Posts

Showing posts with the label लघुकथा

"मानवता"(लघुकथा)

Image
मानवता लाकडाउन का समय था। टूटी फूटी झोपड़ी में एक बूढी माँ गर्मी से बेहाल होकर ऊंघ रही थी।  तभी उसके कानो मे किसी के रोने की आवाज पडी। तब वो झोपड़ी से निकल कर बाहर आई  और देखा कि एक छोटी सी बच्ची चिलचिलाती धूप मे नंगे पैर पैदल चली जा रही थी। उसने कई दिनो से खाना नहीं खाया था। उसके साथ मे चलने वाले और कई बच्चे और उनके माता पिता भी थे। उनसे पूछने पर पता चला कि इसके माँ की सड़क हादसे में मौत हो गई थी। उसने भी कई  दिनो से खाया नही था। यह सुनकर बूढ़ी माँ का दिल पसीज आया और वे दौड़कर झोपड़ी के अन्दर गई और वहाँ से खाने के लिए कुछ लायी सबको पानी और खाना खिलाया।  लाकडाउन के चलते वह बूढी माँ भी कई दिनो से बाहर नही निकल पाई थी। जिससे लोगो से कुछ माँगकर लाती और फिर पकाकर खाती। वह सोचने लगी की मै क्या करू उसने अपने पास रखे कुछ पैसे और लोगो द्वारा दिए गये जूते-चप्पल उन बच्चो को पहना दिया और अपने पास जमा किए कुछ पैसे जो उसने लोगो से मांगकर अपनी बिटिया की शादी के लिए इकट्ठा किए थे।उन सब मे थोड़े-थोड़े बांट दिये जो भी उसके पास बचा अब रोज कुछ पकाती है। और वहाँ से गुजरने वालों को खिला देती है।मानवता की ग

"मानवता के अलंकार"(लघुकथा)

Image
 मानवता के अलंकार भामिनी अपने बेटे भावुक को समझा कर कह रही थी कि  यह सही है कि हमारी पीढी और तुम्हारी पीढी के विचारों ,कलापों के ढंग, सम्पूर्ण परिस्थितियों में जमीन आसमान का अंतर है ।लगभग दो दशकों में आया परिवर्तन अत्यन्त असाधारण है।ड्राइंग रूम में बैठे भावेश पत्नी के वाक्यों को ध्यान से सुन रहे थे।14 वर्ष का भावुक  माँ की बात सुनकर बोला,मम्मी ! इस असाधारण रूप से आये सूचना प्रौद्योगिकी के युग में जितनी सुविधायें मिली है,,उतनी ही कदम कदम पर चुनौतियां और संवेदनशीलता भी बढ गई है।         भावेश ने इस  वार्तालाप में अपनी बात भी रखने की चेष्टा कर ही रहे थे ।चल रही वार्तालाप पर भावुक के पापा बोले कि आप दोनों की बातें अपनी अपनी जगह सही है। हमारा मंतव्य है कि सारी सुविधाओं,कार्य करने  में सरलीकरण के साथ अब आदमी के पास खुद को सोचने और समझने का समय नहीं है। इस सभ्यता के विकास में जब से मानव ने अपने जीवन को समय से नापना शुरू किया,उससे जीवन विकसित हुआ परन्तु कुछ खो भी दिया।हमें कहने में कोई संकोच नहीं कि अब मानव सीमित,संकुचित और स्वार्थी हो गया।पहले का जीवन आसान और भावपूर्ण था।बचपन के दिनों में हर

"अस्तित्व"(लघुकथा)

Image
 अस्तित्व रात के दो बजे थे। हम गहरी नींद मे सोये हुए थे। कूलर एसी तापमान को अनुकूल कर पाने मे नाकाम हो रहे थे।पसीने से गीला बदन गर्मी से सामंजस्य स्थापित किया ही था कि आचानक तेज बिजली चमकी और जोर का झटका लगा, हम सहम कर उठे आसमान मे जैसे किसी ने गोला बारूद मिसाइल लेकर हमला बोल दिया हो, बादल के टकराने की आवाज नभमण्डल को चीरती हुई हमारे कान से टकरा रही थी।  हमने अपने पैरो को मोड़कर चेहरे को कस कर दबा रखा था। शरीर भय से थर-थर कांप रहा था।मूसलाधार बारिश से छत का पानी ओवरफ्लो होकर आँगन मे लगे जाल से इतना तेज गिर रहा था, जैसे कोई जल प्रपात फूट गया हो।  मन मे अनेक विचार भ्रमण कर रहे थे, पूर्व मे प्रकृति की कई घटनाओ को याद कर मन सिहर उठा था। जैसे उत्तराखंड मे बादल फटने से हजारो लोगो की मौत नेपाल मे आये भूकंप से अनेको ईमारत ध्वस्त हो गई कितने लोगो की मौत हो गई अब कोरोना ने भी कहर मचाया हुआ है।इसके पूर्व आई सुनामी ने कितने लोगो की जान लील ली थी,धुर्वों की  बर्फ का पिघलना तापमान का अधिक बढना, हमारे द्वारा की जा रही नदियों की अंधाधुंध खुदाई पहाड़ो को नष्ट कर वनो की कटाई से पर्यावरण असंतुलित हो गया

"लाॅकडाउन :किसका दुप्रभाव"(लघुकथा)

Image
पता नहीं कैसे, पास के जंगल से भागता चीता चिड़ियाघर में  आ गया,लगता है कि ढीले बाड में कहीं जगह पा गया होगा। वहाँ उसे चिड़ियाघर के बाड में रखे एक भालू से मुलाकात हो गई । भालू ने चीते से कहा, भाई तुम जंगल छोडकर यहाँ कैसे आ गये? चीते ने कहा,क्या बताऊँ ? भाई, जंगल में पहले जैसे कुछ नहीं बचा। घने घने जंगल वीरान हो गये है,पेड नहीं होने से हमारे निवास-स्थान खत्म हो गये,पानी के स्रोत सूख गये।जंगल में अवैध शिकार होने से हम लोगों की खाद्य श्रंखला पर बुरा असर हो रहा,कहने का मतलब गाय,बैल,भैंस,बकरी,खरगोश और हिरन इत्यादि हमारे जो भोजन हुआ करते थे,लालची मानव अपने जिह्वा स्वाद के लिए इनको भी मारकर खाने लगा है,इससे पर्यावरण तंत्र पर विपरीत असर तो हुआ ही,साथ ही साथ खुद भी अनेकों भयंकर बीमारियों का शिकार हो गया। देखो न, पता नहीं कहाँ से, कोरोना का वायरस आ गया,इसने तो ऐसा कहर ढाया कि पूछो मत।       इस पर भालू बोला, अरे भाई यह सब उसी बुरे कर्मो का परिणाम है,हम लोगों का प्राकृतिक निवास, भोजन और पानी के स्रोत को छीना ही, हमारे खाने का निवाला भी छीन लिया।      बगल के बाडे में सियार इन दोनों की बात सुनकर बोला,अर

"चिर चिर नूतन होए"(लघुकथा)

Image
बात 1981 की है । विदाई का वक्त था।घर का माहौल बहुत भावुक था।सब की आँखें भरी हुई थी।पापा से गले लग कर मैं रो रही थी।पापाने गले लगाते हुए भरे गले से कहा। " बेटा सदा खुश रहना और हमेशा याद रखना " चिर चिर नूतन होए " हमेशा इसे याद  ही नही रखना बल्कि अपने जीवन मे उतारने की कोशिश करना । यही जीवन का गूढ़ मन्त्र है।" पापा सदा से मेरे आदर्श रहे है।उनकी कही हर बात मेरे लिए अनमोल रही है । पर  उनकी कही इस बात की गूढ़ता, इसका महत्व मुझे उस वक्त समझ नही आया ।  विवाह के वक्त मैं अठारह साल की थी।कुछ उम्र की मासूमियत थी तो कुछ अनुभव की कमी । पापा की कही बात का अर्थ मैं समझ नही पाई थी पर वो पंक्ति सुनने में बहुत अच्छी लगी थी ।इसलिए मेरे जेहन में कहीं अंकित हो गयी थी । उसे मैंने डायरी में लिख रखा था । हर रोज अच्छी अच्छी  साड़ी पहनना ,अच्छे से तैयार होना  । मेरी समझ से शायद पापा के कहे शब्दों का  यही अर्थ  था । मैं भरे  पूरे  सम्पन्न परिवार में ब्याही गयी थी । ससुराल में बहुत लाड़ दुलाड़ ,औऱ सम्मान मिला । कुछ वर्ष तो पंख लगा कर उड़ गए ।कुछ वर्ष  जिम्मेदारियों के भेंट चढ़ गए।धीरे  धीरे जीवन  में

"मेरी नैना"(लघु कहानी)

Image
हम जब भी मॉल जाते नैना के क़दम सेंडिल के शोरूम पर ठिठक जाते.. हसरत से वह उन्हे निहारती और फिर झट से आगे बढ़ जाती... वह जानती थी हम इतनी मंहगी सेंडिल नहीं खरीद सकते। अक्सर पास के ''मॉल " में रात का खाना खाकर चले जाते थे टहलना हो जाता ... ठंडी ऐ.सी. की हवा खाने मिल जाती और सारा दिन एक कमरे मै बंद नैना का मन भी बहल जाता था.... तरह-तरह के लोग नन्हे मुन्ने बच्चे ,मॉल का मेले सा माहौल में उसकी की खुशी उसकी आंखों की चमक देख मुझे बड़ा आनंद प्राप्त होता, बस कभी मन बड़ा ख़राब हो जाता कि मै उसे सैडिल नहीं ख़रीद पा रहा... उसकी आंखो में चाह देखी थी... वह कभी कोई फरमाईश न करती... छुट्टी वाले दिन हम  मॉल के बाहर वाले बाजार में कभी चाट कभी पाव भाजी और कभी आइसक्रीम खाते ,महीने में एक बार फिल्म भी देखने जाते वह इन छोटी - छोटी बातों से वह खुश हो जाती और ढेरों प्यार करती , बहुत परवाह करती बहुत अच्छी पत्नी साबित हो रही थी वह ।          शादी को आठ महीने हो गये थे मां ने ब्याह होते ही कहा था नरेश बहू को साथ ले जा तुझे खाने की दिक्कत है .. सो नैना साथ थी तब से घर का खाना मिलने से मैं भी भर सा गया

"एक थी समीरा"(लघु कहानी)

Image
आज एफबी खोलते ही समीरा की हंसती मुस्कुराती एक पुरानी तस्वीर जिस पर पचास हजार लाइक एवं एक हजार कमेंट  आए थे, दिखाई दी, करीब आठ महीने बाद समीरा पुनः प्रकट हो गई ? न जाने कहाँ गायब हो गई थी ये लड़की... चलो वापस तो आई ... बेहद खूबसूरत ,चुलबुली ,बेबाक लड़की जिंदगी से भरी.. बीस इक्कीस वर्ष की होगी हम सभी फेसबुक सहेलियों को दीदी कहती .. .. करीब पन्द्रह सोलह महिलाओं के बीच वह सबसे छोटी सबसे जीवंत लड़की थी. .. लेखनी बेहद प्रखर जिस विषय पर क़लम चला दे वही सुपर हिट... रिकॉर्ड तोड़ लाईक कमेंट आते उसकी प्रत्यैक पोस्ट पर .. हम सबकी बेहद लाड़ली ... होते हुए भी कभी -कभी उससे जलन हो जाती थी .. जब भी कोई पुस्तक प्रकाशित होती तुरंत शेयर करती .. कई काव्य संग्रह, एवं कहानी संग्रह प्रकाशित हो चुके थे .. गद्य पद्य दोनो पर धारदार लेखनी का कमाल ... देखने मिलता । फिर एक दिन अचानक गायब हो गई... जैसे अचानक आई थी वैसे ही .. बहुत दिन हमने इंतजार किया था .. फिर भूल गये तो नहीं कह सकते हाँ याद करना बंद कर दिया .. उसके विषय में एक दूसरे से पूछना बंद कर दिया .. और आज फिर यह सामने है... क्या लिखी है पढ़ने की अदम्य इच्छा