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"नशा उन्मूलन पर दोहे"

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आज अंतर्राष्ट्रीय नशा निरोधक दिवस है।सभी भारत वासियों का, मैं वंदन,अभिनन्दन करता हूँ और एक विनम्र निवेदन करता हूँ कि नशा करने वाले भाईयों,मित्रों,नशे से अति दूर रहें,अगर करते हैं,तो संकल्प के साथ छोड़ दें,यह प्राण लेवा है,रोग दाता है,धन का दुश्मन है,अपमान की जड़ है।आप नशा छोड़ेंगे,निरोगी रहेंगे।      आपके लिये निम्न नशा उन्मूलन पर दोहे,,,, मदिरा से मुख मोड़ लो,है बीमारी खान। जो इससे अति दूर हैं,सोते चादर तान।। भाँग, धतूरा छोड़ि के,पी गौ माँ का दूध। बढ़े ज्ञान,तन मन सहज,भागे भ्रम का भूत।। हुक्का,चिलम न पीजिये,गांजा,चरस,मिलाय। कितने पीकर चल बसे,बहुत रहे हैं जाय।। तम्बाकू जो खात हैं,दाँत आँत दे चोट। कुछ तो असमय भूमि पर,मयंक रहे हैं लोट।। बीड़ी,सिगरेट गन्ध से,महकें वस्त्र नवीन। कितनों का झोपड़ जला,अनगिन घर कालीन।। बहुतायत बर्बाद हैं,राजा बने गरीब। नशा कहे आना नहीं,कोई मयंक करीब।। दर दर ठोकर खात हैं,नशा किये कुछ लोग। उनके तन,मन,उर,बसे,तरह तरह के रोग।। पान मसाला है जहर,फिर भी खाते भाय। जानबूझकर रोग को,तन,उर रहे बसाय।। Written by  मयंक किशोर शुक्ल वरिष्ठ कवि लेखक साहित्य सम्पादक

"विश्व योग दिवस"(दोहे)

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विश्व योग दिवस दिनांक 21,06,2021 के अवसर पर ,सभी भारत वासियों को शुभ शुभ बधाई।पर्याप्त दूरी बनाकर प्रातः काल योग करें,सूर्य नमस्कार करें,सभी स्वजनों के निरोगी रहने की मंगल प्रार्थना करें।आपके लिये निम्न दोहे,,,, तन की कसरत सब करें,मन की करे न कोय। मन से योगा जो करे,दुख काहे को होय।। साँस खींचकर रोकिये,साँस छोड़िये यार। बीस बार जो भी करे,कभी न हो बीमार।। जल सेवन नित भोर कर,चलो मील दो मील। सुंदर कद,काठी रहे,बदन न होवे ढील।। डनलप गद्दा छोड़िये,लेटो तख्ता भूमि। भोर पहर कसरत करो,घूमो दिन भर झूमि।। मेहनत इतना कीजिये,बहे पसीना पीठ। पेट,बदन सुडौल बने,मन होवे निर्भीक।। Written by  मयंक किशोर शुक्ल वरिष्ठ कवि लेखक साहित्य सम्पादक

"बरगद देव जी की सेवा से जुड़े निम्न दोहे"

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महापर्व सावित्री वट वृक्ष की पूजा है।इसे भारत की सुहागिन देवियाँ प्रातः काल हल्दी युक्त पीठे, मीठे गुलगुले,पुष्प, जल,और कच्चे सूत के धागे से 108 बारवन्दन पूजन करतीं हैं,कि प्रभू जी अनन्तकाल तक मेरा सुहाग बना रहे,सुखशांति,समृद्धि,सुयश,कुलवंश की वृद्धि हो,घर के सभी स्वजन निरोगी रहें,आनन्दित रहे ,अपने श्री पति की सम्पन्नता व दीर्घायू हेतु प्रार्थना करती हैं।         वृक्षों में ही देवी,देवताओं का वास है,उनकी देखभाल,सेवा,उनके निकट रहना ही हम सबका धर्म है।वट वृक्ष की पूजा सभी को करना चाहिये।आज के दिन वट वृक्ष की डाल नहीं तोड़ना चाहिये।आज के दिन हम सबको एक नया वट वृक्ष लगाना चाहिये। बरगद देव जी की सेवा से जुड़े निम्न दोहे आपके लिये,,,, नारि सुहागिन कर रहीं,बरगद पूजा आज। अनन्त काल तक पति जिये,बना रहे सरताज।। बरगद बाबा की तरह,शांत रहें श्री मान। जीवन भर सेवा करूं,करूं सधर्म सम्मान।। कच्चा धागा प्रेम का,अर्पण है महराज चरण पखारू आपके,जीवन रखियो लाज।। शुद्ध वायू के देव हो,तन के बहुत विशाल। कृपा रहे आशीष मय,बीतें सुख के साल।। साधु,सन्त,औ ऋषि मुनी,शरण रहे वट वृक्ष। बनें सभी तप,ध्यान से,वह महिमा मंडित

"हनुमान जी के निम्न विशेष दोहे"

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 मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम जी के अनन्य भक्त,वीर वर श्री हनुमान जी के निम्न विशेष दोहे..... चरण पखारें राम के,सुबह शाम हनुमान। विनती मेरी है प्रभू,मिटे तमस अभिमान।। राम पियारे जानकी,कहत देव हनुमान। इनकी पूजा जो करे,बढ़े जगत सम्मान।। साँसों की माला बना,जपते रामहिं राम। उर में बैठे राम हैं,तन है हरि का धाम।। सीतारामी ओढ़कर,करो सुयश के काम। पीडित की पीड़ा हरो,ले हनुमत का नाम।। अक्षर अक्षर राम हैं,शब्द शब्द हनुमान। लिये लेखनी आज लिख,देवों का गुणगान।। महा विपत्ति घेरे खड़ी,विपदा में है जान। अन्तरमन जपते रहो,सुपंचमुखी हनुमान।। मातु ,पिता,गुरुदेव की,सेवा कर लो आज। हनुमत कहते भक्त से,उनमें ही महराज।। जिस घर सीताराम हैं,उस गृह दुखी न कोय। यश,वैभव,धन,धान्य से,पूरित अंगना होय।। दान दाहिने हाथ से,जो करते नर नारि। बिन मांगे मोती मिले, सुवंश बढ़े उजियारि।। इधर देखिये राम हैं,उधर देखिये राम। तन,मन,उर,में राम हैं,अधर बसे सियराम।। Written by  मयंक किशोर शुक्ल वरिष्ठ कवि लेखक साहित्य सम्पादक

"विश्व पर्यावरण दिवस पर विशेष,बहुरंगी दोहे"

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विश्व पर्यावरण दिवस पर, समस्त भारतीयों को ह्रदय से बधाई।एक विनम्र निवेदन,,,कि आप एक पेड़ आज अवश्य लगायें, यदि नहीं लगा सकते,तो लगे पेंड को जल देना न भूलें।लगे पेंड़ की रक्षा करें।यह शुभ कार्य अपने सुखी जीवन के लिये जरूर करें। हरियाली की खान हैं,पर्वत धरती पेंड। नदी किनारे बाग की,बाँधे रखियो मेंड़।। बरगद,पीपल,नीम की,छाया उत्तम जान। देव ऋषी कहकर गये,ये औषधि की खान।। पेड़ों बिन जीवन कहाँ, कहाँ साँस की आश। बिन हरियाली है नहीं,धरा बीच उल्लास।। रेतीली नदिया हुई,केवट पकड़े माथ। भूख,प्यास कैसे मिटे,बोलो भोले नाथ।। पर्वत सूखे हो चले,पेंड नहीं,नहि छाँव। पथिक विमुख होकर कहे,छाले पड़ गए पाँव।। चिड़िया रोती फिर रही,बिन डाली बिन फूल। तितली,भौंरे सोंचते,कैसी उड़ती धूल।। जंगल,बागें कट गयीं,शहर हुये आबाद। खेत,गाँव, पोखर,कुआँ, खेती सब बर्बाद।। पशु पक्षी भूखे दिखे,कहाँ रुकें,कहाँ ठौर। लालच मानव का बढ़ा, कौन खिलाये कौर।। धरती विपदा देखकर,मन विचलित है आज। कूड़ा, कचरा,विष बहे,नाले उगले राज।। बसुधा बंजर हो चली,अधिकारी सब मौन। पेंड कटे,कैसे कहें,अपराधी है कौन।। ए, सी,कूलर,साँस के उर शत्रु बड़े सुन भाय। बगिया माली फूल सं

"दोहे"

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चूल्हे की रोटी गयी,तड़का छौंकी दाल। मठ्ठा मटका से कहे,शहर बन गया काल।। गाँव सिमटते जा रहे,खेत,बाग,खलिहान। गमलों की खेती बढ़ी,ठीक कहें परधान।। कुआँ, ताल,पोखर,नहीं,नहीं गाँव चौपाल। नेता कहते फिर रहे,कृषक बड़ा खुशहाल।। ऊपर नीचे फ्लैट में,रहते भाई चार। बिना बात खुलकर सुबह,होती नित तकरार।। अपनों से नाता नहीं,दिनभर आते फोन। बैंक सेठ पीछे पड़े,अदा करो तुम लोन।। Written by  मयंक किशोर शुक्ल

"होली"(दोहे)

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 होली होली सब करें हो ली बहुत उदास । रो ली कितना आज मैं कंत नहीं जब पास  । । । ।1 । । रंग डारन आई ती किसन दिखे ना पास । पीर पगी पलकन भगी होके सकल उदास  । । । ।2 । । मलते खूब गुलाल हैं डाल घूंघटा हॉथ  । होली खेल अघात नहिं कितनऊं नावैं माथ  । । । ।3 । । रंग लिये राधा खडी़ं तकें किसन की गेल  । हरी कहूं अनते रमें भयो खेल सब फेल  । । । ।4 । । Written by डा० अरुण नागर

"नारी"(दोहे)

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नारी ऐसा मंत्र है,  सिद्ध करे सो सिद्ध, नारी के कारण यहाँ,  होते सभी प्रसिद्ध।  नारी से नर है सभी, नारी से भगवान, नारी के कारण यहाँ, जीवित हर इंसान।  सुन्दर-सुन्दर लाल सब, पाले अपने हाँथ, बदले में उसको मिली, आँसुन की सौगात।  नारी से  ना -री कहें, करें खूब आघात, कितने दुःख है झेलती, हिन्द में नारी जात।  Written by डा० अरुण नागर