"सिसकियां"(कविता)
आग और अंगराइयाँ में महफिल ,
सहलाना और पिघलाना क्या खता ?
दरबाजा खुला रखा था दिल ,
सीढियां पे चढके आना-जाना पता ।
मखमली सेजें और नयना कातिल ,
नशीली रातों में क्या - क्या आहिस्ता ?
अंधेरे में चहलकदमी भी हासिल ,
कहाँ तक रसपानें और कहाँ तीव्रता ?
सिलवटें निशानी तथा फिसला चील़ ,
गुजरते लम्हों पे क्या - क्या थिरकता ?
नोचते जिस्म़ पे सिसकियां साहिल,
सुधि कहाँ और क्या लापता ?
पर्दा डाला और ठोका कील़ ,
आईना स़च़ पे है मरता ।
प्रियतमा की ख्वाहिश़ कहाँ काबिल ,
जवानी का सफर कितना अड़ता ?
तेरी रागिनी में मैं मंजिल ,
कांटा पे बढा जुगनू गिरता -पड़ता ।
जहरों की बू बनाया गाफिल़ ,
सुधा हेतु तकदीर कहाँ पसरता ?
गुजारिशें और बारिशें भी तंद्रिल़ ,
जिंदा लाशें कौन स्वीकार करता ?
लूटना-लुटाना तक छाया आखिर बोझिल ,
सबेरे सूरज कैसे इश्क भरता ?
Written by विजय शंकर प्रसाद
पता - तिलक मैदान रोड ,एजाजी मार्ग, कुर्मी टोला ,मुजफ्फरपुर (बिहार )
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