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"विरह-गीत"(बरखा-गीत)

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 झमाझम बरसै बदरिया हो नाहीं आयिनि संवरिया । लह-लह लहरै डगरिया हो नाहीं आयिनि संवरिया ।। पवन झकोरै जौ सिहरनि लागै सगरी देहियां म भलु पीरा जागै रहि- रहि भभकै सेजरिया हो नाहीं आयिनि संवरिया ।। लह-लह लहरै----- यादु सतावै यैसि चिहुँकु जायि छाती  केहिका बिसूरै जिया हौ बहु कलपाती  सहमि-सहमि जायि निंदरिया हो नाहीं आयिनि संवरिया ।। लह-लह लहरै------ जुगनूँ राह-डगरि चमकावैयिं  दादुर-झींगुर बहु शोर मचावैयिं छमाछम बाजतु पयलिया हो नाहीं आयिनि संवरिया ।। लह-लह लहरै------- लरिकनु छपाछपि अंगना म खेलैयिं  कगजे कै नैइया भलु पनिया मेलैयिं  लुकाछिपी खेलतु नजरिया हो नाहीं आयिनि संवरिया ।। लह-लह लहरै------- भूलि गयिनि सबै  सजना-संवरना  कबु लौटि अउब्या अहै ईहै झंखुना  तकि-तकि हारीं नजरिया हो नाहीं आयिनि संवरिया ।। लह-लह लहरै------- झमाझम बरसै बदरिया हो नाहीं आयिनि संवरिया । लह-लह लहरै डगरिया हो नाहीं आयिनि संवरिया ।। Written by  ज्ञानेन्द्र पाण्डेय

"हक़ीक़त"(कविता)

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अब कहां मौज़-ए- सब़ा आती है रोज़-रोज़ अब बाग़-ए-वफ़ा में बुलबुल कहां गाती है रोज़-रोज़ सरकार यूं ही  कितना मिलते रहोगे सबसे वो भी कहां आ पाएंगे इनायत को रोज़-रोज़ जलेबी की चाशनी में सीझी  मीठी सी उलझनें चिपकी हुईं हैं ख़्वाब से कहां सुलझ पातीं हैं रोज़-रोज़ देखो ज़रा ग़ौर से सड़कों पे चलते हुज़ूम को समझाये इन्हे कौन इमदाद नहीं बंटती है रोज़-रोज़ कर्फ़्यू  लगा हो चाहे या फौज़ खड़ी हो मानती कहां है भूख लग जाती है रोज़-रोज़ अब देखना है कितना साथ देता है मुकद्दर कुछ भी न मिले तब भी दुआ लोग मांगते हैं रोज़-रोज़  हद भी है इक बंधन जानते हैं सभी फिर भी ख़ुद की ज़द किसको नज़र आती है रोज़-रोज़ विपरीत हालात में भी खुशनुमां मंज़र सज़ाना होगा कोशिशें करते रहो खुशगवार मौसम कहां आता है रोज़-रोज़ Written by  ज्ञानेन्द्र पाण्डेय

"सावन-कजरी"(गीत)

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 सावनु बरसैयि जिया बहु उरझैयि सखि मोरु सजनवां आयिनि ना ।  हमरौउ मरदा भयिसि बेदरदा ई कैसि करमवां पायिनि ना ।। बैरनि कोयिलरि न सबरि धरैइया  कुहू-कुहू निगोड़ी बोलयि अमरैइया  लागिनु येहुकै बोलु कटारी कबौ सुखनिंदिया सोयिनि ना ।। हमरौउ  आंगनु म गौउरैइया चहकैयि  मनवा मोरा रहि-रहि बहकैयि  आंखिनु बहतु पनारो यैइसों केउसों दरदिया मोयिनि ना ।। हमरौउ  संगु कैयि गोतीनिनु नीमीं झूला डरावैयिं  केउ गावैयिं कजरी मल्हारि केऊ गावैयिं  साजनु मोरा भयिसि विदेसिया केऊ झुलनवा झुलायिनि ना ।। हमरौउ सावनु बरसैयि जिया बहु उरझैयि सखि मोरु सजनवां आयिनि ना ।। हमरौउ मरदा भयिसि बेदरदा ई कैसि करमवां पायिनि ना ।। Written by  ज्ञानेन्द्र पाण्डेय

"मूकता या मुखरता : हो यथेष्ट"(कविता)

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 बात के विरोध या समर्थन का क्यूँ न हो, सिर्फ मुखरित होना ही जबाब नहीं होता। चलते ऑधी में उखड रहे बिरवे क्यूॅ न हों, धरा पे जमीं घास भी माकूल जबाब देता। शान्त का मतलब लोग सहन से क्यूॅ न लें, चुप ज्वालामुखी का धधकना कम होता। ।।1।। मानव स्वच्छंद बने ,नियति मूक क्यूँ न हो, वक्त के सटीक उत्तर का,जबाब नहीं होता। उत्पीडन से निकल रही आह,गूँगी क्यूँ न हो, नियति से पडी लाठी का जबाब नहीं होता। बने माहौल में अर्ध सत्य भटकता क्यूँ न हो, ऐसे में चुप होने का कोई प्रभाव नहीं होता। ।।2।। Written by  ओमप्रकाश गुप्ता बैलाडिला किरंदुल, दंतेवाड़ा, छ0ग0

"नजरिया बदलिए, जनाब"(लेख)

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 नजरिया बदलिए, जनाब व्यक्तिगत रूप से जहाँ तक हमें  ऐसा महसूस होता है कि इस दुनियाँ को यथेष्ट से समझ पाना आसान नहीं है।कारण देश,काल,परिस्थति के गति अनुसार दुनियाँ में परिवर्तन परिलक्षित होना स्वाभाविक है।अतः एक क्षण हमारे द्वारा दी गई प्रतिक्रिया अनुकूल नजर आती है तो वही दूसरे क्षण उसी कारण के लिए प्रतिकूल हो जाती है।अतः अपने अनुभव का प्रयोग कर अपने नजरिये में बदलाव आवश्यक है।ये दुनियाँ पर्यावरण की दृष्टि से जितनी सुन्दर और सौम्य है उतनी ही परिस्थितिजन्य दुर्गम और असाधारण है।कालान्तर से यदि विचार करें तो हमें इसमें आमूल परिवर्तन दिखाई देता है,यह बहुत असाधारण है।जहाँ तक हमारी समझ है कि हम सरल मानवीय दर्शन को अपना लें तो एक हद तक आनन्द की प्राप्ति से नहीं रोका जा सकता।जैसे : जो नसीब में है,वो चलकर आयेगा।जो नहीं है वो आकर चला जायेगा; अगर जिन्दगी इतनी अच्छी होती तो रोते न आते,अगर बुरी होती तो लोगों को रुलाकर न जाते;भव्य जीवन जीना बुरा नहीं है;पर सावधान,जरूरतें पूरी हो सकती हैं, तृष्णा नहीं ;कभी गुरूर आये तो असलियत जानने कब्रिस्तान का चक्कर लगा लेना,क्योकि वहां कई बेहतर इंसान मिट्टी में दफन

"अहसास : पिता के वजूद का"(कविता)

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 हम चाॅद सितारे हैं ,उस परिवार के,  जिसका पिता एक आकाश होता है। जिसके रोशनी से दमकता पूरा घर, वह तो,पिता का ही प्रकाश होता है। ।1। आसमां से ऊंची, गर है जगह कहीं, तो वह, पिता का ही  स्थान होता है। कंधों पे बैठा लेते,तब लगता मुझको, इस सारे जगत का अभिमान छोटा है। ।2। हमारे दुलार पे कुछ भी कहते नहीं वे, उस चुप्पी में छुपा यार नजर आता है, हमारी खुशी में लाखों गम भूल जाते, तोतली पे दिल बाग -2 नजर आता है। ।3। जोश आता कुछ कर गुजरने का पापा, जब अंगुली  तुम्हारी हथेली में आता है। सभी परिवारों के आदर्श बन जाते तुम, जो मेरे उन्नति में चार चाँद लग जाता है। ।4। तुम नहीं,तो लगता इस घर की छत नहीं, जरा सी बयार में, तूफान नजर आता है। आग के शोले से लगते,सारे बन्धु वाॅधव, खिडकी से ये शहर वीरान नजर आता है। ।5। Written by  ओमप्रकाश गुप्ता बैलाडिला किरंदुल, दंतेवाड़ा, छ0ग0

"ढुलमुल ईमान"(कविता)

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 प्रतीपल बदलता रहता अंदर- बाहर प्राणी मन        ज्ञान-शिखर को         चूमनेवाला  भी करता नादानी पन !!    जीवन भूख  जीविका स्वाद  इस भेद को जाना   वही आबाद !! एक कर में चिंता    जीवन की,  और दूजे कर में    जीविका की, खाएं कोई कैसे भला  चुपड़ी रोटी नित्य      घी की!! जीवन जीविका  क्षुधा समान   होते सदैव   सब परेशान दोनों के ढुलमुल     ईमान!!  दोनों  होते  जलते दीये       और चिथड़े पीर  बिन सीये !! छलके ना ठहरिए उधड़े  ना  सम्भलिये पथ-पथरीले जीवन के फूंक-फूंक के चलिए !! Written by  वीना उपाध्याय

"संगीत"(कविता)

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हौले सरगम अधरों पर जब -जब आ ठहरते हैं पवन सुगन्ध में घुल-मिल सुर-संगीत  में ढ़लते हैं !!  संगीत-विहीन हर्षित तमन्ना होते स्वप्न सरीखे, सरगम-सुर छिड़े न जहाँ रौनक-ए महफील फीके! बन जाता मधुरम गीत सुर- लय के संगम से कर जाता स्पर्श जैसे सुगन्धित कोमल चन्दन से!! इंद्रधनुषी रंगों-छंगों से हृदय फलक रंग जाता है सावन बून्द  बन के बरस पोर-पलक भीगाता है !! माँ शारदे को साधने में  पथ प्रदर्शक बनता है लोभ, असत्य ,फरेब  मत से भी पृथक  करता है!! मानसिक रोग से मुक्ति देता है सार्थक जीवन की युक्ति देता है!!      तन-मन में   निश्चल आत्मा का     हो जाता है प्रवेश                रोम-रोम         पुलकित कर देता हर लेता सम्पूर्ण क्लेश !! संगीत से सानिध्यता प्रत्येक मन को भाता है  संगीत बगैर जीवन रंगविहीन हो जाता है !! सरगम रिदम सुर में  झंकृत मन को करता है सृष्टि -प्रकृति, जर्रा -जर्रा  को संगीतमय करता है !! Written by  वीना उपाध्याय

"योग"(कविता)

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प्रातः कालीन बेला में   नियमित जो भी        योग करेगा    तन-मन,अन्तर्मन से       जीवन -पर्यन्त         निरोग रहेगा !!  योग गुरु से पाकर ज्ञान  होता है जो अंतर्ध्यान जीवनशैली जाती निखर सकारात्मक होता असर!  जो भी प्राणी भ्रामरी, भस्त्रिका,शुचि,अनुलोम,             विलोम करेगा मनः शुद्धिकरण होगा रोम-रोम प्रफुल्लित होगा  सदा निरोग्य बना रहेगा    जीवन-सुख भोग्य        करता रहेगा !! योग जीवन में  खुशियां लाता परहित सेवा -भाव       सिखाता !!           ईश प्रदत  शक्ति साधन का  मान करें सम्मान करें,    सुंदर और सुदृढ़      व्यक्तित्व का  जीता जागता प्रमाण बने!   सर्व विभूति शक्तियों का    ये नश्वर तन धरोहर  गर परखी नजर से परखें    पाएंगे बहुमुल्य मोहर !! यौगिक-क्रिया कलापों से   तन-मन को सँवार लें  वेद-पुराण-शास्त्र निहित ज्ञान अन्तस् में उतार लें ! Written by  वीना उपाध्याय

"योग की माया"(कविता)

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 योग की देखो अद्बुत माया रोगहीन   कर देता है काया प्रयोगों की इस दुनिया मे देश -विदेश तक योग है  छाया उल्टा  सीधा है   जो भी खाया योग   ने    उसको   खूब पचाया कोरोना    को  धराशाही कर डाला योग ने योग  का   ही    परचम लहराया अनुलोम  हो  या     हो  विलोम इन्होंने  मजबूत  फेफड़ों को बनाया भ्रामरी   हो   या     फिर भस्त्रिका  शरीर    का  हर    अंग मजबूत बनाया पद्मासन हो या ध्यान की मुद्रा मन को तन को स्वस्थ बनाया Written by विपिन प्रधान

"भगवान श्रीविष्णु की प्रार्थना"(लेख)

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हे भगवान विष्णु आपके नियम इतने कठोर है,जिसका पालन हमारी सहनशक्ति के अंदर नहीं!! हे कमलनयन हमें सहनशक्ति प्रदान करे,सदा सत्य का सहारा लेते रहे हे कमल नयन ऐसी सहनशक्ति प्रदान करे!! सत्य से कभी विश्वास न टूटे,हे विष्णु भगवान हमें ऐसी प्रबल संकल्प शक्ति प्रदान करे!! सदा योगमार्ग पर चलते रहे,हे नारायण ऐसी कला के प्रभाव की शक्ति प्रदान करें!! सदा लोक कल्याण करते रहे,हे गोविन्द हमें प्रबल शक्ति प्रदान करें!! लोक कल्याण से विचलित ना हो,हे गोविन्द हमें ऐसी शक्ति प्रदान करें!! आपने कर्मो के बल पर उपलब्धियों के शिखर पर पहुँचते रहे,श्री कृष्ण हमें ऐसी ज्ञान शक्ति प्रदान करें!!  भगवान श्री विष्णु को हमारी ऒर से प्रणाम और आप हमें आपनी कृपा दृष्टि प्रदान करें!! Written by  सोनू सीनू शर्मा

"महिला और युवती विकास सेवा संस्थान के तत्वावधान में गंगा सफाई के लिए जन आंदोलन"

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स्टीमर पर जाने के लिए पक्कीकरण मरीन ड्राइव जो बीच मे से टूटा है वो ठीक हो मरीन ड्राइव की साफ सफाई हो महिला विकास सेवा संस्थान और युवती विकास सेवा संस्थान के संयुक्त तत्वावधान में अगर अविलंब स्टीमर घाट के रास्ते का पक्कीकरण, और मरीन ड्राइव को रामरेखा घाट से पुल को नही जोड़ा गया और मरीन ड्राईव की सफाई नही हुआ तो इसके लिए जन आंदोलन करेंगी बरसात में बहुत प्रॉब्लम हो रही है जबकि यू,पी,बिहार  से हजारों लोग स्टीमर से आते जाते है और सरकार को ठिका होती है इस जगह की और गंगा सफाई योजना के नाम पर सिर्फ लूट हो रही हैं कोई सफाई नही हो रहा है मरीन ड्राइव भी बदतर हो चुका है और एक बरसात में ही बीच से पुल टूट गया और इसकी सफाई न होने से मरीन ड्राइव पर सुबह,शाम टहलने वाले लोग सभी आंदोलन करने के बाध्य हैं नगरपालिका,और प्रशासन जल्द इसका निर्माण व सफाई नही करते है तो महिला संस्थान व युवती संस्थान इसके लिए आंदोलन करने पर विवश होगी जिसमें जौनपुर उतर प्रदेश प्रभारी बेबी देवी और जिला अध्यक्ष,शिल्पी देवी,कार्यकारी अध्यक्ष रम्भा देवी,जिला कोषाध्यक्ष किरण जायसवाल,नगर अध्यक्ष रानी  पासवान,उपाध्यक्ष किरण प्रजापति, कार

"पितृ दिवस"(कविता)

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परिवार का सारे कर्च उठाते, चेहरे पर मुस्कान सजाते दर्द-पीड़ा वो सब सह जाते, कौन पापा, मेरे पापा, पापा, मेरे पापा|| अधूरी रहे न हम सब की ख़्वाहिश, मेहनत वो दिन-रात है करते थके-हारे घर पर आते, कौन पापा, मेरे पापा, पापा, मेरे पापा|| अपनी परवाह कभी न करते, समस्याओं से, रोज गुजरते खुशियाँ में हमारी कमी न लाते, कौन पापा, मेरे पापा, पापा, मेरे पापा|| शौक पूरे होते, उन्ही के धन से, वरना, खर्चे पूरे न होते गम, चुपके से सह सब जाते, कौन पापा, मेरे पापा, पापा, मेरे पापा|| कुम्हारे के जैसा व्यक्तित्व उनका, कोमल, कठोर सा हृदय रखते उज्ज्वल भविष्य जो कामना करते, कौन पापा, मेरे पापा, पापा, मेरे पापा|| उनके राज में, सब मौज मनाते, दुख-दर्द कभी भी छु न पाते ढाल बन तैयार खड़े वो, कौन पापा, मेरे पापा, पापा, मेरे पापा|| दुनियाँ उनके बिन अधूरी, प्यारे-सच्चे दोस्त हमारे सब इच्छा, तमन्ना पूरी करते, कौन पापा, मेरे पापा, पापा मेरे पापा|| अकड़-आँख न उन्हे दिखाऊँ, उनके लिए सब दांव लगाऊँ चिंता फिक्र जो सबकी करते, कौन पापा, मेरे पापा, पापा मेरे पापा|| Written by  फूल सिंह

"नशा उन्मूलन पर दोहे"

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आज अंतर्राष्ट्रीय नशा निरोधक दिवस है।सभी भारत वासियों का, मैं वंदन,अभिनन्दन करता हूँ और एक विनम्र निवेदन करता हूँ कि नशा करने वाले भाईयों,मित्रों,नशे से अति दूर रहें,अगर करते हैं,तो संकल्प के साथ छोड़ दें,यह प्राण लेवा है,रोग दाता है,धन का दुश्मन है,अपमान की जड़ है।आप नशा छोड़ेंगे,निरोगी रहेंगे।      आपके लिये निम्न नशा उन्मूलन पर दोहे,,,, मदिरा से मुख मोड़ लो,है बीमारी खान। जो इससे अति दूर हैं,सोते चादर तान।। भाँग, धतूरा छोड़ि के,पी गौ माँ का दूध। बढ़े ज्ञान,तन मन सहज,भागे भ्रम का भूत।। हुक्का,चिलम न पीजिये,गांजा,चरस,मिलाय। कितने पीकर चल बसे,बहुत रहे हैं जाय।। तम्बाकू जो खात हैं,दाँत आँत दे चोट। कुछ तो असमय भूमि पर,मयंक रहे हैं लोट।। बीड़ी,सिगरेट गन्ध से,महकें वस्त्र नवीन। कितनों का झोपड़ जला,अनगिन घर कालीन।। बहुतायत बर्बाद हैं,राजा बने गरीब। नशा कहे आना नहीं,कोई मयंक करीब।। दर दर ठोकर खात हैं,नशा किये कुछ लोग। उनके तन,मन,उर,बसे,तरह तरह के रोग।। पान मसाला है जहर,फिर भी खाते भाय। जानबूझकर रोग को,तन,उर रहे बसाय।। Written by  मयंक किशोर शुक्ल वरिष्ठ कवि लेखक साहित्य सम्पादक

"घना अंधेरा"(लेख)

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घना अंधेरा भाई की एक आवाज पर,भाई आकर खड़ा हो जाय,उसे भाई कहते हैं और बिना कुछ कहे मित्र समझ जाय,उसे मित्र कहते हैं।जिनके पास ऐसे भाई और मित्र हैं,उन्हें कोई शत्रु घेर नहीं सकता,परेशानी परेशान नहीं कर सकती,गरीबी,मुसीबत सता नहीं सकती।         छणिक लाभ के लिये,अपने भाई को छोड़ना नहीं चाहिये,सम्बन्ध खराब नहीं करने चाहिये।भाई गरीब हो या अमीर,छोटा हो या बड़ा,पढ़ा लिखा हो या गैर पढा लिखा।इस संसार में दूसरा भाई नहीं हो सकता।        मित्रता,गरीबी अमीरी देख के नहीं होती,जाति धर्म के आधार पर नहीं होती।सब मित्र हो भी नहीं सकते,मित्र बनाने की वस्तु नहीं है।मित्र की मित्रता को शब्दों में परिभाषित नहीं किया जा सकता।मित्र के अभाव में कैसी जीवन यात्रा,कैसा सुख।     आइए,भाई और मित्र को,हमेशा अपनी साँस समझें,जीवन नौका की पतवार समझें,अपना समझें,इनके बिना प्रकाश होते हुए भी जीवन में घना अंधेरा है। Written by  मयंक किशोर शुक्ल वरिष्ठ कवि लेखक साहित्य सम्पादक

"विश्व योग दिवस"(दोहे)

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विश्व योग दिवस दिनांक 21,06,2021 के अवसर पर ,सभी भारत वासियों को शुभ शुभ बधाई।पर्याप्त दूरी बनाकर प्रातः काल योग करें,सूर्य नमस्कार करें,सभी स्वजनों के निरोगी रहने की मंगल प्रार्थना करें।आपके लिये निम्न दोहे,,,, तन की कसरत सब करें,मन की करे न कोय। मन से योगा जो करे,दुख काहे को होय।। साँस खींचकर रोकिये,साँस छोड़िये यार। बीस बार जो भी करे,कभी न हो बीमार।। जल सेवन नित भोर कर,चलो मील दो मील। सुंदर कद,काठी रहे,बदन न होवे ढील।। डनलप गद्दा छोड़िये,लेटो तख्ता भूमि। भोर पहर कसरत करो,घूमो दिन भर झूमि।। मेहनत इतना कीजिये,बहे पसीना पीठ। पेट,बदन सुडौल बने,मन होवे निर्भीक।। Written by  मयंक किशोर शुक्ल वरिष्ठ कवि लेखक साहित्य सम्पादक

"प्रपंची"(कविता)

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 अब तो जारी बारिशें बेमौसमी , खिड़की से झांकती है लड़की । अदा ख्वाब़ में कैदी वहमी , बिना चुल्हा-चौका के कैसे रोटियां पकी ? महंगाइयों में नहीं होती कमी , कुत्तें भी लगाये हैं टकटकी । लौटने दो सूरज की बेशर्मी, चेहरा पे पसीना से धकधकी । रातों की बातें -अंधेरा बेरहमी , हवायें भी दी हमें घुड़की । खिलौना से खेला बचपना अहमी , आग यहीं और चिड़िया चहकी । घोसला से पिंजर तक मौसमी , डरती बहेलिया से हो हक्कीबक्की । चौतरफा साजिशें और  प्रियतमा सहमी , परछाइयाँ भी सखी हेतु रूकी। गुजारिशें सांसों की कहाँ  रस्मी , प्रपंची से विषकन्या  क्या थकी ? कब्रों पे अकेले कहाँ आदमी , फिर भी अलविदा हीं पक्की ! Written by विजय शंकर प्रसाद पता - तिलक मैदान रोड ,एजाजी मार्ग, कुर्मी टोला ,मुजफ्फरपुर (बिहार )

"सिलवटें"(कविता)

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देवों द्वारा रचा गया होगा सुहागरातें , फिर आदमी तक आया ये बातें । दुनिया में फिर भी क्यों बहुबातें , सौंदर्यों के पीछे फिसलना ज्ञातें । उमंगों के रंगों को क्या सहलाते , सेजों पे सिलवटें क्यों हैं भाते ? इश्क और वासना पे क्यों सकुचाते , पृच्छा भी क्यों कवि के नाते ? सिक्कों से क्या ये हैं तौलाते , अंधेरा में जिस्म़ पे क्या हालातें ? ज्यों दिलों पे लहरें दरबाजें खटखटाते , फिर आग को कहाँ तक बुझाते ? चंदा की दिशा से  क्या लाते, बादलों के ओटों में  गुमशुदगी पाते। सितारों हेतु गंतव्यता पे हैं सवालाते , जागना नियति तो ख्वाब़ क्या मुस्काते ? अश्कें मिटाने में शब्दों तक जज्बातें , फूलों की पंखुड़ियों को कहाँ गिराते ? प्रियतमा ! तेरी अदा से क्या टकराते , स़़च़ को कहाँ -कहाँ दीवारें हीं झूठलाते ? आखिरी ख्वाहिश़ क्यों नदी में बहाते , समंदर को कैसे पीठें लम्हें दिखाते ? प्यासी मछलियां और पानी की ठाते ,  क्या नहीं तितलियां संग  भौरें   कतराते ? Written by विजय शंकर प्रसाद पता - तिलक मैदान रोड ,एजाजी मार्ग, कुर्मी टोला ,मुजफ्फरपुर (बिहार )

"सिसकियां"(कविता)

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आग और अंगराइयाँ में महफिल , सहलाना और पिघलाना क्या खता ? दरबाजा खुला रखा था दिल , सीढियां पे चढके आना-जाना पता । मखमली सेजें और नयना कातिल , नशीली रातों में क्या - क्या आहिस्ता ? अंधेरे में चहलकदमी भी हासिल , कहाँ तक रसपानें और कहाँ तीव्रता ? सिलवटें निशानी तथा फिसला चील़ , गुजरते लम्हों पे क्या - क्या थिरकता ? नोचते जिस्म़ पे सिसकियां साहिल, सुधि कहाँ और क्या लापता ? पर्दा डाला और ठोका कील़ , आईना  स़च़ पे है मरता । प्रियतमा की ख्वाहिश़ कहाँ काबिल , जवानी का सफर कितना अड़ता ? तेरी रागिनी में मैं मंजिल , कांटा पे बढा जुगनू गिरता -पड़ता । जहरों की बू बनाया गाफिल़ , सुधा हेतु तकदीर कहाँ पसरता ? गुजारिशें और बारिशें भी तंद्रिल़ , जिंदा लाशें कौन स्वीकार करता ? लूटना-लुटाना तक छाया आखिर बोझिल , सबेरे सूरज कैसे इश्क भरता ? Written by विजय शंकर प्रसाद पता - तिलक मैदान रोड ,एजाजी मार्ग, कुर्मी टोला ,मुजफ्फरपुर (बिहार )

"सवाल करो , सवाल करो"(कविता)

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 सवाल करो , सवाल करो अपने हक में , सवाल करो मजलूमो की पहचान बनो हक के लिए सवाल करो उठो , गिरो , लड़खड़ाओ अपने हक पर ना तरस खाओ विपरीत हो चाहे वक्त फिर भी तुम सवाल करो। कोई कितने भी सिल दे होंठ  जुबान को लहूलुहान करो रात के सन्नाटे को तोड़कर सुबह का तुम आगाज करो सवाल करो , सवाल करो अपने हक में सवाल करो ये मुफलिसी की बेड़ियां कब टूटेगी मुरझाए चेहरों पर हंसी कब छूटेगी खामोश बेटे हुकुमरानो से बेखौफ हो सवाल करो Written by  कमल  राठौर साहिल

"बात तो कर"(कविता)

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गुस्से  को   थूक   दे  जरा  बात  तो  कर मेरा  न  सही मोहब्बत  का  मान तो कर तेरा यू खामोशियों  से  घेरा चेहरा अच्छा नही लग रहा होंठसे कोई हरकत तो कर अब और ना तड़पा न ले  इम्तिहान  मेरा गलति  की  सज़ा दे  मूझे  माफ  तो  कर तेरा  गुस्सा  जायज़  है  पर  थोड़ी   इस  नादान  दिल  की  थोड़ी  फिक्र  तो  कर  भीगीं पलकें लेकर इस हाल में हम कहा   जाए   हो  सके  तो थोड़ी  बात  तो  कर  तुम  ही  हो जिसे मेरा  हाल ए दिल पता  है अब और  हमें टूटने पर मजबूर न कर Written by  नीक राजपूत

"बाल श्रम"(कविता)

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ज़िंदगी ने  पढाई  की उम्र में,   मजदूरी करवाई  दो वक्त की रोटी ने सारी खुशियाँ भुलाई,   खेल कूद  की उम्र में ज़िंदगी। ने चाय की  दुकान ढाबों पर,    मेहनत करवाई, ईंटे उठाकर  छोटी  उम्र, में  हमने  अपनी।   पीठ   तुड़वाई  जम्मेदारी ने, हमारी  जरूरतें  भुलाई   दो।   वक़्त की रोटी ने  कुछ  ऐसे, हमारी तकदीर,  बनाई  पूरी।   ज़िंदगी  श्रम मजदूरी  करते,  गुजरी   कदम    कदम   पर,   मिली चुनौती और कठिनाई। Written by  नीक राजपूत

"जुल्फ़े"(कविता)

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में  नही चाहता  की तुम जुल्फें बांध कर हवाओं   को नाराज़ करदो। इन्हें ऐसे ही खुले  रेहने दो। एक  यहीँ  तो है  जो मेरी  तमाम  हसरतें और ख्वाहिशो को जिंदा  रखतीं  है।   क्योंकि  वैसे तो मुझे बिखरी चीज़े    पसँद   नही  एक तेरी   जुल्फें ही  हैं जिस्से हमें  कोई गिला  शिकवा नही हमें  गले   लगा  ने का मौका तक नही मिलता   एक   तेरी  ज़ुल्फ़ ही गालो को  अक्सर चूमा करती है एक यहीँ औज़ार  बिखरा   कर जुल्फें  करतीं  हो तुम  वार जान तो तुम ले नही  सकती   बस   यहीं एक आसान तरीका जिस्से  तुम   हमारा  क़त्ल   करती   हो। Written by  नीक राजपूत

"धुम्रपान की लत छोड़ो"(कविता)

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नशा  जो  थोड़ी  देर के लिएँ  है मजा लत पड गई नशे की तो है एक  सजा आजकल  नशा  आकर्षक का केंद्र   बन चुका  है।  टीनएजर्स  तो  ठीक आजकल  बच्चे  भी  खैनी  गुटखा,    सिगरेट, के  गुलाम  हो रहें  है  बुरी  संगत  का  नतीजा  है जो  आपकों   जान-लेवा  कैंसर  जैसी  बीमारियों,  तक घसीट कर ले जाता है आपको   पता है कैंसर से पीड़ित सलोगों की  गिनति  हर साल  अधिक  होती जा   रही है  एक  साल  में करिबन आठ लाख लोगो  से  ज़िया दा मौते होती    हैं  कैंसर,  जैसी  बीमारियों  से  हमें  बचने के  लिए  खुद को  दूर  रखना   होगा बुरी आदतों  खुद  को  बचाना  होगा  क्योंकि,   हमारा   स्वास्थ्य है    बड़ा  अनमोल  आपको   दो  रूपए  की  खैनी  गुटका  अंत  मे  आपको    लाखों रुपए में  पड़ेगी जीवन बचाने के लिए धुम्रपान करना छोडो अच्छे   स्वास्थ्य से  जीवन का  नाता  जोड़ो Written by  नीक राजपूत

"सुपंथ पर चलें"(लेख)

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सुपंथ पर चलें सुपंथ पर चलने के लिये,परोपकारी कार्य सम्पादित करने के लिये,ज्ञानमयी वातावरण बनाने के लिये,एकता अखण्डता को मजबूती देने के लिये,परस्पर प्रेम बढाने के लिये,नयी पीढ़ी को साथ लेकर चलें,उन्हें आगे रखें,खुले मन से अवसर दें।ऐसा करने से घर,परिवार,समाज,देश की तस्वीर बदल जाएगी। अकण्टक जीवन बनाने के लिये,हम सबको अपनी सहन शक्ति और समझ शक्ति को मजबूत करना चाहिये।इसके लिये  हमें अपनी मन इंद्रियों को नियंत्रित करना होगा।द्वेष,ईर्ष्या,स्वार्थ,लोभ का त्याग करना होगा।सोलह कलाओं का ज्ञान प्राप्त करने के लिये ,आचार्य गुरू के सानिध्य में साधना करना होगा।तभी हम सब अज्ञान रूपी तम को मिटा सकेंगे,परस्पर प्रेम के दीप घर,घर,द्वार,द्वार,मार्ग में जला सकेंगे,लोक मंगल के गीत गा सकेंगे,दूसरों के दुख बाँट सकेंगे,प्रकृति की मोहक सुंदरता की कथाएँ,कहानियाँ, नयी पीढ़ी को सुना सकेंगे। आइये, घ्रणा,हिंसा को अतिदूर कर,अपनी मधुर वाणी से,सद्व्यवहार से,पारदर्शी चरित्र से,घर,परिवार,समाज को नया रूप दें। मानव जीवन में रूठना और मनाना एक क्रम है।कभी बच्चे रूठते हैं,भाई,कभी बहिन,कभी माता पिता,कभी रिश्तेदार और कभी मित्र । ज