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"प्रहार"(कविता)

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कब थमेगा सिलसिला' मौत के प्रहार का!  हे प्रभु तिनेत्र धारी' काल के संहार का!  जो यहाँ निर्दोष है' वो भी है 'डरे हुए!  धैर्य अब बचा नही' दर्द है 'प्रलाप का!  दूर कही हंस रहा' काल मुंह फाडे हुए!  बिषम परिस्थिति बनी,  जल रहा दवनाल सा!  मौत ताण्डव करे,  धरा भी अब शून्य है!  अब क्रोध चहुँ ओर है' कुछ कही थमा नहीं!  गरल विष फैला हुआ,  हर तरफ बस 'धुध है!  रक्त पानी बन चला,  कैसा ये संताप है!  लडे तो किससे लडे" जिसका न अस्तित्व है!  कुछ तो अब रास्ता दिखा' मेरे प्रभु तू है कहाँ!  कोई शक्ति ढाल दे,  अस्तित्व को आकार दे!  अब तो अधेरा दूर कर,  प्रकाश ही प्रकाश दे! Written by रीमा ठाकुर

"जीजी"(कहानी)

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जीजी पूर्वी, अरे वो पूर्वी ' अभी तक सोयी है'पूर्वी झटके से उठ बैठी-घडी पर नजर डाली नौ बजे थे! आज इतनी देर तक सोयी रही'पूर्वी काफी देर तक बैठी सोचती रही-उठकर भी क्या करेगी  करोना जो हो गया था! न कुछ काम था! न किसी को छूना था!  ऊपर से फीवर'पैर की पिण्डलिया ऐसी चटख रही थी' दर्द से लग रहा था, जैसे अब पैर टूट जाऐगे' बडी बेटी अब तक चाय ले आयी थी'छोटी मम्मी चाय पी लिजिए नही तो ठण्डी हो जाऐगी'हा बेटा वही रख दो' और हा लापरवाही मत करो कम से कम मास्क तो लगाओ' जी छोटी माँ  दूर से ही निरीहं सी देखते हुए आंखों से ओझल हो गई बेटी'   पूर्वी की आंख अभी लगी ही थी, या दवाईयों का नशा था- पूर्वी पति ने झिझोड दिया-क्या हुआ ऐसी क्यू सोयी हो, पति के माथे पर पसीने की बूदें तैर गई, क्यू क्या हुआ थकी सी आवाज थी पूर्वी की, मै डर गया था! डरो मत मुझे कुछ नही होगा, आप अपना ख्याल रखो, पूर्वी के साथ ही पति जी की भी रिपोर्ट पाजिटिव आयी थी'और दोनो ने खुद को सबसे अलग कर लिया था!  उन्हें पता था, उनकी दूरी से घर के सभी सदस्य सेफ रहेगें, और समझदारी इसी मे थी!  अचानक से मोबाइल ब