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"मां भारती"

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  उत्तर में पग हिमालय, पूरब में ब्रह्मा के पुत्र, पश्चिम में ऊंचा सरदार खड़ा, दक्षिण में सागर पांव पखारती, जय भारती, मां भारती, जय भारती, मां भारती । जब ! हुणो ने हुडदंग मचाया, यूनानो ने चूमी थी धरा, तब! गुप्त-मौर्या ने शस्त्र उठाया, लहू से लाल किया था धरती, जय भारती, मां भारती, जय भारती, मां भारती । अंग्रेजो ने उधम मचाया, पानी सर ऊपर आया, भगत-लक्ष्मी ने शीश चढ़ाया, सीना ताने खड़ा रहा अहिंसक-शांति, जय भारती, मां भारती, जय भारती, मां भारती । सिंधु-हुगली-नर्मदा-कावेरी का जल, वादियों से फूलो का हार, निच्छावर कर अपना संसार, स्वयं का बलिदान करू हे भारती, जय भारती, मां भारती, जय भारती, मां भारती । Written by #atsyogi  (16/02/2021)

"उठा झोला बाजार चले"(कविता)

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आ चल थोड़ी हसी-मजाक बने, अपमान-सम्मान को जेब मे रख, चेहरे पर मुस्कान लिऐ, उठा झोला बाजार चले। थोड़ी सी आलू, थोड़ी सी टमाटर, एक झोले में रखने का अभ्यास करे, उठा झोला बाजार चले। नमक भी रख, मिर्च भी रख, स्वादानुसार इस्तेमाल कर, पीठ पीछे मजाक बहुत होंगे, फिर भी हम मुस्कुराते हुवे चले, उठा झोला बाजार चले। प्लास्टिक भी मिलेगा, कागज भी मिलेगा, ना ना ना बेवजह हाथ न लगा, झोला शान से आगे बढ़ा, आ चल गर्व से शीश उठा चले, उठा झोला बाजार चले। Written by #atsyogi

"जवानी - जवानी नही"(कविता)

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ठहर जाए ! कि सड़ जाए ! वो गंगा की पानी नही। सहम जाए ! कि ना डरे ! वो शेर की दहाड़ नही। छड़ में, निकल जाए ! कि बह जाए ! वो मर्द की आंसू नहीं। रुक जाए ! कि भयभीत हो ! वो संघर्ष की कहानी नही। ठोकर लगे ! कि दूर जा गिरे ! वो पर्वत - पहाड़ नही । मिट्टी का पुतला ! कि मिट्टी में ना मिले ! ऐसी कोई होनी नही । डर जाए ! कि झुक जाए ! ऐसी, वो जवानी - जवानी नही । Written by  #atsyogi

"रक्षक ही भक्षक"(कविता)

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#justiceforsujeet  सोशल मीडिया की ताकत सबके पास है, यकी नहीं तो एक पहल कीजिये और तब देखिये  🙏🙏🙏 जब रक्षक भक्षक बन जाये, शर्म हया भी पी जाये, घमंड के मदिरे पान में, मदमस्त अंधा हो जाये  तब पहल हमें ही करना होगा, हिंसा हो या अहिंसा, हर एक मार्ग अपनाना होगा, कर्त्तव्य विमुक्त रक्षक को, कर्त्तव्य याद दिलाना होगा  आओ धरा पर एक साथ पग रखे, की धरती डगमग-डगमग डोल जाये  नींद खुले रक्षक का, घमंड नशा का चूर हो, अब बस करो बहुत हुआ, आत्मा भी उसका बोल जाये  Written by #atsyogi

"अंतिम चेतावनी"

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ना रुकूंगा, ना झुकूंगा, यदि तलवार चली गर्दन पर, धड़ मेरा संग्राम मचाएगा।  खुनो की होली होगी, हाहाकार मचेगी रन भूमि में, यदि रथ जिधर मुड़जायेगा।  सुनो ओ गीदड़ो के झुण्ड, यदि ललकारा शेर को, तुम्हारा वर्त्तमान क्या? भविष्य भी पछतायेगा।  छल से दूर किया योद्धा को, ग्लानि नहीं है आँखों में, यदि पिता नहीं तो क्या ? पूत रणभेरी बजायेगा।  कदम रखा हूँ रणभूमि में, कहाँ, कैसी है विहु गीदड़ो की? यदि चढ़ा बाण धनुष पर, हर चक्रविहु खंड-खंड होजायेगा।  वीर पुत्र हूँ, ना जख्म से विचलित होता, मृत्यु का सिंगार हूँ करता, यदि धराशाही हुआ तो क्या ? वीरगति प्रापत किया कहलायेगा।    आशीर्वाद शुभद्रा मैया का, भुजाओ में बल पिता अर्जुन का, तिलक खु से स्वम किया, अंतिम चेतावनी देता अभिमन्यु, ठहर जा, सम्भल जा, नहीं तो कतरा-कतरा लहू, मिट्टी में मिलजायेगा।  नर-नरमुंडो की ढ़ेरी लगेगी, लह-लहूलुहान नदी बहेगी, त्राहि-त्राहि-माम रणभूमि में क्या? पूरी धरती पर त्राहि-माम मच जायेगा। Written by  #atsyogi

"नवरोज पत्रिका तथा समाचार पत्र"

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  नवरोज पत्रिका के तरफ से आप सभी को सूचित करते हुवे बहुत ख़ुशी की अनुभूति हो रही है की नवरोज पत्रिका पर प्रकाशित रचना को समाचार पत्रों पर प्रकाशित करने के लिए अनुरोध भेजा जाता है। समाचार पत्रों द्वारा आपके सर्वश्रेठ रचनाओं को अपने पोर्टल पर प्रकाशित किये जायगे।  कुछ रचनाये समाचार पत्रों पर प्रकाशित हुए है जो मुख्यतः निचे दिये गए है :- "संघर्ष कर" (कविता)  :  atsyogi "उसकी मुस्कान" (कविता)  :  atsyogi "गुमनाम शायर"(कविता)  :  शायर_मनु_बिहारी "अपनों के जुबां गैरों के कान"(कविता)  :  अविनाश रौनियार "इश्क"(कविता)  :  विजय शंकर प्रसाद

"कल तक"(कविता)

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  कल तक मिल ता उससे रातों में, उठता सुबह मुस्कराते, सपनो में, अब  वो  बात कहाँ।  कल तक घंटो निहारता, रास्तो में पलके बिछाता, उसकी यहाँ आने का, अब  वो  आस कहाँ।  कल तक दिल में उतारता, सीने से लगाता, उस पर मर मिटू, अब  वो  ज्जबात कहाँ। जिंदगी की कशिश में, बड़ी दूर निकल आया हूँ, वापस लौट जाऊ, अब वो औकात कहाँ। Written by  #atsyogi

"संघर्ष कर" (कविता)

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बढ़ा  कदम इतिहास रच, गर हो जज्बात, तो संघर्ष कर।  नदियाँ क्या,  चढ़ा पाल, सागर को भी पार कर, गर हो हिम्मत, तो लहरों से संघर्ष कर।  टीले या पर्वत क्या, हिमालय भी शीश झुका देगा, निर्णय तो कर, बढ़ा कदम संघर्ष कर।  बारिशों में क्या, तूफानों में भी अपनी चमक बिखेर, गड़गड़ाहट के साथ धरती को रोशन कर, दिया नहीं, बिजली सा संघर्ष कर।  लकड़ी की आग क्या, तू ज्वालामुखी है, उसके शोलो सा धधक, गर है आग, तो सूर्य के तेज से संघर्ष कर।  बढ़ा  कदम इतिहास रच, गर हो जज्बात, तो संघर्ष कर।  Written by  #atsyogi

"उसकी मुस्कान" (कविता)

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जब मैंने देखी उसकी मुस्कान, थम सी गई जमी - आसमां, थम सा गया पूरा जहान, थम सी गई ये रास्ते, थम सी गई मेरी सांसे, थम सा गया रवि का तेज, थम से गये ये पेड़।  वो सच है या जूठ  ये तो पता नहीं, पर मेरी आँखे ढूढ़े उसको, इस जहान में, पेड़ो के ओट में, इन पथरीली वादियों में, दिन के उजालो में, इन खामोश रास्तो में, खुद की सांसो में।  मैंने सोचा मेरी कल्पना है, मेरा सपना है, जैसे बिन मौसम की बारिश है, बिन आत्मा की शरीर है, बिन तीरो की तरकस है, बिन सूरज की लाली है।  जब मै मुड़ कर देखा, वो सच थी, मेरे होस उड़ाते, उसके चेहरे सच थे, उसकी खूबसूरती सच थी, उसकी नीली आँखे सच थी, उसकी यौवन सच थी, उसकी मुस्कान सच थी   ।  देखते ही उसकी मुस्कान,   मेरे धड़कन रुक से गये, थम सी गई धरती, थम सा गया आसमां, थम सा गया आसमां, थम सा गया आसमां।  Written by  #atsyogi  (06/02/2015)

"इस दुनिया से परेशान" (कविता)

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इस दुनिया से परेशान, यहाँ के लोगो को देख हैरान।  जो है झूठा, वह है पहलवान, जो सच्चा उसका कोई नहीं कद्रदान, जो है विकलांग, वह तो बहुत है हैरान-परेशान, जो नहीं विकलांग, वह सबसे बड़ा सैतान।  इस दुनिया में, जो मेहनत करता, वह रहता परेशान, जो मेहनती नहीं, उसके सभी है कद्रदान, परिवर्तन तो बहुत हुवे, लेकिन सबसे परिवर्तनशील इंसान।  यहाँ झूठ मलेरिया जैसे रोगो की तरह फ़ैल रहा, और सच का दिखता अंतिम निशान, झूठ को बदलने को कोई हो तैयार तो कैसे, क्यों की यहाँ हरतरफ है झूठे इंसान।  पूछा था बीरबल से अकबर ने, कितने है यहाँ अंधे इंसान, बीरबल सच ही थे, है सभी के पास ज्ञान, फिर भी सभी के सभी अंधे है इंसान।  मै सोच कर रहता परेशान, क्या यही है यह, गाँधी और टेरेसा की दुनिया, जहाँ जन्म लिये ऐसे भी इंसान, नहीं यह हो नहीं सकता, गाँधी और टेरेसा की दुनिया, क्यों की पता नहीं, यहाँ कैसे-कैसे है इंसान।  इस दुनिया से परेशान, यहाँ के लोगो को देख हैरान।  Written by  #atsyogi (03/11/2012)

शायरी

पत्थर नहीं हूं मैं मुझमें भी नमी है, दर्द बयां नहीं करता बस इतनी सी कमी है । ।।1।। मत बनाओ गुमानो का महल, दीवारे काटने को दौड़ेगी, यकी नहीं तो खँडहरो से पूछो, तजुरबे-ए-हालत सब कुछ बया कर देगी।   ।।2।। #atsyogi

"बावले सपने 2020" (कविता)

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सो गया था, हा हा मै खो गया था, इन बावले सपनो में। जब जगना था तब नहीं जगा, अँधेरी रातो को अपना समझा। इसने ठगा या उसने ठगा, पता नहीं किसने ठग। हा, मै उसका हो गया था, हा हा मै खो गया था , इन बावले सपनो में। अब सूरज भी नया है, इसकी लालिमा भी नयी है, बावले सपने भी अब धूमिल है , लक्ष्य भी ज्ञात है, हा, अब नई शुरुवात है। मत याद दिलाओ उन पुराने लम्हो को, आज सुबह मै सूरज को देख कर रो रहा था। हा, मै सो गया था, हा हा मै खो गया था, इन बावले सपनो में। Written by #atsyogi  

"गलतियाँ" (कविता)

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  हृदय में कई प्रशन छोड़ जाती है गलतियाँ किसी से हो जाती है गलतियाँ तो किसी की महान होती है ___ तो किसी को बर्बाद करती है ___ तो किसी की ना - समझ होती है ___ तो किसी से कराई जाती है ___ तो किसी ने प्रेम में की ___ तो किसी ने नफ़रत में की ___ तो किसी की शस्त्र है ___ तो किसी की व्यवहार है ___ कोई करता है गलतियाँ तो कोई कराता है ___ तो कोई मजबूर होता है करने को ___ तो कोई हमेशा करता है ___ तो कोई नफ़रत में करता है ___ तो कोई प्रेम में करता है __ तो कोई बर्बाद हो गया करके ___ तो कोई महान बन गया करके ___ तो कोई यु ही नहीं करता ___ क्या है ये गलतियाँ क्या फूलो जैसी सुगन्धित होती है ___ तो क्या फलो से रसीली होती है ___ तो क्या मजबूरी में होती है ___ तो क्या मै हमेशा करता हूँ ___ तो क्या मैंने नफ़रत मे की वो __ तो क्या वो प्यार मे करता था __ तो क्या वह बर्बाद हुआ करके __ तो क्या उसकी अंतिम थी वो __ क्यों की उसने वो अंतिम गलतियाँ तो क्यों किसी से हो जाती है ___ तो क्यों उसने बर्बाद की दुसरो को करके __ तो क्यों वह संभल नहीं सकता था करने से पहले ___ तो क्यों विधाता ने बनाई ये ___ तो क्यों अमिट होती

"वो रात" (कविता)

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शाम होते ही घबरा सा गया मैं, की अब क्या होगा मेरे जीवन में। सोचा, समझा, आगे बढ़ा, गीरा, उठा, दोबारा गीरा, उठा, अँधेरी रात(रात्रि) में। सुबह होते ही याद आया, की वो रात(रात्रि) कितनी लम्बी थी, की वो रात(रात्रि) कितनी लम्बी थी। Written by #atsyogi

"बच्चे की अभिलाषा" (कविता)

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मेरी लेखनी में गलत शब्द है या शब्द गलत लिखने दो ना परेशा क्यों हो लिखा हुआ शब्द मार्कर से लिखी थोड़ी है। मेरी चित्रकारी में आकाश नीला है या पीला बादल हरा है या सफ़ेद नदिया मैली है या साफ चित्रकारी करने दो ना परेशा क्यों हो एक चित्र है हकीकत थोड़ी है। मेरी सुझाव में शहद खट्टी है या कच्चे आम मीठे फलो के राजा आम हो या पपीते मुझे बताने दो ना परेशा क्यों हो हर सुझाव मानना जरुरी थोड़ी है। मेरी इरादे बहुत बड़े हो या छोटे बहुत मजबूत है या लचीले मुझे बुनने दो ना परेशा क्यों हो इरादे तो इरादे है कोई पक्की मकान थोड़ी है। मेरी मंजिल लम्बी हो या हो दो गज दुरी कल मिले या लग जाए जिंदगी पूरी लड़खड़ाने दो ना परेशा क्यों हो ये तो पहली कदम है आखरी थोड़ी है। मुझसे गलतिया होती है या करता हु गलतिया करने दो ना परेशा क्यों हो इसी से तो सीखूंगा आखरी थोड़ी है। Written by #atsyogi

"अंतिम मुलाकात " (कविता)

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आपको खोने या ना होने का ग़म तो है मुझे, जाने से पहले तो एक मुलाकात जरूरी थी । आपके सारे सपने अब मेरी अमानत है, बस उन सपनों के बारे में एक बात जरूरी थी । आपके पास कुछ मजबूरी तो रही होगी, वहां जाने की, फिर भी मुझे तो बतानी जरूरी थी । मै मानता हूं कि, अंतिम समय में अकेले से हो गए थे आप, फिर भी मै ये सोचता था कि, मेरी साथ तो जरूरी थी । मुझे पता था कि, हमेशा आपको लोगो ने इस्तेमाल किया, ये बात कितनी बार बोल चुका था, लेकिन इस बात को समझनी जरूरी थी । मै हमेशा सोचता था कि, मै रहूं या ना रहूं घर पर आप तो है न, इस बात को तो समझनी जरूरी थी । Written by #atsyogi

नवरोज पत्रिका, पुरस्कार तथा नगद राशी

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  नवरोज पत्रिका तथा नवरोज Family में आपका स्वागत है।  नवरोज पत्रिका मेरे द्वारा यानी  #atsyogi  द्वारा सम्पादित की जा रही है जिसके माध्यम से 21 वी० शताब्दी के लेखक-लेखिकाओं के लिए एक छोटी शुरुवात "Baby Step" है। इस पत्रिका में सभी वर्ग, धर्म सम्प्रदाय तथा सभी उम्र के लेखक-लेखिकाओं का स्वागत है। कोई भी व्यक्ति विशेष अपनी रचनाये WhatsApp के माध्यम से +919818256528 पर भेज सकते/सकती है। उनके/उनकी रचनाओं को 24 घंटे के अंतराल में इस पत्रिका पर स्थान दी जाएगी।  नवरोज पत्रिका से जुड़े लेखक-लेखिकाओं को वर्ष के अंत में पुरस्कार तथा कुछ नगद राशी द्वारा सम्मानित किया जायेगा जो मुख्यतः होगी।  Best Female Writer Of The Year By Navaoj Award or (BFWYN Award). Best Male Writer Of The Year By Navaoj Award or (BMWYN Award). People Choice of the Month by Navaroj for Female Certificate or (PCMNF Certificate). People Choice of the Month by Navaroj for Male Certificate or (PCMNM Certificate). पुरस्कार के मानक आधार लेखक-लेखिकाओं के Viewer पर आधारित है जैसे की कोई लेखक या लेखिका की 1 कविता या क