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Showing posts with the label गोलेन्द्र पटेल

"घिरनी"(कविता)

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फोन पर शहर की काकी ने कहा है कल से कल में पानी नहीं आ रहा है उनके यहाँ अम्माँ! आँखों का पानी सूख गया है भरकुंडी में है कीचड़ खाली बाल्टी रो रही है जगत पर असहाय पड़ी डोरी क्या करे? आह! जनता की तरह मौन है घिरनी और तुम हँस रही हो। Written by  गोलेन्द्र पटेल

"रणभेरी"(कविता)

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गूँज उठी रणभेरी काशी कब से खड़ी पुकार रही पत्रकार निज कर में कलम पकड़ो गंगा की आवाज़ हुई स्वच्छ रहो और रहने दो आओ तुम भी स्वच्छता अभियान से जुड़ो न करो देरी गूँज उठी रणभेरी घाटवॉक के फक्कड़ प्रेमी तानाबाना की गाना कबीर तुलसी रैदास के दोहें सुनने आना जी आना घाट पर आना --- माँ गंगा दे रही है टेरी गूँज उठी रणभेरी बच्चे बूढ़े जवान सस्वर गुनगुना रहे हैं गान उर में उठ रही उमंगें नदी में छिड़ गई तरंगी-तान नौका विहार कर रही है आत्मा मेरी गूँज उठी रणभेरी सड़कों पर है चहलपहल रेतों पर है आशा की आकृति आकाश में उठ रहा है धुआँ हाथों में हैं प्रसाद प्रेमचंद केदारनाथ की कृति आज अख़बारों में लग गयी हैं ख़बरों की ढेरी गूँज उठी रणभेरी पढ़ो प्रेम से ढ़ाई आखर सुनो धैर्य से चिड़ियों का चहचहाहट देखो नदी में डूबा सूरज रात्रि के आगमन की आहट पहचान रही है नाविक तेरी पतवार हिलोरें हेरी गूँज उठी रणभेरी धीरे धीरे जिंदगी की नाव पहुँच रही है किनारे देख रहे हैं चाँद-तारे तीरे-तीरे मणिकर्णिका से आया मन देता मंगल-फेरी गूँज उठी रणभेरी Written by  गोलेन्द्र पटेल

"राहुल के उद्धरणों का नोट्स"

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 128 वीं राहुल सांकृत्यायन जयंती   __________ ◆राहुल के उद्धरणों का नोट्स : गोलेन्द्र पटेल◆ ------------------------------------------------------- प्रखर शोधार्थी, महान घुमक्कड़, दार्शनिक, भाषाविद्, चिंतक, साम्यवादी, किसान नेता, भारत के व्हेनसांग राहुल सांकृत्यायन का जन्म आज ही दिन 9 अप्रेल 1893 को पंदहा, आजमगढ़ में हुआ था। इनका नाम केदार पांडे था। आरंभिक शिक्षा के दौरान बाल विवाह हुआ और इससे रुष्ट केदार ने यह पंक्तियाँ सुन लीं -  सैर कर दुनिया की गाफिल, जिंदगानी फिर कहाँ जिंदगानी रह भी गई तो नौजवानी फिर कहाँ....! सतमी के बच्चे, वोल्गा से गंगा, बहुरंगी मधुपुरी, कनैला की कथा, बाईसवीं सदी, जीने के लिए, सिंह सेनापति, जय यौधेय, भागो नहीं दुनिया को बदलो, मधुर स्वप्न, राजस्थान निवास, विस्मृत यात्री, दिवोदास, मेरी जीवन यात्रा, सरदार पृथ्वीसिंह, नए भारत के नए नेता, बचपन की स्मृतियाँ, अतीत से वर्तमान, स्तालिन, लेनिन, कार्ल मार्क्स, माओ-त्से-तुंग, घुमक्कड़ स्वामी, मेरे असहयोग के साथी, जिनका मैं कृतज्ञ, वीर चंद्रसिंह गढ़वाली, सिंहल घुमक्कड़ जयवर्धन, कप्तान लाल, सिंहल के वीर पुरुष, महामानव बुद्ध, लं

घिरनी

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फोन पर शहर की काकी ने कहा है कल से कल में पानी नहीं आ रहा है उनके यहाँ अम्माँ! आँखों का पानी सूख गया है भरकुंडी में है कीचड़ खाली बाल्टी रो रही है जगत पर असहाय पड़ी डोरी क्या करे? आह! जनता की तरह मौन है घिरनी और तुम हँस रही हो | Written by  गोलेन्द्र पटेल

"थ्रेसर"(कविता)

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 थ्रेसर में कटा मजदूर का दायाँ हाथ देखकर ट्रैक्टर का मालिक मौन है और अन्यात्मा दुखी उसके साथियों की संवेदना समझा रही है किसान को कि रक्त तो भूसा सोख गया है किंतु गेहूँ में हड्डियों के बुरादे और माँस के लोथड़े साफ दिखाई दे रहे हैं कराहता हुआ मन कुछ कहे तो बुरा मत मानना बातों के बोझ से दबा दिमाग बोलता है / और बोल रहा है न तर्क , न तत्थ सिर्फ भावना है दो के संवादों के बीच का सेतु सत्य के सागर में नौकाविहार करना कठिन है किंतु हम कर रहे हैं थ्रेसर पर पुनः चढ़ कर - बुजुर्ग कहते हैं कि दाने-दाने पर खाने वाले का नाम लिखा होता है तो फिर कुछ लोग रोटी से खेलते क्यों हैं क्या उनके नाम भी रोटी पर लिखे होते हैं जो हलक में उतरने से पहले ही छिन लेते हैं खेलने के लिए बताओ न दिल्ली के दादा गेहूँ की कटाई कब दोगे? Written by  गोलेन्द्र पटेल

"जोंक"(कविता)

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रोपनी जब करते हैं कर्षित किसान ; तब रक्त चूसते हैं जोंक! चूहे फसल नहीं चरते फसल चरते हैं साँड और नीलगाय..... चूहे तो बस संग्रह करते हैं गहरे गोदामीय बिल में! टिड्डे पत्तियों के साथ पुरुषार्थ को चाट जाते हैं आपस में युद्ध कर काले कौए मक्का बाजरा बांट खाते हैं! प्यासी धूप पसीना पीती है खेत में जोंक की भाँति! अंत में अक्सर ही कर्ज के कच्चे खट्टे कायफल दिख जाते हैं सिवान के हरे पेड़ पर लटके हुए! इसे ही कभी कभी ढोता है एक किसान सड़क से संसद तक की अपनी उड़ान में! Written by  गोलेन्द्र पटेल

"श्रम का स्वाद"(कविता)

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गाँव से शहर के गोदाम में गेहूँ? गरीबों के पक्ष में बोलने वाला गेहूँ एक दिन गोदाम से कहा ऐसा क्यों होता है कि अक्सर अकेले में अनाज सम्पन्न से पूछता है जो तुम खा रहे हो क्या तुम्हें पता है कि वह किस जमीन का उपज है उसमें किसके श्रम की स्वाद है इतनी ख़ुशबू कहाँ से आई? तुम हो कि ठूँसे जा रहे हो रोटी निःशब्द! Written by  गोलेन्द्र पटेल

"आँख"(कविता)

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। 1 । सिर्फ और सिर्फ देखने के लिए नहीं होती है आँख फिर भी देखो तो ऐसे जैसे देखता है कोई रचनाकार । 2 । दृष्टि होती है तो उसकी अपनी दुनिया भी होती है जब भी दिखते हैं तारे दिन में, वह गुनगुनाती है आशा-गीत । 3 । दोपहरी में रेगिस्तानी राहों पर दौड़ती हैं प्यासी नजरें पुरवाई पछुआ से पूछती है, ऐसा क्यों? । 4 । धूल-धक्कड़ के बवंडर में बचानी है आँख वक्त पर धूपिया चश्मा लेना अच्छा होगा यही कहेगी हर अनुभव भरी, पकी उम्र । 5 । आम आँखों की तरह नहीं होती है दिल्ली की आँख वह बिल्ली की तरह होती है हर आँख का रास्ता काटती । 6 । अलग-अलग आँखों के लिए अलग-अलग परिभाषाएँ हैं देखने की क्रिया की कभी आँखें नीचे होती हैं, कभी ऊपर कभी सफेद होती हैं तो कभी लाल ! Written by  गोलेन्द्र पटेल

"मुसहरिन माँ"(कविता)

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धूप में सूप से धूल फटकारती मुसहरिन माँ को देखते महसूस किया है भूख की भयानक पीड़ा और सूँघा मूसकइल मिट्टी में गेहूँ की गंध जिसमें जिंदगी का स्वाद है चूहा बड़ी मशक्कत से चुराया है (जिसे चुराने के चक्कर में अनेक चूहों को खाना पड़ा जहर) अपने और अपनों के लिए आह! न उसका गेह रहा न गेहूँ अब उसके भूख का क्या होगा? उस माँ का आँसू पूछ रहा है स्वात्मा से यह मैंने क्या किया? मैं कितना निष्ठुर हूँ दूसरे के भूखे बच्चों का अन्न खा रही हूँ और खिला रही हूँ अपने चारों बच्चियों को सर पर सूर्य खड़ा है सामने कंकाल पड़ा है उन चूहों का जो विष युक्त स्वाद चखे हैं बिल के बाहर अपने बच्चों से पहले आज मेरी बारी है साहब! Written by  गोलेन्द्र पटेल

"मेरे मुल्क की मीडिया"(कविता)

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बिच्छू के बिल में नेवला और सर्प की सलाह पर चूहों के केस की सुनवाई कर रहे हैं- गोहटा! गिरगिट और गोजर सभा के सम्मानित सदस्य हैं काने कुत्ते अंगरक्षक हैं बहरी बिल्लियाँ बिल के बाहर बंदूक लेकर खड़ी हैं टिड्डे पिला रहे हैं चाय-पानी गुप्तचर कौएं कुछ कह रहे हैं साँड़ समर्थन में सिर हिला रहे हैं नीलगाय नृत्य कर रही हैं छिपकलियाँ सुन रही हैं संवाद- सेनापति सर्प की मंत्री नेवला की राजा गोहटा की.... अंत में केंचुआ किसान को देता है श्रधांजलि खेत में और मुर्गा मौन हो जाता है जिसे प्रजातंत्र कहता है मेरा प्यारा पुत्र मेरे मुल्क की मीडिया! Written by  गोलेन्द्र पटेल

"माँ को मूर्खता का पाठ पढ़ता बचपन"(कविता)

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जन मूर्ख-दिवस पर रो रहा है मेरा मन माँ को मूर्खता का पाठ पढ़ता बचपन लौट रहा है स्मृतियों की गठरी लेकर हृदय के किसी कोने में विश्राम के लिए लंगोटिया यारों के संग : गुल्ली-डंडा होला-पाती बुल्ली-कऽ-बुल्ला  तरह-तरह के खुरपाती खेलों का खुल्लम-खुल्ला तड़क-भड़क ताजी तरंग : गाजर-गुजरिया लुका-छिपी डाकू-पुलिस गोली-सोली टीवी-उवी खो-खो सो-खो किस- किस को याद करूँ सब में सामिल है  एक ही बहाना : झूठ माई मैदान जात हई (निपटान/टट्टी करने जा रहा हूँ...) जैसे हम माँ को मूर्ख बनाते थे बचपन में आज कोई हमें बना रहा है  हम क्या करें माँ बन जायें या फिर पिता की तरह उसे समझायें ना समझे तो कान भी ऐंठें और घुड़कें-सुड़कें! Written by  गोलेन्द्र पटेल

"चिहुँकती चिट्ठी"(कविता)

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बर्फ़ का कोहरिया साड़ी ठंड का देह ढंक लहरा रही है लहरों-सी स्मृतियों के डार पर हिमालय की हवा नदी में चलती नाव का घाव सहलाती हुई होंठ चूमती है चुपचाप क्षितिज वासना के वैश्विक वृक्ष पर वसंत का वस्त्र हटाता हुआ देखता है बात बात में चेतन से निकलती है चेतना की भाप पत्तियाँ गिरती हैं नीचे रूह काँपने लगती है खड़खड़ाहट खत रचती है सूर्योदयी सरसराहट के नाम समुद्री तट पर एक सफेद चिड़िया उड़ान भरी है संसद की ओर गिद्ध-चील ऊपर ही छिनना चाहते हैं खून का खत मंत्री बाज का कहना है गरुड़ का आदेश आकाश में विष्णु का आदेश है आकाशीय प्रजा सह रही है शिकारी पक्षियों का अत्याचार चिड़िया का गला काट दिया राजा रक्त के छींटे गिर रहे हैं रेगिस्तानी धरा पर अन्य खुश हैं विष्णु के आदेश सुन कर मौसम कोई भी हो कमजोर.... सदैव कराहते हैं कर्ज के चोट से इससे मुक्ति का एक ही उपाय है अपने एक वोट से बदल दो लोकतंत्र का राजा शिक्षित शिक्षा से शर्मनाक व्यवस्था पर वास्तव में आकाशीय सत्ता तानाशाही सत्ता है इसमें वोट और नोट का संबंध धरती-सा नहीं है चिट्ठी चिहुँक रही है चहचहाहट के स्वर में सुबह सुबह मैं क्या करूँ? Written by  गोलेन्द्र पटेल

"उम्मीद की उपज"(कविता)

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उठो वत्स! भोर से ही जिंदगी का बोझ ढोना किसान होने की पहली शर्त है धान उगा प्राण उगा मुस्कान उगी पहचान उगी और उग रही उम्मीद की किरण सुबह सुबह हमारे छोटे हो रहे खेत से….! Written by  गोलेन्द्र पटेल

"लकड़हारिन"(कविता)

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तवा तटस्थ है चूल्हा उदास पटरियों पर बिखर गया है भात कूड़ादान में रोती है रोटी भूख नोचती है आँत पेट ताक रहा है गैर का पैर खैर जनतंत्र के जंगल में  एक लड़की बिन रही है लकड़ी जहाँ अक्सर भूखे होते हैं  हिंसक और खूँखार जानवर यहाँ तक कि राष्ट्रीय पशु बाघ भी    हवा तेज चलती है पत्तियाँ गिरती हैं नीचे जिसमें छुपे होते हैं साँप बिच्छू गोजर जरा सी खड़खड़ाहट से काँप जाती है रूह हाथ से जब जब उठाती है वह लड़की लकड़ी मैं डर जाता हूँ...! Written by  गोलेन्द्र पटेल

"ऊख"(कविता)

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 (१) प्रजा को प्रजातंत्र की मशीन में पेरने से रस नहीं रक्त निकलता है साहब रस तो हड्डियों को तोड़ने नसों को निचोड़ने से प्राप्त होता है (२) बार बार कई बार बंजर को जोतने-कोड़ने से ज़मीन हो जाती है उर्वर मिट्टी में धँसी जड़ें श्रम की गंध सोखती हैं खेत में उम्मीदें उपजाती हैं ऊख (३) कोल्हू के बैल होते हैं जब कर्षित किसान तब खाँड़ खाती है दुनिया और आपके दोनों हाथों में होता है गुड़! Written by  गोलेन्द्र पटेल

"बुद्ध के रंग में रंगें हम"

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अकुशल द्वेष ईर्ष्या  घृणा गर्व है गोली, त्याग चतुष्टय-दोष,  बोलो मीठी बोली बुद्ध वचन से भरे,  तुम्हारी ज्ञान-झोली संग रंगमंच पर  झूमी-झूमी नाचे टोली भक्तिरस में भींगी,  करें हँसी-ठिठोली उमंग-तरंग और  रंगों का पर्व है होली। Written by  गोलेन्द्र पटेल

"मूर्तिकारिन"(कविता)

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राजमंदिरों के महात्माओं मौन मूर्तिकार की स्त्री हूँ । समय की छेनी-हथौड़ी से स्वयं को गढ़ रही हूँ । चुप्पी तोड़ रही है चिंगारी! सूरज को लगा है गरहन लालटेनों के तेल खत्म हो गए हैं । चारो ओर अंधेरा है कहर रहे हैं हर शहर समुद्र की तूफानी हवा आ गई है गाँव दीये बुझ रहे हैं तेजी से मणि निगल रहे हैं साँप और आम चीख चली -दिल्ली! Written by  गोलेन्द्र पटेल

"ईर्ष्या की खेती"(कविता)

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मिट्टी के मिठास को सोख जिद के ज़मीन पर उगी है इच्छाओं के ईख खेत में चुपचाप चेफा छिल रही है चरित्र और चुह रही है ईर्ष्या छिलके पर   मक्खियाँ भिनभिना रही हैं और द्वेष देख रहा है मचान से दूर बहुत दूर चरती हुई निंदा की नीलगाय ! Written by  गोलेन्द्र पटेल

"किसान है क्रोध"(कविता)

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निंदा की नज़र तेज है इच्छा के विरुद्ध भिनभिना रही हैं बाज़ार की मक्खियाँ अभिमान की आवाज़ है एक दिन स्पर्द्धा के साथ चरित्र चखती है इमली और इमरती का स्वाद द्वेष के दुकान पर और घृणा के घड़े से पीती है पानी गर्व के गिलास में ईर्ष्या अपने इब्न के लिए लेकर खड़ी है राजनीति का रस प्रतिद्वन्द्विता के पथ पर कुढ़न की खेती का किसान है क्रोध ! Written by  गोलेन्द्र पटेल

"संक्षिप्त परिचय(गोलेन्द्र पटेल)"

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गोलेन्द्र पटेल(जन्म : 5 अगस्त ,1999 ई.)  प्रसिद्ध युवा कवि , कथाकार , आलोचक , ई-संपादक व दिव्यांगसेवी हैं। कोरोजीवी कविता को समृद्धशाली बानने वाले नवांकुर कवियों में गोलेन्द्र पटेल का नाम विशेष स्नेह एवं वात्सल्य भाव के साथ लिया जाता है। गोलेन्द्र जी का जन्म 5 अगस्त सन् 1999 ई. में उत्तर प्रदेश के चंदौली जिले के अंतर्गत मुगलसराय तहसील (ग्राम-खजूरगाँव) में एक गरीब कुर्मी परिवार में हुआ है। आपके पिता का नाम श्री नंदलाल और माता का नाम श्रीमती उत्तम देवी है तथा आपकी एक छोटी बहन और दो छोटे भाई हैं। आपके पिता मजदूर हैं। गोलेन्द्र जी बचपन से ही पढ़ने में ठीक-ठाक हैं। आपने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अपने गाँव के प्राथमिक विद्यालय एवं पूर्व माध्यमिक विद्यालय एकौनी से प्राप्त करने के बाद हाईस्कूल और इंटरमीडिएट की शिक्षा प्रभु नारायण राजकीय इण्टर कॉलेज रामनगर वाराणसी उ.प्र. से प्राप्त की। वर्तमान में काशी हिंदू विश्वविद्यालय के कला संकाय में स्नातक अंतिम वर्ष में हिंदी ऑनर्स से अध्ययनरत हैं। सन् 2018 से दिव्यांग एवं दृष्टिबाधित विद्यार्थियों के लिए सेवारत हैं आप दृष्टिबाधित विद्यार्थियों के लिए आचार्यो