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"खुद से खुदा तक की यात्रा"(कविता)

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 आध्यात्मिकता ओढ़ने की वस्तु नहीं  अपितु  आत्मा का गीत है  जो स्वतः ही स्फुरित होता है   यहाँ नर्तन भी है ,आह्लाद भी , और आह्लाद से भरी हुई खामोशियाँ भी, जब बाहर का प्रत्येक रस्ता मुड़ता है भीतर की ओर तो, खुलता है एक द्वार जो ले जाता है हमें वहाँ जहाँ एक दर्पण सदियों से कर रहा है हमारा ही इन्जार, जिसकी एक झलक मात्र से मिट जाते हैं सभी भ्रम कि खुदा कौन है ! कृष्ण कौन है किसके लिये भटक रहे थे हम आदिकाल से ..! खुद से खुदा तक की यात्रा ही आध्यात्मिकता है... Written by  सुमन जैन 'सत्यगीता'

"अनलिखे खतों का जवाब"(कविता)

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 तुम  नित्यप्रति  मन ही मन  लिखते रहे कुछ ख़त  इन हवाओं में   अपने अश्कों की नमी घोलकर  मैं भी , चुपचाप  पढ़ती रही तुम्हारे सभी अनलिखे ख़त  संभालती रही   सारे आंसू , करीने से  अपनी पलकों में  देती रही प्रत्युतर  अपनी कविताओं में , प्रिय  मेरी सारी कविताएँ  तुम्हारे सभी अनलिखे खतों का जवाब हैं ........ Written by  सुमन जैन 'सत्यगीता'

"शब्द"(कविता)

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 पीछा करते हैं परछाईं की तरह अक्सर, गहन अँधेरों में टिमटिमाते हैं जुगनू बनकर बादलों की गड़गड़ाहट के बीच बिजली की तरह कौंध जाते हैं बना देते हैं एक पुल, दिल और दिमाग़ के मध्य वह पुल, जो आश्वस्त करता है मुझें कि,  ''हाँ ! एक दिन पहुँच ही जाओगी तुम अपनी मंजिल तक'' इसलिये, मैं शब्दों को मात्र सुनना भर नहीं चाहती अपितु पी जाना चाहती हूँ उन्हें रोम-रोम से शब्द मात्र शब्द नहीं होतें उनमें समाई होती है वक्ता की ऊर्जा, उसकी समस्त जिंदगी का सार वह सार, जो एक कतरे में पूरा समंदर पिला दे हाँ देव ! मुझें अब पूरा समंदर चाहिए.... Written by सुमन जैन 'सत्यगीता'