"प्रपंची"(कविता)

 अब तो जारी बारिशें बेमौसमी ,

खिड़की से झांकती है लड़की ।

अदा ख्वाब़ में कैदी वहमी ,

बिना चुल्हा-चौका के कैसे रोटियां पकी ?

महंगाइयों में नहीं होती कमी ,

कुत्तें भी लगाये हैं टकटकी ।

लौटने दो सूरज की बेशर्मी,

चेहरा पे पसीना से धकधकी ।

रातों की बातें -अंधेरा बेरहमी ,

हवायें भी दी हमें घुड़की ।

खिलौना से खेला बचपना अहमी ,

आग यहीं और चिड़िया चहकी ।

घोसला से पिंजर तक मौसमी ,

डरती बहेलिया से हो हक्कीबक्की ।

चौतरफा साजिशें और  प्रियतमा सहमी ,

परछाइयाँ भी सखी हेतु रूकी।

गुजारिशें सांसों की कहाँ  रस्मी ,

प्रपंची से विषकन्या  क्या थकी ?

कब्रों पे अकेले कहाँ आदमी ,

फिर भी अलविदा हीं पक्की !

पता - तिलक मैदान रोड ,एजाजी मार्ग, कुर्मी टोला ,मुजफ्फरपुर (बिहार )

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