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"मेरा नमन"(कविता)

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एक नमन मेरा उन लोगों को  जो हल समस्या का ढूंढ रहे  मलहम बनकर भरते गमों को  जिस मार्ग से निकल पड़े  एक नमन मेरा उन लोगों को एक नमन मेरा उन लोगों को जो हल समस्या का ढूंढ रहे|| पेड़-पौधों कोई जल बचाते कूड़ा-कचरा बीन रहें  सड़कों के गढ़ढ़े भरते कोई तो  हेलमेट जग में बाँट रहे  एक नमन मेरा उन लोगों को एक नमन मेरा उन लोगों को जो हल समस्या का ढूंढ रहे|| निशुल्क शिक्षा देते-दिलाते  सक्षम न जिनके माँ-बाप रहे  गोद भी लेते देख भविष्य   जीवन उसका संवार रहे  एक नमन मेरा उन लोगों को एक नमन मेरा उन लोगों को जो हल समस्या का ढूंढ रहे|| सेवा करते वृद्धजनों की  गरीबों में, चादर-कंबल बाँट रहे  भंडारे हर रोज है करते  न जग में अब कोई भूखा रहे एक नमन मेरा उन लोगों को एक नमन मेरा उन लोगों को जो हल समस्या का ढूंढ रहे|| एक नमन मेरा लोगों को  जो रक्षक बन तैयार खड़े  प्राण गँवाते देश की खातिर  सीमा पर बन ढाल खड़े  एक नमन मेरा उन लोगों को एक नमन मेरा उन लोगों को जो हल समस्या का ढूंढ रहे|| पशु-पक्षियों की सेवा करते अनमोल प्रयास जो करते रहे होती, विलुप्त प्रजातियों की उनको चिंता समर्पित खुद को करते रहे एक नमन मेरा उन लोगों क

"पितृ दिवस"(कविता)

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परिवार का सारे कर्च उठाते, चेहरे पर मुस्कान सजाते दर्द-पीड़ा वो सब सह जाते, कौन पापा, मेरे पापा, पापा, मेरे पापा|| अधूरी रहे न हम सब की ख़्वाहिश, मेहनत वो दिन-रात है करते थके-हारे घर पर आते, कौन पापा, मेरे पापा, पापा, मेरे पापा|| अपनी परवाह कभी न करते, समस्याओं से, रोज गुजरते खुशियाँ में हमारी कमी न लाते, कौन पापा, मेरे पापा, पापा, मेरे पापा|| शौक पूरे होते, उन्ही के धन से, वरना, खर्चे पूरे न होते गम, चुपके से सह सब जाते, कौन पापा, मेरे पापा, पापा, मेरे पापा|| कुम्हारे के जैसा व्यक्तित्व उनका, कोमल, कठोर सा हृदय रखते उज्ज्वल भविष्य जो कामना करते, कौन पापा, मेरे पापा, पापा, मेरे पापा|| उनके राज में, सब मौज मनाते, दुख-दर्द कभी भी छु न पाते ढाल बन तैयार खड़े वो, कौन पापा, मेरे पापा, पापा, मेरे पापा|| दुनियाँ उनके बिन अधूरी, प्यारे-सच्चे दोस्त हमारे सब इच्छा, तमन्ना पूरी करते, कौन पापा, मेरे पापा, पापा मेरे पापा|| अकड़-आँख न उन्हे दिखाऊँ, उनके लिए सब दांव लगाऊँ चिंता फिक्र जो सबकी करते, कौन पापा, मेरे पापा, पापा मेरे पापा|| Written by  फूल सिंह

"संदेशवाहक कृष्ण"(कविता)

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 दूत बनकर आए कृष्णा, दुर्योधन को समझाने को आधा राज्य नहीं तो, पाँच गाँव ही दे दो, पांडवो का मन रखने को|| चूँ तक भी न वो करेंगे, तैयार हूँ मैं ये वचन देने को  आखरी मार्ग अब यही बचा है, युद्ध की स्थिति टालने को|| रक्त बहेगा, शव बिछेंगे, बचा लो कुरुक्षेत्र को, श्मशान भूमि से बनने को काल कल्पित होगा सब कुछ, न बचेगा कोई शव उठाने को|| दोनों पक्षों में अपने लोग है, चाहे, पूछो-कह दो सभी रिश्तेदारो को  धर्म-अधर्म का युद्ध ये होगा, महाकाल भी खड़ा सब ग्रास करने को|| मानने को तैयार न दुर्योधन, न बात ही कृष्ण की सुनने को  बंदी बनाने का आदेश है देता, सेना के नौजवानों को|| तैयार हो गए तब कृष्णा, अहं को धूल में मिलाने को  विराट स्वरूप में बदले पल में, कौरवों की शान मिटाने को|| धरती, अंबर, पाताल देख लो, तुम्हें महाकाल भी बढ़ा पचाने को  ब्रह्मांड समाया देख लो मुझमें, देख लो ब्रह्मा, यक्ष तुम शिव-शंकर को|| देव-दानव-जीव मुझमें समाहित, धर्म की, अवतार धरा मैं रक्षा करने को आदि-अंत न मेरा देखों, ललकार रहा तू मुझ ईश्वर को|| सेना में तेरी शक्ति न इतनी, जो, बांध सके मुझ परमेश्वर को  गिर पड़े सब कौरव चरण में, शांत