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"कोरोना"(कविता)

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क्या है कोरोना? क्या कोई को रुलाना बस यही है कोरोना? मानवता को दिया झकझोड़ अर्थव्यवस्था का दिया कमर तोड़ मास्क ,सेनिटिज़ेशन, 2 गज़ दुरी रहा सहारा कही छीना दुधमुहे बच्चे से माँ बाप कही माँ बाप का सहारा रुला दिया हर नगर, हर देश ,हर द्वार तू है क्या? तू है नहीं कोई प्राकृतिक प्रकोप तू है चंद शैतानी  ताकतों की तमस, फिर क्या है तेरी बिसात ? अब तू सुन मेरे अल्फाज वुहान से उठा तूफान है तू रुकेगा थमेगा हिंदुस्तान में तू कई विश्वविजेता के सपने हिंदुस्तान में टूटे सिकंदर ने भी यहाँ घुटने टेके तू आया था हमे हराने? पर सीखा गया जीने का सलीका,कम साधनों में जीने का तरीका ज़िन्दगी का फ़लसफ़ा ईश्वर मंदिर ,मस्जिद में नहीं दिलों में है  खुशियां मॉल या सिनेमाघरो में नही घर  में है Written by दीप शिखा