Posts

Showing posts with the label गीत

"मां भारती"

Image
  उत्तर में पग हिमालय, पूरब में ब्रह्मा के पुत्र, पश्चिम में ऊंचा सरदार खड़ा, दक्षिण में सागर पांव पखारती, जय भारती, मां भारती, जय भारती, मां भारती । जब ! हुणो ने हुडदंग मचाया, यूनानो ने चूमी थी धरा, तब! गुप्त-मौर्या ने शस्त्र उठाया, लहू से लाल किया था धरती, जय भारती, मां भारती, जय भारती, मां भारती । अंग्रेजो ने उधम मचाया, पानी सर ऊपर आया, भगत-लक्ष्मी ने शीश चढ़ाया, सीना ताने खड़ा रहा अहिंसक-शांति, जय भारती, मां भारती, जय भारती, मां भारती । सिंधु-हुगली-नर्मदा-कावेरी का जल, वादियों से फूलो का हार, निच्छावर कर अपना संसार, स्वयं का बलिदान करू हे भारती, जय भारती, मां भारती, जय भारती, मां भारती । Written by #atsyogi  (16/02/2021)

"नवगीत गाना चाहता हूँ"(गीत)

Image
उगता गया हूँ , इस दोहरे चरित्र से , अब तो ख़ुदी में जीना चाहता हूँ , नवगीत गाना चाहता हूँ ।। आपा-धापी की लहर में , रिश्ते-नाते बह रहे हैं अपने-पराये की नज़र में , तार-तार हो रहे हैं स्वार्थ की लंबी कतारें , इस छोर से उस छोर तक घृणा के उगते शज़र में , विष- बेलियाँ लिपटा रहे हैं तस्वीर धुंधली , मन के दर्पण की , हटाना चाहता हूँ ।। नवगीत गाना --- शक्ति पाते भूल बैठा , इंसान सारी सरहदें टूटतीं पल-पल रहीं , विश्वास की यूँ हर जदें  कौन माने ? कौन जाने ? रात-दिन कितने बिके बंद मुट्ठी जब भी खुली , गुलजार दिखते मयकदें  बेबसी में भीगीं पलकें ही , पोंछना चाहता हूँ ।। नवगीत गाना  ----- न समझ पाये प्रकृति , बस अंजान यूँ तकते रहे जब तमाचा पड़ा सीधे , बस गाल यूँ मलते रहे रक्षक ही भक्षक बने , ताड़ना नित-नित , बदले तरीके हिम- दु:खद अवसाद में , बस जमते रहे , गलते रहे लेकर हृदय में तीव्र ऊष्मा , अब पिघलना चाहता हूँ ।। नवगीत गाना---- मज़मा जमाये बैठे हैं , शराफ़त का खोले पिटारा लूटते मौका मिले जब , दिख रहा चहुँ-दिशि नज़ारा कागजों से पेट भरते ,दया का यूँ ही आडंबर रचते  ज़ज़्बात की बाज़ीगरी का , खेल खेले मिल

"विरह-गीत"(बरखा-गीत)

Image
 झमाझम बरसै बदरिया हो नाहीं आयिनि संवरिया । लह-लह लहरै डगरिया हो नाहीं आयिनि संवरिया ।। पवन झकोरै जौ सिहरनि लागै सगरी देहियां म भलु पीरा जागै रहि- रहि भभकै सेजरिया हो नाहीं आयिनि संवरिया ।। लह-लह लहरै----- यादु सतावै यैसि चिहुँकु जायि छाती  केहिका बिसूरै जिया हौ बहु कलपाती  सहमि-सहमि जायि निंदरिया हो नाहीं आयिनि संवरिया ।। लह-लह लहरै------ जुगनूँ राह-डगरि चमकावैयिं  दादुर-झींगुर बहु शोर मचावैयिं छमाछम बाजतु पयलिया हो नाहीं आयिनि संवरिया ।। लह-लह लहरै------- लरिकनु छपाछपि अंगना म खेलैयिं  कगजे कै नैइया भलु पनिया मेलैयिं  लुकाछिपी खेलतु नजरिया हो नाहीं आयिनि संवरिया ।। लह-लह लहरै------- भूलि गयिनि सबै  सजना-संवरना  कबु लौटि अउब्या अहै ईहै झंखुना  तकि-तकि हारीं नजरिया हो नाहीं आयिनि संवरिया ।। लह-लह लहरै------- झमाझम बरसै बदरिया हो नाहीं आयिनि संवरिया । लह-लह लहरै डगरिया हो नाहीं आयिनि संवरिया ।। Written by  ज्ञानेन्द्र पाण्डेय

"सावन-कजरी"(गीत)

Image
 सावनु बरसैयि जिया बहु उरझैयि सखि मोरु सजनवां आयिनि ना ।  हमरौउ मरदा भयिसि बेदरदा ई कैसि करमवां पायिनि ना ।। बैरनि कोयिलरि न सबरि धरैइया  कुहू-कुहू निगोड़ी बोलयि अमरैइया  लागिनु येहुकै बोलु कटारी कबौ सुखनिंदिया सोयिनि ना ।। हमरौउ  आंगनु म गौउरैइया चहकैयि  मनवा मोरा रहि-रहि बहकैयि  आंखिनु बहतु पनारो यैइसों केउसों दरदिया मोयिनि ना ।। हमरौउ  संगु कैयि गोतीनिनु नीमीं झूला डरावैयिं  केउ गावैयिं कजरी मल्हारि केऊ गावैयिं  साजनु मोरा भयिसि विदेसिया केऊ झुलनवा झुलायिनि ना ।। हमरौउ सावनु बरसैयि जिया बहु उरझैयि सखि मोरु सजनवां आयिनि ना ।। हमरौउ मरदा भयिसि बेदरदा ई कैसि करमवां पायिनि ना ।। Written by  ज्ञानेन्द्र पाण्डेय

"मन की पीड़ा"(गीत)

Image
 मन की पीड़ा से जब काँपी उंगली तो ये शब्द निचोड़े अक्षर अक्षर दर्द भरा हो तो प्रस्फुटन कहाँ पर होगा अभिशापों के शब्दबाण लेकर दुर्वासा खड़े हुए हैं कैसे कह दूँ शकुन्तला का फ़िर अनुकरण कहाँ पर होगा नया रूप धर धोबी आए बुद्धि मलिन आज भी उनकी नियति ही जाने सीता का नव अवतरण कहाँ पर होगा गली गली फिरते दुःशासन भीष्म झुकाए सिर बैठे हैं रजस्वला उन द्रौपदियों का वसन हरण कहाँ पर होगा मीठी चुभन कुटिल कुल्टा सी नौंच रही तन के घावों को नमक छिड़कने हाथ आ गये सद आचरण कहाँ पर होगा मैं धतूर का फूल कसैला वो कोमल कलिका कचनारी वो उपवन में इठलाएगी मेरा खिलन कहाँ पर होगा Written by  विद्यावाचस्पति देशपाल राघव 'वाचाल'

"समर्पण"(गीत)

Image
 मैं मात पिता के चरणों में,जीवन समर्पण करता हूँ  तन समर्पण करता हूँ,और मन समर्पण करता हूँ  इस धरा की वेदना को,नभ समर्पण करता हूँ  तम हँटे जीवन से सबके,भानु समर्पण करता हूँ  पाँव में काँटे चुभे ना,फूल समर्पण करता हूँ  मैं तेरे अधरों को ,गीत समर्पण करता हूँ  जुगनुओं की ज़िंदादिल पें,चाँद समर्पण करता हूँ  इन ध्येय नयनों को,दीप समर्पण करता हूँ  सांसें है सबकी रूकी,मारूत समर्पण करता हूँ  इस राह से गुजर रहा जो,उसे खुशबू समर्पण करता हूँ Written by  प्रभात गौर

"बाबा"(नवगीत)

Image
  टूटे टप्पर का ढाबा,पौली की तरेड़ जैसा। हो गया निस्पात बाबा, एक सूखे पेड़ जैसा। ठूंठ सी बहियाँ पे झूल,पींगें बढ़ाती पौत्री। सिहर कर निकली बगल से,भयभीत सी गंगोत्री। क्षितिज पर चन्दा खड़ा है, तिमिर से मुठभेड़ जैसा। हो गया निस्पात बाबा, एक सूखे पेड़ जैसा। अंग-अंग भेंट घात की,तार-तार होती चमड़ी। श्रम-स्वेद असीम पातकी,गांठ ना कोई दमड़ी। हलस कंधे धरे आए,लस्टपस्ट अधेड़ जैसा। हो गया निस्पात बाबा, एक सूखे पेड़ जैसा। Written by  विद्यावाचस्पति देशपाल राघव 'वाचाल'

"एकाकी"(नवगीत)

Image
अस्तांचल गया सूर्य, मंद पड़ा प्रकाश। नीड़ विहग लौट रहे, साँझ हुई उदास। भाव उमड़ घुमड़-घुमड़, धनु संधान रहे। और असहाय के यूँ,नौंचत प्रान रहे। सूनी चट्टान जहाँ, कोई नहीं पास। नीड़ विहग लौट रहे, साँझ हुई उदास। शंख सा आकाश है, गोधूलि जो उड़ी। पीर सी मीठी चुभन, सुखा रही पंखुड़ी। नीर नयन गहन अगन,रोकते उल्लास। नीड़ विहग लौट रहे, साँझ हुई उदास। मन की व्यथा उड़ेलें,स्वर-व्यंजन सारे। कण्ठ घुला क्रंदन है, दिवस दिखें तारे। जल विहीन छटपटात,मत्स्य सा उजास। नीड़ विहग लौट रहे, साँझ हुई उदास। Written by  विद्यावाचस्पति देशपाल राघव 'वाचाल'

"मोरे पिया"(गीत)

Image
अबकी सावन जमके बरसे, मोरे पिया मिलन आ जाये।। ऐसा शमा कहाँ, जो इस धरती पर।। सोंधी मिटटी की खुशबू, हर एहसास में प्यार ।। बादलों का फिर बरसना, रिमझिम फुहारों में भीगना।। गोरी का मनभावन पिया, पिया की सजनी का प्यार।। ऐसा मिलन होवे सावन में, एक पिया और सजनी का।। मोरे पिया मोरे आँगन में ,मैं बैठी  पिया को देखु निहार।। मोरे अँगना मोर नाचे झूमे, मैं तोर बलैयां लू उतार ।। अबकी सावन जमके बरसे, मोरे पिया मिलन आ जाये।। मैं सिमटी सी दुल्हन सेज पर, पिया मोरे करे मुझे दुलार।। अबकी सावन जमके बरसे,  मोरे पिया मिलन आ जाये।। Written by  कवि महराज शैलेश

"राघव पीट किवाड़ रह्या (हरियाणवी गीत)"

Image
कोरोना बदमास घणा, यो गल़ी गल़ी म्हँ हांड़ रह्या करै किसे नै रंड़ुआ बैरी,बणा किसे नै रांड़ रह्या हम सोच्चैं थे कम होवैगा, यो पकड़ै रफ्तार घणी छोट्टे-बड़े सभी की दुसमन,बोई फसल उजाड़ रह्या घणी अकड़ म्हँ घूम्या करते,ऐंठे-ऐंठे डोल्लें थे अच्छे-अच्छे धुरंधरां की,सारी सेक्खी झाड़ रह्या मस्त कमाई करते थे हम,ठीकठाक थी दिनचर्या उमड़घुमड़ कै आवै डाक्की,सारे खेल बिगाड़ रह्या तोप तमंचे जैट मिसाइल, इक दूजे का मुँह ताक्कैं मिली कोए ना काट आजलग,अर यो झंड़े गाड़ रह्या मैड़िसन पै करैं भरोस्सा,आयुर्वेद नै दुत्कारैं वैद्य देख कै नाक सिकोड़ैं,सरजन साँस उखाड़ रह्या आज बणैगी- कल बण जावै दवा,बीतगे कितने दिन एड़ी ठा ठा देख रह्ये,कोरोना चाल़े पाड़ रह्या काल़ी मिरच शहद अदरक नींबू का रस नेती गागल इननै थम अजमा कै देक्खो,राघव पीट किवाड़ रह्या Written by  विद्यावाचस्पति देशपाल राघव 'वाचाल'

"मैं पल पल"(गीत)

Image
फूल नहीं, हूँ खार लिये मैं दिल में तपता प्यार लिये मैं काया की सुंदर नैया औ' यौवन की पतवार लिये मैं साँसों के तारों से अपना मृत्युजाल बुनता रहता हूँ मैं पल पल घुनता रहता हूँ । कैसा मूरख भरमाया मैं जाने कहाँ चला आया मैं धूप यहाँ झुलसे देती है अगणित पेड़ों की छाया में भट्ठी के तपते बालू में मक्की सा भुनता रहता हूँ मैं पल पल घुनता रहता हूँ । जब सारा मंजर बदल गया और अस्थि पिंजर बदल गया तो मित्रों का व्यवहार उलट हाथों में खंजर बदल गया  पुष्पों की अभिलाषा लेकर कांटे ही चुनता रहता हूँ मैं पल पल घुनता रहता हूँ । गीदड़ बना रहे हैं सरहद पर्वत भूल रहे अपना कद कांटेदार झाड़ियों में क्यों छाया ढूंढ़ रहा है बरगद भारत की नियति-नीति पर सर अपना धुनता रहता हूँ मैं पल पल घुनता रहता हूँ । Written by  विद्यावाचस्पति देशपाल राघव 'वाचाल'

"हरियाणवी गीत"

Image
म्हारे छोरे कै नजर लगी, किसी दुसट पडोसन की तडकै। के बैरण नै जुलम करे ये, घर आल़ी का जी धडकै। घणा अँधेरा घुप्प छा गया,कालबली के रास रचै। अनहोणी नै टाल़ रामजी,आँख मेरी बाईं फडकै। सनन सनन सी पौन चलै है, घूँघूँघूँघूँ पेड करैं। घटाटोप छाए सैं बादल़,अम्बर म्हं बिजल़ी कडकै। हुया करै था भाईचारा, लदे जमाने दूर कितै। किसा टेम आ गया, मरैं सैं आपस ही म्हं लड लड कै। अनपढ थे तो मान करैं थे,पढ लिख कै नै ऊत हुये। बापू सही राह की कहता, बेट्टा अम्मा पै भडकै। Written by  विद्यावाचस्पति देशपाल राघव 'वाचाल'

"पतझर"(गीत)

Image
ज्यों ही वसंत का अंत हुआ तब ही आरम्भ हुआ पतझर निर्वस्त्र से वृंत खड़े सूने जा दूर गिरे पत्ते झड़कर तब नव कलिकाएँ मुदित हुईं नव सृजन का कारण बनकर भर गईं शाखाएँ पत्तों से फूलों ने कहा खुलके हँसकर आरम्भ करें हम नवजीवन उन भँवरों को आमंत्रित कर रसपान करें वे झूम-झूम दें शुभ संदेश परागण कर लहलहा उठा शहतूत हरे पत्ते व मीठे फल पाकर अमवा के बिरवे चहक उठे बौरइयाँ आईं जामुन पर जब लगन धरी युवती निकली सखि संग मगन परिणय पथ पर तो मेहंदी लगे सुकुमार पाँव में एकाएक चुभा कंकर मेरे हृदय में शूल हुआ उसकी पीड़ा का अनुभव कर क्या लगा आपको भी ऐसा कह भी दीजे रोकर-हँसकर कन्या सोल्लास विदा करके हर्षित-उल्लसित नयन भरकर चन्दो भाभी ने जौ बोए गंगा में जय जय शिव शंकर लहरातीं फसलें खेतों में नभ में घनघोर घटा उठकर कृषकाय कृषक को कँपा रहीं चहुँ ओर बिजलियाँ तड़तड़ कर मैं दुबका हुआ अटारी में रहा इन्द्रदेव से विनती कर  हे स्वर्गलोक के मठाधीश भय दूर करें रक्षक बनकर Written by  विद्यावाचस्पति देशपाल राघव 'वाचाल'