"मां- जीवन का सार"(कविता)
मां तुम हो सागर,मैं नदियां की धार। तुम बिन मेरा नही हो सकता उद्घार।। तुमने हंसना बोलना ,चलना सिखाया। धीरज धैर्य सच्चाई की राह दिखाया ।। तुम प्रथम गुरु,नेकी का पाठ पढ़ाया। तुमने जीवन का हमें सार समझाया।। जब जब कदम लड़खड़ाए, तुमने उंगली थाम लिया। डांटा,प्यार से सही गलत का मतलब समझाया।। अपनी पीड़ा को छुपाया, मुस्कुराता चेहरा दिखाया। अपनी इच्छाओं को मारा हम पर सब कुछ वार दिया।। हमारा भविष्य संवारा, जीवन को दिया एक किनारा। तुम्हारी वजह से कोई परिहास नहीं कर पाया हमारा।। मां तुम जीवन का सार, तुम बिन जीना है दुश्वार। तुम्हारा अहसास शीतल छाया तुम ही धरती आकाश।। Written by प्रियंका पांडेय त्रिपाठी