"संगीत"(कविता)

हौले सरगम अधरों पर

जब -जब आ ठहरते हैं

पवन सुगन्ध में घुल-मिल

सुर-संगीत  में ढ़लते हैं !!


 संगीत-विहीन हर्षित

तमन्ना होते स्वप्न सरीखे,

सरगम-सुर छिड़े न जहाँ

रौनक-ए महफील फीके!


बन जाता मधुरम गीत

सुर- लय के संगम से

कर जाता स्पर्श जैसे

सुगन्धित कोमल चन्दन से!!

इंद्रधनुषी रंगों-छंगों से

हृदय फलक रंग जाता है सावन बून्द  बन के बरस

पोर-पलक भीगाता है !!


माँ शारदे को साधने में

 पथ प्रदर्शक बनता है

लोभ, असत्य ,फरेब

 मत से भी पृथक

 करता है!!


मानसिक रोग से मुक्ति देता है

सार्थक जीवन की युक्ति

देता है!!


     तन-मन में 

 निश्चल आत्मा का  

  हो जाता है प्रवेश          

     रोम-रोम     

   पुलकित कर देता

हर लेता सम्पूर्ण क्लेश !!


संगीत से सानिध्यता

प्रत्येक मन को भाता है

 संगीत बगैर जीवन

रंगविहीन हो जाता है !!


सरगम रिदम सुर में 

झंकृत मन को करता है

सृष्टि -प्रकृति, जर्रा -जर्रा 

को संगीतमय करता है !!

Comments

  1. बेहतरीन मनभावन रचना । आप भी मुजफ्फरपुर से हो यह जानकर बहुत खुशी हुई हालांकि मैंने तो 30 साल पहले छोड़ दिया था अपने शहर को यह बात अलग है कि आज भी मेरा पूरा का पूरा शहर मेरे भीतर बसता है । अक्सर खो जाती हूं अपने मायके की गलियों में जहां अब कोई नहीं रहता है मेरा ....।

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

"जिस्म़"(कविता)

"बेटियाँ"(कविता)

"उसकी मुस्कान" (कविता)

"बुलबुला"(कविता)

"वो रात" (कविता)