धुंआ रात के दो बजे थें मैं बालकोनी में खड़े होकर बाय कर रही थी अपनी बेटी को चार बजे की फ्लाइट थी एयरपोर्ट पास में ही है लेकिन उसे पहले रिपोर्ट करना होता है । सातवें महलें से नीचे पहुंच गयी थी ड्राइवर ने सूटकेश पीछे रखा और गेट खोला । इशू ने मुझे बाय किया और बैठ गई । मैं पलट कर कमरे में आने को थी कि बगल वाली बालकोनी पर नजर टिक गई आंखें खुली की खुली रह गई । निशा सिगरेट पी रही थी और छल्ले बना बना कर उड़ा रही थी । खोई खोई सी न जाने किस शुन्य में कुछ तलाशती हुई आंखें जमाई रही उसे यह एहसास तक नहीं हुआ कि मैं खड़ी हूं । शायद किसी उलझन में है , कोई तनाव , कोई परेशानी जरूर है वरना मुझे देखने बाद चुप नहीं रहती । "हाय आंटी " इतने प्यार से बोलती तो मेरा मन भी आनंदित हो जाता । जब भी इशू ड्यूटी पर रहती और निशा घर पर तो हम साथ साथ खाना खाते थें । कभी वो कुछ बनाकर ले आती , कभी इसी एड्रेस पर आर्डर कर देती या कभी मेरे किचन में ही खुद से कुछ बनाकर खिलाती । मुझे बिल्कुल काम नहीं करने देती । निशा पड़ोसी भी है और एक ही एयरलाइंस में जॉब करने की वजह से कलिग है लेकिन मेरे साथ जिस तरह रहती है जैसे वो भ