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Showing posts with the label सुरेश कुमार 'राजा'

"चिडिया चूँ चूँ करती है"(कविता)

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 चिडिया चूँ चूँ करती है,  जब वो सोकर उठती है।  चिडिया चूँ चूँ करती है  जब वो कुल्ला करती है।  चिडिया चूँ चूँ करती है  जब वो मुह को धोती है।  चिडिया चूँ चूँ करती है,  जब वो रोज नहाती है।  चिड़िया चूँ चूँ करती है  जब वो दाना चुगती है।  चिड़िया चूँ चूँ करती है  जब वो पढने जाती है।  चिड़िया चूँ चूँ करती है  जब उसके बच्चे रोते हैं। चिड़िया चूँ चूँ करती है  जब वो गाना गाती है। Written by  सुरेश कुमार 'राजा'

"सोंचो अगर हम पंक्षी होते"(कविता)

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 सोंचो अगर हम पंक्षी होते,  फुर्र-फुर्र करके हम उड जाते। पेड़ों में अपना घर होता,  मीठे-मीठे फल सब खाते।  दूर गगन तक आना जाना  चाँद सितारों को ले आते।  बुध शुक्र पृथ्वी मंगल बृहस्पति  शनि अरुण वरुण को गीत सुनाते।  बादल के पीछे छिप जाते  बच्चे हमको ढूंढ न पाते।  नदी तालाब पोखर झरने मे  फुदक फुदक कर खूब नहाते। Written by  सुरेश कुमार 'राजा'

"रिश्ता"(कविता)

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प्रेम से बनता प्यारा रिश्ता  विश्वास का धागा हर पल बढता।  अपनो का सम्मान हो जिसमे  मै ही मै अभिमान न उसमे।  दुख सुख मिलकर साथ मे बाटे  ना पनपे नफरत के काटें। फूलो की मुस्कान है रिश्ता,  मानव की पहचान है रिश्ता।  कोई अपना रूठ ना जाये  कभी ऐसा वक्त न आये।  भाई बहन परिवार है रिश्ता माता पिता और जान है रिश्ता। Written by  सुरेश कुमार 'राजा'

"प्रकृति का बदला रौद्र रूप"(कविता)

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बिजली की टंकार से सहमा  धरती का हर कोना।  लगे सोचने लोग घरो में हाय अब क्या होना।  रात घनी थी नींद बड़ी थी,  हौले हौले पवन चली थी।  बादल से बादल टकराया  मुश्किल कर दिया सोना।  प्रकृति ने बदला रौद्र रूप है, प्रलयकारी यह प्रकोप है।  सावधान अब ठहर जा मानव  नही पडेगा सबको रोना।  बिजली की टंकार से सहमा  धरती का हर कोना। Written by  सुरेश कुमार 'राजा'

"मानवता"(लघुकथा)

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मानवता लाकडाउन का समय था। टूटी फूटी झोपड़ी में एक बूढी माँ गर्मी से बेहाल होकर ऊंघ रही थी।  तभी उसके कानो मे किसी के रोने की आवाज पडी। तब वो झोपड़ी से निकल कर बाहर आई  और देखा कि एक छोटी सी बच्ची चिलचिलाती धूप मे नंगे पैर पैदल चली जा रही थी। उसने कई दिनो से खाना नहीं खाया था। उसके साथ मे चलने वाले और कई बच्चे और उनके माता पिता भी थे। उनसे पूछने पर पता चला कि इसके माँ की सड़क हादसे में मौत हो गई थी। उसने भी कई  दिनो से खाया नही था। यह सुनकर बूढ़ी माँ का दिल पसीज आया और वे दौड़कर झोपड़ी के अन्दर गई और वहाँ से खाने के लिए कुछ लायी सबको पानी और खाना खिलाया।  लाकडाउन के चलते वह बूढी माँ भी कई दिनो से बाहर नही निकल पाई थी। जिससे लोगो से कुछ माँगकर लाती और फिर पकाकर खाती। वह सोचने लगी की मै क्या करू उसने अपने पास रखे कुछ पैसे और लोगो द्वारा दिए गये जूते-चप्पल उन बच्चो को पहना दिया और अपने पास जमा किए कुछ पैसे जो उसने लोगो से मांगकर अपनी बिटिया की शादी के लिए इकट्ठा किए थे।उन सब मे थोड़े-थोड़े बांट दिये जो भी उसके पास बचा अब रोज कुछ पकाती है। और वहाँ से गुजरने वालों को खिला देती है।मानवता की ग

"जेठ की दोपहरी"(कविता)

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 सुबह-सुबह गुनगुनी धूप में  औषधि बहती गहरी।  महुआ जामुन बेल पक गये, टपके आम दसहरी।  गेहूं चना सरसो खलिहान से  घर आ गयी है अरहरी।  आग उगलती हवा का झोका  श्रम विन्दु से रसती चुनरी।  गरम ईट गिट्टी लोहा ले  बाल श्रमिक ढोता टिकी दोपहरी।  हाथ मे डंडा कमर बधी है  सर पर फूस की गठरी।  पेड की छाँव मे ऊंघते किसान की  रोटी ले भगी गिलहरी।  बूंद-बूंद पानी अमृत लागे  जेठ की दोपहरी।  Written by  सुरेश कुमार 'राजा'

"फूल खुशियो के"(कविता)

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 हम गीत जिन्दगी के  यूँ ही गाते रहेंगे।  अगर पेड साथ-साथ  यूँ ही लगाते रहेंगे।  फूल खुशियो के  जीवन मे खिल जायेंगे । हम धरा को अगर  यूँ ही सजाते रहेंगे। प्राण वायु बहेगी  होगा शुद्ध वातावरण।  हम प्रदूषण को  मिलकर भगाते रहेंगे।  खूब बरसेगा सावन  मन मचल जायेगा।  मन मयूरा पंख  अपने लहराते रहेंगे।  हरे-भरे बागों में कूंकेगी कोयल।  तोड मधुर फल  हम सब खाते रहेंगे।  Written by  सुरेश कुमार 'राजा'

"नारी"(कविता)

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 नारी तू जीवन है, मानव जन्म के पहचान की।  दया प्रेम करूणा भर दे जो,  रगो में इन्सान की।  तुम मानवता की मूरत हो  हृदय मे बसती सूरत हो।  मन मे नव चेतन भरने वाली  तुझमे छवी महान की।  प्रथम पाठशाला हम सबकी  लोरी गाती देकर थपकी।  खाना पीना चलना फिरना सपनो के उड़ान की।  माँ बहन बेटी है नारी,  पत्नी बनती कितनी प्यारी।  दुनिया मे खुशहाली लाये  अधिकारी है सम्मान की। Written by  सुरेश कुमार 'राजा'

"कब बंदर से मानव बना आदमी"(कविता)

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पेड पत्तों पर लटका हुआ आदमी  कब बंदर से मानव बना आदमी।  रीझना खीझना कूदना फाँदना  आज सडको पर कैसे खड़ा आदमी।  रीडविहीन जीवों से हुई उत्पत्ति जिसकी  पूरी दुनिया का शहंशाह बना आदमी।  जंगलो को जलाया पर्वतो को खोदकर  खुद के गड्ढे मे कैसे गिरा आदमी।  रेत नदियो की ढोता रहा उम्र भर सूखे किनारों में कैसे पडा आदमी।  मैं और मेरा है ऊंचा धरम इस भरम मे ही लडता रहा आदमी।  आदमी आदमी से प्यार करे  ठंडे मन विचार कर क्यों ना सोच रहा आदमी। Written by  सुरेश कुमार 'राजा'

"अनमोल जीवन"(कविता)

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 जीवन है अनमोल  इसमे विष ना घोल धूम्रपान को त्याग दे प्यारे  मीठा -मीठा बोल।  बीडी सिगरेट पान मसाला  ये करते है खूब घोटाला।  चरस अफीम भांग और गाजा  भूल से मत पीना राजा।  स्मैक हिरोइन तम्बाकू सुर्ती  खाना नही हर लेगी फुर्ती  दारू पीकर होंस गवांना इधर-उधर मत डोल।  श्वसन तंत्र प्रभावित होता  किडनी करते फेल  कैसर टी वी झट से देते  फेफडो मे कर देते होल। Written by  सुरेश कुमार 'राजा'

"त्रासदी"(कविता)

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 श्वेत कफन था रक्त रंजित है,  कितने धवल आकाश तले।  शव निकल-निकल गवाही देते  अदालत बनकर पवन चले।  भीड-भाड कोलाहल से जब मन अशांत हो जाता था।  नदी तीर निर्मल नीर  नयनो से प्यास बुझाता था।  त्रासदी का बीभत्स दृश्य  न जाने कितने लोग गडे।  गुमनामी के ढेर के नीचे  रेत की चादर ओढ पडे।  गंगातट करते थे बिचरण  नवयौना कब साथ चले।  विरह की दावानल भड़की  प्रेयसी प्रियतम साथ जले।  Written by  सुरेश कुमार 'राजा'

"अस्तित्व"(लघुकथा)

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 अस्तित्व रात के दो बजे थे। हम गहरी नींद मे सोये हुए थे। कूलर एसी तापमान को अनुकूल कर पाने मे नाकाम हो रहे थे।पसीने से गीला बदन गर्मी से सामंजस्य स्थापित किया ही था कि आचानक तेज बिजली चमकी और जोर का झटका लगा, हम सहम कर उठे आसमान मे जैसे किसी ने गोला बारूद मिसाइल लेकर हमला बोल दिया हो, बादल के टकराने की आवाज नभमण्डल को चीरती हुई हमारे कान से टकरा रही थी।  हमने अपने पैरो को मोड़कर चेहरे को कस कर दबा रखा था। शरीर भय से थर-थर कांप रहा था।मूसलाधार बारिश से छत का पानी ओवरफ्लो होकर आँगन मे लगे जाल से इतना तेज गिर रहा था, जैसे कोई जल प्रपात फूट गया हो।  मन मे अनेक विचार भ्रमण कर रहे थे, पूर्व मे प्रकृति की कई घटनाओ को याद कर मन सिहर उठा था। जैसे उत्तराखंड मे बादल फटने से हजारो लोगो की मौत नेपाल मे आये भूकंप से अनेको ईमारत ध्वस्त हो गई कितने लोगो की मौत हो गई अब कोरोना ने भी कहर मचाया हुआ है।इसके पूर्व आई सुनामी ने कितने लोगो की जान लील ली थी,धुर्वों की  बर्फ का पिघलना तापमान का अधिक बढना, हमारे द्वारा की जा रही नदियों की अंधाधुंध खुदाई पहाड़ो को नष्ट कर वनो की कटाई से पर्यावरण असंतुलित हो गया

"गर्भ में लेके बच्चे को बढ़ती है माँ"(कविता)

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जब कोरोना का संकट पड़ा देश में,  लेके गोदी में बच्चे को लडती है माँ।  हो सुरक्षित मेरे देश का नागरिक,  गर्भ में लेके बच्चे को बढ़ती है माँ।  पुरानी पेंशन बुढ़ापे का सहारा जो थी,  छीन ली डी ए बोनस भी अर्पण किया।  देश मेरा बढे न रुके इसलिए,  हर कदम सोचकर यही चलती है माँ।  मोहल्ले को मेरे जिसने सेनेटाइजर किया,  उसी पुत्र की मौत पर कितना रोती है माँ।  मासूम बच्ची को दुष्कर्म कर मारते , देखकर कितनी बार मरती है भारत माँ।  Written by  सुरेश कुमार 'राजा'

"पिता"(कविता)

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उंगलियों को जो पकड  चलना सिखाता है हमें।  लेकर कांधे में अपने  दुनिया घुमाता है हमें।  जो हमारी मांग को  हर हाल में पूरा करे।  वक्त के झंझावात से  लडना सिखाता है हमें।  जो हमारे स्वप्न को  नई चेतना उड़ान दे।  अधपके बीज से  पौधा बनाता है हमें।  वो कभी अगर रूठ जाये  तो जिंदगी तूफान है।  याद आती हर घडी  कितना रुलाता है हमें।  Written by  सुरेश कुमार 'राजा'

"बेखौफ कोरोना"(कविता)

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 बेखौफ है कोरोना  खुले आम जा रहा है।  इनसान मर रहा है, भगवान डर रहा है।  हमने तो अपने खातिर  खुदा गाड भी बनाये।  ऐसी विपत्ति देखो  न कोई काम आ रहा है।  अंधाधुंध पेड काटे  होली जला रहा है।  आक्सीजन के खातिर  फिर तडफडा रहा है।  पर्वत काट करके  सडकें बना रहा है।  नदियों की रेत मन भर  खोदे ही जा रहा है।  पर्यावरण असंतुलन  जी भर बढा रहा है।  कुदरत का सूक्ष्म सा कण  क्या कहर ढा रहा है।  कई प्रजातियाँ विलुप्त हो गई मानव भी टकरा रहा है।  प्रकृति के प्रकोप से  खौफ खा रहा है। Written by  सुरेश कुमार 'राजा'

"मजदूर क्यों मजबूर"(कविता)

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वह आता सबका बोझा ढोता  ईंटा पत्थर लोहा लाता।  मिट्टी से वह महल बनाता।  न डी ए बोनस पेंशन पाता।  कल कारखाने देश की गाड़ी  का पहिया वही चलाता है।  देखो पैदल आता है।  खेत में गेहूँ धान उगाता  लाद के मण्डी में दे जाता।  घी बनाता दूध बनाता  लाकर हम सबको दे जाता।  सोचो वो क्या खाता है।  देखो पैदल आता है।  उसकी दुनिया उजड रही है।  देश की हालत बिगड़ रही है।  बच्चा भूख से रोता है।  खाली पेट ही सोता है। Written by  सुरेश कुमार 'राजा'

"कोई अपना अकेला चला जा रहा है"(कविता)

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बुजुर्ग साइकिल में  लास लेकर जा रहा है।  कोरोना मौत बनकर  आ रहा है।  जीवन भर साथ देने का  वादा किया था जो,  जीवन साथी उसे ही  निभा रहा है।  जीर्ण शरीर दुर्बल  हाथों में बल नहीं,  लगा पा रहा है।  बीच राह में बिछड  जाने का गम शीने में  दबा जा रहा है।  कोरोना का भय  इस कदर व्याप्त है।  कि कोई नहीं  हाथ लगा रहा है।  जीने मरने की कसम  खाई थी साथ में।  कोई अपना अकेला  चला जा रहा है। Written by  सुरेश कुमार 'राजा'

"जिन्दगी का दौर बन्धु"(कविता)

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पानी का बुलबुला है,  कब फूट जायेगा।  जिन्दगी का दौर बन्धु  लौट के ना आयेगा।  बोयेगा जो बीज मानव  वही फल खायेगा।  पेडो को काटो ना  नहीं तो पछतायेगा।  कुदरत से प्यार करले  काम तेरे आयेगा।  इंसान जो इंसान से  भाई चारा बढायेगा।  दुख सुख साथ मिलकर  पल में मिट जायेगा।  जिन्दगी का दौर बन्धु  लौट के न आयेगा।  Written by  सुरेश कुमार 'राजा'

"हौसला बुलन्द रख"(कविता)

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हौसला बुलन्द रख  तूफान थम जायेगा।  कुछ घड़ी की बात है  ए दर्द कम जायेगा।  साहसी हैं जो कभी  पतवार छोड़ते नहीं।  बीच भवर में कभी  नाव मोडते नहीं।  रुख आँधियों का मोड दे  चट्टान बन जायेगा।  कोरोना की मजाल क्या  जो मेहमान बन जायेगा।  सावधानी रखें  सलाह मानते रहें। एक दूसरे का  हाल चाल जानते रहे।  तकलीफ कम  होगी  आराम मिल जायेगा।  हौसला आफजाई से  काम बन जायेगा।  Written by  सुरेश कुमार 'राजा'

अब तो मानव नींद से जग

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हे मानव तू दौड लगा ले,  नदिया पर्वत सागर -सागर।  आसमान को लाघ लिया है,  अम्बर को तूने बांध लिया है।  जंगल पर्वत काट रहा है । धरती को तू बाट रहा है।  मानव में नस्ले छाट रहा है।  फिर बोलो तेरा क्या होगा,  तू बलशाली बना हुआ है।  पैर उठा कर तना हुआ है।  एक कोरोना वाइरस आया,  दुम दबाकर तुझे भगाया।  उल्टे पांव रहा तू भाग।  अब तो मानव नींद से जाग।  Written by  सुरेश कुमार 'राजा'