"मन की पीड़ा"(गीत)
मन की पीड़ा से जब काँपी उंगली तो ये शब्द निचोड़े अक्षर अक्षर दर्द भरा हो तो प्रस्फुटन कहाँ पर होगा अभिशापों के शब्दबाण लेकर दुर्वासा खड़े हुए हैं कैसे कह दूँ शकुन्तला का फ़िर अनुकरण कहाँ पर होगा नया रूप धर धोबी आए बुद्धि मलिन आज भी उनकी नियति ही जाने सीता का नव अवतरण कहाँ पर होगा गली गली फिरते दुःशासन भीष्म झुकाए सिर बैठे हैं रजस्वला उन द्रौपदियों का वसन हरण कहाँ पर होगा मीठी चुभन कुटिल कुल्टा सी नौंच रही तन के घावों को नमक छिड़कने हाथ आ गये सद आचरण कहाँ पर होगा मैं धतूर का फूल कसैला वो कोमल कलिका कचनारी वो उपवन में इठलाएगी मेरा खिलन कहाँ पर होगा Written by विद्यावाचस्पति देशपाल राघव 'वाचाल'