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"उम्मीदें"(कविता)

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तस्वीरों को देख विहँसती प्यार भरी इक मूरत गढ़ती ख़ाली-ख़ाली दिन में बैठी सन्नाटों के बीच उतरती। खिलते फूलों - सा मन होगा महका - सा घर आँगन होगा नृत्य करेंगीं नित्य बहारें फिर मौसम मनभावन होगा प्रभु के आगे दीप जलाकर एक यही अभिलाषा करती ख़ाली-ख़ाली..... बाज़ारों में रौनक़ होगी मित्रों के सँग बैठक होगी उम्मीदें पथ पर उतरेंगी मुख मुस्कान सलोनी होगी फिर से हँसती धूप खिलेगी दुख की ये रजनी बीतेगी ख़ाली-ख़ाली... नैनों में सपने उतरेंगे दिल जुड़कर फिर से चहकेंगे मिट्टी में फूटेंगे अंकुर फिर बादल खुलकर बरसेंगे लहरेगी हरियाली चूनर रूप सँवारेगी फिर धरती ख़ाली-ख़ाली... टूटेंगे सन्नाटे गहरे पुलकित होंगे साँझ-सवेरे बंधन खुल जायेंगे सारे मन से हट जायेंगे पहरे स्मृतियों की ज्योति जलाऊँ दिव्य - प्रभा अंतस में रखती ख़ाली-ख़ाली.. Written by शिखा गर्ग

"पिय से प्रीत"(कविता)

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रंग भाये न पीला केसरिया मुझे अपने रँग में तू रँग ले सँवरिया मुझे। ये खिली धूप सी,रँग भरी फूल सी ओढ़ लूं  तूने दी जो ,चुनरिया मुझे। शूल भी फूल हों, जो चले साथ तू फिर लगे सार्थक  ये उमरिया मुझे। ना मैं राधा न मीरा नहीं रुक्मिणी हूँ मैं तेरी बना ले बसुरिया मुझे। साथ छोड़ूँ न तेरा कभी भी पिया छोड़ दे चाहे सारी नगरिया मुझे। Written by शिखा गर्ग

"राधा की होरी"(कविता)

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मैया मोरी मँगा पिचकारी तंग करें हैं सखियाँ सारी माखन मिसरी न मोय भावे तू दे चाहे मटकी सारी। मैं भी सबसे होली खेलूं उन पे कारो रंग उड़ेलूं मन में मोरे दुखड़ा भारी मैया मोय मँगा पिचकारी। सबने मिल के मुय रँग डारो कब को जाने कर्ज उतारो तू लाला की है महतारी मैया मोय मँगा पिचकारी। सखियों के सँग रंग लगाये राधा कैसे मुझे खिजाये हँस-हँस के देती है तारी मैया मोय मँगा पिचकारी। उबटन कर मोको नहलायो तूने लाला खूब सजायो कर दी मेरी रंगत कारी मैया मोय मँगा पिचकारी। खूब कही थी रँग ना डारो थोड़ो अपनो गाँव बिचारो नहीं चली नैकउ हुसयारी मैया मोय मँगा पिचकारी। Written by शिखा गर्ग