"जीवन नव किसलय हुआ नहीं"(कविता)

 जीवन नव किसलय हुआ नहीं 

मन भ्रमित हुआ है अंधकार में 

रश्मिया कहीं पर दिखीं नहीं 

मद मस्त रहा मानव खुद में 

फिर पंखुड़ियाँ कभी खिलीं नहीं 

जीवन नव किसलय हुआ नहीं 


जिन शाखाओं पें अभिमान हमें 

उस फल के हम हकदार नहीं 

जो जड़ चेतन से अलग हुआ 

उसका पुनः निर्माण नहीं 

जीवन नव किसलय हुआ नहीं

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