"सिसकियां"(कविता)

आग और अंगराइयाँ में महफिल ,

सहलाना और पिघलाना क्या खता ?

दरबाजा खुला रखा था दिल ,

सीढियां पे चढके आना-जाना पता ।

मखमली सेजें और नयना कातिल ,

नशीली रातों में क्या - क्या आहिस्ता ?

अंधेरे में चहलकदमी भी हासिल ,

कहाँ तक रसपानें और कहाँ तीव्रता ?

सिलवटें निशानी तथा फिसला चील़ ,

गुजरते लम्हों पे क्या - क्या थिरकता ?

नोचते जिस्म़ पे सिसकियां साहिल,

सुधि कहाँ और क्या लापता ?

पर्दा डाला और ठोका कील़ ,

आईना  स़च़ पे है मरता ।

प्रियतमा की ख्वाहिश़ कहाँ काबिल ,

जवानी का सफर कितना अड़ता ?

तेरी रागिनी में मैं मंजिल ,

कांटा पे बढा जुगनू गिरता -पड़ता ।

जहरों की बू बनाया गाफिल़ ,

सुधा हेतु तकदीर कहाँ पसरता ?

गुजारिशें और बारिशें भी तंद्रिल़ ,

जिंदा लाशें कौन स्वीकार करता ?

लूटना-लुटाना तक छाया आखिर बोझिल ,

सबेरे सूरज कैसे इश्क भरता ?

पता - तिलक मैदान रोड ,एजाजी मार्ग, कुर्मी टोला ,मुजफ्फरपुर (बिहार )

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