"पिता ही परमेश्वर"(कविता)
पिता की छाँव में जो सुकून है।।
कभी एहसास नही मिल पाया है।।
या रब, तूने भेद मेरे साथ क्यो दिखाया है।।
सुना है पिता हर दर्द छुपा लेता है।।
अपने अश्कों को दबा लेता है।।
या रब,तूने पिता को ऐसे क्यो बनाया है।।
ईस्वर तू तो सब जानता है।।
तू ही तो सब का विधाता है।।
या रब, संसार ये फिर समझ क्यो नही पाया है।।
पिता है तो संसार की हर खशी है।।
पिता है तो सब बाजार भरे है।।
या रब,मुझे वो बाजार क्यो नही दिखाया है।।
पिता है तो हौसला बरकरार है।।
पिता है तो दुनिया की हर दौलत है।।
या रब,ये दौलत मुझे क्यो नही दिखाया।।
पिता से घर,पिता से माँ, पिता ही भगवान है।।
पिता से छाँव,पिता से छत,पिता ही आसमान है।।
या रब,फिर मुझे ये छत,छाँव क्यो नही दिखाया है।।
हे भगवान तू ने ये कैसा इंसाफ दिखाया है।।
इन बच्चों के सर से पिता का हाथ हटाया है।।
या रब,तू ने ये कैसा जुल्म हम पर ढाया है।।
या रब, तू ने ये कैसा जुल्म हम पर ढाया है।।
nice....
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