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Showing posts from February, 2021

"नवरोज पत्रिका तथा समाचार पत्र"

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  नवरोज पत्रिका के तरफ से आप सभी को सूचित करते हुवे बहुत ख़ुशी की अनुभूति हो रही है की नवरोज पत्रिका पर प्रकाशित रचना को समाचार पत्रों पर प्रकाशित करने के लिए अनुरोध भेजा जाता है। समाचार पत्रों द्वारा आपके सर्वश्रेठ रचनाओं को अपने पोर्टल पर प्रकाशित किये जायगे।  कुछ रचनाये समाचार पत्रों पर प्रकाशित हुए है जो मुख्यतः निचे दिये गए है :- "संघर्ष कर" (कविता)  :  atsyogi "उसकी मुस्कान" (कविता)  :  atsyogi "गुमनाम शायर"(कविता)  :  शायर_मनु_बिहारी "अपनों के जुबां गैरों के कान"(कविता)  :  अविनाश रौनियार "इश्क"(कविता)  :  विजय शंकर प्रसाद

"कील"(कविता)

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  क्षणभंगुरता लिये मंझधारें और है नैया , अंधेरा में तीरों को चलाया जाहिल । शब्दाकाशों के तारें क्या असली खेवैया , मछलियां , नदियाँ और समंदरों तक कुटिल ! चंदा , बादलों की मृगतृष्णा में गैया , फंसे हैं नयन और जीना है मुश्किल । कभी बहा पछिया और कभी बहा पुरवैया , हवा में गर्मी और सूरज पे कील । ख्वाबों से तन्हा हकीकतों की बैया , शूलों पे यकीनें तो कहां जाहिल ? ताकीदें साया इश्क़ हेतु रखवैया , चंदनों पे सर्पों से क्या -क्या हासिल ? जहरीला आईना भी नकलची है भैया , जिस्मों के तले हीं तो दिल । परिंदों का सफरनामा कहाँ तक मैया , कलियाँ हेतु जमीं और साहिल !! गवाही कहां तक दिया है महफिल , खेले जाएंगे कहां जुल्मों की तालतलैया ? कब्रों में नहीं ख्वाहिशों का गवैया , राही राहों से हो पहुंचा मंजिल । Written by विजय शंकर प्रसाद

"इश्क"(कविता)

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अदालतों में अर्जी नुमाइंदगी है , बादल  कहाँ  पे अटकता  है ? मुकामें तलाशी में ठगी है , वादा कुर्सी हेतु लटकता है । सीता होना तो दिलग्गी है , नैतिकता अब बिकता है । बाजारूं आकृतियों की अदायगी है , सियासी सांपों तक उपभोक्ता है । श्रृंगारें दर्पण में गुमशुदगी है , प्यासी मोहिनी सुवर्णांगी भावुकता है । दीवारों तक क्या बंदगी है , आग तले क्या भटकता है ? रंगों पे खेती आवारगी है , धुआं यहीं चिपकता है । नयना में यूं विरानगी है , तन्हाइयों में दिल थिरकता है । फूलों से कहाँ नाराजगी है , कहाँ नहीं मादकता है ? शूलों का चुभना बानगी है , तलाकें  क्यूँ राही बकता है ? क्या यहाँ आजादी आवारगी है , क्या सूरज भी सनकता है ? प्रेयसी ! तू कैसी सगी है , सच्चा  को क्या ढंकता है ? दागी बता क्यूँ ठगी है , झूठा आखिर किसे  पटकता है ? क्यूँ तुझसे  नग्नता उगी है , अंधेरा में क्या नहीं चिपकता है ? भूखे हेतु कहाँ सादगी है , प्यासा क्या -क्या तुझसे लपकता है ? मजबूरी या मर्जी  जिंदगी है , शिकवा जड़ों तक पकता है । परछाइयां जहां रंगी लगी हैं , वहाँ आग कहाँ दुबकता है ? क्या रूहानी रसपानें गंदगी है ,  छलों तक क्या -क्या  टपकता

"होली"(कविता)

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कवयित्री जी ! दुपट्टा लहराया ,  चेहरे की अदा भाया । जुल्फों ने क्या भरमाया , साहिल कैसे है पराया ? छुईमुई सहृदयता क्यूँ पढाया , नींदें हमसे क्यूँ भगाया ? आरोपों से दिल घबराया , लगा कि होली जगाया । इत्रों , हवाओं की काया -  नशा देशहितों पे सुझाया । महफिल को रंगीला बनाया , बारिशों से ख्वाबें नहलाया । अर्जी से मर्जी  माया ,  चंदा ने मुहर लगाया । कविता में  भावी समाया , श्रृंगारें भी आकार पाया । फूलों संग कांटे सहलाया ,  इश्क की व्यथा सुनाया ।  नदियों में मछलियां जायां ,  जालें फंसाने को बढाया । अंधेरा तभी तो चिल्लाया ,  रोशनी हेतु सितारा टिमटिमाया । मांझी गंदगी देखते चेताया , जवानी बहुतों को सताया । आईना दीवारें नहीं गिराया ,  बुढापा ने भी उलझाया । सच्चा मिथ्या से मुरझया ,  आलोचना रूपी फलें खाया । सियासी पहरा क्यूँ आया ,  क्या खुद्दारी है गमाया ? आग नहीं क्यूँ शरमाया , सवालें कैसे है इतराया ? माचिसों की तिल्ली जलाया , समंदरों तक साक्षी छाया । कुर्बानी यूं तस्वींरें नुमायां ,  तपती रेतें  गति लाया । तभी भौरा है गुनगुनाया ,  रसपानें किया और गाया । रातें किसने है थमाया , दिनों में क्या उबाया

"बेड़ियाँ"(कविता)

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उमड़ी चीटियां गोरी नहीं , प्रियतमा ! तस्वींरें निचोड़ी नहीं । इश्क़ तेरा रिश्वतखोरी नहीं , कहीं से चोरी नहीं । कुत्तों संग घोड़ी नहीं , क्या सुना लोड़ी नहीं ? यादें तो थोड़ी नहीं , बेड़ियाँ क्यूँ तोड़ी नहीं ? कल्पना है कोरी नहीं, ख्वाहिशें भी तोड़ी नहीं । रंगमंचों पे डोरी नहीं , खिलती कलियाँ भगोड़ी नहीं । बातें अनकही छिछोरी नहीं , मजदूरी भारी बोरी नहीं । खुद्दारी पा झकझोरी नहीं , अलबत्ता पहेली मरोड़़ी नहीं । कविता कहीं तिजोरी नहीं , अश्कों से त्योरी नहीं । खाली कहना-सुनना थ्योरी नहीं , निशा दांतें निपोरी नहीं । Written by विजय शंकर प्रसाद

"कहीं खो जाएं हम"(कविता)

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रंगीली दुनियां में, रंग बदलते, हर दिन खो जाना मंजूर था तुम्हे, पलटकर देखा ही नहीं पीछे छूट गई खुशियों को, मुस्कुरा कर बाहें फैलाए उन राहों को, कुछ बेरंग से सपनों को जिनमें रंग भर सकते थे हम एक प्रयास मात्र करते और रंग ले सकते थे उगते सूरज से ढलती सुनहरी शाम से तितलियों से, फूलों से, प्रकृति के हर स्वरूप से, मगर नहीं ले सके, क्योंकि हमने चुने  दुनियादारी के रंग, झूंठी मुस्कुराहटें,  और मुखौटों का संग काश लौट आते फिर  हम अपने सपनों की तरफ जहां भरकर मनचाहे रंग  जीवन में,   युगों युगों तक के लिए कहीं खो जाएं हम कल्पनाओं के जहां में। Written by रिंकी कमल रघुवंशी"#सुरभि"

"अपनों के जुबां गैरों के कान"(कविता)

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  जुबां कानों में फुसफुसा रहा हैं मसला क्या हैं धुआं धुआं सा उठ रहा आसमान में जला क्या हैं मेरे घर की बरबादियाँ मेला सी हैं तुम्हारी खातिर हंसते हुए पूछता हूँ कि फ़िर जलजला क्या हैं खुशियां रूठ कर जा रहीं मेरे दुश्मनों के घर ग़म कर रहे मेरे फटे से चादर में बसर खुशियां गम हंसी आँसू इनमें बला क्या हैं सहर बीत गया अब रात ज़ाहिर हुए अदावतें करने में अब दोस्त माहिर हुए रौशनी फ़िर भी ना बुझी तो फ़िर ढला क्या हैं जुबां कानों में फुसफुसा रहा हैं मसला क्या हैं धुआं धुआं सा उठ रहा आसमान में जला क्या हैं Written by  #अविनाशरौनियार

"खुद को खुद से"(कविता)

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 मैं कहीं खो सी गई हूँ खुद को ढूंढना चाहती हूँ  मैं कही से रूठ सी गई हूँ खुद को मनाना चाहती हूँ मैं कही उदास सी हो गई हूँ खुद से मुस्कुराना चाहती हूँ मैं कही ख्यालों में डूब सी गई हूँ खुद को बाहर निकालना चाहती हूँ अब मैं खुद को खुद से ही पाना चाहती हूँ Written by  #लेखिका_पूजा_सिंह

"तेरी कदर नहीं"(कविता)

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तू है तो तेरी कदर नहीं  तू नहीं है तो तेरी कमी महसूस होती है।  वस्तु हो या इंसान क्यों  उसके खो जाने के बाद उसका लिया जाता है नाम।  सामने देख कर भी अनदेखा कर देते वह है तो उस से लड़ जाने को लोग हो जाते तैयार।  उसके जाने के बाद क्यों उसके लिए लड़ने को भी हो जाते हैं तैयार।  क्या यही है लोगों की व्यवहार क्या यही है लोगों की सोच क्या बदलने को भी है लोग तैयार  क्या होता रहेगा ऐसा ही बार-बार या नहीं है इंसानों को समझना आसान।  क्यों, तू है तो तेरी कदर नहीं  तू नहीं है तो तेरी कमी महसूस होती है।  Written by #लेखिका_नेहा_जायसवाल

"Online की रफ्तार"(कविता)

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    न जाने online ये कैसी दोस्ती हो गई अब न जाने उस पर इतना क्यों विश्वास आज online है तो वो कल offline फिर भी दिल में इतनी इक्छाए क्यों ।  क्या मुझमें ही है इतनी उत्सुकता उसमें भी है मुझसे बात करने को ये दोस्ती साल भर की हो गई फिर भी कुछ बाते अधूरी - सी रह गई ।  तेरे साथ online आने से ये समय की रफ्तार मानो कितनी तेजी में हो माना ट्रेन एक स्टेशन से दूसरे स्टेशन अपने राहा की ओर पहुंचती है ।  मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता किस स्टेशन पर है तू समय से लौट आए तू यही इंतजार करती ।  तेरे लेट आने से गुस्सा तो बहुत रहता था मन में तेरा online message आते ही गुस्सा का 'ग' भूल जाती  कुछ ऐसी ही हमारी  online दोस्ती वाली chatting  का संसार  ।  Written by  #लेखिका_पूजा_सिंह

"कल तक"(कविता)

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  कल तक मिल ता उससे रातों में, उठता सुबह मुस्कराते, सपनो में, अब  वो  बात कहाँ।  कल तक घंटो निहारता, रास्तो में पलके बिछाता, उसकी यहाँ आने का, अब  वो  आस कहाँ।  कल तक दिल में उतारता, सीने से लगाता, उस पर मर मिटू, अब  वो  ज्जबात कहाँ। जिंदगी की कशिश में, बड़ी दूर निकल आया हूँ, वापस लौट जाऊ, अब वो औकात कहाँ। Written by  #atsyogi

"प्यार कर के बताया जाय"(कविता)

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प्यार वो नहीं जो कह के बताया जाय! आओ जुदाई को सह के दिखाया जाय!! हुए बदनाम बहुत, इस बेदर्द जमाने में! जमाने बीत जाएंगे कई, ये आबरू पाने में!! दुनिया साली जाए भांड में, तू है सही दिल जानता है मेरा! दुनिया के सवालों को, जिरह कर के बताया जाय!! आओ जुदाई को सह के दिखाया जाय!! बाकूत का कोई नाम नहीं, है सुनना हमारा काम नहीं! पाक बहुत है हमारा रिश्ता, है कोई बदनाम नहीं!! आज खामोशियों से हीं बोल जाएंगे बहुत कुछ! नज़रों के जुबाँ से, कुछ कह के बताया जाय!! आओ जुदाई को सह के दिखाया जाय!! गलती हमारी नहीं, है कुछ बदनाम दीवानों की! मतलब हीं बदल दिए है साले, इश्क़ के फ़साने की!! प्यार में अक्सर पार कर जाते हैं, दरमियां सभी! हम-तुम इस बंदिश-ए-हद्द में रह के दिखाया जाय!! आओ जुदाई को सह के दिखाया जाय!! प्यार वो नहीं जो कह के बताया जाय! आओ जुदाई को सह के दिखाया जाय!! Written by #शायर_मनु_बिहारी