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"तकलीफ़"(कविता)

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 जीवन रफ्तार से चलता है तो  कोई किसी के लिए नहीं पलटता है हादसाऐं  सड़क पर होती है और  जीवन दम तोड़ देती हैं।  कोई फंसना नहीं चाहता और पीड़ित को नहीं उठाता है कराहती जीवन पुकारती है उन्हें  जो देख चली जाती हैं  कैसे हृदय पत्थर होता है ? जब कोई इतनी तकलीफ़ में होता है हादसाऐं एक के साथ होती हैं पर जीवन राख अपनों की होती है यदि एक तकलीफ सुन ली जाती है तो ही जीवन ज्योत पुनः जाग्रत हो पाती है कल का भविष्य कोई नहीं जानता है आज वो है वहां तो शायद कल हम भी फिर भी क्यों, कोई भी देखकर भी नहीं पलटता है। Written by  प्रिया प्रसाद