"बेमौसमी"(कविता)

बारिशें ख्वाहिशें दे तरसें ,

रातों में कितने हादशें ?

सबेरे भी वहीं फंसें ,

प्रियतमा ! अब कितना धंसें ?

कहाँ नहीं अब नशें ,

किससे  इश्क की गुजारिशें ?

ढूंढा धरा की कशिशें ,

बेमौसमी चुपके से हंसें ।

प्यासी नदी किसे कसें ,

अंगों को क्या डंसें ?

भूखें भी यहीं बसें ,

किससे करें कवि सिफारिशें ?

जिंदगी ,किताब़ और नक्शें -

मौतों पे क्या तपिशें ?

क्या निचोड़ेगी कामिनी रसें ,

बेवफाओं की अलबत्ता मजलिसें ?

स़च़ में महँगी परवरिशें ,

यही तो आपबीती किस्सें ।

वादा तो था अर्से ,

परछाइयाँ से रूबरू फर्शें ।

कहाँ गिरे कितने शीशें ,

मिथ्या क्यों परोसा  गुस्सें ?

अंगारों से हैं झुलसे ,

कहाँ मछलियां सही से ?

गुलाब़ हेतु चले फरसें ,

शूलों को कैसे घसें ?

कहाँ किसकी है वशें ,

आखिर चुनौती क्यों अपयशें ?

पाना मुश्किल क्यों यशें ,

साहिलों पे क्यों विषें ?

खुदा की लौटाओं फीसें ,

नियति भी क्या-क्या फरमाइशें ?

हवा में क्या बंदिशें ,

कंजूसी में  क्या नुमाईशें ?

चर्चा में हीं घूसें ,

बादशाहतें भी हमें चूसें ।

दिमागों में क्यों भूसें,

खोटे सिक्कें क्या लालसें ?

मधुशाला तक चाहा जिसे ,

खारा समंदर मिला उसे ।

अदालतों में भी उमसें ,

अन्यायी की काटे नसें ।

बुरी दुनिया के रस्सें ,

मकड़जालों के नाना हिस्सें ।

नयना तक अक्षरशः गर्दिशें ,

जिस्मों तक कैदी लस्सें ।

नग्नता और अश्लीलता पैमाइशें ,

अम्बर तक मदहोशी पैदाइशें ।

तौब़ा-तौब़ा बचपना के बक्सें ,

चाबी-ताला ले नाचे क्यों कपीशें ?

सूरज दो हमें आशीषें ,

छोड़ों  बाकी शुरू बहसें ।

पता - तिलक मैदान रोड ,एजाजी मार्ग, कुर्मी टोला ,मुजफ्फरपुर (बिहार)

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