"बतकही"(कविता)

बड़े लोगों की सुनों बातें ,

कालिखें नहीं कहीं भी पुतवाते ।

गुरू पे बतकही हीं सुनाते ,

क्यों ये रूतबा हैं पाते ?

सीना चौड़ा किये आते -जाते ,

अकेले दानी क्या हैं कहलाते ?

गरिमा की ये कथा सुनाते ,

वित्तवासना में हांलाकि अज्ञानी समाते ।

क्या कहूँ  जनता के नाते ,

शबरी को प्रभु हैं भाते !

तौहिनी करना हैं ये सिखाते ,

स़़च़ के सारथी स्वयं को बताते ।

शिक्षा पे सवालें हैं उठाते ,

जैसे हो अलबत्ता अंधेरी रातें ।

बातूनी तो थे सदा इतराते ,

उपमा दे किसे दोषी ठहराते ?

ज्यादा कहने से वही घबराते ,

जो पसीना जरा भी बहाते ।

सीता को थे कौन डराते ,

झूठी पीड़ा क्या रंग जमाते ?

पता - तिलक मैदान रोड ,एजाजी मार्ग, कुर्मी टोला ,मुजफ्फरपुर (बिहार )

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