जीना हस के सिखाती है लोगों में प्रेम की भावना जगाती हैं छोटी चीजों में खुशियां दिखाती है हस के बड़ी सीख दे जाती है एक छोटी सी मुस्कान। Written by  #LekhikaNehaJaiswal

"खाने की चाहत"(कविता)

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छोटी सी उम्र है चार पैर है। ना है अंधेरों से डर ना है गर्मी से डर ना है वर्षा से डर ना है ठंड से डर है बस खाने की चाहत। ना है घर की चाहत ना है लोगों को हमारी कदर दूर-दूरा कर लोग भगा देते हैं वफादारी करना बन चुकी हमारी आदत है बस खाने की चाहत। ना है कपड़ों की चाहत ना है गहनों की चाहत ना है चोरी की आदत ना है उतना खेलने की आदत ना है रात को सोने की आदत है बस खाने की चाहत। ना है कोई सपना ना है कोई ख्वाहिश चोट पर ना है कोई मरहम की आदत ना है आंसू बहाने की आदत ना है उड़ने की कोई ख्वाहिश है बस खाने की चाहत। Written by  #LekhikaNehaJaiswal

"संघर्ष कर" (कविता)

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बढ़ा  कदम इतिहास रच, गर हो जज्बात, तो संघर्ष कर।  नदियाँ क्या,  चढ़ा पाल, सागर को भी पार कर, गर हो हिम्मत, तो लहरों से संघर्ष कर।  टीले या पर्वत क्या, हिमालय भी शीश झुका देगा, निर्णय तो कर, बढ़ा कदम संघर्ष कर।  बारिशों में क्या, तूफानों में भी अपनी चमक बिखेर, गड़गड़ाहट के साथ धरती को रोशन कर, दिया नहीं, बिजली सा संघर्ष कर।  लकड़ी की आग क्या, तू ज्वालामुखी है, उसके शोलो सा धधक, गर है आग, तो सूर्य के तेज से संघर्ष कर।  बढ़ा  कदम इतिहास रच, गर हो जज्बात, तो संघर्ष कर।  Written by  #atsyogi

"उसकी मुस्कान" (कविता)

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जब मैंने देखी उसकी मुस्कान, थम सी गई जमी - आसमां, थम सा गया पूरा जहान, थम सी गई ये रास्ते, थम सी गई मेरी सांसे, थम सा गया रवि का तेज, थम से गये ये पेड़।  वो सच है या जूठ  ये तो पता नहीं, पर मेरी आँखे ढूढ़े उसको, इस जहान में, पेड़ो के ओट में, इन पथरीली वादियों में, दिन के उजालो में, इन खामोश रास्तो में, खुद की सांसो में।  मैंने सोचा मेरी कल्पना है, मेरा सपना है, जैसे बिन मौसम की बारिश है, बिन आत्मा की शरीर है, बिन तीरो की तरकस है, बिन सूरज की लाली है।  जब मै मुड़ कर देखा, वो सच थी, मेरे होस उड़ाते, उसके चेहरे सच थे, उसकी खूबसूरती सच थी, उसकी नीली आँखे सच थी, उसकी यौवन सच थी, उसकी मुस्कान सच थी   ।  देखते ही उसकी मुस्कान,   मेरे धड़कन रुक से गये, थम सी गई धरती, थम सा गया आसमां, थम सा गया आसमां, थम सा गया आसमां।  Written by  #atsyogi  (06/02/2015)

"इस दुनिया से परेशान" (कविता)

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इस दुनिया से परेशान, यहाँ के लोगो को देख हैरान।  जो है झूठा, वह है पहलवान, जो सच्चा उसका कोई नहीं कद्रदान, जो है विकलांग, वह तो बहुत है हैरान-परेशान, जो नहीं विकलांग, वह सबसे बड़ा सैतान।  इस दुनिया में, जो मेहनत करता, वह रहता परेशान, जो मेहनती नहीं, उसके सभी है कद्रदान, परिवर्तन तो बहुत हुवे, लेकिन सबसे परिवर्तनशील इंसान।  यहाँ झूठ मलेरिया जैसे रोगो की तरह फ़ैल रहा, और सच का दिखता अंतिम निशान, झूठ को बदलने को कोई हो तैयार तो कैसे, क्यों की यहाँ हरतरफ है झूठे इंसान।  पूछा था बीरबल से अकबर ने, कितने है यहाँ अंधे इंसान, बीरबल सच ही थे, है सभी के पास ज्ञान, फिर भी सभी के सभी अंधे है इंसान।  मै सोच कर रहता परेशान, क्या यही है यह, गाँधी और टेरेसा की दुनिया, जहाँ जन्म लिये ऐसे भी इंसान, नहीं यह हो नहीं सकता, गाँधी और टेरेसा की दुनिया, क्यों की पता नहीं, यहाँ कैसे-कैसे है इंसान।  इस दुनिया से परेशान, यहाँ के लोगो को देख हैरान।  Written by  #atsyogi (03/11/2012)

शायरी

पत्थर नहीं हूं मैं मुझमें भी नमी है, दर्द बयां नहीं करता बस इतनी सी कमी है । ।।1।। मत बनाओ गुमानो का महल, दीवारे काटने को दौड़ेगी, यकी नहीं तो खँडहरो से पूछो, तजुरबे-ए-हालत सब कुछ बया कर देगी।   ।।2।। #atsyogi