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"सांवली तितली"(ग़ज़ल)

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 थक गया मांगते न लिखत दी मुझे राह में जो बिका यार ख़त दी मुझे।। शर्त थी दूर होंगे नहीं हम कभी पास आने कि उसने शपथ दी मुझे।। मैं हिफाज़त कहां से करुं यार का बीच आना नहीं थी कियत दी मुझे ।। उड़ गया रंग उसका कहीं और था ढूंढने का तभी यार हक़ दी मुझे।। प्यार उसको इसी नूर से था हुआ या कहीं बेंच दिल वो किसबत दी मुझे।। Written by  आशीष पाण्डेय

"अजब इंसान"(ग़जल)

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हमारी वफा की बार-बार  आजमाईश करते हो खुद ना जाने कितने खेतों की पैमाइश करते हो जमीं  पर नहीं है तेरा  कहीं  कोई ठौर ठिकाना  सनकी हो, चांद तारों  की  फरमाईश  करते हो तेरे जीने का अंदाज, समझ में नहीं  आया मुझे  तुम  ही लडते हो, तुम  ही समझाईश  करते हो अजब  सिरफिरे  इंसान  हो,तुम  इस दुनिया में बोते बबूल हो,और आम की ख्वाहिश करते हो बड़े  शातिर हो तुम,लोगों को बेवकूफ बनाने में छिपा कर  हकीकत, झूठ की नूमाईश करते हो असंभव  को  संभव  करना, कोई  तुमसे सीखे तुम हिमालय को हिलाने की,गुंजाईश करते हो Written by  कमल श्रीमाली(एडवोकेट )

"झूठ इतना"(ग़ज़ल)

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आदमी तू डरा डरा क्यों है बिन मरे ही मरा मरा क्यों है मौत आए न रोक पाएगा मर रहा फ़िर ज़रा ज़रा क्यों है पैर तेरे ये लड़खड़ाते हैं बोझ सर पे बड़ा धरा क्यों है हो सके तो लगा मरहम इसपे घाव तेरा हरा हरा क्यों है साथ तेरे न कुछ भी जाएगा हाथ तेरा भरा भरा क्यों है ज़रा सी बात को दिल पे लगा लेता है आदमी ऐसा मसखरा क्यों है काश ये सच कभी न हो पाए झूठ इतना खरा खरा क्यों है Written by  विद्यावाचस्पति देशपाल राघव 'वाचाल'

"जुगनू पकड़"(ग़ज़ल)

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क्या लूटा है मैंने बतला, झूठे क़िस्से गढ़ा न कर जन्मजात दौलत वाला हूँ, तोहमत यूँ ही मढ़ा न कर भूखा नंगा था ये कहकर, मियां बेइज्जती करता क्यों तू भी रंग जा मेरे रंग में,तिल का ताड़ बड़ा न कर पहले ही से मैं बेचारा, मुश्किलात में फँसा हुआ जख़्मों पर तू नमक छिड़क कर,मुश्किल और खड़ा न कर मैं तेरा संगी साथी हूँ, बुरे वक़्त में दूंगा साथ ज़रा दूर की सोच रे मूरख,बेमतलब ही लड़ा न कर बड़े अदब से सर को झुकाए,हाथ जोड़ता रहता हूँ थोड़ा अदब ओढ़ ले बाबू,अपना रुख़ यूँ कड़ा न कर मेरी भी सुनने की हिम्मत, तू अपने में पैदा कर जब देखो तब अपनी कहता, बात बात पे अड़ा न कर बर्फ के तौंदे दिये दे रहा, ले अपना अहसान पकड़ बना धूप में घर ले अपना, मेरे सर पर चढ़ा न कर थोड़ी सी तो शर्म बचा ले,कहीं काम आ जाएगी पानी की जो बूंद न ठहरे, इतना चिकना घड़ा न कर जुगनू पकड़ रौशनी करता, और दिखाता अकड़ बड़ी चोरी कर के लिखता हूँ मैं, मेरी ग़ज़लें पढ़ा न कर Written by  विद्यावाचस्पति देशपाल राघव 'वाचाल'

"वाचाल ग़ज़ल"

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दिल में हमारे आज भी अरमान पल रहा है सच मानिये कि दिल को ये दिल ही छल रहा है रंगे-निशात झेला बारे-अलम उठाकर ना जाने किस बिना पर ये साँस चल रहा है जुड़ता है टूट टूट कर लेकिन संभल रहा है वो पूछते हैं अक्सर क्या हाल है तुम्हारा कैसे उन्हें बताएँ कि वक़्त टल रहा है बुझती हुई शमा पे परवाना जल रहा है मस्ती में दे रहा था जो चाँदनी अभी तक वो देखिये उफ़ुक पर अब चाँद ढल रहा है हारा थका मुसाफिर ज्यों हाथ मल रहा है पाला है हमने दिल को पहलू में कैसे कैसे उनसे मिली नज़र क्या उनको मचल रहा है जैसे कि बस उन्हीं का इसपे दखल रहा है अहसान मुफलिसी का ये दिन दिखाए यारो हर शख़्स दूर ही से रस्ता बदल रहा है जतला रहा है ऐसा जैसे टहल रहा है घर तो जलाया उनका बेख़ौफ़ दरिंदों ने फ़िर क्यों धुआँ हमारे घर से निकल रहा है काहे हमारे जिस्म में सीसा पिघल रहा है Written by  विद्यावाचस्पति देशपाल राघव 'वाचाल'

"आध्यात्मिक-गजल"

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हमें  हकीकत  से रूबरू होना होगा जो पाया है यहां से,यही खोना होगा क्यों परहेज हैं तुम्हें मिट्टी को छूने से एक  दिन इसी  मिट्टी में  सोना होगा सब  जानते हैं  फिर भी हाहाकार हैं बस  इसी  बात   का  तो रोना  होगा सोच  लो, समझ लो, जान  लो  सब अभी  वक्त  हैं, फिर  पछताना  होगा मिला मानव तन तो मुक्ति पालो वर्ना कई  योनियों  में  आना  जाना  होगा तलाक  के लिए क्यों  जलील होते हो थामा है हाथ उसका तो निभाना होगा वक्त निकल  रहा है कुछ तो सोच बंदे कब इस मिट्टी  का कर्ज़ चुकाना होगा बढ़ गए हैं पाप बेतहाशा इस धरा पर फिर किसी अवतारी को बुलाना होगा Written by  कमल श्रीमाली(एडवोकेट)

"बेढ़ंगी"(ग़ज़ल)

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क्या बतलाऊँ हाल दोस्तो जीना हुआ मुहाल दोस्तो रोज़ी रोटी के चक्कर में दिनचर्या भूचाल दोस्तो अहर्निशी अब माप रहा हूँ धरती नभ पाताल दोस्तो ठाठ देखकर जनसेवक के मन में उठे सवाल दोस्तो कल तक जो था भूखा नंगा किस विधि मालामाल दोस्तो औरों की टोपी उछाल कर करता बहुत धमाल दोस्तो अपने सिर शहतीर न देखे मेरी अँखियन बाल दोस्तो पड़ोसियों के घर में क्या है वो करता पड़ताल दोस्तो अपने घर की ढाँप रहा है हर बेढ़ंगी चाल दोस्तो धरने पर बैठे सहकर्मी पीट रहे करताल दोस्तो डब्बा पहुँचा प्रधान के घर ख़त्म हुई हड़ताल दोस्तो छोटा सा घोटाला कर के घर बैठी दो साल दोस्तो अधिकारी घर रुका रात तो सुबह हुई बहाल दोस्तो Written by  विद्यावाचस्पति देशपाल राघव 'वाचाल'

"सराब (मृगमरीचिका) रखता हूँ" (ग़ज़ल)

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कई चेहरे जनाब रखता हूँ हर एक पे नक़ाब रखता हूँ सवालों के जवाब तो हैं पर गुल्लकों में जवाब रखता हूँ किसिम किसिम की हैं रातें मेरी बीसियों माहताब रखता हूँ बूढ़े माता-पिता के हिस्से की हर दवा का हिसाब रखता हूँ बीवी-बच्चों के नाम से बेशक़ बैंकों की किताब रखता हूँ घर में आ जाए जब कभी साली उसके खातिर गुलाब रखता हूँ भाई भाभी कभी आ जाएँ इधर पेशे-ख़िदमत  सराब  रखता हूँ Written by  विद्यावाचस्पति देशपाल राघव 'वाचाल'

"नौजवा इश्क़"(ग़जल)

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 कोई दाद, कोई खुजली, कोई खाज निकले मेरे   दोस्त   सारे   कैसे   धोखेबाज़  निकले जो   करता   था  मेरी   तारीफ   मेरे  सामने मेरी पीठ पीछे कैसे उसके अल्फाज निकले कब  तक  झूठी  हां में हां  मिलाओंगें  उसके कभी तो उसके विरोध में भी आवाज निकले सारे  के  सारे  नौजवान   इश्क़  के  मरीज हैं  कोई तो भगत सिंह जैसा अकड़बाज निकले सांप निकले फिर लाठी पीटती,पुलिस हमारी जेब गर्म हो तो,कैसे कातिलों से राज  निकले झूठे डूबे  रहे उसकी  मोहब्बत  में आज  तक हमें  पता ही ना चला  वो कब  नाराज निकले कभी फटी टी-शर्ट में साइकिल चलाता था वो वजीर क्या बना, गजब  उसके अंदाज निकले किला फ़तेह कर लिया था उस अकेले शेर ने सबने बुजदिल समझा,तुम तो जांबाज निकले Written by  कमल श्रीमाली(एडवोकेट)

"बसंती पवन"(ग़जल)

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  उमंग में तरंग में,बादलों के संग में। उड़ जाऊ मैं ऐसे,बसंती पवन में।। रोके न कोई ,टोंके न कोई। फिसल जाऊ चाहे,पगडंडियों में।। नजर सामने है,पेड़ पौधे जमी में। खुला आसमा है,हुश्न उतरा जमी में।। मनोहर छटा है,हुश्न की ऐ अदा है। खेतों में लहराए, फसल भी हरा है।। कमरबंद लहरा के,हुश्न इठला के। मिलने चली है,मुझे वो बुला के।। मोहब्बत में देखो,सुध बुध भुला के। दिल को मेरे वो,दिल से लगा के।। परछाइयों से,चेहरा छुपा के। जल्दी में जैसे,खुद को बचा के।। पगडंडियों से,दौड़ लगा के। चला इश्क़ देखो, छुप छुपा के।। खेतों में पानी,जुल्फों में रवानी। महलों की रानी,बनी वो दीवानी।। है चित्र में जो,लिखी वो कहानी। लगती है जैसे,परियों की रानी।। है खूबसूरत, मगर ये जवानी। चेहरा जो दिखता,मैं लिखता कहानी।। तेरे रूप का मैं, करता बखानी। सवंर जाती मेरी,रूठी जिंदगानी।। Written by  कवि महराज शैलेश

"मय के प्याले चार"(ग़ज़ल)

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इन जुल्फ़ों को यार झटक कर मैं भी देखूँ सूली पे इस बार लटक कर मैं भी देखूँ देखूँ कैसा होता है कांटों का चुभना कांटों में इक बार अटक कर मैं भी देखूँ बेशक़ काफ़िर नहीं मगर तू यक़ीन कर सर तेरे दरबार पटक कर मैं भी देखूँ जीना मरना दो ही तो झंझट दुनिया में ज़िन्दगी के द्वार फटक कर मैं भी देखूँ अंधे हाथ बटेर लग गई मैं पछताऊँ दरवज्जा कुछ बार खटक कर मैं भी देखूँ नहीं झूम कर नाचा अबतक किसी साज़ पे थोड़ा सा इस बार मटक कर मैं भी देखूँ नशा इश्क़ का कैसा होता ये भी जानूँ मय के प्याले चार गटक कर मैं भी देखूँ Written by  विद्यावाचस्पति देशपाल राघव 'वाचाल'

"इन्द्रधनुष पर"(ग़ज़ल)

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  किसी बहाने जब देखो,छज्जे पे आना जाना छोड़ो आता देख मुझे, खिड़की में आकर बाल बनाना छोड़ो क्या नाता है तुमसे मेरा, क्यों अपनापन जता रहे हो हँस हँस कर यूँ बार बार,नैनों से तीर चलाना छोड़ो मैं नसीब का मारा, मुझको पाकर होगा क्या हासिल अपने दिल के बालू पे,बरसाती फसल उगाना छोड़ो आहें भरना-होंठ काटना-आँखें मलना, सब बेकार घुट घुट कर यूँ अपना दिल, और मेरा जिगर जलाना छोड़ो ख़्वाब-तसव्वुर-तड़प-सिसकियों, की उलझन से बाहर आओ इन्द्रधनुष पर लिखना अपना-मेरा नाम,मिटाना छोड़ो Written by  विद्यावाचस्पति देशपाल राघव 'वाचाल'

"हज़ारों को करोड़ कर साहब"(ग़जल)

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फटी चादर को ओढ़ कर साहब ग़म की बाहें मरोड़ कर साहब आइये नेक काम ये कर लें दिल के टुकड़ों को जोड़ कर साहब मैंने मौजों से लिया है पंगा अपनी कश्ती को छोड़ कर साहब आशियाने बचाए हैं अक्सर रुख़ हवाओं का मोड़ कर साहब वजूद उसका क्या मिटाओगे शाख़े-बरगद को तोड़ कर साहब लहू इससे टपकता तो नहीं दिखाओ दामन निचोड़ कर साहब बड़प्पन क्या दिखा रहे हैं आप नाक-भौं  को सिकोड़ कर साहब कीजिये इक मिसाल ये क़ायम घड़ा नफ़रत का फोड़ कर साहब भला क्या साथ लेके जाओगे हज़ारों को करोड़ कर साहब Written by  विद्यावाचस्पति देशपाल राघव 'वाचाल'

"यारो, मनमाफिक लेता हूँ"(ग़ज़ल)

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  कभी-कभी कुछ लिख लेता हूँ दिल के हाथों बिक लेता हूँ करना हो जब उल्लू सीधा कड़ी धूप में सिक लेता हूँ मुँह में अली बगल में चाकू रख ईमां पर टिक लेता हूँ कभी तिलक तो कभी जनेऊ धर्म में रुचि अधिक लेता हूँ जब-जब प्यारी सूरत देखूँ नाम बदल आशिक़ लेता हूँ हया शर्म को बेचबाच कर धन दौलत से छिक लेता हूँ अपने हित के सभी फैसले यारो,मनमाफिक लेता हूँ Written by विद्यावाचस्पति देशपाल राघव 'वाचाल'

"ऊ ऐ स्वाहा"(ग़जल)

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जो लब्ज होठों से निकलते नहीं, वो फिर सम्हाले, सम्हलते नहीं।  आ जाते है अश्क बनके निगाहों में, किसी सूरत भी पलको पे ठहरते नहीं।  कैसे कहें तेरी गुर्बत में हाल है क्या, खामोश हूँ, ऐसा नहीं के मचलते नहीं।  रख ली कद्र इश्क की, बेताब परवानो ने, वर्ना इसकदर कभी वो जलते नहीं।  उम्र की दहलीज भले बढ़ती चली जाए, कुछ शख्स है जो कभी ढलते नहीं।  ठोकरे लगती है इल्म बढ़ाने की खातिर, क्यूँ फिर लोग गिरके सम्हलते नहीं।  भूल के भी ऐसी नादानी मत कीजिए, व्यर्थ इस तरह से पानी मत कीजिए।  कोशिशें जो हो रही भविष्य सवारने की, आप उसको पानी-पानी मत कीजिए।  दोहराए कल जमाना आप की नादानियों को, आज कोई ऐसी कहानी मत कीजिए।  प्रकृति है आपकी अनमोल धरोहर एक, आप का ही अंग है ये हानि मत कीजिए।  पानी सिर्फ पानी नहीं, जीवन है आपका, अपने जीवन को यु बेमानी मत कीजिए।  Written by आनंद आकुल