उमंग में तरंग में,बादलों के संग में। उड़ जाऊ मैं ऐसे,बसंती पवन में।। रोके न कोई ,टोंके न कोई। फिसल जाऊ चाहे,पगडंडियों में।। नजर सामने है,पेड़ पौधे जमी में। खुला आसमा है,हुश्न उतरा जमी में।। मनोहर छटा है,हुश्न की ऐ अदा है। खेतों में लहराए, फसल भी हरा है।। कमरबंद लहरा के,हुश्न इठला के। मिलने चली है,मुझे वो बुला के।। मोहब्बत में देखो,सुध बुध भुला के। दिल को मेरे वो,दिल से लगा के।। परछाइयों से,चेहरा छुपा के। जल्दी में जैसे,खुद को बचा के।। पगडंडियों से,दौड़ लगा के। चला इश्क़ देखो, छुप छुपा के।। खेतों में पानी,जुल्फों में रवानी। महलों की रानी,बनी वो दीवानी।। है चित्र में जो,लिखी वो कहानी। लगती है जैसे,परियों की रानी।। है खूबसूरत, मगर ये जवानी। चेहरा जो दिखता,मैं लिखता कहानी।। तेरे रूप का मैं, करता बखानी। सवंर जाती मेरी,रूठी जिंदगानी।। Written by कवि महराज शैलेश