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"जीवन नव किसलय हुआ नहीं"(कविता)

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 जीवन नव किसलय हुआ नहीं  मन भ्रमित हुआ है अंधकार में  रश्मिया कहीं पर दिखीं नहीं  मद मस्त रहा मानव खुद में  फिर पंखुड़ियाँ कभी खिलीं नहीं  जीवन नव किसलय हुआ नहीं  जिन शाखाओं पें अभिमान हमें  उस फल के हम हकदार नहीं  जो जड़ चेतन से अलग हुआ  उसका पुनः निर्माण नहीं  जीवन नव किसलय हुआ नहीं Written by  प्रभात गौर

"जब से देखा तुम्हे मै बहकनेलगा"(कविता)

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 जब से देखा तुम्हे,मै बहकने लगा  मुझे क्या से क्या,अब होने लगा__ एक मुद्दत से दिल,में थी इक आरजू  चाँद को मैं देखूं, ये मेरी जुस्तजू इन अंधेरों से अब,मैं डरने लगा                 मुझे क्या से क्या __ उनकों चुपके से,मैंने निहारा था जब उनकीं सखियों ने,हमको बुलाया था तब मैं तो खुद से ही ,अब शर्माने लगा               मुझे क्या से क्या __ प्रेम पत्रों से बातें,अब होंने लगी मन की आशाएँ,अब जगने लगी अब प्रफुल्लित मेरा मन होनें लगा                  मुझे क्या से क्या__ अब बिछड़ के मुझे,तुमसे रहना नहीं  प्यार गर है तो मुझसे,कहतें क्यू नहीं अब बहाने बहुत,तु बनाने लगा                  मुझे क्या से क्या__ Written by  प्रभात गौर

"समर्पण"(गीत)

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 मैं मात पिता के चरणों में,जीवन समर्पण करता हूँ  तन समर्पण करता हूँ,और मन समर्पण करता हूँ  इस धरा की वेदना को,नभ समर्पण करता हूँ  तम हँटे जीवन से सबके,भानु समर्पण करता हूँ  पाँव में काँटे चुभे ना,फूल समर्पण करता हूँ  मैं तेरे अधरों को ,गीत समर्पण करता हूँ  जुगनुओं की ज़िंदादिल पें,चाँद समर्पण करता हूँ  इन ध्येय नयनों को,दीप समर्पण करता हूँ  सांसें है सबकी रूकी,मारूत समर्पण करता हूँ  इस राह से गुजर रहा जो,उसे खुशबू समर्पण करता हूँ Written by  प्रभात गौर