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Showing posts from May, 2021

"रक्षक ही भक्षक"(कविता)

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#justiceforsujeet  सोशल मीडिया की ताकत सबके पास है, यकी नहीं तो एक पहल कीजिये और तब देखिये  🙏🙏🙏 जब रक्षक भक्षक बन जाये, शर्म हया भी पी जाये, घमंड के मदिरे पान में, मदमस्त अंधा हो जाये  तब पहल हमें ही करना होगा, हिंसा हो या अहिंसा, हर एक मार्ग अपनाना होगा, कर्त्तव्य विमुक्त रक्षक को, कर्त्तव्य याद दिलाना होगा  आओ धरा पर एक साथ पग रखे, की धरती डगमग-डगमग डोल जाये  नींद खुले रक्षक का, घमंड नशा का चूर हो, अब बस करो बहुत हुआ, आत्मा भी उसका बोल जाये  Written by #atsyogi

कोरोना: लॉकडाउन में सब कुछ भूलकर दूसरों की मदद करते छात्र नेता ।

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इस समय देवदूत बनके उभरे छात्र नेता विवेक कुमार गुप्ता (विक्की)। अभिजीत तिवारी (सत्यम) एवं अतुल कुमार पाण्डेय ने इस विकट परिस्थिति में हॉस्पिटलों में जाकर मरीजों को भर्ती कराना बेड ऑक्सीजन ब्लड प्लाज्मा दवाइयां तथा खाना-पीना का तुरंत व्यवस्था करके कई लोगों के मददगार बने। तुम्हारी सख्सीयत सवख लेगी नई नस्लें मंजिल पर वही पहुंचता है जो अपने पांव चलता है मीटा देते है कोइ नाम तक खानदान का किसी के नाम से मशहूर होकर गांव चलता है आप के सफल प्रयासों को देखकर मन गदगद हो जा रहा है साथ में खुशी के आंसू भी आ रहे हैं। तुम धन्य हो बड़े और छोटे भाई माता रानी आपको सदैव उर्जा प्रदान करती रहें।  आप को जन्म तथा ऐसा बढ़िया संस्कार देने वाले माता व पिता जी को मेरा चरण स्पर्श है। धन्य हो अनुज।

"आर्तनाद"(कविता)

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हे गिरिराज हे गिरधारी, ये कैसी विपदा भारी है। अलख अगोचर ओझल अमित्र ने, किया प्रलय अति भारी है। न शस्त्र रचा न अस्त्र सजा, विगुल आक्रमण का बज उठा। ऐसी आंधी आई जगत में, कितने अपनो का हाथ छूटा। तू ही सृष्टि तू ही विधाता, जग चरणों में शीश नवाता। सुन जन जन का आर्तनाद, तू क्यों नही दौड़ा आता। तूने महाभारत के युद्ध में, था ऐसा इतिहास रचा। अठारह दिनों के प्रहार से था न कोई असत्य बचा। इंद्र ने जब गोकुल में, भयानक कोहराम मचाया था। गिरिराज उठा कर तूने, गोकुल को बचाया था। आज फिर बिलख रही धरा, है चारों ओर हा हा कार मचा। एक बार सुदर्शन चक्र उठा, इस दानव से जग को बचा। हे केशव हे मधु सूदन, शीश नवा करूं अश्रु अर्पण। हे कुंज बिहारी हे गिरिधारी, करती हूं चरणों में पूर्ण समर्पण। Written by  मंजू भारद्वाज

"जुगनू पकड़"(ग़ज़ल)

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क्या लूटा है मैंने बतला, झूठे क़िस्से गढ़ा न कर जन्मजात दौलत वाला हूँ, तोहमत यूँ ही मढ़ा न कर भूखा नंगा था ये कहकर, मियां बेइज्जती करता क्यों तू भी रंग जा मेरे रंग में,तिल का ताड़ बड़ा न कर पहले ही से मैं बेचारा, मुश्किलात में फँसा हुआ जख़्मों पर तू नमक छिड़क कर,मुश्किल और खड़ा न कर मैं तेरा संगी साथी हूँ, बुरे वक़्त में दूंगा साथ ज़रा दूर की सोच रे मूरख,बेमतलब ही लड़ा न कर बड़े अदब से सर को झुकाए,हाथ जोड़ता रहता हूँ थोड़ा अदब ओढ़ ले बाबू,अपना रुख़ यूँ कड़ा न कर मेरी भी सुनने की हिम्मत, तू अपने में पैदा कर जब देखो तब अपनी कहता, बात बात पे अड़ा न कर बर्फ के तौंदे दिये दे रहा, ले अपना अहसान पकड़ बना धूप में घर ले अपना, मेरे सर पर चढ़ा न कर थोड़ी सी तो शर्म बचा ले,कहीं काम आ जाएगी पानी की जो बूंद न ठहरे, इतना चिकना घड़ा न कर जुगनू पकड़ रौशनी करता, और दिखाता अकड़ बड़ी चोरी कर के लिखता हूँ मैं, मेरी ग़ज़लें पढ़ा न कर Written by  विद्यावाचस्पति देशपाल राघव 'वाचाल'

"आशिक"(कविता)

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 इश्क  करने  वाले  अब  कहाॅं  मिलते  हैं चूम लु,चौखट उस दर की,जहाॅं मिलते हैं इश्क में रोज  होती है यहां अदला-बदली अब  तो  ऐसे आशिक हर जहाॅं  मिलते हैं इस जहां में  नहीं मिलेंगे इश्क करने वाले सच्चे आशिक अब खुदा के वहाॅं मिलते हैं क्या  अब  नहीं है इश्क में  जान देने वाले कभी-कभी, कहीं-कहीं, जी हाॅं  मिलते हैं इतनी चकाचौंध मगर मन की शांति कहां ढूंढो यहां  तो सारे  इंसान तन्हाॅं  मिलते हैं बुरे समय में भाग जाते हैं जो आपसे दूर ऐसे लोग रोज रोज  खामखाॅंह मिलते हैं Written by  कमल श्रीमाली(एडवोकेट )

"कठपुतली"(कविता)

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उंगलियों, का  है   ये  खेल,    धागा, संग, बंधा था  जिन। का   मेल, कलाकारी,  थी।    हाथों की  अनोखी,   जिस,  से मनोरंजन,  की होती थी   शरुआत।   उंगलियों    के, सहारे   होता था  ये  खेल,   जिससे,   महफ़िलो।    में, गूँजति  थी  तालियों   की,    आवाज़   बच्चे   बूढ़े  को,  था  ये खेल  पसँद,  सभी।    का मन  बहलाने, के लिए, करतें थे  नाच गाना  और,   कर्तब होकर खुद ना खुश,  हमारी तर्ह कठपुतली भी।   होना  चाहते, थे  स्वतंत्रत, लेकिन  क्या करे ज़िन्दगी   उनकी बंधी, थी  धागों से,  और अबतो मनोरंजन ही।   था  उसका  जीवन   मंत्र। Written by  नीक राजपूत

"स्वच्छता"(कविता)

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जब तक हम खु द ही  स्वछता के,     बारे में जाने गे  नहीं तब तक हम।  दूसरों को कैसे   समजाएँ  गे  की,      असलमें स्वछता क्या है   क्योंकि, स्वच्छता, है  हमारा  खरा  सोना।    मिलकर  हमें  इस धरतीको स्वर्ग, सा  सुंदर  बनाना  यहाँ वहाँ   हमें     प्लास्टिक  की  थैलिया,  चाय  के,  साधारण  प्याले सूखे   कचरे का।    नहीं  ढेर  लगाना  उन्हें   इक्कठा। करके उनकी सही जगह पोहचाए,     घर  आँगन  को  भी   मोतियों सा।  चमकाए, और   ये   स्वच्छता  की,     बात  हम  समाज  के लोगों   तक, भी  पहुँचाये,  और शहर,  गलियों।    को भी   बागीचों,  की  तरह   हम। इन्हें,  भी  सजाएँ   स्वच्छता,  का    अभियान  चलाकर   हम  देश को। सफलता  को  रास्ते  पर  ले  आए, Written by  नीक राजपूत

"दुःख: मानव जीवन का अभिन्न भाग"(लेख)

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 दुःख: मानव जीवन का अभिन्न भाग प्रायः हम सभी के सम्पूर्ण  जीवन का सफर ऐसे मार्ग से गुजरता है जिसके प्रत्येक कण और प्रत्येक क्षण की घटनायें अप्रत्याशित और रहस्य से युक्त होती है,वास्तव में ये सारा जगत दो विपरीत शब्दों से युक्त है जैसे सुख-दुख; लाभ-हानि;यश- अपयश,चोटी-घाटी,प्रकाश-अंधकार इत्यादि । अतः चाहे अनचाहे रूप से ये सभी हर किसी के जीवन का अंग अवश्य बनते है।रही बात,इनके महत्व की, सो दोनों पक्षों का स्थिति समान है, यह ठीक वैसे ही है जैसे दिन का महत्व रात पर और रात का महत्व दिन पर आधारित है,हम लोगों ने भले ही अपनी मनःस्थिति के अनुसार अनुलोम,विलोम से जोड रखा हो।पर इतना तो तय है कि दुःख भी हम सभी के जीवन का अभिन्न हिस्सा है।                हमारी धार्मिक आस्थायें,दर्शन और प्रेरणादायक गीत और रचनायें सदैव यह शिक्षा देते है कि यदि समय हमारी विचार इच्छा और कार्य के तदनुसार अनुकूल परिणाम न दें तो भी हम सबको अधीर नहीं होना है, बल्कि संयमित रहकर उस कठिन घडी की परीक्षा में खरा उतरना है क्योंकि इसी कालखण्ड में  मनुष्य के चरित्र और पौरुष में निखार आता है,दुख ही सच्चा साथी बनकर हमारी सभी प्रकार की क

"धैर्य"(कविता)

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मुश्किल है वक्त  थोड़ा धैर्य से काम लो रास्ते है उबड़ खाबड़  थोड़ा संभल कर चलो एक दिन वह वक्त आएगा हमारे हाथ भी कुछ ऐसा लग जाएगा हर खेल को धैर्य से जीता जाएगा यही सोच हर वक्त काम आएगा  इसी सोच से बहुतो को  इंसाफ मिल जाएगा  लड़ाई है इसी समाज से  मुश्किलें हर वक्त  आएगा    सच को हथियार बना के  हर लड़ाई को जीत जाएगा  लिखा है पुराणों कथाओं में  सच कभी पराजित नहीं हो पाएगा हर वक्त सच का ही जीत होगा  लेकिन कुछ वक्त लग जाएगा सच्चाई की यही परीक्षा है  सच हर वक्त हमें अजमा एगा इसीलिए चलो संभल के  नहीं तो धैर्य मिट्टी में मिल जाएगा कुछ वक्त लगेगा  सब सही हो जाएगा  धैर्य ही हमें उस रास्ते पर ले जाएगा। Written by  लेखिका नेहा जायसवाल

"बाजीगर"(कविता)

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बैठी हूँ आसमाँ तले सामने लहरों के बाजार है, उन्मादित लहरों के दिखते अच्छे नही आसार हैं। उफनाती लहरों से कह दो राह मेरी छोड़ दे, बैठी हूँ चट्टान बन कर रुख अपना मोड़ ले । ज्वार भाटा से निकली प्रचंड अग्नि का सैलाब हूँ, हैवानियत को जलाकर खाक करने वाली आग हूँ। बार बार  पटकी  गयी  हूँ  अर्श  से  मैं  फर्श  पर, बार बार  टूटी  हूँ  टूट  कर  बिखरी  हूँ  मैं। खो दिया  है  सब  कुछ  जिसने  इस  जमाने मे , कभी  न  दम  लगाना  तुम   उन्हें  आजमाने में । गिर जो  गए  जमीं  पर  उन्हें  कमजोर न समझना, ऊंची  उड़ान  की  ये  तैयारी  होगी  उनकी। गिर कर  उठने  वालों  की दिशा  होती कुछ और है, खो कर  पाने  वालों  का नशा  होता कुछ  और है। गिर कर उठने  की  जिसमे  है  हिम्मते  जिगर, वही  है इस  जहाँ  का  दरियादिल  बाजीगर। Written by  मंजू भारद्वाज

"सत्ता"(कविता)

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भूखी नगरी की माया , गांवों तक उसकी छाया । अंधेरा का नाता पाया , जुल्मी मसीहा क्या आया ? आंसू जनता ने बहाया , सड़कों पे भी चिल्लाया । लम्हा-लम्हा तो हुआ जायां , क्यूं उसने है सताया ? जहर भी है पिलाया , प्रियतमा ! ख्वाब़ भी चरमराया । इश्क की बातें दायां-बायां , झूठे दावे की छत्रछाया । छलिया को कितना भाया , क्यूं उसने आग लगाया ? काया की कीमतें लगाया , कालकोठरी में किसे लाया ? गीदरों से हुआं-हुआं कराया , कुत्ता भी है शरमाया । किसने किसको है फंसाया , क्या समझाया और गाया ? सवालों पे सत्ता तमतमाया , स़च़ को क्या भूलाया ? निःशब्दता भी उंगली उठाया , नदी-समंदर भी क्यूं लहराया ? साहिलों पे मांझी कतराया , मछलियां देखते कश्तियां  डुबाया । लाशों पे क्या गुनगुनाया , आईना क्या है मुस्काया ? फूलों तक भी मुरझाया , भौरा क्यूं महफिल जमाया ? माली को हैं ठुकराया , चिड़ियों  की पांखें कतरवाया । संवादें मिडिया पे छितराया , तौब़ा -तौब़ा करके दिल बहलाया । बेपर्दा  हो हमें नचाया , सूरज को आखिर गिराया । रातें ,चंदा ,नवाब़ , अपना-पराया - कहानियों में है समाया । कविता का शबाब़ गड़बड़ाया , अम्बर में बादल छाया । Written

"आम मेंगो: केरी"(कविता)

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गर्मी का मौसम आया साथमे मीठे  रसीले।   पसंदीदा फल आम  अपने  संग ले  आया।  आम मेंगो जिसका नाम  सुनते ही  मुँह में,   आ जाता पानी। जिन्हें  बूढ़े  जवान  बच्चे,  करतें पसँद आम है अमृत आम  है  फलों।    का प्रिय राजा आम है  स्वास्थ्य  के  लिये,  लाभदायक  खाने  को  जिसे  मिल  जाये,    वो एक  पल में  खुश  हो जाये  आम को। भारत में राष्ट्रीय, फल और  बंगलादेश  में,   आमको राष्ट्रीय पेड़का दर्जा  दिया गया है। आम का वैज्ञानिक नाम मेंगीफेरा इंडिका।   है पूरे विश्व मे ज़्यादातर आमका उत्पादन,  भारत देश में हो रहा है बिहार के दरभंगा।,   गाँव में एक बाग है जिनका नाम है लाखी, बाग  जहाँ एक लाख  से भी अधिक पेड़,   हैऔर गुजरात के जूनागढ और  तालाला। शहर के आम  मशहूर  है आम में है कई,   तरह  के  विटामिन है  जैसे  विटामिन  a, विटामिन B6 मगन  फाइबर  विटामिन c,   मैग्नेशियम पोटैशियम और कॉपर है जो।  आप की त्वचा और बालों के लिए  बड़ा।   लाभ दाई है आम के  सेवन से खून  की, मात्रा  बढ़  जाती  है  और  गैस  आपच,    जैसी बीमारीसे आपको मुक्ति मिलति है। आम  खाने के सिवाय, कच्चे आम  का।    अचार, चटनी, सिकंजी,चूर्ण आदि रूपों। मे

"गर्भ में लेके बच्चे को बढ़ती है माँ"(कविता)

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जब कोरोना का संकट पड़ा देश में,  लेके गोदी में बच्चे को लडती है माँ।  हो सुरक्षित मेरे देश का नागरिक,  गर्भ में लेके बच्चे को बढ़ती है माँ।  पुरानी पेंशन बुढ़ापे का सहारा जो थी,  छीन ली डी ए बोनस भी अर्पण किया।  देश मेरा बढे न रुके इसलिए,  हर कदम सोचकर यही चलती है माँ।  मोहल्ले को मेरे जिसने सेनेटाइजर किया,  उसी पुत्र की मौत पर कितना रोती है माँ।  मासूम बच्ची को दुष्कर्म कर मारते , देखकर कितनी बार मरती है भारत माँ।  Written by  सुरेश कुमार 'राजा'

"मोक्ष प्राप्ति"(कविता)

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गंगा में अस्थियां बहाते बहाते लोग लाशो का भी  विसर्जन करने लगे। मोक्ष पाने की यह तहजीब भी  अजीब है। अंतिम वक्त में ही  यह दस्तूर लोग निभाते हैं जब सांसों का कारवां साथ रहता है तब मोह माया की जंजीरे लोगों से नहीं टूटती कई चक्कर शमशान के  लगाने के बाद भी लोगों को मोक्ष की प्राप्ति नहीं होती। सांसों का कारवां  थम जाने के बाद ही  लोगों को पाप - पुण्य ,  स्वर्ग - नरक और मोक्ष का  ख्याल आता है। कैसी अजीब विडंबना है!  यहां लोगों के साथ में, मोक्ष पाने को सब बेताब है  मरने को कोई राजी नहीं! Written by  कमल  राठौर साहिल

"परवरदिगार का रहमोकरम :ईद"(कविता)

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लाखों मुश्किलें आई,और लाखों रंजोगम झेले हैं, रुशवाइयों के चलते, जाने कितने मंजर झमेले हैं,  दुआएं कबूल होने से ही बनें ये खुशियों के मेले हैं, गले  मिलने का वक्त है,वर्ना झंझट तो रेलमपेले हैं, इस खुशी के ईद में ,भूल जाएँ आपस के रंजोगम, अब फरियाद में मांग लें,परवरदिगार के रहमोकरम। ।1।  बडे तकदीर और तकलीफ से जश्ने आज आया है, मन्नतें पूरी होने पर ही ये खुशियाँ , सभी ने पाया है, हर रूह में  हो मंदिर,हर दिल में पाक इबादत गाह, धडकनों में उसका पैगाम हो औ मोहब्बत बेपनाह, इस खुशी के ईद में, भूल जाएँ आपस के रंजोगम, अब फरियाद में मांग लें,परवरदिगार के रहमोकरम। ।2।  खुशी में जन्नत होती, और खूनी जंग  होते जहन्नुम, जश्न लता के नग्मों से करें,औ रफी के छेडों तरन्नुम, डां0 कलाम के कलम का पढो ' विंग ऑफ फायर' जलियांवाला काॅल का फिर न जन्मे'जनरल डायर' इस खुशी के ईद में, भूल जाएँ आपस के रंजोगम अब फरियाद में मांग लें, परवरदिगार के रहमोकरम। ।3। Written by  ओमप्रकाश गुप्ता बैलाडिला

"घर के बहार एक पेड़ लगाए"(कविता)

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 घर  के  बहार  एक  पेड़  लगाओ। और अपनी  ऑक्सीजन  बढ़ाओ।   क्योंकि ऑक्सीजन  हवा के बगैर, जीवन मुश्किल है। ये हमारे शरीर।   के लिए बेहद हरूरीहै ऑक्सीजन, घर के बहार खड़ा एक  पेड़ साल,    भर में करीबन 18 किलोग्राम धूल। सोखता है। ये एक  पेड़  आपको।    साल भर में  करिबन 650 किलो। ग्राम तकका ऑक्सीजन आपको,   उत्सर्जन कर के देता है। एक पेड़, प्रतिवर्ष, 18 टन से ज़्यादा  कार्बन   डायओक्साइड  को भी  सोखता। है और गर्मियोंमें तो पेड़ औसतन,    3 या इस से अधिक तापमान को। कमकर सकता है पेड़ अगर चाहें,   तो आपके जीवनकी उम्र भी बढ़ा। सकता है  और घर की रौनक भी,   इसीलिए  घर के  बहार  एक पेड़,  लगाए अपनी ऑक्सीजन बढाये।    और अपनी  ज़िन्दगी भी  बचायें। Written by  नीक राजपूत

"करो प्रकुति की पुजा"(कविता)

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इस धरती पर मानव से  पहले,   प्रकुति  का   जन्म  हुआ  था। फूल पेड़ पौधे पहाड़  सरिता।   समंदर  नीला,  गगन, ये  सब, कुदरत का करिश्मा है। जिस,   के बिना  मानव जीवन संभव, नही इसी लिए  करो।  प्रकुति,    की पूजा  क्योकि  प्रकुति ही। भगवान है। प्रकुति  है  सारा।    सँसार प्रकुति  ही  धरती का।  सुंदर सौंदर्य  है। हमें मुफ़्त में,   मिला उपहार है लेकीन  कुछ,  लोग  कर रहे है  प्रकुति  को।    प्रदूषित प्रकुति का  दुरुपयोग, कर इन्हें रहे है इन्हें क्या पता।   प्रकुति ही  जीवन है।  प्रकुति,  के बिना जी पाना मुश्किल है। Written by  नीक राजपूत

"विश्वास है :छटेंगा तमस घनेरा"(कविता)

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धडकती धडकनों के प्यार का उन्माद से , साँसों में अपनत्व के ताप का आभास हो, संवेदना से जंग विजय होने के जज्बात से , अपनत्व में आपस के विश्वास की बात हो। तमस घनेरा छॅट जायगा चाँदनी स्वागत से, बहती हवा में सोंधी महक का अहसास हो। ।1। रहें हर जीवन की अधिक बचाने का प्रयास, इस जिंदगी के सार के समझ का प्रकाश हो, गर लौट चलें अपने बीते पल के धरातल को, हर गोद में गर्माहट और ममता की प्यास हो, तमस घनेरा छॅट जायेगा प्यार भरे सौगात से, मानवता के तंग जमीं पे ऑगन की तलाश हो। ।2। जीवन बदला तेजी से जो मापा इसे समय संग, बहुतक खोया हमने,अनंत नियति से विलग हो, विकास के मानक मिले,पर न रही वो बात अब, खोई अखंडता पाने का ये फिर सच्चा प्रयास हो, तमस घनेरा छॅट जायेगा,यूँ मानव के जज्बात से, भूले अर्थ भाव में आये,फिर जीवन का स्वाद हो। ।3। Written by  ओमप्रकाश गुप्ता बैलाडिला

"घिरनी"(कविता)

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फोन पर शहर की काकी ने कहा है कल से कल में पानी नहीं आ रहा है उनके यहाँ अम्माँ! आँखों का पानी सूख गया है भरकुंडी में है कीचड़ खाली बाल्टी रो रही है जगत पर असहाय पड़ी डोरी क्या करे? आह! जनता की तरह मौन है घिरनी और तुम हँस रही हो। Written by  गोलेन्द्र पटेल

"अंतरराष्ट्रीय नर्स दिवस"(कविता)

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अगर नर्स के बारे में कहूँ तो ये भी, भगवान से कुछ कम नहीं है। जब,      अस्पताल में हम किसी बीमारियों।      की वजह से  ऐडमिट होते है। तब, वहीं   होतीं  हमारा।  ख्याल रखने,  वाली  जो  हमारी, देखभाल  और,     हिफाज़त, एक फैमेली मेंबर्स  की,     तरह करती, है  हमारी ज़िन्दगीयों। बचातीं है। साथ  मे शिक्षा भी देती, बीमारियों  से कैसे  लड़े और साथ,     में  मरीजों,का हौसला। भी बढ़ाती,     अस्पताल, के साथ साथ  कई नर्स, तो  मरीज़ो के घर  तक  भी  जाती, जब  तक  मरीज, सभी बीमारियों।     मुक्त न हो जाए मरीज का स्वास्थ्य,     ठीक न  हो जाए  तब तक  उनकी,  देखभाल  का  ज़िम्मा,  भी उठाती, अपनी ज़िन्दगी  को दाव पर लगा।      कर हमारी  ज़िन्दगी,बचाती अगर,     डॉक्टर भगवान है तो नर्स  देवी है। Written by  नीक राजपूत

"तू कर्म कर"(कविता)

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यह धरा बन गई रणभूमि प्रतिदिन घट रहा यहां  धर्म युद्ध  कर्म युद्ध  शर्म युद्ध इस युद्ध में शंख की हुंकार कर तू बन अर्जुन इस रण में गांडीव उठा प्रहार कर धर्म पर जब बात आए तू अभिमन्यु सा शोर्य दिखा चक्रव्यू है ये अपनों का कलयुग में तू तोड़ दिखा डूब मर मगर शर्म युद्ध ना कर अपने आपको तू ना लज्जित कर यह  रणभूमि है वीरों की तू कर्म कर , तू कर्म कर, Written by  कमल  राठौर साहिल

"गांव की याद आती है"(कविता)

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वो गांव के परिंदे शहर की  भाग दौड़ में  थक कर जब चुर हो जाते है तब गाँव की यादों को  सीने से लगाये तरसते है  चूल्हे की रोटी को सिलबट्टे पे बनी  लहसुन की चटनी को। वो पेड़ की ठंडी छाव को  दादी नानी की लोरी को कुँए के ठंडे  पानी को जिस को पीकर आत्मा  तृप्त हो जाती थी ओर ये शहर की प्यास  पानी से भी नही बुझती। याद आती है वो गाँव की यादें जहाँ अपना सब छुट गया इस शहर ने सिर्फ पेट भरा मगर दिल में सब कुछ  सुनापन कर दिया। शहर की चांदनी रातें भी  अब मुझ को नहीं लुभाती है शहर का सन्नाटा कानो को  खाने को दौड़ता है वो  रात में अलाव जलाकर   रात भर बतियाना वो रिश्तो की गर्मी आपस में हंसी ठिठोली शहर में बहुत याद आती है  वो गांव की रातें जब दिनभर की भागदौड़ करके शाम को इस अजनबी शहर में खुद को अकेला महसूस करता हूं तब गांव की बहुत याद आती है Written by  कमल  राठौर साहिल

"क्या कोरोना की तीसरी लहर आयेगी?"(कविता)

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सभी की  जुबा पे है ये सवाल क्या,     तीसरी   लहर  भी  आयेगी?  कल, हजारो की  गिनतियों  में केस  आ।    रहें थे आज एवरेज एक लाख, या।  दो लाख, केस आ रहे  है भारत में,     अब क्या इससे भी  मुश्किल  घड़ी,  आएगी? क्या वैक्सीन काम करेंगी?    क्या  वेक्सिनेशन, ही  है ?  इसका,  सही इलाज या लोकडाउन है? इस,    का सही इलाज? इस तरह के कई, है सवाल  जो  हमें  इस   महामारी।     कोरोना  काल  सता  रहें  है  अगर,   अबभी हमनें सावधानी नही बरती।     तो तीसरी  लहर को आने से  कोई,  नहीं रोक  पायेगा और  इसके हम।     खुद ज़िम्मेदार  होगें  क्योंकि  कुछ,  लोग   यह   कोरोना   वायरस  को।     मजाक समज रहेहै अपने मुँह  पर, मास्क नहीं लगारहे है  सड़को  पर,    घरकी बहार खुले आम  घूम रहे है। इसलिये सरकारी गाइडलाइंस का।    पालन करे मास्क लगायें हर जगह, चल रहा  है  वैक्सीनेशन तो  बिना।     डरे वैक्सीन लगवाए और ज़िन्दगी। बचाये घरमे रहें कर  ये बात दुसरो।    को  भी  समजाये   और   कोरोना, को मिल कर  इस  देश  से भगाये। Written by  नीक राजपूत

"अंधश्रद्धा"(कविता)

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अंधश्रद्धा जिसके नाम  के आगे भी अंध,    आता है उनमें में  श्रद्धा कैसी  आज हम,  21 मी सदी में जी रहे फिर भी कुछ लोग। आज भी अंधश्रद्धा पर  विश्वास, कर रहें,    और अनपढ़ नही बल्कि पढेलिखे  लोग।    भी इसका शिकार, हो  रहें है। किसी भी, मुश्किल आने  पर  बुरी नज़र का  दावा।  करतें है। या  किसी  तांत्रिक  बाबा  का।    साहारा लेते है। जो झाड़फूक, लगा कर,    हमारी मुश्किलो का हल निकाल देता है। ये सब एक अंधविश्वास, है हमारा हमारी, मूर्खता है। जिसे हम  खुद अपने  दिमाग,    में  जन्म  देतें  है। क्योंकि  वहम की या।     अंधश्रद्धा, की  नहीं   कोई  दवा हमारी।  ज़िन्दगी में आये  मुश्किलें, तो  करे सब, ईश्वर से दुआ, क्योंकि  ये सारी सृष्टि  है।    ईश्वर  ने बनाई  उनकी  दी हुई अनमोल,    शक्तिया हम सबमें है  समाई अगर हम।  चाहे  तो पूरे  ब्रम्हाण्ड को नियंत्रित कर,  सकतेंहै लेकीन ये बात कोई सोच नहीं।    रहा और हम  चले जा रहें है  अंधश्रद्धा,    के मार्ग  पर अंध  बन  कर और  हमारे, दिमाग को सौप देतें है किसी  तांत्रिकों। के  हाथ मे  जो हमें  बाधा  के  धागें में,     बांध  कर हमें भूत  प्रेत के नाम पर वो।     अ

"मां- जीवन का सार"(कविता)

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मां तुम हो सागर,मैं नदियां की धार। तुम बिन मेरा नही हो सकता उद्घार।। तुमने हंसना बोलना ,चलना सिखाया। धीरज धैर्य सच्चाई की राह दिखाया ।।  तुम प्रथम गुरु,नेकी का पाठ पढ़ाया। तुमने जीवन का हमें सार समझाया।। जब जब कदम लड़खड़ाए, तुमने उंगली थाम लिया। डांटा,प्यार से सही गलत का मतलब समझाया।। अपनी पीड़ा को छुपाया, मुस्कुराता चेहरा दिखाया।  अपनी इच्छाओं को मारा हम पर सब कुछ वार दिया।। हमारा भविष्य संवारा, जीवन को दिया एक किनारा। तुम्हारी वजह से कोई परिहास नहीं कर पाया हमारा।। मां तुम जीवन का सार, तुम बिन जीना है दुश्वार। तुम्हारा अहसास शीतल छाया तुम ही धरती आकाश।। Written by  प्रियंका पांडेय त्रिपाठी

"हिन्दी कविता में दलित विमर्श"(लेख)

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 हिन्दी कविता में दलित विमर्श  प्रारंभ से ही दलितों की असीम पीड़ा, संत्रास, छटपटाहट, विवशता हाशिये पर रही है| पग - पग पर उनके साथ अमानुषिक व्यवहार, उनके जीवन का तिरस्कार, सवर्ण सामाजिक खोल में उनको अभद्र गालियाँ एवं दुर्व्यवहार की पारंपरिक अनुबंधित दृश्य समाज की जड़ों में सदियों से फलते फूलते रहे है| यही प्रतिध्वनित संवेदनाएं साहित्य की विभिन्न विधाओं ( कविता, आत्मकथा, उपन्यास आदि) में प्रत्यक्षतः और परोक्षतः अभिव्यक्त हुयी है, परंतु यहाँ भी साहित्य के तल में दलितों की अस्मिता दोलन गति में झूलती प्रतीत होती है| "दलितों द्वारा रचित साहित्य" जिसमें वेदना,स्वानुभूति विद्रोह, मुक्ति और अस्मिता परक रचनाएँ, प्रेम, प्रकृति, सौंदर्यपरक रचनाओं का गुट है तो दूसरी और "गैर दलितों" द्वारा रचित सहानुभूति परक साहित्य ( विद्रोह, वेदना, मुक्ति और ब्राह्मणवादी संस्कार विरोधी रचनाओं ) का गुट है , इन दोनों ही गुटों के मध्य बहुत ही लाजमी व बडा़ अंतर है| "देवेंद्र दीपक" इस प्रकार लिखते हैं कि, " अस्पृश्यता एक अंधा कुआँ है, कुएँ में गिरे आदमी को लेकर चिंता के दो स्तर है| एक