रे बचपन! टूट टूट बिखरा बिखरा तो निखरा अब सम्पन्न ख़ूब मेरा जीवन धन्यवाद अर्पन बचपन ने कैसी मारी ठोकर बन गया जोकर काम तमाम है औरों के हाथ में अब मेरी लगाम बचपन से लकवाग्रस्त हूँ मैं लेकिन मस्त हूँ मैं पैरालम्पिक सिद्ध हुआ आशीष अब हूँ न्यायाधीश खानाबदोश बेचारे भूबलिया क़िस्मत भी छलिया चित्तौड़गढ़ जाने कब छूटा था मुगलों ने लूटा था Written by विद्यावाचस्पति देशपाल राघव 'वाचाल'