Posts

Showing posts with the label कवि महराज शैलेश

"योग से निरोग जीवन"(कविता)

Image
रोज सुबह जो ये काम हो जायेगा। योग से निरोग जीवन हो जायेगा।। मात्र कल्पना की उड़ान मत भरना। तोड़ी मेहनत करना तो हो जायेगा।। योग हमसे,दुनिया भर में योग हो जायेगा। इतिहास के पन्नो में योग लिखा जायेगा।। न बी पी न सुगर त्वचा में निखार आ जायेगा। योग ही वो दवा है जो काम आ जायेगा।। विश्व को योग दिया भारत ने। विश्व मे गुड़गान गाया जाएगा।। गुरु और ज्ञान दिया भारत ने। सफल विश्व का मार्ग हो जायेगा।। खुशियों की सुगन्ध बयार बहायेगा। स्वस्थ हो जीवन जो योग अपनायेगा।। मूल मंत्र जीवन का हो जायेगा। योग जो जीवन मे अपनायेगा।। 21,जून को योग दिवस मनाया जायेगा। क्या नेता,क्याअभिनेता,  वो भी योग करता पाया जायेगा।। योग से हर रोग संतुलित हो जायेगा। हर मनुष्य स्वस्थ हो जायेगा।। Written by  कवि महराज शैलेश

"पिता ही परमेश्वर"(कविता)

Image
पिता की छाँव में जो सुकून है।। कभी एहसास नही मिल पाया है।। या रब, तूने भेद मेरे साथ क्यो दिखाया है।। सुना है पिता हर दर्द छुपा लेता है।। अपने अश्कों को दबा लेता है।। या रब,तूने पिता को ऐसे क्यो बनाया है।। ईस्वर तू तो सब जानता है।। तू ही तो सब का विधाता है।। या रब, संसार ये फिर समझ क्यो नही पाया है।। पिता है तो संसार की हर खशी है।। पिता है तो सब बाजार भरे है।। या रब,मुझे वो बाजार क्यो नही दिखाया है।। पिता है तो हौसला बरकरार है।। पिता है तो दुनिया की हर दौलत है।। या रब,ये दौलत मुझे क्यो नही दिखाया।। पिता से घर,पिता से माँ, पिता ही भगवान है।। पिता से छाँव,पिता से छत,पिता ही आसमान है।। या रब,फिर मुझे ये छत,छाँव क्यो नही दिखाया है।। हे भगवान तू ने ये कैसा इंसाफ दिखाया है।। इन बच्चों के सर से पिता का हाथ हटाया है।। या रब,तू ने ये कैसा जुल्म हम पर ढाया है।। या रब, तू ने ये कैसा जुल्म हम पर ढाया है।। Written by  कवि महराज शैलेश

"श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी को(श्रद्धांजलि)"(कविता)

Image
 लो मैं तो चला अब दुनिया से।। कदमो से बड़ा मजबूर हुआ।। मेरी सासों ने मुझे धोखा दिया।। मैं ब्रह्मलीन में चूर हुआ ।। इस युग का मैं युग पुरुष ।। इस युग को मैं छोड़ चला।।   इस धरा से जुड़ा था मैं खड़ा ।। इस माटी में मिलने मैं चला ।। मैं गूँज रहा हूँ हर दिल मे ।। हर दिल से नाता मैं तोड़ चला।। जो था स्वाभिमान मेरा ।। उस देश को मैं छोड़ चला।। जिन वसूलों पे मैं चला ।। तुम उसपे चलते रहना।। फिर लौटूँगा मैं जल्द बहुत।। अभी जल्दी में मैं तो चला।। काम कई जो थे बाकी ।। उन्हें पूरा करने मैं तो चला।। रात हो गई है बहुत जिंदगी।। शुबह को उठने मैं तो चला।। फिर मिलूंगा किसी मोड़ पर।। अभी तो अलविदा मैं तो चला।। Written by  कवि महराज शैलेश

"पर्यावरण और हम"(कविता)

Image
हम अपनी भूल कब सुधारेंगे। निज स्वार्थ में कितने पेड़ काटेंगे।। फोटो,स्टेट्स कब तक लगाएँगे। जमीन पर कब उतर कर आएँगे।। दोष भगवान को कब तक दोगे। अपनी किये पर कब पछताओगे।। पर्यावरण,के जीव जन्तु का संरक्षण कर दिखाओगे। या उन्हें फिर मार-मार के भच्छक बन जाओगे।। सिर्फ पेड़ बचाना या लगाना ही काफी नही। क्या देखभाल करने की भी कसम खाओगे।। या फिर झूठी तसल्ली फोटो खींच कर दिखाओगे। पर्यावरण को ऐसे भला कैसे बचा पाओगे।। जल,पेड़,तोता,गौरेया,मैना,बुलबुल, कही दिखाओगे। या बिसलरी, गिलहरी, पिंजरों में बंद दिखाओगे।। आओ सब मिल कर साथ कसम खाएँगे। पर्यावरण संरक्षण बनकर दिखाएंगे।। Written by  कवि महराज शैलेश

"जन मानस की खातिर"(कविता)

Image
संविधान में कुछ संसोधन,  संविधान फिर बदलना होगा।। किसी एक महापुरुष को, फिर वहाँ पहुँचना होगा।। लगे कुछ ऐसा एक्ट, की नेता फिर बदलना होगा।। ऊँच, नीच, फिर आरक्षण, भेद सभी मिटाना होगा।। जनमानस की खातिर, प्रभु तुमको आना ही होगा।। सच्चा हो सेवक प्रधान देश, तिरंगा फिर से लहराना होगा।। जुल्म मिटाने की खातिर, प्रभु तुमको आना ही होगा।। कदम - कदम पर चोर लुटेरे, ईमान फिर बचाना होगा।। आओ बैठो सब मिलकर, फिर कोई रास्ता निकालना होगा।। सही मार्गदर्शन की खातिर, प्रभु तुमको आना ही होगा।। Written by  कवि महराज शैलेश

"हर शहर कब्रिस्तान"(कविता)

Image
 दिल का गम, बन दरियाँ। आँखों से बह जाता है।। जब उम्मीद न हो जिससे। वो ही फिर दिल तोड़ जाता है।। ये कौन सा तबाही का मन्जर है। हर शहर कब्रिस्तान नजर आता है।। लोग मातम में गैरों के भी जाते थे। आज अपना भी छोड़ चला जाता है।। इंसानियत जैसे आँखों से मर चुकी है। जिंदा हो या मुर्दा,फर्क कहाँ अब नजर आता है।। कोई गिला,शिकवा,शिकायत,किससे करे। कोई पास में बैठा कहाँ नजर आता है।। कुछ तो करो जतन कोई ऐसा मौला। हर शख्स अब किरदार में नजर आता है।। उन फ़रिस्तो को फिर से आना हो गा । हाथों में लिये मशाल फिर से जलाना हो गा।। Written by  कवि महराज शैलेश

"दरों दीवारें"(कविता)

Image
बेबसियों का आलम है। मंजर भी यु बिखरा है। तन्हाइयां शोर मचा रही है। महफ़िल खामोश लग रही है। न तेरा मिलना न मेरा मिलना है। दरमियां मौत का अजब पहरा है। अपने ही घर के दरवाजों ने रोका है। बाहर कोई अनहोनी लिए खड़ा है। आँखों से छलकते दर्द बहुत है। जिस्म अंगारो पे जैसे जला बहुत है। दरों दीवारें मेरी बात सुनते है। अपने ही घरों में कैद रहते है। न फुरसत हमे जिंदगी से है । दामन में बड़े सिलवटे से है। सब रोज रफू करते जिंदगी है। मगर असली बुनकर कोई है। कुछ न कुछ दाग सबो में है । इंसान ,भगवान थोड़ी ही है। Written by  कवि महराज शैलेश

"रिश्तों में तकरार"(कविता)

Image
क्या ये जरूरी है ,बताने के लिए।। की मैं तुमसे प्यार करता हुँ ।। तुम खुद देखो मेरी आँखों मे।। और चाहत का इजहार करो।। तुम्हारे चेहरे पे मुस्कुराहट नही।। क्या तुम्हें मुझसे प्यार नही।। ये कैसा इनकार या इकरार है।। क्या मेरा दिल औरो से बेकार है।। अक्सर यही बातें दरार बनकर ।। हर रिस्तो में तकरार बनकर ।। प्यार के नाम पर धोखा देकर।। जिंदगी दो नाव पर रखकर ।। चल पड़ते है बिना सोच समझकर।। कैसी परवरिश दोगे अपने बच्चों को।। तुम ना उमीद हो जाओगे सोच सोचकर।। कैसे नजर मिलाओगे नजर भरकर।। तुम अपने स्वार्थ के लिए ।। कही भी रहने को तैयार हो।। कहते हैं उसे तलाक भी।। जो अब तुम देने को तैयार हो।। Written by  कवि महराज शैलेश

"गूँज"(कविता)

Image
 अरमानों की  बस्ती में  तन्हाई की  गूँज सुनते है। बेदर्दो की  महफ़िल में  जख्म लिए  फिरते है।। मन है  बेकरारी में  फिर भी  मुक़म्मल  जी लिया  करते है।। Written by  कवि महराज शैलेश

"लाचार"(कविता)

Image
नियत जन्म से गुनहगार नही होते।। हुस्न जलवे पे यु बेकरार नही होते।। इंसानियत ही मेरी पहचान है ।। वरना कब के दुनिया जला चुके होते।। सब मेरे अपने है किसको मैं धोखा दूँ। अपने ही पीठ पर कैसे खंजर मार दूँ।। मेरे आँखों मे जो मन्जर कैसे दिखा दूँ। मेरी तन्हाइयां तुम्हे कैसे उपहार दे दूं।। कर गुजरने का हौसला बहुत है ।। मगर यादे मेरी तबियत से बेगुनाह है।। मुजरिम नही थोड़े वक़्त से लाचार है। हवा का रुख बदलेगा................।। अभी थोड़े बीमार है...............।। Written by  कवि महराज शैलेश

"आहिस्ता-आहिस्ता"(कविता)

Image
तारों की छाँव में ले चल आहिस्ता आहिस्ता। ऐ रात की बेला तू ढल आहिस्ता आहिस्ता।। जुगनुओं ने जलना है आहिस्ता आहिस्ता। उनका दीदार करना है आहिस्ता आहिस्ता।। उनका नजरों को उठाना आहिस्ता आहिस्ता। जी भरकर के हमे देखना आहिस्ता आहिस्ता।। मखमली हवा चल पड़ीं आहिस्ता आहिस्ता। वन उपवन महक उठी आहिस्ता आहिस्ता।। Written by  कवि महराज शैलेश

"अनमोल जहांन है"(कविता)

Image
प्रकृति की मनोहर छटा है। रंग बिरंगी दुनिया हरा भरा है।। प्रकृति हमे अनमोल धरोहर देती है। प्रकृति ही हमे जीवन,खनिज देती है।। प्रकृति के बिना कोई एहसास नही। धूप नही,छाँव नही,बसंत नही।। प्रकृति है, तो सावन है। प्रकृति है, तो पतझड़ है।। नदियाँ, पहाड़, झरने, पेड़ है। प्रकृति है,तो खेत, खलियान है।। प्रकृति है,तो हम तुम खुशहाल है। प्रकृति है,तो साहिल समँदर है।। प्रकृति है, तो धरा,आसमान है। प्रकृति है,तो अनमोल जहांन है।। प्रकृति के अनेक, हमपर ऐहसान है। प्रकृति के बिना,सब कल्पना मात्र है। Written by  कवि महराज शैलेश

"मैं एक परिंदा हूँ"(कविता)

Image
नोट:मेरी यह कविता 4,साल पुरानी है।और 4,साल पहले 2018 में आल इंडिया रेडियो पर रिकार्डिंग है और प्रसारित हो चुकी है।। मैं एक परिंदा हूँ तेरी जहाँ का। उड़ता ही जाऊ, हौसला है उम्मीदों का।। इस धरती से गगन तक फैला मेरा आशियाना।। हरी भरी धरती बूंदों का मेरा आसमान।। .....मैं एक परिंदा हूँ...... ये सासें देता है जीवन भर का।। न हमसे कोई मोल लेता है।। धरती से जुड़ा, धरती पे तन के खड़ा।। मैं माटी का पुतला,तेरे हाथों का।। .......मैं एक परिंदा हूँ...... कई बार गिरा- गिर कर सँभला हूँ।। रोज माटी को अपने माथे से लगाता हूँ।। खूब इसमें खेल -खेला करता हूँ।। और धरती माँ की जय-जयकार करता हूँ।। .....मैं एक परिंदा हूँ........ भवरे बैठे फूलों पर लिए उमंग।। तरह-तरह की खुश्बू रही महक।। गुन-गुना रहे परिंदे चमन-चमन।। आओ मिलकर हम सब करे,धरती माँ को नमन।। ...धरती माँ को नमन..... .....मैं एक परिंदा हूँ तेरी जहाँ का...... Written by  कवि महराज शैलेश

"तकदीर बदलती है"(कविता)

Image
आज पैसे की दुनिया मे, झूठ फरेब बोलकर आगे सदा रहे। सोने ने सोना दुस्वार किया, महँगाई में भूखे मर रहे।। सत्ताधारी जनता पर, क्या क्या अत्याचार कर रहे। गरीब जनता लूट लूट कर, कंगाल होते रहे।। जनता जनार्दन जागेगी जब, नेता मारे मारे फिर रहे। हिन्दू,मुस्लिम,सिख,ईसाई, सब भाई मानस पुत्र रहे।। धरम करम के नाम पर, आज दंगा करवा रहे। मत भूलो सदा इन्सानियत, इन्सान में ही रहे।। इन्सान बनकर जो सदा,  हैवानियत  बनते रहे। कोई कहे ऐसा कोई कहे वैसा, नही है कोई "हरिवंश" जैसा।। पंडित पुजारी धरम कविता, नही है कोई मधुशाला जैसा। "हरिवंश" अमिताभ, अभिषेक, एक से बड़कर एक ।। अमर, सहारा, अंबानी, जज्बात सदा खुशहाल रहे। इन फरिश्तों की इन्सानियत, इन्सान पर यु ही बनी रहे।। जिन्दगी जीने की मिसाल, इनसे मिलती रहे। हर इन्सान इनकी, अदा पर फिदा रहे।। ये जोड़ियाँ सदा, मेहरबान इनपे ख़ुदा रहे। नशीब है "शैलेश" का, आशीर्वाद इनका सब पर बना रहे।। दुवाओं से तकदीर बदलती है, यूं ही बदलती रहे। ऐ हवाओं उन तक जाओ, उनका पता याद रहे।। मंजिल है मधुशाला, हमसफ़र प्याला रहे। आपकी जुदाई में "हरिवंश", न जाने कहाँ

"दिल को छूने वाली बात"(संस्मरण)

Image
 दिल को छूने वाली बात पहली बार जम्मू, माता वैष्णो देवी, दर्शन के लिए गया था। एक प्रतिष्टित स्कूल का सारा स्टाफ हर साल दर्शन के लिए जाते थे। इस बार मैं भी शामिल हो गया था। माता वैष्णो देवी की कृपा मुझ पर हुई थी। हम सभी लोग लगभग, चालीस लोगो का ग्रुप बन गया था।  बड़े हर्सोउल्लास के साथ सफर पूरा कर, माता वैष्णो देवी, के सभी को दर्शन प्राप्त हुए। बहुत ही आनंद के साथ आनंद लेते हुए। सभी सभ्य और देव तुल्य लोग थे। मेरे किसी अच्छे कर्मों की वजह से शायद मुझे उन सभी लोगो के साथ समय बिताने का अवसर मिला था। एक दूसरे के प्रति समर्पण और भाव ऐसा था। जैसे या तो फिल्मो में ही देखा था। या फिर आज देख रहा था। मेरा पहली बार जाना था उनके साथ। इसलिये मैं अजनबी सा था। लेकिन उन सभी के भाव ऐसे थे मेरे प्रति, जैसे मुझे वर्षो से जानते हो। मुझे याद है। दिसम्बर का महीना था। ठण्ड जोरो पर थी। सभी लोगो ने फैसला लिया कि,  होटल के लॉन में बैठ कर थोड़ा विश्राम किया जाय।और थोड़ी धूप भी लग जायेगी। मैं थोड़ा सा अलग हट कर बैठ गया। और बाकी सभी लोग भी आकर बैठ गये। थोड़ी देर बाद, मेरे पास तीन-चार लड़किया  आकर बैठ गई। और वो आपस मे बातें

"बुलबुल श्रृंगार करेगी"(कविता)

Image
आशा है सुबह की किरण खिलेगी। नई उमंग प्राकृतिक श्रृंगार करेगी।। नया सवेरा सूरज लेकर निकलेगा। आशा किरण उम्मीद फिर जगेगी।। नदियाँ फिर से कलरव करेंगी। चहो ओर फिर खुशियाँ खिलेंगी।। मधुर मीठी आवाज में कोयल। बसंती गीत कोई फिर सुनायेगी।। मन हर्षित मोरनी नृत्य करेगी। पंछियों की तान फिर सुनेगी।। कोयल, कौआ, और गौरैया,। बुलबुल, फिर श्रृंगार करेगी।। आशा है किरण की रोशनी से। मन से अंधकार  दूर करेगी।। किसी को न उम्मीद नही करेगी। प्राकृतिक सब की गोद भरेगी।। हौसला है उम्मीद की किरण से। मन से हिम्मत नही हारने देगी।। हर रात एक उम्मीद की आशा से। कल भोर सुबह एक नई जिन्दगी देगी।। Written by  कवि महराज शैलेश

कोरोना

Image
ईस्वर तुम लीला, करो"ना, करो"ना, मनुष्य की लीला, कोरोना,कोरोना, नानक,मोहम्मद, ईशा, राम की लीला, अब प्रभु तुम लीला, करो"ना, करो"ना, सकल जगत रचना, फिर प्रभु,करो"ना, करो"ना, भातिं-भातिं मनुष्य यहाँ, प्रभु तुम ही एक, करो"ना, करो"ना, बना मनुष्य भगवान यहाँ, फिर भगवान, मनुष्य , करो"ना, करो"ना, लोभ,छल,कपट,करना, अब बंद, करो"ना, करो"ना, मनुष्य के तन में रहकर, हर कार्य, करो"ना, करो"ना, हे कलयुग के भगवान कल्कि, अब अवतार, करो"ना,करो"ना,,,,,,,,,,, Written by  कवि महराज शैलेश

आशा किरण

Image
कविता : बुलबुल श्रृंगार करेगी, आशा है सुबह की किरण खिलेगी। नई उमंग प्राकृतिक श्रृंगार करेगी।। नया सवेरा सूरज लेकर निकलेगा। आशा किरण उम्मीद फिर जगेगी।। नदियाँ फिर से कलरव करेंगी। चहो ओर फिर खुशियाँ खिलेंगी।। मधुर मीठी आवाज में कोयल। बसंती गीत कोई फिर सुनायेगी।। मन हर्षित मोरनी नृत्य करेगी। पंछियों की तान फिर सुनेगी।। कोयल, कौआ, और गौरैया,। बुलबुल, फिर श्रृंगार करेगी।। आशा है किरण की रोशनी से। मन से अंधकार  दूर करेगी।। किसी को न उम्मीद नही करेगी। प्राकृतिक सब की गोद भरेगी।। Written by  कवि महराज शैलेश

"बदनाम शायर"(कविता)

Image
मैं दवा लिखता हूँ,  तुम तकलीफ समझ लेते हो। मैं वफ़ा करता हूँ, तुम बेवफा समझ लेते हो।। मैं रहम दिल हूँ, तुम बेरहम समझ लेते हो। मैं तो मुसाफ़िर हूँ, तुम मंजिल समझ लेते हो।। मैं भीड़ में तन्हां हूँ, तुम कारवाँ समझ लेते हो। मैं तो तुम्हारा अपना हूँ, तुम बेगाना समझ लेते हो।। मैं नब्ज लिखता हूँ, तुम सिर्फ  शब्द समझ लेते हो। मैं गीत, गज़ल,कविता, हूँ, तुम ख्याल समझ लेते हो।। मैं कहाँ मशहूर हूँ, तुम फिर बदनाम समझ लेते हो। मैं हिंदी शब्द हूँ, तुम फिर शायर समझ लेते हो।। मैं तो सरल स्वभाव हूँ, तुम फिर क्या समझ लेते हो। मैं वही समझ हूँ, तुम जिसे कुछ और समझ लेते हो।। Written by  कवि महराज शैलेश

"मेरे दोस्त"(कविता)

Image
मेरे दोस्त वो मोहब्बत ही है।। जो काँटों में भी गुलाब खिलता है।। मेरे दोस्त वो मोहब्बत ही है।। जो तू मुझे याद करता है।। चाहा बहुत की न चाहूँ तुझे।। पर तु भी गुलाब सा लगता है।। कुछ इस कदर मोहब्बत है जनाब।। की दिल को आराम सा लगता है।। मेरे दोस्त वो मोहब्बत ही है।। जो तुझे यादों में सजा रख्खा है।। चाँदनी रातों में वो चाँद है ।। बिना देखे जीना मुहाल है।। वो नजर में कुछ ऐसे बस गई।। की दिल मे तेरी मूरत बन गई।। मेरे दोस्त वो मोहब्बत ही है।। की तू मेरी जरूरत सी बन गई।। मेरे हृदय की धड़कन कभी।। तो कभी जिंदगी की सासें बन गई ।। अब तो मोहब्बत मेरी जनाब।। दुनिया मे मशहूर भी हो गई ।।   मेरे दोस्त वो मोहब्बत ही है।। जो मेरी जिंदगी बदल सी गई।। मेरे दोस्त वो मोहब्बत ही है।। मेरे दोस्त वो मोहब्बत ही है।। Written by  कवि महराज शैलेश