"ढुलमुल ईमान"(कविता)
प्रतीपल बदलता रहता
अंदर- बाहर प्राणी मन
ज्ञान-शिखर को
चूमनेवाला
भी करता नादानी पन !!
जीवन भूख
जीविका स्वाद
इस भेद को जाना
वही आबाद !!
एक कर में चिंता
जीवन की,
और दूजे कर में
जीविका की,
खाएं कोई कैसे भला
चुपड़ी रोटी नित्य
घी की!!
जीवन जीविका
क्षुधा समान
होते सदैव
सब परेशान
दोनों के ढुलमुल
ईमान!!
दोनों होते
जलते दीये
और
चिथड़े पीर
बिन सीये !!
छलके ना ठहरिए
उधड़े ना सम्भलिये
पथ-पथरीले जीवन के
फूंक-फूंक के चलिए !!
Written by वीना उपाध्याय
nice....
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