"सवाल करो , सवाल करो"(कविता)

 सवाल करो , सवाल करो

अपने हक में , सवाल करो

मजलूमो की पहचान बनो

हक के लिए सवाल करो


उठो , गिरो , लड़खड़ाओ

अपने हक पर ना तरस खाओ

विपरीत हो चाहे वक्त

फिर भी तुम सवाल करो।


कोई कितने भी सिल दे होंठ 

जुबान को लहूलुहान करो

रात के सन्नाटे को तोड़कर

सुबह का तुम आगाज करो


सवाल करो , सवाल करो

अपने हक में सवाल करो


ये मुफलिसी की बेड़ियां कब टूटेगी

मुरझाए चेहरों पर हंसी कब छूटेगी

खामोश बेटे हुकुमरानो से

बेखौफ हो सवाल करो

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