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"पच्चीस साल बाद"(कहानी)

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 पच्चीस साल बाद  आज एक ऐसी सच्ची घटना लिखने का साहस जुटा रही हूं जिसका अंजाम मुझे मालूम नहीं लेकिन दुनिया को बताना चाहती हूं कि जब कोई युवती मां बनती है तो वो सिर्फ "मां " ही नहीं बनती है बल्कि वो एक योद्धा बन जाती है । उसे अपने बच्चें के पालन-पोषण और समुचित परवरिश के लिए किस किस तरह की लड़ाई लड़नी पड़ सकती है यह किसी ने सोचा भी नहीं होगा । 21वीं सदी में भी ऐसे रूढ़ीवादी और दकियानूसी विचारधारा के लोग हो सकते हैं यह बड़ी हैरानी की बात है । मगर सच है एक मां को अपने बच्चें के जीवन रक्षा के लिए लगाए जाने वाले टीकाकरण अभियान को सफल बनाने एवं बच्चें को सुरक्षित करने के लिए एक युद्ध लड़ना पड़ा था । शहर में जन्मी और पढ़ी लिखी लड़की की शादी गांव में हो जाती है । ऐसे गांव में जहां चापा कल चला कर पानी भरना पड़ता था और बिजली की रौशनी और पंखे की हवा के लिए छः छः महीने इंतजार करना पड़ता था । इसका तो एक विकल्प था जेनरेटर खरीद लिया गया और घर को रौशन कर लिया गया लेकिन कुंठित विचार और रूढ़ीवादिता को खत्म करना आसान नहीं था । दो दिन यानी की 48 घंटे बहस के बाद भी नतीजा कुछ नहीं निकला । किसी भी पर

"खुशी की चाहत में"(कहानी)

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गरीब धनपतराय अपने झोपड़ी में बैठे कुछ सोच रहे हैं। उनकी पत्नी विमला पास में चावल साफ कर रही है। बारिश को हुये तीन दिन बीत गए हैं पर आज भी बादल आसमान को ढक रहे हैं, धनपतराय को कोई काम नहीं मिला जिसके चलते बच्चे भूखे हैं। कावेरी उन की यह हालत देखती है और चावल बनाने लगती है।चावल बनाकर वह सबको खिला देती है और फिर काम में जुट जाती है। कावेरी धनपतराय की बड़ी बेटी है, घर में वह सामान्य बोलचाल तथा मेहनती लड़की है। लगातार आठ दिनों की बारिश से घर की हालत बिगड़ती जा रही थी, कावेरी को अत्यधिक निराशाजनक स्थिति की सूचना मिल चुकी थी,उसे जिन्दगी का करीब से एहसास हो चुका था। आज कई दिनों बाद वह काम की तलाश में निकली थी क्योंकि कावेरी समझ चुकी थी कि घर पर रहकर घर की स्थिति में कोई सुधार नहीं होने वाला।क ई दिन भटकने के बाद पास के ही विद्यालय में ही प्राईवेट में जाँब मिल गई और वह वहाँ तीन हजार रुपये मासिक में कार्य करने लगी। यह सूचना उसने अपनी परिवार में देदी। तो पिता कहने लगे-"तु नौकरी करन जाहे।" कावेरी ने संक्षिप्त"हाँ"में उत्तर दिया। पिता -"पर बिटिया तोहे नौकरी करन कीका जरूरत, ई गाँ

"सपना की बारात भाग-2"(कहानी)

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सपना की बारात भाग-2 आपने पढ़ा कि एक बार शादी टूटने के बाद सपना का पुनः विवाह तय होता है।अब आगे-------- बारात दरवाजे पर आती है, उसका स्वागत किया जाता है।ईधर सपना भी तैयार होतीहै। ईधर सपना तैयार होही रही है कि उधर जयमाल के समय मुखिया ने अपनी माँग बढ़ा दी। सुखराम ने जब अपनी असमर्थता जताई तो मुखिया ने शादी से इन्कार कर दिया।शिवा ने भी अपने पिता को समझाने का पूरा प्रयास किया पर मुखिया निर्मम बने रहे। यह बात घर के अन्दर जाते-जाते सपना तक पहुँच जाती है, गुस्से और दुख से भरी वह वहाँ पहुँच जाती है जहाँ शिवा और उसके पिता दोनों ही मुखिया से अनुनय-विनय कर रहे हैं, पर वह पत्थर की भाँति अपने जिद् पर टिके हुए हैं।उन्हें केवल अपनी जिद् ही प्यारी है। ऐसे में जब सपना वहाँ पहुँचती है तो सब उसे देखने लगते हैं।सपना अपने पिता के पास जब उँची आवाज में चिल्लाती है तो सब चुप हो जाते हैं--- सपना अपने पिता से सम्बोधित होकर कहती है कि---"पिताजी बस कीजिए कहाँ तक आप इनकी विनती करेंगे और कब तक इनकी माँग पूरी करेंगे।खिलौना समझ रखा है इन्होंने जब चाहा खिलौना ले लिया, जब चाहा फेंक दिया तो ऐसा करना यह भूल जाये क्योंकि

"सपना की बारात भाग-1"(कहानी)

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सपना की बारात भाग-1 प्रयाग क्षेत्र के छोटे से गाँव में सुखराम का परिवार रहता था। सुखराम के तीन लड़कियाँ और दो लड़के हैं, बड़ी बेटी सपना है फिर सोहना, रमेश,मुकेश और संजना हैं। लेखराज किसान है ,किसानों की दशा आज क्या है यह किसी से छिपी नहीं है,इसलिए सुखराम के पास सम्पत्ति नहीं है। सपना गोरी रंगत,कटीले नैन नक्श और सबकी नजरों में उतरने वाली लड़की है, वहीं सोहना साँवली ,तीखे नैन नक्श की थी, संजना सपना और सोहना की मिली जुली  मूरत थी,बातें करने में दोनों से ही  अधिक है। रमेश और मुकेश दोनों ही सज्जन एवं विनम्र स्वाभाव के थे। सपना एम.ए. कर रही है,वह वहीं काँलेज के छात्रावास में रहती है।उसका मित्र सोनू है जो हर सुख-दुख में धीरज बाँधता हैं। सुबह-सुबह सपना कालेज की पुस्तकालय से पुस्तक निकाल कर लाती है तो सोनू उसे मिल जाता है- सोनू---सपना यह अच्छा है कि तुम मेरे रास्ते में आकर खड़ी हो जाती हो। सपना-रास्ते में मैं नहींआप आये हैं जनाब, मैं तो अपने रास्ते से जा रही थी।चलिए माना कि मैं आपके रास्ते में आई थी पर आपको बोलने की क्या जरूरत थी? सोनू-क्या करें न बोलते तो आप नराज हो जाती फिर माफी माँगनी पड़ती, माफी

"जीजी"(कहानी)

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जीजी पूर्वी, अरे वो पूर्वी ' अभी तक सोयी है'पूर्वी झटके से उठ बैठी-घडी पर नजर डाली नौ बजे थे! आज इतनी देर तक सोयी रही'पूर्वी काफी देर तक बैठी सोचती रही-उठकर भी क्या करेगी  करोना जो हो गया था! न कुछ काम था! न किसी को छूना था!  ऊपर से फीवर'पैर की पिण्डलिया ऐसी चटख रही थी' दर्द से लग रहा था, जैसे अब पैर टूट जाऐगे' बडी बेटी अब तक चाय ले आयी थी'छोटी मम्मी चाय पी लिजिए नही तो ठण्डी हो जाऐगी'हा बेटा वही रख दो' और हा लापरवाही मत करो कम से कम मास्क तो लगाओ' जी छोटी माँ  दूर से ही निरीहं सी देखते हुए आंखों से ओझल हो गई बेटी'   पूर्वी की आंख अभी लगी ही थी, या दवाईयों का नशा था- पूर्वी पति ने झिझोड दिया-क्या हुआ ऐसी क्यू सोयी हो, पति के माथे पर पसीने की बूदें तैर गई, क्यू क्या हुआ थकी सी आवाज थी पूर्वी की, मै डर गया था! डरो मत मुझे कुछ नही होगा, आप अपना ख्याल रखो, पूर्वी के साथ ही पति जी की भी रिपोर्ट पाजिटिव आयी थी'और दोनो ने खुद को सबसे अलग कर लिया था!  उन्हें पता था, उनकी दूरी से घर के सभी सदस्य सेफ रहेगें, और समझदारी इसी मे थी!  अचानक से मोबाइल ब

"कलेजे की बेबसी"(कहानी)

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 कलेजे की बेबसी ,,माँ,,,,,,, माँ,,,,,, मै  आरहा हूँ माँ ,,,,,, ,मै आरहा हूँ माँ ,,,,,,,,,,,,चीख रहा था साहिल। उसकी चीख की गूंज ने  दिल्ली के नुमाइन्दों की कुर्सी तक हिला कर रख दी थी। लोक सभा का कार्य कुछ समय के लिए स्थगित कर दिया गया था। प्रधान मंत्री जी खुद इस केस को हैण्डल कर रहे थे। उनकी सख्त हिदायद थी कि '' साहिल की फांसी से पहले इस केस से जुड़ी कोई खबर  बाहर मिडिया में  नहीं आनी  चाहिए। '' इसी बात ने  मीडिया में तहलका मचा रखा था कि आखिर ऐसा क्या गुनाह किया है साहिल ने। पेपर ,मैगजीन ,रेडियो ,टी वि सब  एक ही जगह रुक गए थे।पूरा देश साँसे  रोके इस कार्य कर्म की गति विधियों को देख ,सुन रहा था।   पहली बार फांसी का लाइव शो दिखाया जाने बाला  था। ऐसा अनोखा केस न कभी देखा, न सुना गया था। स्तब्ध था पूरा देश ,,,,,,                     दिल्ली के   प्रगति   मैदान में पहली बार मौत का  नजारा जशने आम था। भारत के इतिहास में पहली बार खुले मैदान में फाँसी की सजा दी जा रही थी। लाखों के संख्या में भीड़ जमा थी।  सब की नजरें स्टेज पर लटकते फाँसी के फंदे पर थी और मन  हजारों सवालों के बीच घि

"Special कौन"

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 Real Life Story ऐसे boy का क्या फायदा जो अपनी Sister की Care और Help न करें ? Sister :- भाई देख ना मेरा phone 1 Week हो गए नहीं चल रहा अब तो चला जा  Brother :- हां ठीक है शाम को चला जाऊंगा Sister :- अब शाम से कल हो जाएगा तेरा Brother :- आज पक्का Sister :- आज भी देख लेती हूं तुझे Naxt day No response next day to next day Sister :- किसी Phone ठीक करने वाले को Shop's में दे आ Brother :- नहीं में नहीं जा रहा Sister :- Please चल ना मैं किसी अच्छे Storekeeper को नहीं जानती Brother :- ठीक है मैं बाद में चला जाऊंगा Sister :- कब तक बाद-बाद करेगा और ये बता दें ? Brother :- अब मैं नहीं जा रहा Sister :- Oye चला जा ना भाई Please Request for you Brother :- 😡खुद नहीं जा सकती है ज्यादा मत बोला कर Sister :- 😠 पहले ही बता देता नहीं करावाएगा तो मैं किसी और को बोल देती Brother :- तो अब क्या करवा ले Sister :- ठीक है कम बोल अब Brother :- Okay Sister :- Phone Storekeeper का कौन-सा अच्छा है ये बता अब ? Brother :- ---No response--- Sister :- मत बोल ? मुझे अब कोई काम भी मत बोलियों तु अपना 😤 Storekeeper

"राहुल के उद्धरणों का नोट्स"

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 128 वीं राहुल सांकृत्यायन जयंती   __________ ◆राहुल के उद्धरणों का नोट्स : गोलेन्द्र पटेल◆ ------------------------------------------------------- प्रखर शोधार्थी, महान घुमक्कड़, दार्शनिक, भाषाविद्, चिंतक, साम्यवादी, किसान नेता, भारत के व्हेनसांग राहुल सांकृत्यायन का जन्म आज ही दिन 9 अप्रेल 1893 को पंदहा, आजमगढ़ में हुआ था। इनका नाम केदार पांडे था। आरंभिक शिक्षा के दौरान बाल विवाह हुआ और इससे रुष्ट केदार ने यह पंक्तियाँ सुन लीं -  सैर कर दुनिया की गाफिल, जिंदगानी फिर कहाँ जिंदगानी रह भी गई तो नौजवानी फिर कहाँ....! सतमी के बच्चे, वोल्गा से गंगा, बहुरंगी मधुपुरी, कनैला की कथा, बाईसवीं सदी, जीने के लिए, सिंह सेनापति, जय यौधेय, भागो नहीं दुनिया को बदलो, मधुर स्वप्न, राजस्थान निवास, विस्मृत यात्री, दिवोदास, मेरी जीवन यात्रा, सरदार पृथ्वीसिंह, नए भारत के नए नेता, बचपन की स्मृतियाँ, अतीत से वर्तमान, स्तालिन, लेनिन, कार्ल मार्क्स, माओ-त्से-तुंग, घुमक्कड़ स्वामी, मेरे असहयोग के साथी, जिनका मैं कृतज्ञ, वीर चंद्रसिंह गढ़वाली, सिंहल घुमक्कड़ जयवर्धन, कप्तान लाल, सिंहल के वीर पुरुष, महामानव बुद्ध, लं

"अस्थि-कलश"(कहानी)

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अस्थि-कलश घर के वातावरण को देखकर कोई भी यह नही कह सकता है कि तीन दिन पहले ही इस घर में मेरी माँ की मृत्यु हुई हैं। माँ की मृत्यु पर भाई-बहिन, बेटे-बेटियाँ, व सभी नजदीकी रिश्तेदारों ने रो-रो कर बुरा हाल कर दिया था व ऐसा लग रहा था कि इस गंभीर सदमें से पूरा परिवार शायद जीवन भर नही उबर पायेगा मगर यह क्या अभी तो माँ की मृत्यु को तीन दिन भी नहीं हुए थे कि घर में जश्न जैसा माहौल लगने लगा।  माँ का अन्तिम संस्कार कर घर आने के बाद रात्रि को मेरी चारो बुआएँ मेरे पास आई और बोली- बेटा भारी वज्रपात हुआ हैं मगर उसकी आत्मा की शांति के लिए सभी संस्कार विधिवत रूप से सम्पन्न करना ही उन्हें सच्ची श्रद्धाजंली देना है। इसी कड़ी में चारो बुआएँ यह कहना नहीं भूली कि माँ की अस्थियों को शीघ्र हरिद्वार में विधि-विधान से गंगा में विसर्जित किया जाना आवश्यक है।  वे अपने साथ हरिद्वार यात्रा का पूरा कार्यक्रम लिख कर लाई थी जिसका पर्चा मुझे पकड़ा दिया जो रात को सोने से पूर्व मैनें देखा तो मेरा मँुह खुला का खुला रह गया और मेरी आंखो से नींद गायब हो गई। पर्चे में पूरी हरिद्धार यात्रा का वर्णन था जिसमें जाने वाले लगभग सभी

"जिंदगी से एक मुलाकात"(कहानी)

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 जिंदगी से एक मुलाकात "दीपा जल्दी से रुमाल दे यार,,,,,,ऐसे ही लेट हो रहा हूँ। डॉ से भी मिलना है " संदीप ने तेज आवाज में कहा ।। "आई,,,,,,,,,,,,"  कहती हुई मैं  जब तक  प्रेस  से रुमाल सूखा कर ले कर आई ।तब तक संदीप गाड़ी लेकर निकल गए ।दुनियां इधर की उधर हो जाये पर ये  जनाब एक मिनिट लेट नही हो सकते  । मैं भी क्या करूं चार दिनों  से लगातार बारिश हो रही है , कपड़े सूख ही नहीं रहे हैं ।  कई दिनों से धूप  का नामोनिशान ही नहीं है। मुझे संदीप पर बहुत गुस्सा आरहा था  ।  वैसे ही  आज  मूड बहुत खराब था कुछ भी अच्छा नही लग रहा था । मन बहुत भारी हो रहा  था ।मैं कुछ समय के लिए  सब से दूर एकांत में कुछ पल  खुद के साथ रहना चाहती थी । सब काम यूँही  अधूरा छोड़ कर  मैं  छत पर चली गई ।  हल्की बूंदाबांदी हो रही थी पर उसकी परवाह किये बिना मैं छत पर जाकर काफी समय तक आँखें बंद कर  खड़ी रही । मेरे अंदर के तूफान  से आहत मेरा अशांत  मन शान्त होने का नाम ही नही ले रहा था।             कल शाम जब से बिमला दीदी  से मिली  । मन किसी काम में नहीं लग रहा था। रात भर  उनका उदास  बुझा- बुझा चेहरा बार -बार आँखों