Posts

Showing posts with the label सरिता कुमार

"ज़ख़्म"(कविता)

Image
मुझे इल्म नहीं  उनके ज़ख्मों का  जो घायल होते रहें  मेरी तिमारदारी में  मरहम लगाते लगाते  मेरे ज़ख्मों पर  खुद ही ज़ख्म बन गए  बेखबर रहें हम अब तलक  ज़ख़्म उनका नासुर बन गया  इंतजार रहा होगा उन्हें  मेरे ठीक होने का  और अब वो खुद बीमार हो गए  इल्म नहीं था उनके जख्मों का  वरना ............................... हम अपनी जान ही ले लेते  मगर उन्हें दर्द नहीं देते । Written by  सरिता कुमार

"पच्चीस साल बाद"(कहानी)

Image
 पच्चीस साल बाद  आज एक ऐसी सच्ची घटना लिखने का साहस जुटा रही हूं जिसका अंजाम मुझे मालूम नहीं लेकिन दुनिया को बताना चाहती हूं कि जब कोई युवती मां बनती है तो वो सिर्फ "मां " ही नहीं बनती है बल्कि वो एक योद्धा बन जाती है । उसे अपने बच्चें के पालन-पोषण और समुचित परवरिश के लिए किस किस तरह की लड़ाई लड़नी पड़ सकती है यह किसी ने सोचा भी नहीं होगा । 21वीं सदी में भी ऐसे रूढ़ीवादी और दकियानूसी विचारधारा के लोग हो सकते हैं यह बड़ी हैरानी की बात है । मगर सच है एक मां को अपने बच्चें के जीवन रक्षा के लिए लगाए जाने वाले टीकाकरण अभियान को सफल बनाने एवं बच्चें को सुरक्षित करने के लिए एक युद्ध लड़ना पड़ा था । शहर में जन्मी और पढ़ी लिखी लड़की की शादी गांव में हो जाती है । ऐसे गांव में जहां चापा कल चला कर पानी भरना पड़ता था और बिजली की रौशनी और पंखे की हवा के लिए छः छः महीने इंतजार करना पड़ता था । इसका तो एक विकल्प था जेनरेटर खरीद लिया गया और घर को रौशन कर लिया गया लेकिन कुंठित विचार और रूढ़ीवादिता को खत्म करना आसान नहीं था । दो दिन यानी की 48 घंटे बहस के बाद भी नतीजा कुछ नहीं निकला । किसी भी पर

" 'पापा' तुम भी इंसान हो"(कविता)

Image
तुम कहते क्यों नहीं  अपनी व्यथा बताते क्यों नहीं  अंतस मन की ज्वालामुखी को दबाते क्यों हो  खुद को उस अग्नि में जलाते क्यों हो  माना की तुम मर्द हो मगर क्या तुम्हें दर्द नहीं होता ? होता है दर्द , कराहते हो , तड़पते हो और भीतर भीतर खोखले होते हो तुम  भले ही इल्म नहीं है इस बात का  मगर मुझे पता है तुम पीड़ित हो  ये कैसा दंभ है या वहम है कि तुम मर्द हो  तो सहज सरल इंसान नहीं हो सकते  मर्द से पहले एक जीव हो हाड़ मांस का पूतला हो  बिल्कुल हमारी तरह  बस बाहरी संरचना मुझसे भिन्न है  मगर तुम मेरे जैसे ही हो  वो तमाम भावनाएं और संवेदनाएं हूबहू वैसे ही महसूस करते हो  मैं तुम्हारे कंधे पर सर रखकर उतार लेती हूं  तुम भी अपनी परेशानी कह दो ना  मुझमें अधिक है सहनशक्ति  यकीन मानो  तुम्हारे मन का बोझ सहन कर सकती हूं  वहन कर सकती हूं  तुम्हारी ऊर्जा लेकर पली बढ़ी हूं  तुमसे ही सीखा है जंग जीतना  ज़ख्म सहकर मुस्कुराना  और मुस्कुरा कर गम को हवा में उड़ाना ...... बांट लो ना थोड़ा थोड़ा  मेरे हिस्से का दर्द चुराने वाले  थोड़ी तकलीफ़ दे दो ना मुझे  कद तुम्हारा छोटा नहीं होगा  सर मेरा कुछ हल्का होगा  वो मुस्क

"धुंआ"(कहानी)

Image
धुंआ रात के दो बजे थें मैं बालकोनी में खड़े होकर बाय कर रही थी अपनी बेटी को चार बजे की फ्लाइट थी एयरपोर्ट पास में ही है लेकिन उसे पहले रिपोर्ट करना होता है । सातवें महलें से नीचे पहुंच गयी थी ड्राइवर ने सूटकेश पीछे रखा और गेट खोला । इशू ने मुझे बाय किया और बैठ गई । मैं पलट कर कमरे में आने को थी कि बगल वाली बालकोनी पर नजर टिक गई आंखें खुली की खुली रह गई । निशा सिगरेट पी रही थी और छल्ले बना बना कर उड़ा रही थी । खोई खोई सी न जाने किस शुन्य में कुछ तलाशती हुई आंखें जमाई रही उसे यह एहसास तक नहीं हुआ कि मैं खड़ी हूं । शायद किसी उलझन में है , कोई तनाव , कोई परेशानी जरूर है वरना मुझे देखने बाद चुप नहीं रहती । "हाय आंटी " इतने प्यार से बोलती तो मेरा मन भी आनंदित हो जाता । जब भी इशू ड्यूटी पर रहती और निशा घर पर तो हम साथ साथ खाना खाते थें । कभी वो कुछ बनाकर ले आती , कभी इसी एड्रेस पर आर्डर कर देती या कभी मेरे किचन में ही खुद से कुछ बनाकर खिलाती । मुझे बिल्कुल काम नहीं करने देती । निशा पड़ोसी भी है और एक ही एयरलाइंस में जॉब करने की वजह से कलिग है लेकिन मेरे साथ जिस तरह रहती है जैसे वो भ

"अंश"(कविता)

Image
जिसे पलकों में  छुपाया था  गोद में पाला था  उतार कर गोद से  चलना सीखाया था  बड़े तसल्ली से छोड़ा है संसार के बीहड़ जंगल में  विशाल सागर में और  अनंत आकाश में  स्वच्छंद उड़ान भरने को  चलो अपने सफ़र पर  नहीं करना किसी से आस रखना तुम मुझ पर विश्वास  बंधी हुई है डोर मुझसे उड़ो तुम बेख़ौफ़ ............... जब कभी तलब महसूस होगी  मैं मौजूद मिलूंगी तुम्हें तुम साबित कर देना  अंश हो मेरी  मेरी शिक्षा दीक्षा का प्रमाण बनना  जग में अपना नाम करना ......... मैं पत्थर हूं तुम्हारी नींव की  यथावत रहूंगी  चिरस्थाई हूं जब भी घेरेंगे गम के बादल  मेरी आगोश में खुद को पाओगी  चलों सफ़र पर पूरे यकीन के साथ  रौशन सारा जहां करोगी  तुम अंश हो मेरी  हर पल जुड़ी रहोगी ....। Written by  सरिता कुमार

"इंतजार"(कहानी)

Image
शिमला के माल रोड पर रितेश बहुत संभल संभल कर कार चला रहा था । पहली बार ऐसी घुमावदार सड़कों का पाला पड़ा था । उसने देखा दोनों तरफ  बड़ी अच्छी हरियाली थी । खुशगवार मौसम हसीन वादियां ऐसे में एफ एम पर गाना बजने लगा किसी नज़र को तेरा इंतज़ार आज भी है ...... और ऐतबार फिल्म की शूटिंग भी शिमला की है । कुछ पल के लिए उसका ध्यान इधर उधर हुआ और देखते ही देखते दुर्घटना हो गई .... एक वृद्ध महिला कार से टकरा गई । ग़लती उस महिला की ही है लेकिन जनता कार सवार को ही घेरती है और सौ बखेड़े खड़ा कर देती है । जल्दी से ब्रेक लेकर गाड़ी रोकी और उस महिला को उठाकर देखने की कोशिश की कहीं लगी तो नहीं ? मगर उठाते ही वो झूल गई .... बिल्कुल फिल्मी स्टाइल में ..। चोट तो कहीं नहीं लगी थी लगती भी कैसे कार से दूर वो गिर गई थी शायद डर से हर्ट अटैक आ गया होगा ? जो भी हो यहां से लेकर किसी हॉस्पिटल में तो जाना ही होगा फिर इनके मोबाइल से इनके घर पर सूचना देनी होगी । कुछ लोग इकट्ठे हो गए पुलिस से पहले ही तहकीकात शुरू कर दी थी वो तो अच्छा हुआ किसी ने हॉस्पिटल का रास्ता बता दिया और बिना देरी किए हाॅस्पिटल में एडमिट किया इलाज भी श