"बचपन"(कविता)
जब हम बचपन जीते थे वो कितना सुन्दर जीवन था भेदभाव से दूर रहा जो वो कितना प्यारा बचपन था पीपल की वो छांव सुहानी पेड़ों पर भी झूले थे नाना नानी दादा दादी की गोद में जब हम खेले थे दुनियावी माय जालों से दूर रहा जो बालक मन था जब हम बचपन जीते थे वो कितना सुन्दर जीवन था । देर रात तक घर की चौपाल में बड़े-बुजर्गो के संग रहना बहुत दूर आकाश में दिखते चंदा को वो मामा कहना घर की हर एक बड़ी समस्या कुछ पल में गायब होना आपस में जब झगड़े होते मुखिया का वो आंख दिखाना हरदम ही बेदाग रहा तब जो रिश्तों वाला दर्पन था जब हम बचपन जीते थे वो कितना सुन्दर जीवन था । Written by प्रिया झावर